असली मसाले सच-सच MDH को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है,
टीवी पर आपने एमडीएच मसाले के विज्ञापन में, मसालों की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले बुजु्र्ग महाशय धर्मपाल गुलाटी जरूर देखा होगा।
MDH नाम लेते ही हम सभी को धर्मपाल गुलाटी का चेहरा ही नज़र में आता है।
लेकिन अपने मसालों के ज़ायकों के लिए पहचाने जाने वाले धर्मपाल गुलाटी की जिंदगी काफी उतार-चढाव भरी रही है।
क्या आप जानते हैं? भारत के यह मसाला किंग कभी दिल्ली की सड़कों पर तांगा चलाया करते थे।
यहां तक की यह ब्रांड नाम भी देश में नहीं बना बल्कि पाकिस्तान से भारत आया था।
जी हाँ, महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल की सियालकोट में 'महाशय दी हट्टी' नाम से दुकान थी।
इसी 'महाशय दी हट्टी' से आया है एमडीएच।
भारत के बंटवारे के वक्त उनका परिवार सियालकोट रिफ्यूजी कैंप से दिल्ली के करोलबाग में आकर बस गया था।
बंटवारे के बाद भारत आकर धर्मपाल गुलाटी के पास महज 1500 रुपये की जमा पूंजी थी।
उन्होंने इससे एक तांगा ख़रीदा और दिल्ली के कुतुब रोड़ पर तांगा चलाने का काम करने लगें।
लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि यह काम उनके बस का नहीं है। फिर उन्होंने पिता के पुराने काम को शुरू करने का फैसला किया और 1948 में खुद मसाले कूट-कूटकर बेचना शुरू किया।
तांगा बेचकर उन्होंने क़ुतुब रोड पर एक दुकान भी खरीदी और उसका नाम रखा- 'महाशय दी हट्टी' सियालकोट वाले'
वक्त के साथ उनका बिजनेस फैलता गया और उनकी 'देगी मिर्च' तो शहर भर में छा गई।
साल 1959 में उन्होंने एक छोटी सी मसाला फैक्ट्री बनाई, जहां वह शुद्धता और गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देते थे।
वक्त के साथ MDH ने पैकेजिंग और मसालों की वैराइटीज़ पर काम करना शुरू किया। और आज MDH 100 से अधिक देशों में मसाला सप्लाई के करता है।
2020 में धर्मपाल गुलाटी इस दुनिया को अलविदा कह दिया और पीछे छोड़ गए मसाले की विरासत जिसको उनके बेटे राजीव गुलाटी संभाल रहे हैं।