“प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो”
गुलज़ार की लिखी ये पंक्तियाँ कितनी आसानी से प्रेम को समाज के हर बंधन से मुक्त कर देती हैं। कितने प्यार से उन्होंने बताया है कि प्रेम हर सवाल और जवाब से परे है।
कोलकाता के बप्पादित्य नाग और जीजा घोष की कहानी इन पंक्तियों को सार्थक करती है। उनके जीवन के संघर्ष को उनके प्यार और एक-दूसरे पर विश्वास ने एक खूबसूरत सफ़र में बदल दिया। बप्पादित्य, सिंडिकेट बैंक में सीनियर मैनेजर हैं तो जीजा, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सेरिब्रल पाल्सी के डिपार्टमेंट ऑफ़ एडवोकेसी एंड डिसेबिलिटी स्टडीज की हेड हैं।
यदि आप गूगल पर जीजा घोष का नाम लिखेंगे तो दर्जन भर पेज उनके बारे में खुल जाएंगे। उनके बारे में कई अलग-अलग कहानियां आपको पढ़ने के लिए मिलेंगी और उनके जीवन पर आधारित एक अवॉर्ड विनिंग डाक्यूमेंट्री भी बन चुकी है।
जीजा को जन्म से ही सेरिब्रल पाल्सी है और इस वजह से अक्सर लोग उन्हें जाने बिना ही उनके बारे में तरह-तरह की धारणा बना लेते हैं। हद तो तब हो जाती है जब लोग बप्पादित्य को सवालिया नज़रों से देखते हैं कि उन्होंने क्यों जीजा से शादी की।
पर वह इस सवाल का सिर्फ एक शब्द में जवाब देते हैं, और वह शब्द है – ‘प्यार’!
बप्पादित्य बताते हैं कि उनकी मुलाक़ात जीजा से 2008 में कोलकाता के ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क ऑफिस में हुई। उन्होंने लीगल कंसलटेंट के तौर पर वहां जॉइन किया था और दो महीने बाद, जीजा वहां सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने आईं थीं।
“जिस दिन जीजा ने जॉइन किया, मैं एक केस के चलते कोलकाता से बाहर था। वापस आने पर मुझे पता चला कि एक नयी लड़की आई है और थोड़ी अलग है। फिर एक दिन सड़क पार करते हुए मैंने जीजा की तरफ अपना हाथ बढ़ाया, लेकिन उसने मना कर दिया,” उन्होंने कहा।
जीजा के आत्मविश्वास और जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिए ने बप्पादित्य का दिल जीत लिया। वह कहते हैं कि उन दोनों को नहीं पता कि कब उन्हें एक-दूसरे से प्यार हुआ। कई साल तक रिलेशन में रहने के बाद उन्होंने साल 2013 में शादी करने का फैसला किया।
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वह आगे बताते हैं कि उनके परिवार में सभी ने जीजा को खुले दिल से अपनाया। उनकी शादी की तारीख भी पक्की हो गयी। लेकिन उसी साल अप्रैल में उनके पिता का देहांत हो गया और उन्हें अपनी शादी की तारीख आगे बढ़ानी पड़ी।
बप्पादित्य कहते हैं, “बहुत से रिश्तेदारों ने कहा कि मैंने ऐसी लड़की से शादी करने का फैसला किया है इसलिए मेरे पिता चल बसे। यह सच नहीं है क्योंकि मेरे पिता को वह बहुत पसंद थी। इस मुश्किल समय में मेरी बहन हमारे साथ खड़ी रही, उसने किसी की नहीं सुनी और आखिरकार, 11 मई 2013 को हमारी शादी हो गयी।”
लोगों को भले ही उनकी शादी बहुत अलग लगती हो लेकिन उनकी शादी में सबकुछ बाकी दंपतियों जैसा ही है। वह बताते हैं कि उन्हें कभी भी अपनी शादी में कुछ कम नहीं लगा बल्कि एक साथ रहकर उनकी खुशियाँ दोगुनी ही हुई हैं। उनकी शादी में भी एक वक़्त आया जब उन्होंने अपने परिवार के बारे में सोचना शुरू किया।
जीजा माँ बनना चाहती थीं, लेकिन वह खुद माँ नहीं बन सकती थीं और इसलिए उन्होंने तय किया कि वे एक बच्चा गोद लेंगे। उन्होंने साल 2016 में बच्चा गोद लेने के लिए अर्जी डाली। इसके दो साल बाद उन्हें फ़ोन आया कि वे बच्चा गोद ले सकते हैं। इस कॉल के बाद जीजा और बप्पादित्य की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
गौर करने वाली बात यह है कि उन्हें दो साल लग गये अपना बच्चा अडॉप्ट करने में, आखिर क्यों?
