‘कहानी की दुकान’ – अजीब है न सुनने में लेकिन जब आप पूरी कहानी (kahani) पढ़ेंगे तो शायद बचपन की यादों में खो जाएंगें, वीडियो के ज़माने में इस आर्टिकल को क्लिक कर पढ़ने वालों आपका शुक्रिया! तो चलिए सुनते हैं ये कहानी…
तो ये सफरनामा शुरू होता है उस आर्टिस्ट से जो झोली लेकर निकल पड़ा था बच्चों को कहानी सुनाने, आज के ज़माने का काबूलीवाला – हाँ, हाँ वहीं दाढ़ी मूंछों वाला लेकिन गबरू जवान…राह में मिली एक साथी और दोनों बंजारे निकल पड़े अपनी कहानी की दुकान खोलने।
दिल्ली के रहने वाले अनूप चुघ, पहले पत्रकार थे, फिर ट्रैवल ब्लॉगर बने लेकिन अंदर की रचनात्मक प्रतिभा की बदौलत एक दिल्ली के विज्ञापन एजेंसी में काम करने लगे। ट्रैवल से मोह भंग न होने के कारण दोस्तों के साथ मिलकर एक ट्रैवल कम्युनिटी Found on All Fours शुरू किया। वीकेंड में ये दोस्त देश में घूम-घूम कर थियेटर, रोड शो, म्यूजिक, डांस जैसे परफॉरमिंग आर्ट्स पेश किया करते हैं। मकसद था युवाओं और बच्चों के दिलों में स्ट्रीट और लाइव आर्ट को ज़िंदा रखना।
“मुझे अनजान लोगों के साथ घुलना-मिलना पसंद है, वे मुझे अपने दोस्त लगने लगते हैं। परफॉर्म करते वक्त मैं कई दर्शकों की आंखें देख ये महसूस करता हूँ कि वो भी कुछ कहना चाहते हैं लेकिन ऐसी जगह पर, जहाँ उन्हें जज करने वाला कोई न हो। शो के दौरान हम उन्हें भी मौका देते हैं कुछ सुनाने का कुछ कहने का।” – अनूप
हमराही से कुछ यूं हुई मुलाकात
एक परफॉर्मेंस के दौरान शो को देखने आई जैस्मीन कौर से उनकी मुलाकात हुई। जैस्मीन एक शू डिज़ाइनर थीं और उस एक इवेंट ने उन दोनों की ज़िंदगी को नया मोड़ दे दिया।
“मैं तो शो का हिस्सा बनने आई थी लेकिन शो देखने के दौरान अचानक मेरा अतीत सामने मौजूद उस खुली खिड़की से झाँकने लगा। मैं दिल्ली में पली बढ़ी हूँ। मेरी माँ कला और साहित्य में बहुत रुचि रखती थीं, लेकिन उनको इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला क्यूंकि उस वक्त उन्हें प्रोत्साहित करने वाला कोई नहीं था। समय के साथ उनकी कला अंदर ही दब गई। मैंने जब बड़ी होकर कहा कि मुझे मेन स्ट्रीम से हटकर शू डिज़ाइनर बनना है, तो उन्होंने मेरा साथ दिया। उस वक्त उन्हें देखकर लगा जैसे, वो खुद से कह रही हों कि ‘जो चाहो करों कोई नहीं रोकेगा तुम्हें’।” -जैस्मीन कौर
शो के खत्म होते ही जैस्मीन के ख्यालों ने आइडिया का रूप लिया और उन्होंने अनूप को सारी बातें बताईं। अनूप खुद काफी समय से इसी बारें में सोच रहे थे। जैस्मीन की बातों से उन्हें एक मकसद मिला और दोनों बन गए – एक अनजान पर, खूबसूरत सफर के हमराही।
“बच्चे”
