“ज़िन्दगी के असली स्वाद को केवल वही लोग महसूस कर पाते हैं, जो इसके लिए संघर्ष करते है। संरक्षित लोग इससे पूर्णतः अंजान ही रहते हैं।“
– कप्तान आर . सुब्रमण्यम , कीर्ति चक्र ।
माधवरम की भव्य राइफलों और हेलमेट युद्ध स्मारक के पीछे एक बेहद दिलचस्प दास्ताँ है। अमरावती से 150 किलोमीटर दूर पश्चिमी आंध्र प्रदेश के गोदावरी ज़िले की गोद में बसा एक छोटा सा गाँव है माधवरम। इस गाँव का अपने निवासियों को सैन्य सेवा में भेजने का एक अलग ही शानदार इतिहास है।
इस गाँव के लगभग हर घर से कम-से-कम एक सदस्य भारतीय सेना में नौकरी कर रहा है। किसी किसी घर के तो 4 सदस्य तक भारतीय सेना में हैं। वास्तविकता में इस गाँव में 109 लोग ऐसे हैं जो सेना में ही कोई न कोई नौकरी कर रहे हैं ( 65 क्षेत्रों में और बाकी प्रशाशनिक पदों पर )।
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माधवरम में, युद्ध और वीरता की तमाम लोककथाएँ प्रचलित हैं और 100 से भी ज़्यादा परिवारों ने बड़े ही गर्व के साथ अपने सम्बन्धियों द्वारा युद्ध में जीते गए पदको को घर में सजाया हुआ है।
गाँव में नौकरी से रिटायर लोग खुद को अपने नाम से बुलाये जाने की जगह सेना में अपने पद के नाम के बुलाया जाना पसंद करते हैं। यहाँ की स्थानीय औरतें भी एक सैनिक से शादी करना ज़्यादा पसंद करती हैं और यहाँ तक कि बच्चों के नाम कर्नल, मेजर और कैप्टन रखे जाते हैं।
माधवरम का सैन्य इतिहास यहाँ के लोगों के लिए गर्व की बात है। ये गाँव 17वीं शताब्दी के गजपति राजवंश, जिसका शासन आज भी उड़ीसा और दक्षिणी पठार पर है, के राजा पुष्पति माधव वर्मा ब्रह्मा का रक्षा ठिकाना था। इस राजा के ही नाम पर इस गाँव का नाम माधवरम पड़ा, इस राजा ने माधवरम से 6 किमी दूर आरुगोलु गाँव में मोर्चेबंदी के लिए एक किला भी बनवाया था, जिसके भग्नावशेष आज भी वहाँ मौजूद हैं। साम्राज्य की सुरक्षा को मजबूत करने के लिये उड़ीसा और उत्तरी आंध्र से सैनिकों को ला कर माधवरम और आरगोलु के किले में बसाया गया जिसके बदले में उन्हें ज़मीनें उपहार में दी गयीं। बीते कुछ सालों में इन सैनिकों और उनके वंशजों ने क्षेत्रों में कई शासकों के लिये युद्ध लड़े जैसे कि – बोबिली, पीतापुराम, पलनाडु, वारंगल और काकतीय।
औपनिवेशिक शासन के दौरान इस गाँव के 90 सैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से युद्ध लड़ा।द्वितीय विश्वयुद्ध में ये आँकड़ा 1110 तक पहुँच गया।
गाँव के ऐतिहासिक स्थानीय वीरों को भी काफी सम्मान प्राप्त है, जैसे सूबेदार वेमपल्ली वेंकटाचलम, जिन्हें ‘रायबहादुर’, ‘पालकी सूबेदार’, ‘घोडा सूबेदार’ जैसी उपाधियाँ मिली हैं और विक्टोरिया क्रॉस मैडल सम्मान भी मिल चूका है।
सूबेदार वेमपल्ली वेंकटाचलम का परिवार माधवरम गाँव की सैन्य परम्परा का प्रतीक है। उनके पुत्र मार्कंडेयुलु 1962 में सिंध-भारत युद्ध , 1965 में भारत-पाक युद्ध और 1971 में बंगलादेश मुक्ति संग्राम में पुरस्कृत एक अनुभवी योद्धा हैं। उनके पोते, सुब्बाराव नायडू, हाल ही में भारतीय सेना से हवलदार के पद पर सेनानिवृत हुये और उनके प्रपौत्र मानस का भी चयन सेना में हो चुका है।
माधवरं के सैनिक स्वतंत्र भारत के हर संग्राम का हिस्सा रहे हैं। आज भी माधवरम गाँव के 250 सैनिक देश की सीमा की रक्षा कर रहे हैं।
