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लक्ष्मी से कैसे बनी Lakme? पंडित नेहरू के कहने पर टाटा ने शुरू किया था यह स्वदेशी ब्रांड

Pandit Jawaharlal Nehru suggested JRD Tata To start First Indian Makeup brand Lakme

साल 1971 की बात है, जब पाकिस्तान से अलग होकर एक नया देश बना था-बांग्लादेश। देशभक्ति का जोश चारों ओर था और देश में बनी चीजों को लेकर लोगों के दिल में खास जुड़ाव था। गुजरात के भावनगर की 19 साल की मीता शाह ने देश में बने लैक्मे ब्रांड (Indian Makeup brand Lakme) का मेकअप प्रोडक्ट खरीदने के लिए अपने पिता से पांच रुपये (उस समय यह एक बहुत बड़ी राशि थी) मांगे।

वह बोलीं, “पापा, मैं लैक्मे नाम के एक स्वदेशी ब्राण्ड का कॉम्पैक्ट खरीदना चाहती हूं। क्या आपको पता है कि चाचा नेहरू इस ब्राण्ड के पीछे की प्रेरणा थे।” उनकी इस बात पर पिता ने थोड़ा विचार किया और एक मिनट बाद उन्हें पैसे दे दिए।

मीता के पास गुल्लक में जमा किए हुए पूरे 30 रुपए थे। वह काफी खुश थीं। क्योंकि अब वह कॉम्पैक्ट खरीद सकती थीं। लेकिन कॉम्पैक्ट खरीदने के लिए पैसे इकट्ठे करने में उन्हें कई महीने लगे। वह रोजाना अपनी दादी के सिर की मालिश किया करती थीं, ताकि वह उनसे 25 पैसे झटक सकें। एक कॉस्मेटिक उत्पाद खरीदने के लिए यह उनकी कुछ न भूलने वाली यादें हैं।

नहीं मिलती थी मेकअप प्रोडक्ट खरीदने की अनुमति

Lakme Add

दरअसल, वह मेरी मौसी हैं, जो आज अपने जीवन के 70वें दशक में हैं। अपने लिए मेकअप का सामान खरीदने के उन पलों को वह मेरे साथ साझा कर रही थीं। उन्होंने बताया, “मैं अपनी कॉलोनी की उन कुछ लड़कियों में से एक थी, जिन्होंने मेकअप में पैसा लगाने के लिए एक साहसिक कदम उठाया था।” उस समय ऐसा करने के लिए आसानी से घरवालों की सहमति नहीं मिला करती थी।

मीता को पता था कि वह अपनी मेकअप करने की चाह पूरी करने के साथ-साथ, भारत में बने उस लैक्मे ब्रांड (Indian Makeup brand Lakme) पर पैसा खर्च कर रही हैं, जिसे अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद हमारी अस्थिर अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए शुरु किया गया था और यह उनके लिए गर्व की बात थी।

अब हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) के स्वामित्व वाली कंपनी लैक्मे ने साल 2017-18 में भारत के 97,000 करोड़ रुपये के ब्यूटी मार्केट में बिक्री का 1000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है।

इस देसी ब्रांड के अंतरराष्ट्रीय होने की हवा भी चलती रहती है। लैक्मे ने कैसे भारतीय बाजार पर कब्जा किया और कैसे मध्यम आय वाले लोगों के घरों और दिलों में अपनी जगह बनाई? यह काफी आकर्षक और दिलचस्प कहानी है।

लक्ष्मी कैसे और क्यों बन गया Indian Makeup brand Lakme?

