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आंध्र के युवक का अनोखा इडली स्टॉल: ज्वार, बाजरे की इडली को पैक करते हैं पत्तों में

सुबह का नाश्ता यदि इडली हो तो दिन की शुरुआत इससे बेहतर और क्या हो सकती है! और अगर इडली चावल के आटे की बजाय सुपरग्रेन के तौर पर जाने वाले अनाजों से बनी हो तो स्वाद और पोषण, दोनों बढ़ जाता है। हालांकि, इससे पहले आपने शायद बाजरे या ज्वार की इडली के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बता रहे हैं जो 8 तरह के अनाजों की इडली (Millet Idli) बनाकर ग्राहकों को परोस रहा है और वह भी एकदम अनोखे और दिलचस्प तरीके से। 

यह कहानी आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम स्थित एमवीपी कॉलोनी में रहने वाले चित्तम सुधीर की है। सुधीर का इडली स्टॉल पूरे इलाके में मशहूर है। सुधीर, सुबह 6 बजे से अपना काम शुरू करते हैं। उनकी इडली की लोकप्रियता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि महज कुछ घंटों में वह 200 से ज़्यादा ग्राहकों को इडली सर्व कर चुके होते हैं।

मूल रूप से आंध्र प्रदेश के गुंटूर के रहने वाले 27 वर्षीय सुधीर ने साल 2018 में फूड स्टॉल की शुरुआत की थी। 50 हज़ार रुपये की इन्वेस्टमेंट के साथ उन्होंने ‘वसेना पोली’ नाम से स्टॉल की शुरुआत की थी। इस शब्द का मतलब होता है ‘वैकल्पिक इडली’ यानी कि कुछ अलग तरह की इडली। वैसे तो शहर में और भी बहुत जगह इडली मिलती है लेकिन उनकी खासियत है अनाजों से बनी इडली।

वह आठ प्रकार के पौष्टिक अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, अरिका (कोदो), कोर्रा (फोक्सटेल) और समा से बनी इडली परोसते है। सामान्य मूंगफली की चटनी के अलावा, इडलियों के साथ लौकी, अदरक और गाजर जैसी सब्जियों से भी चटनी बनाकर परोसी जाती है।

कई स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए, सुधीर की ये इडली सबसे अलग है। इसके बारे में वह बताते हैं, “भारत में मिलेट/पोषक अनाज के बारे में कम जानकारी है। हालांकि, इनमें आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम और तांबा जैसे समृद्ध खनिज गुण हैं। इनमें आवश्यक विटामिन जैसे फोलेट, बी 6, सी, ई और के होते हैं, और चावल की तुलना में अधिक पोषण होता हैं। ग्रामीण इलाकों में इनकी कोई मांग नहीं है। लेकिन शहरी इलाकों में इनकी मांग बढ़ रही है।”

कोई आश्चर्य नहीं है कि उनके ग्राहक दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, वह भी बिना किसी ख़ास मार्केटिंग के। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग ही उनके बारे में एक-दूसरे को बताते हैं। 

औसतन, वह अपने दो स्टॉलों पर प्रति दिन 500 प्लेट इडली बेचते है। वीकेंड और छुट्टियों पर यह आंकड़ा आसानी से 600 को छूता है।

मांग के बावजूद, उन्होंने इडली का दाम सस्ता रखा है, “एक प्लेट में तीन इडली हैं और इसकी कीमत 50 रुपये है, जबकि सिंगल पीस 17 रुपये का है। मैं इसे इसलिए किफायती रखता हूँ ताकि जिन ग्राहकों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है वह भी इसे ट्राई कर सकें।”

हालांकि, ग्राहकों के लिए कम दाम का मतलब यह नहीं है कि वह कम दरों पर सामग्री खरीदते हैं। वास्तव में, उन्होंने एक अच्छा मॉडल विकसित किया है। हर महीने, वह श्रीककुलम, विजयनगर और विशाखापत्तनम के गांवों से आदिवासी किसानों से लगभग 700 किलोग्राम मिलेट खरीदते हैं। प्रति किलो के लिए वह किसानों को लगभग 70 रुपये का भुगतान करते हैं। 

उनकी इडली के बारे में एक और ख़ास बात है और वह है इन्हें पैक करके परोसने का तरीका। सुधीर अपनी इडली को पत्तों में पैक करते हैं। दरअसल, इडलियों को पत्तों में लपेटकर बनाया जाता है। पत्तों को कोण का आकार देकर, इनमे बैटर भरा जाता है, फिर इन्हें भाप में पकने के लिए रखा जाता है। इस तरह से सुधीर न सिर्फ ग्राहकों की बल्कि पर्यावरण की सेहत का भी ख्याल कर रहे हैं। 

सुधीर ने तीन साल पहले आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में मास्टर्स पूरा किया था। कोर्स ने उन्हें नौकरी करने के बजाय प्राकृतिक खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

“मैंने आंध्र प्रदेश के आंतरिक इलाकों में बड़े पैमाने पर यात्रा की और प्राकृतिक खेती सीखने के लिए किसानों के साथ कुछ महीने बिताए। मुझे मिलेट की खेती के लिए प्रेरणा मिली और इसकी पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीकों और स्वास्थ्य लाभों को जानने के बाद, मैंने खुद खेती शुरू करने का फैसला किया,” उन्होंने याद करते हुए बताया। 

वह अपने शहर लौटे और अपनी खेती की योजना पर काम करने लगे लेकिन उन्होंने महसूस किया कि मिल्लेट्स की बाजार में अधिक मांग नहीं है। वह कहते हैं कि उन्हें लगा कि किसानी से ज़्यादा इनकी मार्केटिंग पर काम करना चाहिए। “मैंने महसूस किया कि लोगों को इन अनाजों से बनने वाले रोजमर्रा के व्यंजनों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। मैंने इस अवसर का उपयोग यह इडली बनाने के लिए किया क्योंकि इडली दक्षिण भारत में मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक है,” उन्होंने आगे कहा। 

बैटर तैयार करने के लिए बाजरे के साथ चावल को बदलना कोई खास उपलब्धि नहीं थी। सही अनुपात और एक रेसिपी तैयार करने में उन्हें लगभग दो साल लग गए। वह इसे स्वादिष्ट बनाने ले लिए 1: 4 अनुपात (उड़द दाल का एक भाग और मिलेट के चार भाग) में रखते है।

सुधीर को उम्मीद है कि शहर भर में और भी स्टॉल शुरू कर पाएंगे। वह कहते हैं, “मैं अधिक किसानों से जुड़ना चाहता हूँ और अधिक ग्राहकों को भी इस सफर में शामिल करना चाहता हूँ। मेरा उद्देश्य इन अनाजों को चावल की तरह खाए जाने वाली फसल के रूप में एकीकृत करना है।”

चित्तम सुधीर से संपर्क करने के लिए आप 8885979799 पर कॉल कर सकते हैं।

मूल लेख: गोपी करेलिया

संपादन – जी. एन झा

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