जवाब – लोगों की जीजा के बारे में धारणा कि जो खुद एक तरह से दिव्यांग है वह कैसे बच्चे को संभालेगी? अपने इस संघर्ष के बारे में वह बताते हैं कि जब उन्होंने एडॉप्शन के लिए एप्लीकेशन दी तो उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
“हमने एप्लीकेशन के साथ ही अपने मेडिकल सर्टिफिकेट भी सबमिट किए थे। मुझे और जीजा दोनों को बच्चे के एडॉप्शन के लिए गायनोकॉलोजिस्ट ने फिट बताया। फिर भी हमसे तरह-तरह के सवाल किए गये। खासकर कि जीजा से पूछा गया कि क्या वह बच्चे को संभाल पाएगी। वह कैसे बच्चे से बात करेगी और न जाने क्या-क्या,” उन्होंने कहा।
लेकिन, जीजा और बप्पादित्य ने हार नहीं मानी। खास तौर पर जीजा ने उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्होंने सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) को इस बारे में लिखा और अपने केस के बारे में बताया। CARA में पूर्वी रीजन की कंसलटेंट डॉ. सदफ नाज़नीन ने उनके केस को गंभीरता से लिया और उनके हस्तक्षेप के बाद उन्हें बच्चा अडॉप्ट करने की अनुमति मिल गयी।
जीजा घोष वह पहली भारतीय महिला हैं जिन्हें सेरिब्रल पाल्सी होने के बावजूद बच्चा गोद लेने की इजाज़त मिली। यह जीत सिर्फ जीजा की नहीं थी बल्कि उन सभी लोगों की थी जिन्हें हम दिव्यांग कहकर खुद से कम आंकने लगते हैं।
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साल 2018 में जीजा और बप्पादित्य, अपनी बेटी को अपने घर लेकर आए और उन्होंने उसे ‘हिया’ नाम दिया। वह मानते हैं कि हिया के आने के बाद उनकी ज़िंदगी बहुत खूबसूरत हो गयी है।
“जीजा बहुत अच्छे से हमारी बेटी की परवरिश कर रही हैं और हिया भी हमेशा अपनी माँ की तरह बनने की कोशिश करती है। उसे पसंद है अपनी माँ की तरह बाल बांधना। वह कानों में झुमके पहनने की कोशिश भी करती है।” उन्होंने हंसते हुए कहा।
हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब जीजा ने अपने हक की लड़ाई लड़ी। इससे पहले, साल 2012 में भी उन्होंने अपने और अपने जैसे अनगिनत लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और जीती थी।
जीजा कोलकाता से गोवा एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थीं और वह स्पाइस जेट की फ्लाइट में थीं। लेकिन उन्हें फ्लाइट से यह कहकर उतार दिया गया कि वे अन्य यात्रियों के लिए खतरा हो सकती हैं। जीजा ने इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उनके केस की सुनवाई 2016 में हुई और कोर्ट ने जीजा के हक में फैसला सुनाया। उन्होंने स्पाइस जेट पर उनके इस अभद्र व्यवहार के लिए 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक फैसले के तौर पर देखा गया क्योंकि इस फैसले ने साबित किया कि भारत का हर एक नागरिक समान अधिकार रखता है।
बप्पादित्य कहते हैं कि जीजा की सबसे अच्छी बात यही है कि वह हमेशा अपने लिए एक स्टैंड लेती हैं। वह खुद को किसी से कम नहीं समझतीं। जीजा का यही आत्मविश्वास उन सारे लोगों की बोलती बंद कर देता है जो बिना कुछ जाने गलत धारणा बना लेते हैं।
संपादन – अर्चना गुप्ता
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