सन् 1947 में भारत को आजादी तो मिल गई, लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक थी। अन्य उद्योगों की तरह भारतीय कॉस्मेटिक मार्केट भी अंतरराष्ट्रीय ब्रांड पर निर्भर था। मध्यम और उच्च वर्ग के लोग दिखावे के लिए इम्पोर्टेड कॉस्मेटिक सामानों की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहा था और इसका सीधा असर हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा था।

इससे चिंतित, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वदेशी कॉस्मेटिक ब्राण्ड शुरू करने के लिए, साल 1950 में उद्योगपति जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा से संपर्क किया।

लैक्मे को टाटा ऑयल मील्स कंपनी की सहायक कंपनी के तौर पर शुरू किया गया था और बहुत विचार-विमर्श के बाद, इसे लक्मे (Indian Makeup brand Lakme) नाम दिया गया। यह नाम धन और सुंदरता की देवी लक्ष्मी से प्रभावित था। वैसे यह एक फ़्रेंच शब्द है, जिसका अर्थ भी लक्ष्मी ही होता है। कुछ पुरानी बातों की मानें, तो इसका नाम लक्ष्मी ही रखा जाना था, लेकिन विदेशी नाम रखने के पीछे का एक मकसद यह भी था कि मां लक्ष्मी को सुंदरता के साथ न जोड़ा जाए। 

यह उस समय की बात है, जब देसी घरों में सुंदरता के लिए ‘दादी के नुस्खे’ या फिर टेलकम पाउडर के आसपास ही नजरें घूमती थीं। अगर इसे लक्ष्मी नाम दे देते, तो शायद यह भी एक लोकल प्रोडक्ट तक सीमित होकर रह जाता। दिलचस्प बात यह है कि लैक्मे, एक फ़्रेंच ओपेरा भी है।

सौंदर्य और स्किन प्रोडक्ट का पैरोकार होने के नाते, लैक्मे ने विशेषज्ञ और शोधकर्ताओं की एक टीम तैयार की, जिन्होंने भारतीय स्किन टोन की जरूरतों को समझा और उनका आंकलन किया। अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स को टक्कर देने के लिए इसकी पैकेजिंग पर भी खासा ध्यान दिया गया था।

Indian makeup brand Lakme कैसे पहुंचा बुलंदियों पर?

Rekha In Add of Lakme

यह ऐसा समय था, जब भारत में मेकअप को लेकर आम सहमति नहीं थी। इसे लेकर समाज में एक तरह की रोक थी। केवल ‘दबंग महिलाओं’ की आँखों में काजल और होठों पर गहरी लाली नज़र आती थी। इस बढ़ते ब्राण्ड को ऐसी रणनीति की जरूरत थी, जो इस उत्पाद को लोगों के घरों के साथ-साथ, उनके दिलों में भी जगह दिलाने में मदद कर सके।

तब सिमोन नवल टाटा ने इस बिजनेस में कदम रखा। स्विट्जरलैंड में जन्मी सिमोन नवल, नवल एच टाटा की पत्नी थीं। उन्हें 60 के दशक में सुन्दरता को फिर से परिभाषित करने का मुश्किल काम सौंपा गया। सिमोन टाटा की ब्यूटी और बिज़नेस की सूझबूझ ने जल्द ही लैक्मे को नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। 

सिमोन ने साल 2007 में रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं जब विदेश जाती थी, तो ब्यूटी प्रोडक्ट के सैंपल साथ लेकर जाती थी और उन्हें केमिस्ट को दे दिया करती थी, ताकि उनके स्पेसिफिकेशन के बारे में पता चल सके। पेरिस में मेरा एक कजिन रहता था, जिसे फैशन की काफी समझ थी। जब मैं पेरिस गई, तो पिता ने मुझे कपड़े खरीदने के लिए पैसे दिए थे। लेकिन मैंने उनसे कपड़े नहीं खरीदे। इसके बजाय प्रोफेशनल मेकअप सीखने के लिए अपने चचेरे भाई के साथ पार्लर चली गई। वहां मैंने सीखा कि कैसे अपनी त्वचा और टेक्सचर की देखभाल की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहूं, तो मैंने कॉस्मेटिक उत्पादों का अध्ययन किया था। एक चीज़, मुझे दूसरी चीज़ की तरफ ले गई और यह सब एक बदलाव था।”

आसान नहीं था यहां तक का सफर

विशेषज्ञ और समर्पित स्टाफ होने के बावजूद, लैक्मे का यहां तक का सफर आसान नहीं था। 80 के दशक में जब सरकार ने देश में बने कॉस्मेटिक उत्पाद पर भी 100 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाना शुरु कर दिया, तब चीजें और मुश्किल हो गईं। इससे कंपनी के मार्जिन में कमी आने लगी।

