क्या आपको पता है एक टी-बैग जब पानी में डाला जाता है तो यह टी के साथ-साथ इसमें 11.6 बिलियन माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल और 3.1 बिलियन नैनो प्लास्टिक पार्टिकल भी छोड़ता है? कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक, टी-बैग हमारे लिए उतना सुरक्षित नहीं हैं जितना कि हम समझते हैं। टीबैग इस्तेमाल करना अप्रयत्क्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण, दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। ऐसे में अगर हम इन्हें कम्पोस्ट के लिए भी इस्तेमाल करें तो पौधों को भी हानिकारक तत्व मिलेंगे।
इस समस्या को देखते हुए ही, असम की एक चाय कंपनी, ‘द टी लीफ थ्योरी’ ने अपनी तरह का पहला टी डिप बनाया है, जिसकी पैकेजिंग इको-फ्रेंडली है क्योंकि यह पत्तों से की गयी है। इस ख़ास डिप को उन्होंने अपने ब्रांड नाम वूलाह के अंतर्गत ट्रूडिप के नाम से लॉन्च किया है। इस टी-बैग में दो कंप्रेस्ड पत्तियां और एक बड है, जिन्हें सिलिंड्रिकल आकार दिया गया है और प्राकृतिक तरीके से उगे कपास के कच्चे धागे से बाँधा गया है। इसका वजन 2 ग्राम है।
“वैसे तो ट्रूडिप दिखने में किसी भी अन्य टी-बैग की तरह है लेकिन इसका एरोमा, गुणवत्ता और स्वाद इसे सबसे अलग बनाता है। पत्तियों को बिना तोड़े पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया गया है और इनकी वजह से चाय की कड़वाहट कम हो जाती है और आपको ताज़ा और एक अनोखे फ्लेवर की चाय मिलती है,” द टी लीफ थ्योरी के फाउंडर उपामन्यु बोरकाकोटी बताते हैं।
उपामन्यु ने यह कम्पनी अपने बचपन के दोस्त अंशुमन भराली के साथ मिलकर 2016 में शुरू की थी ताकि वह असम, दार्जीलिंग और मेघालय के छोटे चाय किसानों को सपोर्ट कर सकें। यह एक बी2बी प्लेटफार्म है जो किसानों से अलग-अलग स्पेशलिटी की चाय खरीदता है और फिर इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाज़ारों तक पहुंचाता है।
ख़ास पत्तियों का स्वाद:
वूलाह ब्रांड नाम (पेटेंट लेना अभी बाकी है), असमी भाषा के शब्द उलाह से आया है, जिसका मतलब होता है ख़ुशी। यह ब्रांड कंपनी ने लगभग एक महीने पहले ही लॉन्च की है और अब यह असम की चाय परम्परा को एक अलग, प्राकृतिक और स्वस्थ तरीके से परिभाषित कर रही है।
वूलाह ब्रांड के टी-बैग सीधा ग्राहकों तक पहुंचाए जाते हैं।
चाय के बिज़नेस में लगभग तीन साल तक अनुभव लेने के बाद, दोनों फाउंडर्स ने तय किया कि वह अपने हेंडीक्राफ्ट स्पेशलिटी टी प्रोडक्ट्स इनोवेट करेंगे। उन्होंने द टी लीफ थ्योरी के प्रॉफिट को फिर से कम्पनी में ही इन्वेस्ट किया अपने दो सबसे अच्छे किसानों को ट्रेनिंग दी।
ट्रूडिप्स के लिए भी चाय का उत्पाद वैसे ही होता है जैसे कि उनके मूल आर्टिसनल चाय प्रोडक्ट का। हालाँकि, पत्तियों को तोड़ने के बाद उन्हें कंप्रेस किया जाता है ताकि यह परिवहन और पैकेजिंग के दौरान क्षतिग्रस्त न हों। पत्तियां एक चौकोर आकार में एक साथ बंधी होती हैं, और प्रत्येक ट्रूडिप का वजन 2 ग्राम होता है।
यह काम काफी मेहनत भरा है और इससे 40 महिलाओं को पैकेजिंग में रोज़गार मिल रहा है।
