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इन सरपंच की बदौलत हरियाणा के 9 हज़ार घरों के बाहर लगी है बेटी के नाम की प्लेट!

shivnath jha

शिवनाथ झा।

“साल 2012, वह जनवरी की 24 तारीख थी जिस दिन मेरी बेटी नंदिनी ने जन्म लिया। अस्पताल में मेरी बेटी के जन्म की खबर लेकर आई नर्स ने बड़े हल्के मन से बुदबुदाया, बेटी हुई है। नर्स की हल्की-पतली सी आवाज मुझे सुनाई दे गई थी। नर्स के अनुसार यह निराशा वाली खबर थी, मगर मेरे लिए यह सबसे ज्यादा खुशी के पल थे। अस्पताल से घर जाते वक्त जब मैं नर्स को अस्पताल में मिठाई बांटने के लिए कुछ पैसे देने लगा तो उन्होंने शर्माते हुए कहा, ‘रहने दीजिए सर, लड़का होता तो ले लेती, अब स्टाफ गुस्सा करेगा। मैंने खुशी से उन्हें पैसे पकड़ाकर कहा कि मेरी तरफ से सभी को मिठाई खिलाइएगा और कहिएगा कि बीबीपुर गाँव के सरपंच को बेटी हुई है।”

यह किस्सा याद करते हुए हरियाणा के जींद जिले के बीबीपुर गाँव के पूर्व सरपंच सुनील जागलान की आँखे खुशी से चमक उठती हैं और दोनों गालों पर हंसीनुमा लाली चढ़ आती है।

सुनील जागलान।

सुनील जागलान पेशे से गणित अध्यापक रहे हैं, लेकिन अपनी बेटी के जन्म के बाद उन्हें गाँव के गिरते लिंगानुपात के बारे में पता चला तो उन्होंने उसी दिन से खुद को बेटी और महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया। अपनी बेटी के जन्म के बाद जब वे पहली बार गाँव के सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र गए तो उन्होंने देखा कि गाँव का लिंगानुपात बहुत खराब है। फिर सोच-विचार कर उन्होंने गाँव में महिला पंचायत बुलाई। पंचायत में महिलाओं ने खुद स्वीकारा कि वे विभिन्न दबावों के चलते भ्रूण हत्याएं करवाती हैं। जिसके बाद उन्होंने गाँव में 42 लोगों की एक कमेटी बनाई जिसका कार्य गर्भवती महिलाओं के आंकड़े और रिकॉर्ड रखना था। उनके इस प्रयासों से एक साल में ही बहुत सुधार देखने को मिले।

सुनील ने जिस साल यह अभियान शुरू किया था उस साल उनके गाँव में 37 लड़कियों और 59 लड़कों का जन्म हुआ। लेकिन अभियान के एक साल बाद गाँव में 42 लड़कियों और 44 लड़कों का जन्म हुआ। लिंगानुपात सुधरने की दिशा में यह अच्छे कदम थे, ऐसे में गाँव की महिलाओं में विश्वास जगा और महिलाएं ग्राम सभाओं में आने लगी। जिसके बाद पंचायत का 50% फंड महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया।

 

महिलाओं के फंड से गाँव में बेटियों के लिए पुस्तकालय खोला गया और लड़कियों को डिजिटल रूप से सक्षम बनाने के लिए कम्प्यूटर शिक्षा की शुरुआत की गई।

गुडगांव के नया गाँव में खोला गया लाडो पुस्तकालय, जिसमें किताबों के साथ-साथ 5 लैपटॉप भी हैं

महिलाओं ने पंचायत में ही घरेलू हिंसा को खत्म करने के लिए एक कमेटी भी बनाई, जिसमें औरतें उनके साथ हुई घरेलू हिंसा को कमेटी के सामने रखती, जिस पर कमेटी एक्शन लेती थी। ऐसे में गाँव में घरेलू हिंसा का भी लगभग खात्मा हो गया। लेकिन जैसा होता आया है कि महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पर हमारा पितृसत्तात्मक समाज विरोध किए बगैर नहीं रह सकता। सुनील को भी कई लोगों का विरोध झेलना पड़ा।

