“पैसा तो सिर्फ कागज का एक टुकड़ा है लेकिन इस पैसे के बदले हमें जो वस्तुएं मिलती हैं वही इसकी कीमत निर्धारित करता है,” यह कहना है 66 साल के मणि कृष्णन का, जो सिर्फ एक सूटकेस और आँखों में सपने लिए अमेरिका चले गए थे।
अन्य लोगों की तरह कृष्णन भी एक बेहतर अवसर की तलाश में अमेरिका गए। हालाँकि उनका परिवार पहले से ही वहाँ रहता था। लेकिन विदेश की धरती पर रोजी-रोटी का जुगाड़ करना अपने आप में चुनौतियों और बाधाओं से भरा था। बात चाहे एकदम नए सिरे से बिजनेस शुरू करने की हो या एकदम असफल हो जाने की, उन्होंने कभी भी खुद को टूटने नहीं दिया, बल्कि हर असफलता के बाद वह पहले से अधिक मजबूत होते गए।
आज वह शास्ता फूड्स नाम के एक सफल फूड इंटरप्राइज के मालिक हैं। उन्होंने पिछले 17 सालों में पूरे अमेरिका के साथ-साथ कनाडा में भी ग्राहकों को 170 मिलियन( 17 करोड़) से अधिक डोसे बेचे हैं।
डोसा बैटर के बिजनेस की शुरूआत
1963 में कृष्णन का परिवार सैन जोस, कैलिफोर्निया चला गया। वह अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए रुक गए। अगस्त 1977 में वह अपने परिवार के पास चले गए।
उन्होंने कॉमर्स में ग्रैजुएशन करने के बाद मुंबई में नौकरी की और एकाउंटिंग का अनुभव हासिल किया। वहाँ वह एक टेक कंपनी में काम करते थे। अगले कुछ सालों तक उन्होंने कई टेक कंपनियों में काम किया। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
वह हमेशा से कुछ अपना करना चाहते थे और अपना बॉस खुद बनना चाहते थे। इसलिए 1981 में उन्होंने एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने 20 सालों से अधिक समय तक बिजनेस किया जिसमें काफी उतार-चढ़ाव आया और अंत में उनका बिजनेस बंद हो गया।
कृष्णन बताते हैं, “मेरे पास अपने परिवार की मदद करने का कोई जरिया नहीं बचा। मैंने अपना घर गिरवी रख दिया और 2003 में डोसा बैटर बेचने का नया बिजनेस शुरू किया। दरअसल, मैंने यह महसूस किया कि अमेरिका में इंडियन फूड की काफी मांग है क्योंकि ये बनाने में भी आसान है और साथ ही सस्ते भी हैं।”
शुरू में निवेश करने के बाद उनके पास बहुत कम पैसे बचे। कृष्णन ने अपनी पत्नी आनंदी की मदद से अपने घर में फूड इंटरप्राइज खोला। डोसा बैटर बनाने से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन के लिए लेबलिंग करने तक हर चीज का ध्यान रखा गया।
सुबह 7 बजे उनके दिन की शुरूआत होती थी। वह 2 लीटर के ग्राइंडर में ताजा फर्मेंटेड बैटर बनाते थे। फिर इसे 1 किलो के कंटेनरों में पैक ( जिससे कि 16 होम-साइज़ डोसा बन सकता था) करके लेबल लगाया जाता था और आसपास की दुकानों में डिस्ट्रिब्यूशन के लिए ले जाया जाता था।
वह आगे बताते हैं, “घर के खाने के स्वाद के लिए तरस रहे प्रवासी भारतीयों की संख्या ज्यादा थी। शुरूआत में यही मेरे टारगेट ऑडियंस रहे। मैं सैन जोस के चारों ओर एक किराने की दुकान से दूसरे में जाकर उनके स्टोर में अपने बैटर बेचने का अनुरोध करता था। शुरुआत में लगभग 10 दुकानदार इस शर्त पर तैयार हुए कि अगर उनके दुकान में बैटर की बिक्री होगी तभी वे मुझे पैसे देंगे। वहाँ बैटर बेचने वाले कुछ और छोटे बिजनेस थे लेकिन हम अपना सामान बनाने में मशीनों का उपयोग करके, लेबल के साथ और एफडीए के उचित दिशानिर्देशों का पालन करते थे। इसलिए हमारे प्रोडक्ट पर उनका विश्वास बना। मैं फॉलो अप लेने के लिए हर दिन उन्हें फोन करता था और यहाँ तक कि जो पैकेट नहीं बिकते उन्हें वापस लेने के लिए भी जाता था। शुरुआत में तो ये सब मुश्किलें आती ही हैं।”