एक लेख के अनुसार, सिमोन ने इस मुद्दों को सुलझाने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। उन्होंने सिमोन से उन लोगों के हस्ताक्षर लाने के लिए कहा, जिन्हें इतना उत्पाद शुल्क अनुचित लगता है। उन्होंने इस काम को अंजाम दिया और बाद में केंद्रीय बजट में उत्पाद शुल्क को कम कर दिया गया था।

सिमोन ने लैक्मे (Indian Makeup brand Lakme) के ज्यादातर उत्पादों, जैसे- मस्कारा, फेस पाउडर, लिपस्टिक, फाउंडेशन क्रीम, कॉम्पेक्ट, नेल इनेमल, टोनर आदि को लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

लैक्मे यूं ही इतनी बुलंदियों पर नहीं पहुंचा। इसके लिए पूरा नेटवर्क तैयार किया गया। सोच-समझकर तैयार की गई मार्केट स्ट्रैटिजी पर काम किया गया। इन प्रोडेक्ट्स के दाम भी कम रख गए। इसके अलावा, कंपनी ने अपनी आक्रामक मार्केटिंग रणनीति के माध्यम से ब्रांड की एक छवि बनाने पर भी ध्यान दिया। 

रेखा और एश्वर्या बनीं ब्रांड का चेहरा 

Aishwarya Rai in Lakme Add

उनका पहला विज्ञापन आधुनिकता और भारतीयता का मिलाजुला रूप था। ब्रांड का पहला चेहरा सुपरमॉडल श्यामोली वर्मा थीं, जो 80 के दशक में लोगों के दिल की धड़कन हुआ करती थीं। दरअसल, कंपनी अपने ब्रांड को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐसा जाना-पहचाना चेहरा चाहती थी, जिसके साथ हर भारतीय एक जुड़ाव महसूस कर सके। उनका उद्देश्य ब्यूटी प्रोडक्ट को लेकर समाज में बनी धारणा को तोड़ना भी था। 

लैक्मे (Indian Makeup brand Lakme) को प्रचार में, मेकअप से सजी-धजी श्यामोली वर्मा सितार और बांसुरी जैसे भारतीय संगीत वाद्य यंत्र बजाते हुए नजर आईं। इसे एक खास टैगलाइन दी गई- ‘इफ कलर टू बी ब्यूटी, व्हाट म्यूजिक इज टू मूड, प्ले ऑन (अगर रंग सुंदरता के लिए हो, तो संगीत के लिए मूड, बनाए रखो)।’

इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड अभिनेत्रियों को लेकर भारतीयों की फैंटसी का फायदा उठाया और खूबसूरत रेखा और फिर 1994 की मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या राय बच्चन जैसी अभिनेत्रियों को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया। 

70 से ज्यादा देशों में बेचे जाने वाले 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स 

टाटा ने लक्मे (Indian Makeup brand Lakme) को 1996 में FMCG क्षेत्र में तेजी से बढ़ती कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेच दिया। आज, कंपनी के पास 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं और 70 से ज्यादा देशों में बेचे जाते हैं।

इनकी रेंज 100 रुपये से लेकर 1000 तक है, जो हर तरह के ग्राहकों की डिमांड को पूरा करती है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कॉस्मेटिक ब्राण्ड से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, लैक्मे ने पिछले कई सालों में काफी कामयाबी हासिल की है। यह शायद उन कुछ ब्रांड्स में से एक है, जिन्होंने समाज को कई मायनों में बदला है।

जहां तक मेरी मौसी मीता का सवाल है, तो लैक्मे आज भी उनका पसंदीदा ब्रांड है। सालों से वह इस ब्रांड को समाज में लोगों के दिलों में जगह बनाते और आगे बढ़ते हुए देखती आई हैं। आज भले ही कुछ लोग इसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड कहते हों, लेकिन उनके लिए तो यह हमेशा देशभक्ति की भावना से ही जुड़ा रहेगा। 

मूल लेखः गोपी करेलिया

संपादनः अर्चना दुबे

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