माधवरम के लोगों ने यहाँ के सैनिकों के बलिदान और सेवा की स्मृति में नयी दिल्ली अमर जवान ज्योति की तर्ज़ पर एक शहीद स्मारक का निर्माण कराया है।
वर्षो से गाँव के युवाओं के लिए भारतीय शशस्त्र सेना बेहतरीन करियर विकल्प रहा है। जब ये ख़बर आयी कि महिलायें भी फाइटर प्लेन का संचालन कर सकेंगी तो गाँव की युवतियों के सपनों को तो जैसे आसमान मिल गया हो। इससे उन्हें ये आशा मिली कि अब वो भी देशसेवा कर सकेंगी।
नागा विजय मोहन, उरी से 15 km दूर तैनात हैं जहाँ कि एक आतंकी हमले में भारतीय सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए गए साक्षात्कार में उनके 64 वर्षीय सेना निवृत पिता ने बताया,
“मेरे बेटे के साथ कुछ भी बुरा घटित हो सकता है , पर मुझे इस बात की तसल्ली रहती है कि ये हमारी मातृभूमि के लिए एक बलिदान होगा। “
मोहन की माँ फ़ख्र के साथ बताती हैं, “ प्राधिकारी वर्ग ने जब निजी मोबाइल ज़ब्त कर लिए थे उससे पहले मैंने उससे आख़िरी बार बात की थी। मैंने उसे बहादुर और मजबूत बने रहने और अपनी रणभूमि पर गर्व करने को कहा।“
मज़ेदार बात है कि गाँव के प्रवेशद्वार पर पोलेरम्मा मंदिर है, जिस पर माधवरम के लोगों की काफी श्रद्धा है। यहाँ के लोगों का विश्वास है कि देवी का आशीर्वाद रणभूमि में जवानों की रक्षा करता है।
मधवरम में 1180 सेनानिवृत सदस्यों ने मिल कर एक संस्था बनाई है। सेनानिवृतहोने के बाद बहुत से लोग साधारण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वे कोई छोटा मोटा सा व्यवसाय या अपने खेतों की देख रेख कर रहे हैं और उनमें से कुछ तो किसी सिक्योरिटी फर्म में नौकरी कर रहे हैं। फिर भी वो हर तरह से भारतीय सेना की सेवा में हमेशा तत्पर रहते हैं। जैसे कि युद्धभूमि में वाहन की व्यवस्था या सामानों का निर्यात।
माधवरम के सेनानिवृत पूर्व सैनिक भी गर्व के साथ कहते हैं कि भले ही अब वो सेनानिवृत हो गए हों पर उनकी आत्मा अब भी सेना के ही लिए है।
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माधवरम की सैन्य परम्परा और उसकी देश सेवा लोगों की नज़रों से छुपी नहीं रही । रक्षा मंत्रालय ने सैन्यसेवा में इस गाँव के अतुलनीय योगदान को संज्ञान में लिया और गाँव को और भी विकसित करने का निर्णय लिया । रक्षा मंत्री मनोहर पारिंकर जल्द ही माधवरम में एक सैन्य प्रशिक्षण केंद्र की आधारशिला रखेंगे ।
भारत डायनामिक्स लिमिटेड ( BDL ) के सहयोग से एक सुसज्जित रक्षा अकादमी की स्थापना की जायेगी , जो कि गाँव के उन युवाओं के लिये किसी सपने के सच होने जैसा है , जिनके लिए सेना में शामिल होना बहुत ही गर्व की बात है । गाँव वालों के लिए ये बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि शायद आधिकारिक तौर पर गाँव का पुनर्नामकरण कर के “ सैन्य माधवरम “ कर दिया जाये ।
माधवरम गाँव में सैन्य सेवा में जाना केवल एक कैरियर विकल्प न हो कर एक पुरानी परंपरा को जीवित रखना है। यहाँ की अनूठी संस्कृति और इतिहास से आकर्षित हो कर एक तेलगु डायरेक्टर राधाकृष्णा ‘ क्रिष ‘ जगरलामुण्डि ने इस गाँव पर आधारित एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म “ कंचे “ बनायीं है।
माधवरम गाँव के ही एक सेनानिवृत सैनिक उर्रिका सीतारमय्या की बेटी श्री रामनन ने भी इस गाँव पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाई है।