“के मरके भी किसी को याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कुरायेंगे, कहेगा फूल हर कली से बार-बार, जीना इसी का नाम है…!”
गीत के ये बोल हम सबने अपने जीवन में बहुत बार सुने होंगे, पर गिनेचुने विरले ही होते हैं, जो अपनी मौत के बाद भी किसी को याद आते हैं, किसी के ख़ुशी भरे आंसुओं की वजह बनते हैं। 20 वर्षीय युवती नेहा भी हमारी इस कहानी का एक ऐसा ही क़िरदार है, जो अब इस दुनिया में तो नहीं हैं, लेकिन बेशुमार दिलों में जिंदा है।
14 मार्च, 2015 की सुबह तड़के हुए एक कार हादसे में नेहा की मृत्य हो गई। पर आज उनके नाम पर बनी संस्था ‛नेहा मानव सेवा सोसायटी’ हिमाचल में जरूरतमंदों की मदद के लिए आधी रात को भी खड़ी नज़र आती है।
हिमाचल प्रदेश के घुमारवीं में स्टेशनरी का व्यापार करने वाले 48 वर्षीय पवन बरूर की ज़िंदगी एक फोन कॉल से बदल गई, जिसको उन्होंने कुछ इस तरह बयान किया –
“एक आम आदमी की तरह मैं भी अपने जीवन में ख़ुश था। छोटा सा परिवार और छोटा सा व्यापार, यही मेरे जीवन का आधार था। एक दिन सुबह मोबाइल पर आए कॉल ने न सिर्फ मेरे बल्कि कई घरों में अंधेरा कर दिया।
14 मार्च, 2015 की सुबह 8:00 बजे करनाल के ट्रॉमा सेंटर से एक पुलिसवाले का फोन आया। पूछा गया कि क्या आप नेहा के पापा बोल रहे हैं? इस पर मैंने कहा ‘हाँ’, तो वह बोले आपकी बच्ची बुरी तरह घायल है, आप जितना जल्दी हो सके करनाल आ जाइये। यह सुनते ही मैं हक्का-बक्का रह गया।
चंडीगढ़ की एमसीएम डीएवी वुमन कॉलेज में बी. एससी फाइनल ईयर की स्टूडेंट यानी नेहा बेटी से मेरी रात को ही बात हुई थी!
इस पर मैंने पुलिस वाले से जब यह कहा कि वो रात में तो चंडीगढ़ में अपने होस्टल में थी, तो अभी सुबह करनाल कैसे पहुंच गई? पुलिस वाले ने जो बताया, बेहद दुखभरा था। नेहा के साथ होस्टल में रूम शेयर करने वाली सोनाली (सोनीपत) के पिताजी को आधी रात 1:30 बजे हार्ट अटैक आया और वह इस दुनिया से चले गए। यह बात सोनाली के छोटे भाई ने रात 2:30 बजे फोन करके अपनी बहन को बतानी चाही लेकिन सोनाली नींद में थी इस वजह से यह फोन नेहा ने उठाया। जैसे ही उसे इस घटना के बारे में पता चला उसकी चीख निकल गई और हाथ से फोन गिर गया। इस पर उसके साथ रह रही संजना, सोनाली और रूबी घबराकर नींद से उठ गईं। चारों सहेलियां आनन-फानन में चंडीगढ़ से सोनीपत के लिए बस द्वारा रवाना हुईं। बस करनाल में 10-15 मिनट चाय-पानी के लिए रुकी ही थी, इस दौरान संजना के घर वालों ने उन्हें लेने के लिए कार भेज दी, जिसमें ड्राइवर और संजना का भाई थे। चारों सहेलियां रूबी, नेहा, संजना और सोनाली उस कार में बैठ गईं। कार यही कोई डेढ़ किलोमीटर ही चली होगी कि आगे एक फ्लाईओवर बन रहा था, जो पूरी तरह से तैयार नहीं था और ना ही उस पर कोई डायवर्जन का बोर्ड था और न ही किसी तरह के बैरिकेट्स ही लगे थे। ड्राइवर ने गाड़ी को फ्लाईओवर पर चढ़ा दिया, जो आगे से अधूरा था, वहां खड़े डंपर से कार टकराई और एक भयानक दुर्घटना घटी।
इस पर मैंने पुलिसवाले से पूछा कि क्या नेहा के बचने के आसार हैं? यदि हाँ तो मैं करनाल-दिल्ली के अपने व्यापारिक मित्रों को बोलकर तुरंत सहायता भिजवाता हूँ, क्योंकि मुझे आने में 9 घंटे लग जाएंगे। जवाब मिला, नेहा, सोनाली, संजना और ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई है। बस संजना के भाई और रूबी की इस हादसे में जान बच पायी!
