हरियाणा के विक्रम सिंधु पेशे से पुलिसकर्मी हैं, लेकिन उनकी पहचान जहर मुक्त खेती अभियान के प्रणेता के रूप में है। वह जैविक जीवामृत खाद के जरिए खेती को नया जीवन दे रहे हैं। उन्हें आप ज्यादातर खेतों में किसानों को जैविक खेती और मल्टी क्रॉप मॉडल पर जानकारी देते देख सकते हैं। किसानों के लिए वह शिविरों का आयोजन करते हैं। उन्हीं के प्रशिक्षण का नतीजा है कि हरियाणा और आसपास के एक हजार से अधिक किसान रसायन युक्त खेती छोड़ जैविक खेती अपना चुके हैं।
विक्रम के पास चार एकड़ जमीन है, जिनमें से करीब एक एकड़ में जैविक खेती प्रशिक्षण केंद्र है। इसमें वह हर महीने के तीसरे रविवार को प्रशिक्षण शिविर लगाते हैं। यहाँ 400 किसानों के रहने की व्यवस्था है। वह अभी तक दो हजार से अधिक किसानों को जहर मुक्त खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं। उनके कार्य को देखते हुए उन्हें पिछले साल ही ग्लोबल पीस फाउंडेशन ने डाक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा है।
कैंसर से मौतें हुईं तो शुरू किया अभियान
विक्रम सिंधु बताते हैं कि उनके गाँव खांडा खेड़ी में कैंसर से 5-6 मौत हो गई थीं। इससे दिल को बहुत कष्ट हुआ। पता चला कि लोगों में कैंसर का कारक उनका खान-पान है। खेतों में जो फसल उपजाई जा रही है, उसमें अत्यधिक रसायन युक्त खाद का इस्तेमाल हो रहा है। ये हानिकारक केमिकल भोजन के जरिए शरीर में जाकर लोगों को बीमारी बांट रहे हैं। विक्रम बताते हैं कि उन्होंने 2012 में जहरमुक्त खेती अभियान की शुरूआत की थी।
बहुत आसान नहीं थी शुरुआत
विक्रम ने द बेटर इंडिया को बताया, “अभियान शुरू तो कर दिया, लेकिन लोगों को समझाना और उन्हें साथ लाना कोई आसान काम नहीं था। सालों से एक ही ढर्रे पर काम कर रहे किसान कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं थे और न ही घरवाले। उन्हें लग रहा था कि फसल उगाने का एक ही तरीका है। भला खाद बदल देने से कोई बहुत बड़ा बदलाव थोड़े ही होने जा रहा है। लेकिन मैं अडिग था। सोच लिया था कि यह हालात बदलने होंगे। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सबको समझाने में सफलता मिलनी शुरू हो गई। घरवालों ने काम की गंभीरता देखी तो वह खुद भी मदद को साथ आ गए। उधर, धीरे-धीरे किसानों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताकर उन्हें जैविक खेती के फायदे बताए तो उनके दिमाग में बात आनी शुरू हुई। पहले एक किसान जुड़ा, फिर दो जुड़े और फिर धीरे-धीरे कारवां बन गया। अब सैकड़ों किसान जहर मुक्त खेती अभियान में साथ हैं।”
विक्रम बताते हैं कि 2004 में बतौर सिपाही पुलिस की नौकरी में आ गए थे। लेकिन यह कुछ ही समय चली। इसके बाद राज्य में सरकार बदली तो सैकड़ों कर्मियों समेत उनको भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इस बीच उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी। पीटीआई टीचर बनने के लिए सीपीएड किया। लेकिन 2007 में पुलिस की उनकी नौकरी फिर से बहाल हो गई।
अब जीवामृत खाद से दे रहे खेती को नया जीवन
विक्रम अब जीवामृत खाद से खेती को नया जीवन दे रहे हैं। वह किसानों को यह खाद बनाने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। विक्रम कहते हैं, “इस खाद में रसायन नहीं है। यह केवल गाय के गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ और पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी को मिलाकर तैयार की जा रही है। यह खेती के लिए बेहद लाभदायक है।”
खेतों को रासायन से दूर रखने वाले 37 वर्षीय विक्रम सिंधु का वृक्षारोपण से भी खास लगाव है। वह अबतक ढाई लाख पौधे लगा चुके हैं।
सरकार ने सराहा, प्रशिक्षण को बुलाया
विक्रम सिंधु के जहर मुक्त खेती अभियान को हर ओर सराहा गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह भी उन्हें जहर मुक्त खेती पर जानकारी देने के लिए आमंत्रित कर चुके हैं। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के विदेशी मामलों के सलाहकार मेहंदी सफा भी विक्रम सिंधु के लगाए शिविर का दौरा कर चुके हैं।
मोटिवेशनल स्पीकर के वीडियो से मिली प्रेरणा
विक्रम सिंधु बताते हैं कि उन्हें लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा मोटिवेशनल स्पीकर राजीव दीक्षित के वीडियो देखकर भी मिली। वह लंबे समय से इन वीडियो को देखते सुनते आ रहे थे। वह समझ गए थे कि आने वाला समय जैविक खेती का है। यही लोगों को रोगों से मुक्त रख सकता है और किसानों की आर्थिकी को मजबूत कर सकता है। इसके बाद उन्होंने किसानों को जोड़ने के लिए उनसे संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया।
वेतन का 75% लगा देते हैं ट्रेनिंग के काम में
विक्रम बताते हैं कि वह अपने वेतन का 75% हिस्सा किसानों को प्रशिक्षण देने में लगाते हैं। वह इसे अपने वेतन का सदुपयोग करार देते हैं, जिसे कि समाज की भलाई के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। वह सभी को अपनी आमदनी का एक हिस्सा लोगों की भलाई में लगाने के लिए प्रेरित करते हैं।
लोगों को जैविक खेती ही बचा सकती है रोगों से
विक्रम कहते हैं कि केवल जैविक खेती ही लोगों को रोगों से बचा सकती है। उनके अनुसार जो हम फसल को पोषण के लिए देते हैं, बदले में वही पाते हैं। अच्छा खाद, पानी होगा तो फसल भी गुणवत्ता में अच्छी होगी और इसे भोज्य सामग्री के रूप में ग्रहण करने वालों की सेहत पर भी बेहतर प्रभाव नजर आएगा।
भागदौड़ भरी जिंदगी में जहाँ हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है, ऐसे वक्त में विक्रम की कहानी एक उम्मीद की तरह है। द बेटर इंडिया उनके जज़्बे को सलाम करता है।
(विक्रम सिंधु से उनके मोबाइल नंबर 9416748922 पर संपर्क किया जा सकता है)
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