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हिमाचल: अकेले शुरू किया शहर का कचरा समेटना, 100 क्विंटल कचरे को लैंडफिल में जाने से रोका

पहाड़ी इलाकों की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में पर्यटकों का योगदान सबसे अधिक माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पर्यटकों की आवाजाही से पहाडों पर प्रदूषण भी फैल रहा है? लेकिन यह भी सच है कि केवल पर्यटक ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि वहाँ रहने वाले लोग भी पर्यावरण को लेकर जागरूक नहीं हुए हैं। ऐसे में हम आपको आज हिमाचल प्रदेश के एक ऐसे शख्स (Himachal Man Collecting Waste) की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने पहाड़ों को कूड़े-कचरे से मुक्त बनाने के लिए एक अनोखी पहल की शुरूआत की है।

हिमाचल प्रदेश के लाहौल जिला के उदयपुर कस्बे में रहने वाले 39 वर्षीय सुशील कुमार हर किसी से एक ही सवाल करते हैं कि क्या वाकई सिर्फ टूरिस्ट ही पहाड़ों में प्रदूषण फैलाने के लिए ज़िम्मेदार हैं? क्या पहाड़ों में रहने वाले लोग अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा रहे हैं? जब पहाड़ों में टूरिस्ट नहीं आते तो क्या यहाँ कचरा नहीं होता?

इन सब सवालों को पूछने वाले सुशील का मानना है कि अगर पहाड़ी लोग ही अपने खुद के कूड़े-कचरे की ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे तो फिर बाहर वाले क्या कर लेंगे? इसलिए उन्होंने अपने स्तर पर अपने इलाके की तस्वीर बदलने की ठानी।

Sushil Kumar

सोशल वर्क से अपनी पढ़ाई करने वाले सुशील ने कुछ साल सामाजिक संगठनों और सीएसआर प्रोजेक्ट्स के साथ काम किया है। लेकिन फिर लगा कि अपने शहर में ही रहकर कुछ किया जाए तो उदयपुर में कृषि यंत्रों की दुकान शुरू की। फ़िलहाल, वह अपनी दुकान चलाने के साथ-साथ उदयपुर व्यापार मंडल के अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाल रहे हैं।

सुशील ने द बेटर इंडिया को बताया, “इसी साल मुझे अध्यक्ष बनने का मौका मिला। लेकिन अपने इलाके की स्वच्छता पर हम काफी समय से काम कर रहे हैं। टूरिस्ट के बारे में बात न करें तब भी कस्बे में घरों, दुकानों, ढाबों और होटलों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा काफी हो जाता था। प्रशासन से इसे ट्रैक्टर द्वारा उठवाया भी जाता है लेकिन किसी भी कचरे को अलग-अलग करके आगे प्रोसेस के लिए नहीं भेजा जाता है। ज़्यादातर यह कचरा लैंडफिल में ही पहुँचता है।”

सुशील कुमार और उनके कुछ साथियों ने इस बारे में मिलकर कुछ करने की सोची। उन्होंने सबसे पहले शुरूआत अपनी दुकान से की और फिर धीरे-धीरे बाकी सब लोगों को अपने साथ लिया। अपने यहाँ से निकलने वाले सभी तरह के प्लास्टिक, टायर और कांच के कचरे को वह अलग-अलग इकट्ठा करते हैं। कचरे में ज़्यादातर बोतलें होती हैं और वह भी कोल्डड्रिंक की। इसलिए उन्होंने पेप्सीको कंपनी में बात की कि यदि वह लोग इनके कलेक्शन और रीसाइक्लिंग में मदद कर सकते हैं। लेकिन उन्हें वहाँ से कोई मदद न मिली।

Collecting waste

“लाहौल में कोई वेस्ट कलेक्शन सेंटर या फिर प्रोसेस सेंटर नहीं है। नीचे कुल्लू और मनाली में सेंटर है और इसलिए हमें कोई ऐसा चाहिए था जो इस कचरे को इकट्ठा करके वहाँ तक पहुँचा दें। काफी ढूंढ़ने के बाद हमने एक वेंडर का पता चला जो अपने लोगों से प्लास्टिक और कांच का कचरा इकट्ठा करवाते हैं। हमने उनसे बात की और अपना इकट्ठा किया हुआ सभी प्लास्टिक और कांच का कचरा हम 7 से 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उन्हें देते हैं और वह इसे आगे रीसायकल के लिए भेजते हैं,” सुशील ने बताया।

अब तक वह लगभग 100 क्विंटल कचरा लैंडफिल में जाने से रोक चुके हैं। इस कचरे को बेचकर उन्हें जो भी पैसा मिला है उसे व्यापार मंडल के खाते में जमा कराया गया है। सुशील कहते हैं कि उनका उद्देश्य अपने लाहौल में ही एक वेस्ट मैनेजमेंट सेंटर बनाने का है। इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन से बात की है ताकि उन्हें कहीं छोटा-सा ज़मीन का टुकड़ा मिल सके। इसके अलावा, उनके प्रयासों को देखते हुए एक-दो सामाजिक संगठन जैसे हीलिंग हिमालयाज ने भी उनकी मदद करने का वादा किया है।

People are helping in the initiative

सुशील बताते हैं कि उन्हें यह कार्य करने में बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। बहुत से लोग अक्सर उनसे पूछते थे कि ऐसा करने से उनका क्या फायदा होगा? तो कई लोग उन पर इल्जाम लगाते थे कि ज़रूर वह अपने किसी बड़े फायदे के लिए यह कचरा इकट्ठा करा रहे हैं। लेकिन सुशील को काफी लोगों का साथ भी मिला क्योंकि वह पहले से ही सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। पहले भी उन्होंने अपने इलाके में पौधारोपण जैसे अच्छे काम कराए हैं। इसलिए उन्हें लोगों का विश्वास जीतने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा।

फ़िलहाल, वह उदयपुर व्यापार मंडल की लगभग 120 छोटी-बड़ी दुकानों, होटलों और ढाबों से कचरा इकट्ठा कर रहे हैं। आगे उनकी योजना शहर के घरों तक पहुँचने की है। वह चाहते हैं कि जिस तरह दुकान वाले लोग अपना कचरा अलग -अलग करके इकट्ठा करते हैं और फिर रीसाइक्लिंग के लिए देते हैं। इसी तरह अगर हर एक घर भी अपना कचरा अलग-अलग इकट्ठा करे तो बहुत हद तक कचरे को लैंडफिल में जाने से रोका जा सकता है। इससे पर्यावरण का ही अच्छा होगा।

द बेटर इंडिया, सुशील कुमार के प्रयासों की सराहना करता है और उम्मीद है कि उनकी कहानी से प्रेरणा लेकर लोग खुद अपनी समस्यायों का हल खोजने की कोशिश करेंगे!

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संपादन- जी एन झा


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