Site icon The Better India – Hindi

कूड़े के ढेर को बदला मिनी जंगल में, चूने, मिट्टी और रिसाइकल्ड चीज़ों से बनाया आर्ट विलेज

Ganga kadakiya founder of Art Village Karjat
YouTube player

प्रकृति से भला किसे प्यार नहीं होगा? अपनी तनाव भरी जिंदगी में जब भी हमें सुकून के कुछ पल गुजारने होते हैं, तो हमारे कदम खुद-ब-खुद इस ओर खिंचे चले जाते हैं। लेकिन परेशानी तो यह होती है कि आस-पास ऐसी जगह बहुत कम ही जगहों पर मिलती है, जहां प्रकृति के नजदीक रहकर आराम किया जा सके। जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स की छात्रा रह चुकीं, मुंबई की गंगा कडाकिया भी एक ऐसी ही जगह की तलाश कर रहीं थीं। लेकिन जब उन्हें दूर-दूर तक ऐसी कोई जगह नहीं मिली, तो उन्होंने खुद से आर्ट विलेज (Art Village Karjat) तैयार करने की कवायद शुरू कर दी। 

People learning different art

स्वभाव से घुमक्कड़ और पेशे से कलाकार, गंगा को उनकी कला कई देशों तक लेकर गई है। प्रकृति के अनेक रूपों को देखने और संस्कृति के नए आयामों से रू-ब-रू होने के बाद, उन्होंने ऐसी जगह की कल्पना की जहां खोई हुई कला को फिर से जीवंत किया जा सके। जहां लोग अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी को पीछे छोड़, सुकून के कुछ पल बिता सकें। प्रकृति के नजदीक रहकर उसे महसूस कर सकें और कला के साथ जुड़ सकें।

मां से विरासत में मिली जमीन पर किया काम

खूबसूरत और सूकून भरी एक जगह, उनका सपना था, जिसे उन्हें पूरा करना था। उन्होंने महाराष्ट्र के कर्जत में मां से विरासत में मिली अपनी जमीन को इसके लिए तैयार करना शुरू कर दिया और साल 2016 में, ‘आर्ट विलेज कर्जत (AVK)’ बनकर तैयार था। उनका यह गांव कला और सस्टेनेबिलिटी का एक अनोखा नमूना है।

इसमें एक छोटा सा जंगल है, जहां ढेरों पेड़ हैं। चिड़ियों और तितलियों का बसेरा है। बड़ा सा फार्म हाउस है, जहां सब्जियां उगाई जाती हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस गांव को पर्यावरण के अनुकूल तैयार किया गया है। यहां कला से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता है। 

Mini forest & organic Vegetables grown in art village

कच्ची ईंटो और मिट्टी से बनीं Art Village Karjat की दीवारें

गंगा ने हमसे बात करते हुए बताया, “मैंने आर्किटेक्ट किरण बघेल और भुज की ‘हुनरशाला’ के कारीगर टीम के साथ इसका निर्माण शुरू कर दिया। यह फाउंडेशन, पर्यावरण के अनुकूल घर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है। इन दोनों ने मिलकर मेरी सोच को धरातल पर उतारा और इको टूरिज्म को बढ़ावा देने में मेरी मदद भी की।”

छह कमरे, एक मेडिटेशन सेंटर, रसोई और एक कम्युनिटी हॉल, ये सब मिट्टी, पानी और प्राकृतिक रूप से उपलब्ध चीज़ों का इस्तेमाल करके स्थानीय निर्माण तकनीक से बनाए गए हैं।

गंगा बताती हैं, “कमरों की दीवारें घुमावदार हैं, ताकि वे मजबूत बनी रहें और प्राकृतिक आपदाएं किसी तरह का नुकसान न पहुंचा सकें। दीवारों को कच्ची ईंटों और मिट्टी के प्लास्टर से मिलाकर बनाया गया है। यह तकनीक दीवारों में नमी नहीं आने देती है।”

अंडे के आकार का ऑकर्षक मेडिटेशन सेंटर 

Oval Shape meditation Center

गंगा को प्रकृति से काफी जुड़ाव है। वह चाहती थीं कि कम से कम कार्बन उत्सर्जन हो। इसके लिए उन्होंने निर्माण में रीयूज और रीसाइकिलिंग कंस्ट्रक्शन मटेरियल का इस्तेमाल किया। लकड़ी, मिट्टी की टाइल्स, मैंगलोरियन टाइल्स, ये सारी सामग्री ऐसी थी, जिसे आसानी से रीसाइकल या रियूज किया गया। यहां तक कि उन्होंने शिपयार्ड में बेकार पड़ी लकड़ी को भी अपने घर में जगह दी है। 

उन्होंने कहा, “इंटीरियर का मुख्य आकर्षण अंडे के आकार का मेडिटेशन सेंटर है। इसे हम इत्मिनान से बैठने की जगह भी कह सकते हैं। इसे इको फ्रेंडली निर्माण तकनीक और मटेरियल से कुछ इस तरह से बनाया गया है कि इसका तापमान हमेशा बाहर की तुलना में 6-7 डिग्री कम रहता है।”