जी हाँ गाँव के बच्चे, जो जैस्मीन की माँ की तरह ही सपने देखते होंगे लेकिन कुछ कर नहीं पाते। स्कूल से आना, खेलना, होमवर्क करना और ‘पढ़ने से नौकरी मिलेगी’ वाली रटी हुई लाइन को तकिए तले रख सपनों में खो जाना, यही तो ज़िंदगी है उनकी। शहरों के बच्चों की तरह उन्हें कहाँ कॉमिक बुक, डांस, ड्रामा, म्यूज़िक, एक्टिंग, स्केटिंग, ड्रॉइिंग जैसी सैंकड़ों चीज़ों के बारे में पता है। उन बच्चों को लगता है ये सिर्फ टीवी की दुनिया में होता है। उनको तो ये भी नहीं पता कि इनमें करियर भी हो सकता है।
आप में से जो भी इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं सोचिएगा जरूर की क्या आप वही बनना चाहते थे जो आज हैं। साइंटिस्ट, पेंटर, डांसर, कवि, शेफ आदि, आपका तो फिर भी ठीक है मैं तो ‘सोनपरी’ बनना चाहती थी, पर किसी से कह नहीं पाई। अनूप और जैस्मीन उन लोगों में से हैं जो बच्चों को ये सपने जीने का मौका देते है। ये बच्चे बड़े होकर जो भी बने लेकिन इस वक्त उन्हें अपनी दुनिया में हिंडोले खाने का पूरा अधिकार है।
गुनेहर गाँव (हिमाचल प्रदेश) और कहानी की दुकान
“पहाड़ों के आंगन में, कहता सुनता, कूदता फांदता गुनेहर,
गुन-गुन गुन-गुन….. गुन-गुन गुन-गुन करता……. गुनेहर”
गुनेहर, हिमाचल की गोद में बसा एक गाँव। इस गाँव में छोटे-छोटे मिट्टी के घर, घाटी, नज़ारे और घूमने आने वाले शहरों के बच्चों को देखने वाली कई छोटी-छोटी आंखें हैं। अक्टूबर 2019 की बात है जब अनूप और जैस्मीन ने यहाँ एक घर किराए पर लिया उसे नाम दिया ‘कहानी की दुकान’…!
यहाँ वे बच्चों को कॉमिक्स बुक देते हैं और पढ़ कर एक्टिंग करने को कहते हैं और खुद भी करते हैं। इस दुकान में कविता, दोहावाचन, कहानी जैसे कई परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स सिखाए जाते हैं। शहरों से आर्टिस्ट्स अपने साथ कहानी की किताब लेकर आते हैं और उसे बच्चों को दे देते हैं। उन कहानियों को पढ़ बच्चे कभी अपनी बात बताते हैं तो कभी टकटकी लगाए कहानी सुनते हैं। वे मिट्टी के बर्तन बनाना सीखते हैं, ड्रॉइिंग करते हैं, गाना गाते हैं… वो सब करते हैं जो वे करना चाहते हैं। यहाँ उनके परिवार वाले भी आकर बच्चे बन जाते हैं, उन्हें लगता है जैसे वो भी जीने लगे हैं अपने सपने। हैं न मज़ेदार!
इन्हीं बच्चों में से एक बच्ची के पिता मुकेश कुमार कहते हैं, “मेरी बेटी जब कुछ नया सीख के आती है तो मैं सोचता हूँ कि शायद मैं उसे ये नहीं सिखा पाता, दिल्ली- मुंबई जैसे शहरों से लोग आकर जब हमारे बच्चों को करियर ऑप्शन बताते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है।”
कहानी की दुकान का हिस्सा बना एक स्कूली बच्चा सूजल कहता है, “अगर मैं कहानी की दुकान नहीं जाता, तो मेरा दिन बोरिंग हो जाता। मैं स्कूल से आकर आराम करता हूँ फिर कहानी की दुकान जाकर एक्टिंग सीखता हूँ और शाम में कहानी पढता हूँ। मुझे मिट्टी के बर्तन बनाने नहीं आते थे लेकिन मैंने यहाँ से सीखा और इस दीवाली में मैं अपने हाथों से बने दीये जलाऊंगा।”
गुनेहर गाँव ही क्यूं?