उपामन्यु कहते हैं, “सबसे अच्छी बात है कि मेरे यहाँ चाय प्रोसेसिंग के सभी काम एक ही जगह होते हैं। आमतौर पर पत्तों को खेतों से चुनकर, सुखाने और छंटाई के लिए दूसरी जगह भेजा जाता है। वहाँ से इन्हें पैकेजिंग के लिए भेजा जाता है, और आखिरकार इसे स्थानीय विक्रेता के पास पहुंचने में कई हफ्ते लगते हैं। लेकिन मेरे यहाँ, महिलाएं खेतों से पत्तियां लाती हैं, इसे कंप्रेस करके पैक करतीं हैं और फिर यह सीधे ग्राहक के पास जाता है। इससे पत्तियों की शेल्फ लाइफ बढ़ती है क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन कम होने से कोई नमी इनमें नहीं आती।”
एक बार जब यह ग्राहक तक पहुँच जाती हैं तो उन्हें बस डिप को गर्म पानी में डालना होता है। कंप्रेस हुई पत्तियां चार से पांच मिनट में खुल जाती हैं। स्वाद के आधार पर एक ही पैक को दो से तीन बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, “हमें ग्राहकों से आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया मिली है, वह एक ट्रूडिप को चार कप के लिए भी इस्तेमाल करते हैं, हालांकि, तीसरे और चौथे कप के लिए लगभग छह से सात मिनट का समय लगता है। इससे हमारा उत्पाद पर भरोसा बढ़ा है। इसे मुख्यतः पत्तियों को संरक्षित करने के लिए विकसित किया गया था ताकि बिना किसी टूट-फुट के यह एक शुद्ध और ताज़गी से भरा चाय का कप बनाएं,” अंशुमान कहते हैं।
वूलह आपको कई अलग-अलग वैरायटी की चाय ऑफर करता है जैसे फिल्दी ग्रीन (ग्रीन टी), फिल्दी वाइट (वाइट टी), डर्टी डिटॉक्स (तुलसी के साथ ग्रीन टी), किलर इम्युनिटी (तुलसी के साथ ब्लैक टी) और ब्रूटल कॉम्बो (सभी किस्मों का मिश्रण)।
सभी वैरायटी का छोटा पैक 450 रुपये का है जिसमें 16 ट्रूडिप हैं और बड़ा बैक 680 रुपये का है जिसमें 28 ट्रूडिप हैं।
द टी लीफ थ्योरी की नियमित ग्राहक, गुरुग्राम निवासी संजना बतातीं हैं कि उन्होंने वूलह की किलर इम्युनिटी ट्रूडिप ट्राई की। “दूसरे ग्रीन टी ब्रांड जो मैंने इस्तेमाल किये हैं उनसे इनका कॉन्सेप्ट बहुत ही अलग है। सैशे में पट्टायान अपने शुद्ध रूप में होती हैं और ऐसा लगता है मानो मैंने अभी खेत से पत्तियां तोड़कर पानी में डाली हों। फ्लेवर बहुत ही अच्छा है और एक ट्रूडिप से मुझे चार से पांच कप टी मिलती है,” उन्होंने आगे कहा।
पहले से ही अपनी गुणवत्ता और ईमानदारी की वजह से लोगों के दिलों में जगह बना चुकी इस कंपनी ने अपने नए नए ब्रांड के लिए भी मात्र एक महीने में 500 ग्राहक कमा लिए हैं।
कैसे हुई यह कहानी शुरू:
उपामन्यु और अंशुमान असम के ऊपरी हिस्से के एक शहर शिवसागर में पले-बढ़े, जो अपनी समृद्ध और विविध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। वे 2010 में अपनी कॉर्पोरेट नौकरियों के लिए दिल्ली चले गए। मार्केटिंग और फाइनेंस में चार साल का कॉर्पोरेट अनुभव प्राप्त करने के बाद, दोनों दोस्त अंशुमान के पारिवारिक ऑप्टिकल व्यवसाय का विस्तार करने के लिए वापस आ गए।
