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विशाखापट्नम गैस लीक : इस युवक ने 70 लोगों को दिया आश्रय !

विशाखापट्नम में एक पॉलिमर संयंत्र में 7 मई 2020 की सुबह हुई गैस लीक हादसे में कम से कम 11 लोगों की जान चली गई जबकि हजारों लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। ग्राम सरपंच (सचिवाल्यम) के ऑफिस में काम करने वाले सिविल इंजीनियर पेडमेतला प्रदीप कुमार सौभाग्य से बच निकले।

आईआईटी के छात्र रहे पेडमेतला, विशाखापट्नम में एलजी पॉलिमर प्लांट से 7 किलोमीटर दूर पेंदुर्थी शहर में रहते हैं। 7 मई की सुबह 5 बजे उनके एक मित्र का फोन आया जो काफी घबराए हुए थे, गैस लीक की घटना के बाद उन्होंने उनका हालचाल पूछने के लिए फोन किया था। सौभाग्य से, प्रदीप अपने घर रोंगाली नायडू पालम में थे, जो घटनास्थल से 34 किलोमीटर दूर था।

25 वर्षीय पेडमेतला प्रदीप कुमार ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे दोस्त ने मुझे इस घटना के बारे में बताया और कहा कि लोगों को मदद की जरुरत है। मैंने अपना गॉगल्स और मास्क पहना और घटनास्थल पर पहुंच गया। वहां पहुंचकर मैंने देखा कि लोग जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर भाग रहे हैं। कुछ लोगों ने भागते समय रूककर थोड़ा बहुत मुझे बताया और फिर भागने लगे।”

प्रदीप ने अपने दोस्तों के साथ 1000 लोगों को जलपान, 400 लोगों को भोजन और रात में 70 लोगों को आश्रय प्रदान किया।

आईआईटी ग्रेजुएट चेकपॉइंट ड्यूटी पर:

Those escaping the Vizag gas tragedy get a much-needed meal.

आईआईटी मद्रास से अपनी डिग्री हासिल करने के बाद प्रदीप ने मुंबई में सिविल इंजीनियर के रूप में नौकरी की। लेकिन जरूरतमंदों के लिए कुछ करने की इच्छा के कारण उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और वीहेल्प नामक संस्था की शुरूआत की। यह एक ऐसी संस्था है जो विशाखापट्नम में गरीब और वंचित छात्रों को मुफ्त में ट्यूशन देती है। उन्होंने सरकारी एजेंसियों में भी काम करना शुरू किया और वर्तमान में आंध्र प्रदेश के मोगलीपुरम में ग्राम सचिवालयम में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं।

प्रदीप बताते हैं, “कोविड ​​-19 लॉकडाउन के कारण मुझे चेकप्वाइंट ड्यूटी दी गई थी। सुबह 7 से 11 बजे तक मैं पोस्ट पर खड़ा रहता हूं जहां मुझे गांव में आने और बाहर जाने वाले हर वाहन की जांच करनी होती है। यदि बिना वजह लोग घूमते हुए नजर आते हैं तो मैं उन्हें स्कैन करता हूं और उन्हें रोकने के साथ ही जुर्माना भी लगाता हूं। 7 मई को विशाखापट्नम से लौटने के बाद मैं अपनी ड्यूटी पर आ गया। मुझे स्कैनिंग प्रक्रिया में थोड़ी ढील देने के लिए कहा गया। मैं हर किसी को अंदर आने दे रहा था और जो लोग गांव से बाहर जा रहे थे उन्हें घटना के बारे में आगाह कर रहा था।

उस दिन वह अपनी ड्यूटी के बाद थोड़ी और देर रुक गए। सुबह 11.30 बजे तक कुछ अजीब सा महसूस हुआ। हवा में एक अजीब सी गंध थी और प्रदीप एवं स्टाफ के अन्य सदस्यों को बेचैनी और तेज घुटन होने लगी। उन्होंने तुरंत मंडल परिषद विकास अधिकारी (एमपीडीओ) को फोन किया और इस अजीबोगरीब घटना की जानकारी दी।

उन्होंने बताया, ‘अधिकारियों ने हमें सभी ग्रामीण स्तर के स्वयंसेवकों से बात करने का निर्देश दिया ताकि वे ग्रामीणों को घर पर रहने और कुछ आवश्यक सावधानियां बरतने के लिए सावधान कर सकें। मैं साफ तौर पर देख सकता था कि स्थिति कितनी खराब हो रही थी। मैं आश्वस्त था कि गांव वालों को सूचित कर दिया गया है और वे सुरक्षित हैं। गैस लीक हादसे से बचने के लिए मैं गांव से बाहर निकल आया।’

लगभग 15 किलोमीटर दूर जाने के बाद प्रदीप को पछतावा होने लगा। वह ग्रामीणों और विशाखापट्नम से भागने वाले लोगों के लिए कुछ और कर सकते थे। यह सोचकर कुछ ही समय में वह पीछे मुड़ गए।

त्रासदी से बच निकलने से लेकर सुरक्षित आश्रय तक

Some people took refuge in bus shades.