वह बताते हैं, “हमारे गाँव में हमने घरों के बाहर बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाई और इस अभियान की गूंज पूरे देश में फैली, लेकिन गाँव की पितृसत्तात्मक सोच के कारण कुछ लोगों ने इन नेम प्लेट्स को तोड़कर फेंक दिया, लेकिन हम रूके नहीं। हमने लोगों को जागरुक किया, ऐसे में सिर्फ हमारे ही नहीं दूसरे गाँव के लोगों ने भी घरों के बाहर बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाई। विभिन्न गांवों में आज करीब 9 हजार लोग अपने घरों के बाहर अपनी बेटियों के नाम से नेम प्लेट लगा चुके हैं।”

लगातार सफल कैंपेन चलाने के बाद सुनील जागलान और उनके गाँव बीबीपुर की धमक पूरे देश में सुनाई देने लगी। साल 2015 में उन्होंने सोशल मीडिया कैंपेन ‘सेल्फी विद डॉटर’ शुरू किया, जिसका प्रधानमंत्री ने 6 बार और राष्ट्रपति ने 3 बार जिक्र किया।

 

उन्होंने मेवात में ‘हाईटैक अंडर बुर्का’ नाम से महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान भी चलाया है।

सुनील के ‘सेल्फी विद डॉटर’ को काफी सराहा गया था।

इस अभियान के बाद साल 2016 में सुनील ने दूसरे गांवों में बदलाव लाने के लिए एक मॉडल तैयार किया। जिसका नाम था, ‘बीबीपुर मॉडल ऑफ विमेन एम्पावरमेंट एंड विलेज डवलपमेंट’, इस मॉडल का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण के द्वारा ग्रामीण विकास करना था। इस उद्देश्य के साथ उन्होंने हरियाणा के 2 गाँव गोद लिए, जिनमें एक था जींद का तलोडा गाँव और दूसरा था करनाल का उडाना गाँव।

इन दोनों गांवों में भी यह मॉडल सफल रहा और इसकी गूंज राष्ट्रपति तक भी पहुंची। जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सुनील को राष्ट्रपति भवन आने का बुलावा भेजा। राष्ट्रपति ने सुनील के मॉडल की तारीफ की और इन दो गांवों के विकास के लिए उन्हें 50 लाख रुपए भी दिए। इतना ही नहीं, उन्होंने उनके द्वारा गुड़गांव और मेवात के गोद लिए हुए 100 गांवों में सुनील के इस मॉडल को लागू करने की बात कही।

सुनील को सम्मानित करते भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी।

तत्कालीन राष्ट्रपति के कहने पर सुनील ने इन 100 गांवों में भी काम करना शुरू कर दिया। इन गांवों में वह लड़कियों के लिए लाडो (लड़की) पुस्कालय, महिला सरपंचों और पंचायतों को जागृत करने, भ्रूण हत्या और लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए टीम लाडो का गठन करने और घरों के बाहर लड़कियों के नाम की नेम प्लेट लगाने का कार्य कर रहे हैं।

पाटुका सरपंच अंजुम आरा बताती हैं, “एक समय ऐसा था कि गाँव की बहुत कम लड़कियां पढ़ाई कर पाती थी, मगर सुनील की मदद से सभी ग्रामीणों ने बेटियों को पढ़ाना शुरू कर दिया है। पहले गाँव के स्कूल में लड़कियों की संख्या कम थी, लेकिन अब सारी लड़कियां स्कूल जा रही हैं। अब गाँव में लड़कियों के लिए पुस्कालय भी बन रहा है। हमारे गाँव की ही बेटी मेहरुनिशा को ‘बेस्ट सेल्फी विद डॉटर’ के खिताब से भी नवाजा गया है। पंचायत में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ने से अब बहुत चीज़ें बदल रही हैं।”

 

मेवात के गाँव पाटुका के अधिकतर घरों के आगे लड़कियों के नाम की नेम प्लेट लगी हुई है।

पाटुका गाँव में मुस्कान के परिवार के साथ सुनील, जिन्होंने अपनी बेटी के नाम की नेम प्लेट घर के बाहर लगाई है।

 

सुनील साधारण से प्रतीत होने वाले सैकड़ों अभियान चला चुके हैं, जिनका व्यापक असर हुआ है। वह उस आधी आबादी की लड़ाई बड़ी शिद्दत से लड़ रहे हैं, जिन्हें सालों तक मूलभूत आवश्यकताएं तक नहीं मिली। 36 साल के सुनील का लक्ष्य देश के हर गाँव में लड़कियों के लिए पुस्कालय खोलना और महिलाओं को उनके अधिकार दिलवाना है। उनके और उनके लक्ष्य को दिल से सलाम…

 

संपादन –  भगवती लाल तेली 


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