जैसे-तैसे इस हादसे को सहकर मैं अपने चाचा-भाइयों को लेकर करनाल के लिए रवाना हुआ। रात को हम लोग नेहा की डेड-बॉडी लेकर घर आए। रविवार को हमने अपनी लाडली बिटिया को अग्नि के हवाले कर दिया। सोमवार को 10 साल के बेटे के साथ अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार को निकला। हादसे की वजह हम परिजन बुरी तरह से सदमे में थे।”
घर आकर जब पवन ने नेहा की डायरी पढ़ी, तो उन्होंने पाया कि नेहा ने 12वीं का परिणाम आने पर अपनी डायरी में 4 इच्छाएं लिखी थी –
■ NIT में सिलेक्शन
■ गुरुओं, माता-पिता के पैर छूना चाहती हूँ
■ पापा को एक गाड़ी, मम्मी-पापा को वर्ल्ड टूर पर भेजना चाहती हूँ।
■ एक ओल्ड एज होम खोलना चाहती हूँ।
“उस वक्त दिलो-दिमाग में एक ही बात उपज रही थी, भले ही भौतिक रूप से नेहा बेटी हमारे साथ नहीं है, पर आत्मीय रूप से वो साथ है। उस समय दिमाग में ऐसे विचारों ने घर कर लिया कि हमें उसकी याद को जीवंत बनाए रखने के लिए उसके हमउम्र ऐसे छात्र-छात्राओं के लिए कुछ करना चाहिए, जिनकी पढ़ाई आर्थिक मजबूरियों की वजह से बीच ही में छूट जाती है,” पवन भावुक होते हुए बताते हैं।
बेटी की मौत के 10-15 दिन बाद से ही वह ‘नेहा’ नाम के अर्थ को साकार रूप देने की कोशिश में जुट गए। बहुत मेहनत के बाद नेहा शब्द का जो अर्थ उन्होंने निकाला था, वह था – ‛नीडफुल एजुकेशनल हेल्प एसोसिएशन’। नेहा की पहली बरसी तक जो भी जरूरतमंद उन्हें नजर आते चले गए, उनकी आर्थिक रूप या स्कूल किट के रूप में वह मदद करते।
पर फिर जनवरी 2016 में उनके गाँव से 10 किलोमीटर दूर रहने वाले हेमराज की हार्ट अटैक से मौत हो गई। जब पवन अपने दोस्तों के साथ वहां श्रद्धांजलि देने पहुंचे, तो पता चला कि स्वर्गीय हेमराज की पत्नी किडनी पेशेंट थीं और उनके दो बच्चे भी थे, जो 10वीं-11वीं में पढ़ रहे थे।
उस दिन उन्हें उन लोगों की पारिवारिक स्थिति देखकर लगा कि इनके लिए कुछ किया जाना चाहिए। पर वह समझते थे कि एक बार की मदद से कुछ नहीं होगा, क्योंकि घर के खर्चों के अलावा शिक्षा के खर्चे तो नियमित ही हुआ करते हैं।
इस बारे में पवन ने अपने 15 करीबी दोस्तों से बात की और वे सभी मदद करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने तय किया कि हर महीने उनमें से हर एक व्यक्ति 200 रुपये का सहयोग करेगा। इस तरह हर महीने 3000 रुपये पवन उन बच्चों को दे आते, जिससे उनकी शिक्षा और दूसरी जरुरतों में मदद मिल सके। यह सिलसिला 5 महीने तक चलता रहा। अब इन दोस्तों के नेक कदम को देखते हुए और भी लोग उनसे जुड़ने लगे और मई 2016 तक हर महीने 200 रुपये देने वाले ऐसे लोगों की संख्या 131 हो गई।
इसी दौरान पवन के दिमाग में यह बात भी आई कि ऐसे तो हर बार घरों में जाकर आर्थिक सहायता देना कब तक संभव होगा? क्यों ना संस्था के नाम से बैंक खाता खुलवाया जाए? बैंक गए तो पता चला, खाता खुलवाने के लिए संस्था का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
23 मई, 2016 को ‛नेहा मानव सेवा सोसायटी’ नाम से एक संस्था अस्तित्व में आई। संस्था के रजिस्ट्रेशन के बाद से अब तक किसी को भी नगद सहयोग नहीं दिया गया, हर तरह की मदद जरूरतमंदों के खातों में पहुंचाई गई हैं, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