यह सवाल पूछने पर अनूप बताते हैं कि, “आज जब आप पैराग्लाइडिंग के लिए जगहों का चयन करते हैं तो सबसे पहला नाम आता है ‘बीर बिलिंग’ का। हम भी कई बार इस कारण बीर जाते थे। ये जगह काफी अच्छी है और बाकी पहाड़ी इलाकों की तरह यहाँ उतने संकीर्ण रास्ते नहीं हैं। गुनेहर, बीर से थोड़ी ही दूरी पर है। यहाँ सीढ़ीनुमा खेती होती है तो लोगों ने घाटी में छोटे-छोटे गाँव बनाए हैं और इलाका काफी खुला-खुला है। यहाँ के लोग काफी खुले दिल के हैं, मासूम हैं। हमें इस जगह से लगाव सा हो गया था और इसलिए हमने इस जगह को चुना।”
करते हैं शहर-गाँव की कहानियों की अदला -बदली
बीर में ज्यादातर लोग अपने मिट्टी के घरों को छोड़ पक्के मकानों में रहने जा चुके हैं। इन मिट्टी के मकानों को अनूप और जैस्मीन ने किराए पर लेकर ‘मड हाउस टूरिस्ट स्टे’ बनाया है। वे चाहते हैं कि शहरों के लोग गाँव के लोगों से जुड़ें और उनके रीति-रिवाज, खान-पान को समझें। आप इस मड हाउस में रह सकते हैं और बच्चों के साथ मिलकर अपनी कहानी कह सकते हैं। शहरों में आपको सुनने वाला कोई नहीं, लेकिन यहां पर कई हैं। आप हिमाचल घूमने जाते हैं, वहाँ के गाँव की खूबसूरती निहारते हैं लेकिन कहानी की दुकान आपको मौका देती है कि आप इन गाँववालों के दिलों की खूबसूरती निहारें। उन्हें अपनी ज़िंदगी की कहानी सुनाएं तो कुछ उनकी सुनें, उनके साथ नाच-गान करें। ये सब नहीं पसंद है तो कोने में बैठी दादी अम्मा को सेल्फी लेना सिखाएं। पहाड़ वहीं रहेंगे, बादल वहीं रहेंगे, रास्ते वही रहेंगे, लेकिन ये ज़माना और लोग बदल जाएंगे। अपनी #TravelDiary को #TravelStories में बदलें। एक काम और करें, बच्चों के लिए कॉमिक बुक लेकर जाएं। मैं तो कहूंगी कि बैग में सेल्फी स्टिक को थोड़ा सा खिसकाकर एक प्लेन डायरी भी रख लें। मौका मिले तो अपने और बच्चों की हथेली के पंजों को पेंट कर डायरी में उकेर लें। क्या पता ये यादों का क्यूट बॉक्स शायद आपकी ट्रैवल शॉपिंग से बेहतर साबित हो जाए।
आप चाहें तो अनूप की टीम के साथ वर्कशॉप कर स्थानीय निवासियों के साथ कढ़ाई, बुनाई, हस्तकला भी सीख सकते हैं। आप चाहें तो किसी के घर में भी रह सकते हैं।
“हम चाहते हैं कि हमारे इन प्रयासों से यहाँ के लोगों की थोड़ी इनकम भी हो। आप जो होटल में खर्च करते हैं उससे काफी कम खर्चे में आप यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ इस जगह की खूबसूरती महसूस कर सकते हैं।” – जैस्मीन
अनूप और जैस्मीन के और भी हैं बंजारे किस्से
इस सफर की बदौलत आज अनूप और जैस्मीन बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं और कहानी की दुकान के अलावा कई शहरों में घूम कर परफॉर्म करते हैं। उनकी टीम यह काम अपने बलबूते पर करती है। हाल ही में लखनऊ जाकर उन्होंने वहाँ अवधी कला पर लाइव म्यूज़िक और स्टोरी टेलिंग वर्कश़ॉप की। संस्क़ृतियों की अदला-बदली का कॉन्सेप्ट, सुनने में ही कितना अच्छा लगता है। आप मेरे शहर में और मैं आपके शहर में कैसे? सिर्फ कहानियों के ज़रिए।