कुछ लोगों ने बस शेड्स में शरण ली। सुबह तक विशाखापट्नम के लोगों ने स्थिति की गंभीरता को समझ लिया था। कई लोग कार, बाइक और यहां तक ​​कि पैदल ही आसपास के गांवों में भागने लगे थे। मोगलीपुरम एक ऐसा गांव था जहां सैकड़ों लोग भागकर आए थे। प्रदीप कहते हैं, “मैंने कई लोगों को अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोते बिलखते और बोरबेल से पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हुए देखा। यह देखकर मुझे काफी दुख हुआ। इसलिए मैं उनके लिए जो कुछ कर सकता था, तुरंत करने का फैसला किया। मैं पास के गांव की दुकानों में गया और पानी, बटरमिल्क आदि खरीदा और सड़क किनारे फंसे सभी लोगों में बांटना शुरु कर दिया। अन्य लोग जिन्हें नहीं समझ में आ रहा था कि क्या करें पूरी तरह घबराए हुए थे।“

प्रदीप ने बताया, “ मैंने दोपहर 12 बजे के आसपास सामग्री बांटनी शुरू की और 100 पैकेट छाछ, 250 बोतल नींबू पानी, 250 पेटी संतरे का रस और 200 बोतल बादाम दूध वितरित किए। मैंने अपने पैसे से सब कुछ खरीदा था। लेकिन लगभग 15,000 रुपये का जलपान खरीदने के बाद, सभी सामान खत्म हो गया। फिर मैंने गांवों में अपने दोस्तों को फोन करके उनकी सहायता मांगी। अब मैं अकेला नहीं था।”

(Left) Pradeep; (Right) Anil

अनिल कुमार, बाबा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS), विशाखापट्नम में असिस्टेंट प्रोफेसर और वीहेल्प के सह-संस्थापक भी हैं। वह बताते हैं, “जब मुझे घटना के बारे में पता चला तब मैं आसपास ही था। मैंने बहुत से पीड़ितों को अपने घरों से बाहर भागते हुए देखा। उनके पास पीने का पानी नहीं था। इसलिए हमने उनके लिए फलों का जूस और पानी खरीदा। दोपहर तक हमने भोजन की व्यवस्था भी कर दी।“

मोगलीपुरम के निवासियों ने भूखे लोगों को भोजन कराया। रात 8 बजे तक स्थिति नियंत्रण में रही और प्रदीप रोंगाली नायडू पालम स्थित अपने घर लौट आए। घटना के दौरान भागने वाले कई लोग भी अपने होमटाउन चले गए।

डरावनी थी विशाखापट्नम की घटना:

The 70 people who stayed in the BITS premises

रात लगभग 1.30 बजे के आसपास वहां फिर एकदम भगदड़ जैसी स्थिति नजर आई। अनिल को फोन पर सूचना मिली की लोग यहां-वहां भाग रहे हैं। उन्होंने बताया, “ मुझे दोबारा गैस लीक की अफवाह का संदेह था और इसी वजह से लोगों में घबराहट बढ़ गयी थी। मैंने तुरंत एक कॉलेज बस की व्यवस्था करके लोगों को बिट्स के परिसर में भेजा। हमने उनके लिए सभी जरुरी इंतजाम किए।“

प्रदीप कहते हैं, “अंततः बच्चों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने सुरक्षित तरीके से त्रासदी की वह रात बितायी। हमने उन्हें रात के लिए बिस्तर और सुबह दूध और नाश्ता उपलब्ध कराया। उसके बाद मैं अपनी ड्यूटी पर चला आया।”

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बेशक इस ऑपरेशन में कई स्वयंसेवकों ने प्रदीप और अनिल की मदद की। उनके समय पर मदद, बेहतर प्रबंधन और निस्वार्थ समर्थन के बिना इन परिवारों को ऐसे कठिन समय में शरण नहीं मिली होती।

मूल लेख: तन्वी पटेल


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