आज सोसाइटी के लगभग 700 सदस्य हैं, जो 100, 200, 500, 1000 रुपये मासिक (और एकमुश्त) देते हैं। 3 संरक्षक सदस्य भी हैं, जो 1500 रुपए मासिक देते हैं। अब सोसाइटी द्वारा 80 बच्चों की नियमित मदद की जा रही है। किसी कारणवश बच्चा पढ़ाई छोड़ दे या घरवाले पढ़ने न भेजें तो मदद की रकम (कुछ समय या हमेशा के लिए) रोक दी जाती है।
इस संस्था के ज़रिये अब तक 30 लाख से ज्यादा की आर्थिक सहायता वितरित की जा चुकी है। अब हर महीने 1,40,000 रुपये नियमित तौर पर सहायता के रुप में आ रहे हैं।
पवन बताते हैं, “मेरी बेटी नेकदिल थी, इसलिए उसके नाम पर शुरू की गई इस सोसाइटी को कभी भी आर्थिक रूप से तंगी का सामना नहीं करना पड़ा।”
इसी साल 18 अगस्त को करयालग गाँव में हुए भूसख्लन के लिए फ़ेसबुक के माध्यम से अपील कर सोसाइटी ने 3,61,000 रुपए जमा कर उन 7 परिवारों को दिया, जिनका सब कुछ जमींदोज़ हो गया था।
पवन कहते हैं, “मैं कभी सोशल मीडिया पर पोस्ट करना पसंद नहीं करता था, आज दिन भर में बीसियों पोस्ट्स करता हूँ, इसके पीछे भी मेरी बेटी का प्यार ही है। मेरी इन पोस्ट्स से ही तो नए लोग जुड़ते हैं जो आगे चलकर आर्थिक सहयोग करते हैं। केवल 7 नए सदस्यों के जुड़ने से सोसाइटी एक नए बच्चे की मासिक मदद के लिए तैयार हो जाती है। अभी भी हमारी लिस्ट में 10 ऐसे बच्चे हैं, जिनकी मदद करनी है।”
नेहा मानव सेवा सोसायटी की कुछ योजनाएं इस प्रकार हैं –
■ नेहा बाल संरक्षण योजना – इसके तहत ऐसे बच्चों की मदद की जाती है, जिनके माता-पिता या तो इस दुनिया में नहीं हैं या किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं, परिवार गरीबी में गुजर-बसर कर रहा हो। ऐसे परिवार के एक बच्चे को 1500 रुपये प्रतिमाह पढ़ाई जारी रखने के लिए दिए जाते हैं। सोसाइटी ऐसे 80 जरुरतमंद बच्चों की मदद कर रही है।
■ नेहा स्कूल किट योजना – इसके तहत अप्रैल माह में स्कूलों की शुरुआत के समय अतिपिछड़े बच्चों को स्कूल किट दी जाती है, जिसमें स्कूल बैग, कापियां, स्टेशनरी, लंच बाक्स, पानी की बोतल जैसा सामान होता है। पिछले साल शुरु हुई इस योजना से 30 बच्चे लाभान्वित हुए हैं।
■ नेहा कन्या शादी सहयोग योजना – इसके तहत जरुरतमंद परिवार की कन्या की शादी में 5,100 रुपये का सहयोग दिया जाता है। अभी तक 5 बेटियों को यह राशि दी गई है।
■ नेहा अन्नदान योजना – इसके तहत जरुरतमंद परिवार को खाद्य सामग्री वितरित की जाती है। अभी तक लगभग 50 परिवारों को इस सुविधा से जोड़ा गया है।
■ नेहा मेधावी छात्रवृत्ति योजना – इसके तहत जरुरतमंद परिवार के वे छात्र जो सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, अगर 12वीं मैरिट के पहले 10 स्थानों में आएं व आगे भी किसी सरकारी संस्थान में दाखिला हो जाए तो उनकी आगे की पढ़ाई को जारी रखने के लिए 3,000 प्रति माह की छात्रवृत्ति दी जाती है। इसी साल शुरु हुई योजना से एक विद्यार्थी जुड़ा है।
आप भी चाहे तो पवन के इस नेक काम में उनका साथ दे सकते हैं। उनसे संपर्क करने के लिए उन्हें 08219337757 पर कॉल करें।
संपादन – मानबी कटोच