शिखर पर पहुँचना
शुरूआती दिक्कतों के बावजूद वह पहले साल लगभग 1,000 कंटेनर डोसा बैटर बेचने में कामयाब रहे। 2005 तक शास्ता फूड से कृष्णन को काफी मुनाफा हुआ और उन्होंने अपने गिरवी रखे घर को वापस ले लिया। 2006 तक देश भर में उनके प्रोडक्ट की भारी मांग होने लगी।
10 दुकानों से अब वह 10 राज्यों में 350 स्टोर में बैटर डिस्ट्रिब्यूट करते हैं। उन्होंने एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म भी लॉन्च किया है जो डोसा बैटर और कई अन्य उत्पादों को अमेरिका में 48 राज्यों के साथ-साथ कनाडा के कई हिस्सों में पहुँचाता है।अपनी सफलता के बारे में पूछने पर वह बताते हैं, “मैं कुछ भी हल्के में नहीं लेता। हमारे लिए सर्विस और क्वालिटी सबसे ऊपर है। कभी-कभी तापमान या स्टोरेज की समस्या के कारण चीजें खराब हो जाती हैं तो मैं खुद इसकी जिम्मेदारी लेता हूँ। मैं दुकानदार के पैसे वापस कर देता हूँ या फिर प्रोडक्ट वापस ले लेता हूँ। शिकायत मिलने पर मैं खुद ग्राहकों के घर जाता हूँ और आधे खाली पैकेट को वापस लेता हूँ या ताजे पैकेट देता हूँ। मैं हमेशा ग्राहकों को अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट खरीदने की सलाह देता हूँ ताकि उनका पैसा बर्बाद न हो।”
सैन जोस में शुरू हुआ छोटा सा बिजनेस एक आइकॉनिक प्रोडक्ट के रुप में आगे बढ़ा और अब वह भारतीय समुदाय की पहचान बन चुका है। यहाँ तक कि मिंडी कलिंग और अमेरिकी सीनेटर कमला हैरिस जैसी प्रमुख हस्तियों ने अपने एक वीडियो में इसका जिक्र किया है।
कृष्णन कहते हैं, “अमेरिकी सीनेटर कमला हैरिस के साथ मिंडी कलिंग ने जो वीडियो बनाया था, वह देखकर मुझे काफी आश्चर्य हुआ और मैं उनका बहुत आभारी हूँ।”
डबलिन सिटी, कैलिफ़ोर्निया के रहने वाले प्रभु वेंकटेश सुब्रमण्यन कृष्णन के सबसे पुराने ग्राहकों में से एक है।
वह कहते हैं, “उनकी खासियत यह है कि वह ग्राहकों के फीडबैक को प्राथमिकता देते हैं। किसी भी समय खराब वस्तुओं के बारे में शिकायत करने या निगेटिव फीडबैक देने पर वह इसे पॉजिटिव लेते हैं। मैंने कंपनी को 35,000 वर्ग फुट की मैनुफैक्चरिंग यूनिट और गोदाम में सिर्फ दो ग्राइंडर के साथ एक छोटी सी जगह से बढ़ते देखा है और अभी तक उनके तरीकों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। उनके बिजनेस में एक पारदर्शिता है और उनकी फैक्ट्री में कोई भी ग्राहक प्रोडक्ट की क्वालिटी का स्तर देखने के लिए जा सकता है। हमारे घर में खासतौर से उनके जौ-बाजरे और ऑर्गेनिक किस्मों का डोसा बैटर का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा हम चावल, दाल, फिल्टर कॉफी और जिंजेली ऑयल भी खरीदते हैं।”
डोसा बैटर की लगभग 16 किस्मों से लेकर चावल, दाल, अनाज, अचार, मिठाई और बाजरे से बनी वस्तुओं और अन्य जैविक किस्मों की रोजमर्रा की वस्तुएं शास्ता फूड्स में ऑनलाइन और रिटेल दुकानों दोनों में काफी उत्पाद हैं। अगले कुछ सालों में कृष्णन डोसे को एक हेल्दी ऑप्शन बनाना चाहते हैं।
पैसे से कहीं बढ़कर है मेरा बिजनेस
एक दशक से अधिक समय से शास्ता फूड्स को चलाने के बाद कृष्णन का मानना है कि यह कमर्शियल इंटरप्राइज से कहीं बढ़कर है।
