क्याआप जानते हैं कि देश में एक जगह ऐसी भी है जहाँ स्वतंत्रता दिवस किसी पर्व, तीज, त्यौहार से कम नहीं है। जहाँ देश की आजादी का जश्न लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है। जहाँ का स्वतंत्रता दिवस देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। जिसे देश की दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में भी जाना जाता है। जहाँ के लोग न केवल सीमा के प्रहरी है बल्कि सदियों से देश के सांस्कृतिक विरासत को संजोये हुए भी है।
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की रोंग्पा-नीति घाटी में बसे गमशाली के दम्फुधार की। यहाँ आजादी का जश्न आज भी उसी तरह से मनाया जाता है जिस तरह से 70 साल पहले मनाया गया था। 14 अगस्त 1947 को जैसे ही रेडियो पर आज़ादी की घोषणा का प्रसारण हुआ, देश ख़ुशी से झूम उठा। लेकिन सीमांत घाटी होने के कारण यहाँ के लोगों को इसकी सूचना अगले दिन 15 अगस्त 1947 की सुबह को मिली।
देश की आजादी की सूचना मिलते ही पूरी घाटी के लोग भी ख़ुशी से झूमने लगे। लोगों ने अपने घरों में आजादी के दीप जलाए। जिसके बाद सभी लोग गमशाली के दम्फुधार में अपने परम्परागत परिधानों को पहनकर एकत्रित होने लगे। आजादी के जश्न की ख़ुशी पर लोग एक-दूसरे को बधाई देने लगे और गले मिलकर ख़ुशी का इजहार किया। लोग झाँकिया लेकर पहुँचे। दम्फुधार में परम्परागत लोकनृत्य के जरिए ख़ुशी व्यक्त की गई।
इस दौरान हर किसी के चेहरे पर आजादी की ख़ुशी साफ़ पढ़ी जा सकती थी। तब से लेकर आज 72 बरस बीत जाने को है, इस घाटी के लोगों का उत्साह अब भी उसी तरह से बरकरार है। आज भी इस दिन सम्पूर्ण घाटी के लोग परम्परागत वेशभूषा धारण कर घरों में आजादी के दीये जलाते, तरह-तरह के पकवान बनाते और परम्परागत नृत्यों में रम जाते हैं।
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15 अगस्त की सुबह घाटी के नीति गाँव, गमशाली, फारकिया, बाम्पा सहित दर्जनों गांवों के लोग ढोलों की थापों के साथ आकर्षक झाँकियों के रूप में बारी- बारी से गमशाली गाँव के दम्फुधार में एकत्रित होते हैं। इस दौरान प्रत्येक गाँव की अपनी अलग वेशभूषा और झाँकी होती है, जिससे ये अपनी देशभक्ति को दर्शाते हैं। इस पर्व में प्रत्येक गाँव के नवयुवक मंगल दल, महिला मंगल दल सहित बुजुर्ग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
जब सारे गाँव की झाँकियां दम्फुधार में पहुँचती जाती है तो वहां पर मुख्य अतिथि द्वारा झंडारोहण होता है। इसके बाद यहाँ प्रत्येक गाँव द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद पारितोषिक व मिठाई वितरण का कार्यक्रम होता है।
रोंग्पा घाटी के ग्रामीण कहते हैं, ”दम्फुधार का 15 अगस्त हमारे लिए किसी त्यौहार से कम नहीं है। इस दिन का इंतजार हमें पूरे साल रहता है। हम इसे लोकपर्व के रूप में मनाते हैं जो पूरे देश में देश की आजादी की एक अनूठी मिसाल है।”
दरअसल, दम्फुधार में पहले एक प्राथमिक विद्यालय हुआ करता था, जहाँ पर घाटी के लोग शिक्षा ग्रहण किया करते थे। आज यह विद्यालय एक खंडहर में तब्दील हो गया है। इस विद्यालय से पढ़े कई लोग अधिकारी बन चुके हैं लेकिन इस गाँव और पर्व को मनाना नहीं भूलते। इन लोगों का सहयोग 15 अगस्त के अवसर पर हमेशा रहता है। पहले 15 अगस्त का आयोजन विद्यालय समिति करती थी। विद्यालय बंद हो जाने से यह आयोजन 15 अगस्त समिति के सहयोग से किया जाता है। इस आयोजन में महिलाओं का योगदान भी अहम होता है।
वास्तव में, जिस तरह से देश के अंतिम गाँव की नीति घाटी में आजादी का जश्न यहाँ के लोगों द्वारा मनाया जाता है वैसा देश के किसी गाँव में शायद देखने को मिले। यहाँ का स्वतंत्रता दिवस का पर्व देशप्रेम की अनूठी मिसाल है।
संपादन – भगवतीलाल तेली