इस व्यापार में कुछ साल बाद, उन्हें एहसास हुआ कि बाजार अपर्याप्त वितरकों और अपर्याप्त आपूर्ति श्रृंखला के कारण आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए उन्होंने यह व्यवसाय सिर्फ तब तक चलाया जब तक कि उन्होंने अपने कर्ज का भुगतान नहीं कर दिया और फिर चाय व्यवसाय में लग गए।
“असम दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादक क्षेत्रों में से एक है, और हमें विश्वास था कि यहाँ एक चाय उद्यम कभी नहीं डूबेगा। हमारी असम के एक छोटे चाय किसान के साथ बातचीत हुई और वही हमारा ट्रिगर था। वह प्राकृतिक रूप से उगने वाली हैण्डीक्राफ्टेड ग्रीन टी पैकेट बेच रहा था, लेकिन कम मार्जिन के साथ। इस पर रिसर्च करके, हमें पता चला कि यहां एक गैप है क्योंकि छोटे चाय किसानों की बाजार तक सीधी पहुंच नहीं थी और इस गैप को भरने के लिए द टी लीफ थ्योरी का जन्म हुआ,” उपामन्यु बताते हैं।
दोनों दोस्तों ने 2015 में असम, दार्जिलिंग और मेघालय में बड़े पैमाने पर यात्रा की और 15 किसानों के साथ टाई-आप किया जो समान रूप से बेहतरीन चाय उगाने के लिए तत्पर थे।
सभी किसान एक तरह की और एक स्वाद की चाय उगाएं इससे बेहतर उन्होंने हर एक किसान को अपनी स्पेशलिटी बनाने के लिए ट्रेन किया। इस तरह से चाय के नाम उन किसानों के गांवों के नाम पर रखे गए जैसे लातुमोनी, कोलियापानी, मंडल गाँव और परेंग।
“पूर्वोत्तर के अलग-अलग हिस्सों में मौसम, मिट्टी और पानी की स्थिति अलग-अलग होती है, इसलिए सभी को समान स्वाद का उत्पादन करने की मांग करना अनुचित है। हमने प्रत्येक किसान के साथ उनकी मौजूदा तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए व्यक्तिगत रूप से काम किया। साथ ही, हमने बी 2 बी मॉडल विकसित किया और चाय बेचने वाले 40 घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्टोर्स के साथ गठजोड़ किया,” उन्होंने कहा।
अच्छी गुणवत्ता, अच्छी कमाई:
जब वह शिवसागर में कोलियापानी गाँव के एक चाय किसान राणा गोगोई से मिले, तो ग्रीन लीफ बेचने का गोगोई का सालाना कारोबार 2,00,000 रुपये का था। अक्सर खराब गुणवत्ता के कारण उनकी लगभग आधी उपज अस्वीकार हो जाती थी।
कंपनी ने उसे शून्य ब्याज दर पर एक छोटी प्रोसेसिंग फैक्ट्री स्थापित करने के लिए पैसे दिए और विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से उसे बेहतर बनाने में मदद की। उत्पादन बढ़ा तो उनके यहाँ 31 मजदूर हो गए।
गोगोई कहते हैं कि उन्हें चाय की पत्तियां तोड़ने, इनकी फेरमेंटशन, रोलिंग स्टाइल और ऑक्सीडेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए उनकी बिक्री अच्छी नहीं थी। लेकिन अब तस्वीरें बिलकुल बदल गयी है और पिछले साल उन्होंने 12,00,000 रुपये की कमाई की है।
इसी तरह, अन्य किसानों की आय में वृद्धि हुई है और औसतन, उनके श्रमिक अब हर महीने लगभग 6,000 रुपये कमाते है। हर किसान सालाना 400-700 किलो चाय का उत्पादन करता है और इस प्रकार पूर्वोत्तर के भीतरी इलाके अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हैं।
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मूल लेख: गोपी करेलिया
संपादन – जी. एन झा
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