हमारे आस-पास पोषक खाद्य पदार्थों की विस्तृत श्रृंखला होने के बावजूद, जागरूकता के अभाव में हम उनसे अक्सर अनजान ही बने रहते हैं। भारत के कई क्षेत्रों में पोषक गुणों से भरपूर ऐसे कई फूड प्रोडक्ट्स पाए जाते हैं, जिनकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। इसी कारण उनके सेवन से मिलने वाले पोषण और स्वास्थ्य लाभ से हम वंचित रह जाते हैं। पूर्वोत्तर में पाया जाने वाला नांरगी गूदे वाला खीराऐसा ही एक खाद्य उत्पाद है।
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि सफेद गूदे वाले खीरे की किस्मों के मुकाबले, नारंगी-गूदे वाले खीरे की किस्म में कैरोटीनॉयड सामग्री (प्रो-विटामिन-ए) चार से पाँच गुना अधिक होती है।
सब्जी या चटनी के रूप में करते हैं सेवन
पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों में नारंगी-गूदे वाले खीरे की यह किस्म बहुतायत में पाई जाती है। स्थानीय लोग खाद्य पदार्थ के रूप में, नारंगी गूदे वाले खीरे का सेवन सब्जी या फिर चटनी के रूप में करते हैं। खीरे की इस प्रजाति को मिजोरम में ‘फंगमा’ और ‘हमाजिल’ व मणिपुर में ‘थाबी’ कहते हैं।
कैरोटीनॉयड्स, जिसे टेट्राटरपीनॉयड्स भी कहा जाता है, पीले, नारंगी और रेड कार्बनिक पिगमेंट को कहते हैं। यह पौधों और शैवाल (Algae) के साथ-साथ कई बैक्टीरिया और कवक (Fungus) द्वारा उत्पादित होते हैं। कद्दू, गाजर, मक्का, टमाटर, कैनरी पक्षी, फीनिकोप्टरिडाए कुल के पक्षी फ्लेमिंगो, सालमन मछली, केकड़ा, झींगा और डैफोडील्स को विशिष्ट रंग, कैरोटीनॉयड्स के कारण ही मिलता है।
यह अनुमान लगाते हुए कि पौधों का नारंगी रंग उच्च कैरोटीनॉयड के कारण हो सकता है, शोधकर्ताओं ने खीरे की किस्म की विशेषताओं और उसके पोषक तत्वों का विस्तार से अध्ययन करने का निर्णय लिया।
शोधकर्ताओं का ध्यान कैसे गया खीरे की इस किस्म की ओर?
नारंगी गूदे वाले खीरे की किस्मों ने शोधकर्ताओं का ध्यान उस वक्त आकर्षित किया, जब वे नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से संबद्ध नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (NBPGR) में खीरे के देसी जर्मप्लाज्म भंडार की विशेषताओं का अध्ययन कर रहे थे। शोधकर्ताओं ने मणिपुर और मिजोरम से नारंगी खीरे के नमूने एकत्र किए।
एनबीपीजीआर के शोधकर्ताओं का कहना है, “बहुत सारे ऐसे फल उपलब्ध हैं, जो दैनिक रूप से बीटा कैरोटीन/कैरोटीनॉयड के अनुशंसित सेवन को सुनिश्चित कर सकते हैं। हालांकि, वे विकासशील देशों में गरीबों की पहुँच से बाहर हैं।
जबकि, खीरा पूरे भारत में सस्ती कीमत पर उपलब्ध है। कैरोटेनॉयड से समृद्ध स्थानीय फसल की किस्मों की पहचान और उपयोग निश्चित रूप से पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में हमारे प्रयासों में बदलाव ला सकता है।”
क्यों है नांरगी गूदे वाला खीरा इतना खास?
इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने मिजोरम से प्राप्त खीरे की तीन किस्मों (IC420405, IC420422 एवं AZMC-1) और मणिपुर से प्राप्त एक किस्म (KP-1291) को दिल्ली स्थित एनबीपीजीआर के कैंपस में उगाया।
इसके साथ ही, उत्तर भारत में प्रमुखता से उगाई जाने वाली खीरे की सफेद गूदे वाली किस्म पूसा-उदय को भी उगाया गया। खीरे की दोनों किस्मों में कुल शर्करा (Sugar) का स्तर एक समान पाया गया। लेकिन खीरे की सामान्य किस्म के मुकाबले नारंगी गूदे वाली किस्म में एस्कॉर्बिक एसिड की थोड़ी अधिक मात्रा देखी गई।
शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि खीरे के विकसित होने के विभिन्न चरणों में, उसमें पाए जाने वाले कैरोटीनॉयड का स्तर भिन्न होता है। उन्होंने पाया कि नारंगी गूदे वाली खीरे की किस्म जब सलाद के रूप में खाए जाने योग्य हो जाती है, तो उसमें कैरोटीनॉयड की मात्रा सामान्य किस्म की तुलना में 2-4 गुना अधिक होती है।
सबको पसंद आया इस खीरे का स्वाद और सुगंध
शोधकर्ताओं ने कहा कि अधिक परिपक्व होने पर नारंगी गूदे से युक्त इस खीरे में सफेद खीरे की तुलना में 10-50 गुना अधिक कैरोटीनॉयड सामग्री हो सकती है। उन्होंने इसके स्वाद का आकलन करने के लिए, 41 लोगों को नारंगी गूदे वाले खीरे को चखने को दिया, और उसके स्वाद को स्कोर देने के लिए कहा।
सभी प्रतिभागियों ने खीरे की अनूठी सुगंध और स्वाद की सराहना की और यह स्वीकार किया कि इसे सलाद या रायते के रूप में खाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उच्च कैरोटीनॉयड से युक्त खीरे का सीधे सेवन करने के साथ-साथ इसका उपयोग खीरे की किस्मों में सुधार के लिए किया जा सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ. प्रज्ञा रंजन, अंजुला पांडे, राकेश भारद्वाज, के.के. गंगोपाध्याय, पवन कुमार मालव, चित्रा देवी पांडे, के. प्रदीप, अशोक कुमार (आईसीएआर-एनबीपीजीआर, नई दिल्ली); ए.डी. मुंशी और बी.एस. तोमर (आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) शामिल थे। अध्ययन के परिणाम जेनेटिक रिसोर्सेज ऐंड क्रॉप इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। (इंडिया साइंस वायर)
लेखकः उमाशंकर मिश्र
Content Partner: India Science Wire
Featured Image Source: Garden.eco
संपादनः अर्चना दुबे
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