Art Village Karjat में पानी को भी करते हैं रीसाइकल

प्रॉपर्टी में ग्रे वाटर रीसाइकल के लिए एक यूनिट भी लगाई गई है, जो लगभग 70 प्रतिशत पानी को फिर से इस्तेमाल के योग्य बना देती है। इस रिसाइकल्ड वॉटर को सिंचाई या अन्य कामों के लिए यूज़ किया जाता है। पानी को केना इंडिका प्लांट के जरिए साफ किया जाता है।

वह कहती हैं, “अगर कभी इस जगह को तोड़ा गया, तो यहां घना जंगल फैल जाएगा। क्योंकि हमने बमुश्किल ही कहीं कॉन्क्रीट या सीमेंट का इस्तेमाल किया है और यही खासियत हमारे छोटे से विलेज को इको फ्रेंडली बनाती है।”

कभी था कूड़े का ढेर, आज है घना जंगल

People learning Organic farming & composting

जब गंगा और आर्ट विलेज की क्रिएटिव कंटेंट हेड, अंबिका ने इस जगह पर काम करना शुरु किया था, उस समय कचरे के निपटारे के लिए यहां ज्यादा कुछ नहीं था। जमीन का एक हिस्सा धीरे-धीरे कूड़े के ढेर में तब्दील होता जा रहा था। तब उन्होंने स्थानीय लोगों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। अपने प्रयासों से उन्होंने इस जगह को इतना सुन्दर बना दिया कि भविष्य में यहां कचरा डाला ही न जा सके।

उसके बाद, इस जमीन पर ऑर्गेनिक फॉर्म प्रोजेक्ट शुरू किया गया। उन्होंने यहां सब्जियां, फल, देसी पौधे, जड़ी-बूटियां, औषधियां और कई तरीके के अनाज उगाने शुरू कर दिए। 

रंगों से भरा बटर फ्लाई गार्डन और एग्रीकल्चर फॉर्म 

अंबिका ने बताया, “बारिश के पैटर्न के आधार पर, हमने पहले गूलर, बड़, शीशम और कोकम जैसे कुछ पेड़ लगाए और एक बार जब वे बिना किसी परेशानी के बढ़ने लगे, तो हमने सौ पेड़ और लगा दिए। दो साल बाद, यहां किंगफिशर जैसे पक्षियों की चहचहाहट और तितलियों के रंगों की छटा बिखरने लगी थी। हमने यहां एक प्राकृतिक इकोसिस्टम बनते देखा है। हमारे पास एक छोटा सा बटरफ्लाई गार्डन भी है, जिसमें अब तितलियों की 18 प्रजातियां हैं।”

एवीके का मुख्य आकर्षण एक छोटा सा जंगल और एग्रीकल्चर फॉर्म है। यहां आने वाले मेहमानों को खेतों में घुमाया जाता है। उन्हें खेती की गतिविधियों में भी शामिल किया जाता है। खेतों से तोड़ी गई सब्जियों से बना खाना परोसा जाता है। किचन और गार्डन के कचरे को कैसे खाद में तब्दील किया जाता है, इसका पूरा डेमो दिया जाता है। 

गंगा कहती हैं, “अगर हमारे यहां मेहमान छह या उससे अधिक दिन के लिए रुकते हैं, तो हम उन्हें खेती करने, मिट्टी के बर्तन बनाने, पेंटिंग करने जैसी दैनिक गतिविधियों में भी शामिल करते हैं। यह उनके लिए एक यादगार अनुभव होता है।”

कलाकारों के लिए बेहद खास जगह है Art Village Karjat

Art village Karjat, Maharashtra

गंगा का एक सपना कलाकारों का एक समुदाय बनाने का भी था, जिसे उन्होंने पिछले पांच सालों में पूरा कर लिया है। उन्होंने कई फोटोग्राफर्स, मूर्तिकारों, फिल्म निर्माताओं, चित्रकारों, वास्तुकारों, योगियों, संगीतकारों, अभिनेताओं, डांसर्स और बहुत से कला प्रेमियों की मेजबानी की है। इन कलाकारों ने यहां कार्यशालाएं आयोजित कीं, क्लासेज लीं, अपने विचारों का आदान-प्रदान किया और मेहमानों के साथ अपने कौशल और कलाकृतियों को बढ़ावा देने के लिए चर्चा की। 

गंगा को उम्मीद है कि आने वाले समय में जल्द ही एक कृषि फार्म भी शुरू हो जाएगा, जहां किसान एक साथ आकर, आपस में एक-दूसरे के विचारों को सुन और सुना सकते हैं और अपनी खासियतों से रू-ब-रू करा सकते हैं। एवीके में एक रात रहने का किराया 8 हजार रुपये है।

अगर आप यहां घूमना चाहते हैं, तो जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

मूल लेखः गोपी करेलिया

संपादनः अर्चना दुबे

यह भी पढ़ेंः क्रोशिया से ज्वेलरी बनाकर हुईं मशहूर, अब सालाना कमा लेती हैं रु. 4 लाख

Exit mobile version