यूं तो, द बेटर इंडिया हिंदी के पाठक ही हैं हमारी सच्ची ख़ुशी और प्रेरणा। लेकिन आपकी वजह से इस साल कइयों के जीवन में बदलाव भी आया है। हमारी कहानियों को अगर आपका प्यार और सहयोग न मिलता तो शायद यह बदलाव लाना नामुमकिन होता। चलिए जानते हैं 2023 में किन कहानियों में दिखा बदलाव का असर।
द बेटर इंडिया की कहानी का असर, वर्मीकम्पोस्ट का काम 200 बेड्स से बढ़कर पहुंचा 1100 तक
Ph.d. की पढ़ाई करने के बाद वर्मीकम्पोस्ट का काम शुरू करने वाले जयपुर के डॉ. श्रवण यादव को लोगों ने कहा- डॉक्टर होकर खाद बेचोगे। आज वह हजारों युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे हैं और खुद भी लाखों रुपये कमा रहे हैं। अपनी सफलता का श्रेय वह द बेटर इंडिया को देते हैं।
31 वर्षीय डॉ. श्रवण यादव, ‘डॉ. ऑर्गेनिक वर्मीकम्पोस्ट’ नाम से वर्मीकम्पोस्ट बिजनेस बिज़नेस चलाते हैं। वह जैविक खेती में इतनी रुचि रखते हैं कि बड़ी-बड़ी डिग्री हासिल करने के बाद भी उन्होंने नौकरी करने के बजाय खाद बेचने का काम शुरू किया। उस दौरान नौकरी छोड़कर वर्मीकम्पोस्ट बिजनेस करने पर उन्हें कई बार ताना भी सुनने को मिलता था।
लेकिन जैविक खेती के लिए उनके प्रयासों को सराहते हुए द बेटर इंडिया ने उनके स्टार्टअप का एक लेख प्रकाशित किया था। श्रवण बताते हैं कि वह लेख उनके लिए काफी मददगार साबित हुआ। उन्हें 50 से ज़्यादा राष्ट्रीय और लोकल मीडिया हाउस की ओर से कवर किया गया।
साथ ही देश भर से युवाओं ने उनके यूट्यूब चैनल से जुड़ना शुरू किया। कई लोग उनके पास ट्रेनिंग के लिए भी आए। वहीं, देशभर से उन्हें वर्मीकम्पोस्ट का ऑर्डर मिलना शुरू हुआ। आज वह 1100 बेड में वर्मीकम्पोस्ट बनाकर बेच रहे हैं, साथ ही अब तक हजार युवाओं की वर्मीकम्पोस्ट बिजनेस शुरू करने में मदद कर चुके हैं।
द बेटर इंडिया की कहानी का असर, गांव के एग्रो टूरिज्म से जुड़े 10 हज़ार किसान
राजस्थान के एक छोटे से गांव में बने दो दोस्तों के एग्रो टूरिज्म को सफल बनाने में द बेटर इंडिया ने निभाई अहम भूमिका। एक तरफ यहां आने वाले मेहमानों की संख्या दुगुनी हो गयी है, वहीं ट्रेनिंग के लिए इनसे जुड़े देशभर के 10 हजार किसान।
साल 2017 में राजस्थान के जयपुर में रहनेवाले इंद्रराज जाठ और सीमा सैनी ने एग्रीकल्चर से पढ़ाई पूरी की थी, तब उनके घरवाले चाहते थे कि वे कोई नौकरी करें। लेकिन पढ़ाई के दौरान ही, उन्होंने मन बना लिया था कि वह नौकरी करने के बजाय, खेती से जुड़ा ही कुछ काम करेंगे। सीमा ने एमएससी एग्रीकल्चर और इन्द्रराज ने बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है। आज ये दोनों राजस्थान के खोरा श्यामदास गांव में तक़रीबन डेढ़ हेक्टर जमीन किराए पर लेकर ‘ग्रीन वर्ल्ड फाउंडेशन’ नाम से एक Agritourism शुरू किया।
उनके इस शानदार मॉडल के बारे में द बेटर इंडिया ने पिछले साल अप्रैल महीने में एक लेख प्रकाशित किया था। खेती को एक सफल बिज़नेस बनाने की इन दो युवा दोस्तों की पहल को लोगों ने खूब पसंद किया। हमारे उस लेख को पढ़कर सीमा और इंद्रराज को देशभर के ढेरों किसानों ने संपर्क किया।
इतना ही नहीं पहले जहाँ उनके फार्म पर महीने के महज 10 परिवार ही रहने आते थे, वहीं आज मेहमानों की संख्या बढ़कर दुगुनी हो गयी है। अपनी इस सफलता एक श्रेय वे द बेटर इंडिया की उस लेख को देते हैं।
द बेटर इंडिया की पहल का असर! ज़रूरतमंदों तक पहुँची खुशियों की थाली
द बेटर इंडिया ने भोजन के ज़रिए लोगों को खुशियाँ बाँटने की पहल की और शुरुआत हुई #परोसें_खुशियाँ की। इसमें हमारा साथ दिया 2019 से चल रहे लखनऊ के प्रतिष्ठित NGO स्वप्ना फाउंडेशन ने।
स्वप्ना फाउंडेशन की टीम ने लखनऊ, दिल्ली, मथुरा और उन्नाव की सड़कों और बस्तियों में जाकर लोगों को खाना बांटने का काम किया। इस मकसद के साथ कि ज़्यादा से ज़्यादा ज़रूरतमंद लोगों के घरों तक राशन और थाली तक रोटी पहुँच सके। जिससे छोटे-छोटे बच्चों को सड़कों पर भटकना न पड़े, और गरीब परिवारों को भूखे पेट न सोना पड़े।
महज़ चार दिन में हमने आठ बस्तियों में जाकर 560 लोगों तक भोजन पहुँचाया। इसके अलावा, सड़कों पर रात बिताने के लिए मजबूर और बेसहारा लोगों को हम थाली वितरित करने पहुँच सके।
दो रोटी के लिए दिन भर मजदूरी कर, रिक्शा चलाकर, मशक्क़त करने वाले 140 मेहनती लोगों को एक वक़्त का खाना उपलब्ध कराने में भी हम सक्षम रहे।
यह सब मुमकिन हुआ आपके सहयोग से।
इसके आलावा डीसा (गुजरात) की 30 साल की आशाबेन राजपुरोहित को भी मिला पाठको को ढेर सारा प्यार और आर्थिक सहयोग। आशा बेन 22 बुजुर्गों के लिए आश्रम चलाती हैं। द बेटर इंडिया में उनकी कहानी प्रकाशित होने के बाद उन्हें गुजरात ही नहीं देशभर के पाठको ने सम्पर्क किया और आश्रम में जरूरी सामान जैसे ठन्डे पानी का कूलर, राशन और कपड़े आदि मुहैया कराने में सहयोग किया।
आगे भी ऐसे सकारात्मक बदलाव के लिए हमें आपकी मदद की जरूरत होगी। यूँ ही हर कदम पर देते रहिए हमारा साथ।
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