वह कहते हैं, “बड़ा घर या विलासितापूर्ण लाइफस्टाइल कभी भी मेरा लक्ष्य नहीं था। मैं अनुभव से जानता हूँ कि पैसा आता और जाता रहता है। मैं कुछ ऐसा बनाना चाहता था जो एक सार्थक बदलाव ला सके। इसलिए शास्ता फूड्स में हमारे कुछ कच्चे माल जैसे हेरिटेज राइस की किस्में जिन्हें हम जल्द ही लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं, सीधे दक्षिण भारत के हिस्सों से किसानों से खरीदे जाते हैं। अपने ब्रांड के जरिए हम इसके चारों ओर जागरूकता फैलाने और इन विलुप्त किस्मों को बचाने की कोशिश कर सकते हैं।”
तमिलनाडु के तिरुवरूर के 65 वर्षीय किसान आर चंद्रमोहन उन कुछ लोगों में से एक हैं, जो राज्य में हेरिटेज राइस वेरिएंट की खेती करते आ रहे हैं। उनका कहना है, “हालांकि, हेरिटेज राइस की मांग है, लेकिन इसकी उपज कम है। इसके अलावा, इन क्षेत्रों में अच्छी चक्की मिल पाना काफी मुश्किल है।”
मंज़ाकुडी में स्वामी दयानंद फ़ार्म्स की मदद और मार्गदर्शन से चंद्रमोहन जैसे किसान इन किस्मों की अधिक खेती कर पा रहे हैं। 2011 के बाद से संगठन पूरे भारत में 247 किस्मों के चावल को बचाने में सफल रहा है, जैसे कि रंधोनी पागल (पश्चिम बंगाल), काला नमक (उत्तर प्रदेश), कोन जोहा (पश्चिम बंगाल), बोरा (असम), कल उरुंदई चम्पा ( तमिलनाडु) आदि।
ऐसे वेरिएंट्स को बचाने के महत्व के बारे में बात करते हुए स्वामी दयानंद एजुकेशनल ट्रस्ट की चेयरपर्सन और मैनेजिंग ट्रस्टी शीला बालाजी कहती हैं, “एक ऐसा समय था, जब हर गाँव में चावल की किस्में पैदा होती थीं। रिपोर्ट के अनुसार हमारे पास हेरिटेज चावल की 100,000 से अधिक किस्में हैं। कुछ साल पहले, हम अपने हेरिटेज राइस वेरिएंट को खोने के कगार पर थे। कुछ किसानों के समूहों के प्रयासों से हम उनका संरक्षण और संवर्धन करने में कामयाब हुए हैं। हमें यह याद रखना होगा कि अगर हम अपनी लैंड रेसेज (हेरिटेज राइस की किस्में) खो देते हैं, तो हमें जैव विविधता को खोना पड़ सकता है जो खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक है।”
शास्ता फूड्स में कृष्णन द्वारा हेरिटेज राइस वेरिएंट की नई लांचिग के बारे में बात करते हुए चंद्रमोहन कहते हैं, “जब हमें पता चला कि चावल, संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले कई परिवारों तक पहुँचने वाला है, तो हम बेहद खुश हुए। इस तरह की पहल हमें प्रोत्साहित करती है और यह किसानों को हेरिटेज राइस की पैदावार को बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। इस तरह की पहल करने के लिए किसानों को कमिटेड टीमों की आवश्यकता होती है, जो हर कदम पर उनके साथ रह सकें। मुझे बस इतना करना था कि चावल की खेती ऑर्गेनिक रुप से करनी थी। इसके अलावा बाकी चीजों का भी ध्यान रखा गया था और मैं अगले सीजन का इंतजार कर रहा हूँ।”
कृष्णन एक ऐसे व्यक्ति हैं जो इस विश्वास से जीते हैं कि उनका काम ही सच्ची पूजा है और भारत में अधिक लोगों की मदद करने के लिए इसे एवेन्यू के रूप में बढ़ाने की उम्मीद है।
वह कहते हैं, “बड़े होने के बाद मैं पढ़ाई में कमजोर निकला, जबकि मेरी बहन गोल्ड मेडलिस्ट स्टूडेंट थी। मेरा भाई आईआईएम से ग्रैजुएट था। उस समय मुझे काफी बुरा लगता था, लेकिन अब जब मैं पीछे मुड़कर अपने काम को देखता हूँ तो मुझे बेहद खुशी मिलती है। फिर वह अफसोस पीछे छूट जाता है। दिन खत्म होते अगर आप पूरे जोश और मेहनत के साथ कुछ करते हैं, और कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या रह गया, आखिरकार सब कुछ ठीक हो जाता है।”
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मूल लेख- अनन्या बरुआ
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