इन सबके अलावा अनूप को राह में कई दोस्त भी मिले। अनूप कहते हैं – “विदेशों में रहने वाले भारतीय लोग और जो यहाँ शहरों में बसे हैं पर गाँवों में उनकी पुरानी ज़मीन या घर है, उन लोगों ने हमें वहाँ लाइब्रेरी खोलने या आर्ट परफॉर्म करने के लिए जगह दी है। इसी की बदौलत हम पंजाब के एक गाँव, अलूना टोला में अपनी दूसरी लाइब्रेरी खोल रहे हैं। हम बाकी लोगों से भी कहते हैं कि अगर आप भी कोई मदद कर सके तो करें, आपकी मदद से कोई अपना बचपन जी सकता है।”
कहानी की दुकान के लिए बाहर से मदद के तौर पर भेजी जाने वाली किताबों के लिए उन्होंने गुनेहर में लाइब्रेरी भी बनाई है। साथ ही, उन्होंने बेकार पड़ी चीज़ों का इस्तेमाल कर घरों को डिज़ाइन किया है। साथ ही वेस्टर्न टॉयलेट भी बनवाएँ हैं ताकि बुजुर्ग उनका इस्तेमाल कर सकें। कहानी की दुकान में अनुप और जैस्मीन के दोस्त आकर मदद करते हैं और फिलहाल ये काम ऐसे ही चल रहा है। उनकी एक दोस्त कविता मालवीय, जो परफॉर्मिंग आर्टिस्ट हैं वह कहती हैं,
“कला एक ऐसी जरूरत है जिसकी जरूरत हमें मालूम नहीं होती। लोगों की मासूमियत और हिमाचल की ताजगी डाली तो बन कर निकला ‘कहानी की दुकान’। परफॉर्मेंस के बाद जब बच्चों के माथे पर सुकून की रेखा खींच जाती है तो हमें लगता है हमारा काम सफल हो गया और यही हमें बांधे रखता है।”
चुनौतियां
अनुप कहते हैं कि इस काम में उनकी कंपनी उनको सपोर्ट करती है। वह 4 दिन ऑफिस का काम करते हैं और बाकी 3 दिन कहानी की दुकान को देते हैं।
“आने-जाने का सारा खर्च हम दोनों खुद उठाते हैं। मैं नौकरी कर रहा हूँ लेकिन जैस्मीन को-फाउंडर के तौर पर पूरा समय कहानी की दुकान को दे रही हैं। ये अभी काफी थकान भरा होता है। हम हर हफ्ते 13-14 घंटे ड्राइव कर के गुनेहर तक जाते हैं। अब हम लोगों का समय ट्रैवल करने में ज्यादा लगता है और हमें खुद के लिए वक्त नहीं मिलता। हम फंड जुटाने का सोच रहे हैं ताकि बच्चों को एक बेहतर ज़िंदगी दे सके। खर्च निकालने के लिए हम पूरी तरह से खुद पर निर्भर हैं। हम देश के हर गाँव में बच्चों से मिलना चाहते हैं उन्हें कहानी सुनाना चाहते हैं। हम लोग आपको नहीं जानते लेकिन जैसे बच्चों को छोड़ दिया जाए तो वे आपस में दोस्ती कर लेते हैं उसी तरह आप भी ‘कहानी की दुकान’ के दोस्त बनें।” – अनूप
अगर आपने अपना बचपन भरपूर जीया है तो आपको इसका महत्व पता है और नहीं तो आपसे बेहतर इसकी कमी कोई नहीं समझ सकता। इन बच्चों की आंखों से अपना बचपन जीयें और मदद के लिए आगे आएं। अनूप और जैस्मीन भी हम सबकी तरह ज़िंदगी जी सकते थे लेकिन अब वे दूसरों के सपनों को आकार दे रहे हैं।
यदि आप भी किसी तरह से इन बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं या अनुप और जैस्मीन की मदद करना चाहते हैं तो फेसबुक या इंस्टाग्राम पर जुड़ सकते हैं। आप इस नंबर पर भी संपर्क कर सकते हैं – 9920463277
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