साल 1988 में, पंजाब में खालिस्तान विद्रोह अपने चरम पर था। हज़ारों सिख तीर्थयात्रियों के बीच एक संदिग्ध व्यक्ति ने भी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया। उसे अन्दर लाने वाला था सुरजीत सिंह पेंटा, जो कुख्यात खालिस्तानी आतंक दल का कमांडर था।
पेंटा ने भारतीय सुरक्षा-बलों को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए मंदिर को अपनी गतिविधियों का गढ़ बनाया था। पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का एक एजेंट स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ विस्फोटक लगाने में उनकी मदद करने वाला था। पेंटा ने सोचा था कि एक बार यह काम पूरा हो जायेगा तो भारतीय सेना मंदिर में घुसने से पहले कई बार सोचेगी, जैसा कि उन्होंने साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी के आदेश पर किया था।
लेकिन दिल्ली ने इन धमकियों से डरने वाली नहीं थी! ये सभी बम असफल रहे थे और नौ दिन बाद, भारतीय सुरक्षा-बलों ने ऑपरेशन ब्लैक थंडर के तहत मंदिर में प्रवेश किया। उन्होंने खालिस्तानी आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया।
पेंटा ने जिस व्यक्ति को आईएसआई एजेंट समझा था, वह और कोई नहीं बल्कि भारत के वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत कुमार डोभाल थे।
“बहुत से ख़ुफ़िया अधिकारियों की तरह अजीत कुमार डोभाल ने भी कभी स्वर्ण मंदिर में क्या हुआ, इस पर चर्चा नहीं की। हालांकि, जो उस वक़्त तैनात थे उन्होंने इस ऑपरेशन के बारे मे बताया कि कैसे पेंटा की आतंकवादी गतिविधियों में सेंध लगाई गयी – पंजाब बॉर्डर से अमृतसर आनेवाले पाकिस्तानी एजेंट को बीच में ही गायब कर दिया गया और उसकी जगह अजीत ने ले ली ” वरिष्ठ सुरक्षा पत्रकार प्रवीण स्वामी ने द हिन्दू में लिखा था।
इस अंडरकवर मिशन से पहले उन्हें इस्लामाबाद में भारतीय मिशन में तैनात किया गया था। जहाँ उन्होंने सिखों के तीर्थयात्रा के बहाने इस आतंकवादी मिशन पर कड़ी नजर रखी। केरल कैडर के 1968- बैच के इस भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी को उनके प्रयासों के लिए, 1989 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान सिर्फ मिलिट्री में दिया जाता है। लेकिन अजीत डोभाल इसे पाने वाले पहले पुलिस अधिकारी बने। तत्कालीन पंजाब पुलिस के प्रमुख केपीएस गिल के साथ डोभाल को भी उस समय खालिस्तान विद्रोह को खत्म करने का श्रेय दिया जाता है।
अक्टूबर 2018 में शुरुआत में प्रधानमंत्री द्वारा रणनीतिक पॉलिसी ग्रुप (एसपीजी) पर लिए गये एक फैसले के बाद, अजीत डोभाल देश के सबसे ताकतवर अधिकारी बन गये हैं।
दरअसल, प्रधानमंत्री ने आदेश दिया है कि इस पुलिस बल में कुछ बदलाव कर और भी सशक्त बनाया जाये। ताकि यह भारत की आंतरिक और आर्थिक सुरक्षा नीतियों को तैयार करने में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की सहायता करे।
एसपीजी विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक और नीति आयोग आदि में चल रही गतिविधियों के बीच समन्वय बनाने की कोशिश करेगा। इससे पहले, एसपीजी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव ने की थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने एनएसए को यह सम्मान दिया है।
डोभाल को रिपोर्ट करने वालों में कैबिनेट सचिव, सभी तीन सैन्य प्रमुख, नीति आयोग उपाध्यक्ष, आरबीआई के गवर्नर, प्रधान मंत्री, गृह, वित्त और रक्षा सचिवों के वैज्ञानिक सलाहकार, और इंटेलिजेंस ब्यूरो के उच्च अधिकारी, और राजस्व विभाग, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग शामिल हैं। एक व्यक्ति को इतनी ताकत देने पर कई विवाद और चिंताएं भी जताई गयी हैं।
केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया, “एसपीजी मंत्रालयों के बीच समन्वय और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों के निर्माण में खास सुझावों को एक साथ रखने के लिए प्रमुख प्रणाली होगी।” इसके बाद उन्हें रक्षा योजना समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जायेगा।
यह तो समय ही बताएगा कि डोभाल की एसपीजी के प्रमुख के रूप में नियुक्ति से भारत की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार आएगा या नहीं, लेकिन एक ख़ुफ़िया अधिकारी के रूप में उनके ट्रैक रिकॉर्ड से यही समझ आता है कि वे इस पद के लिए बिलकुल काबिल हैं।
“अजीत डोभाल 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, लेकिन वे आजीवन इंटेलिजेंस ब्यूरो के सदस्य बने रहें।
कीर्ति चक्र साइटेशन में, भारत सरकार ने उन के लिए लिखा था,
“एक असाइनमेंट में, उन्हें आतंकवादियों के एक समूह से निपटना था, जो कुख्यात और खतरनाक थे। अपनी परवाह किये बिना, डोभाल ने आतंकवादियों को फंसाने के लिए एक योजना तैयार की और वे कामयाब भी हुए। इस काम के दौरान, अजीत कुमार डोभाल ने न केवल अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पण व्यक्त किया बल्कि उन्होंने अपना कार्य सिर्फ एक उद्देश्य के साथ किया और कई मौकों पर साहस दिखाते हुए अपने जीवन को भी खतरे में डाला।”
यद्यपि एक अन्य अनुभवी रक्षा पत्रकार नितिन गोखले ने एक एनडीटीवी कॉलम में दावा किया है कि डोभाल ने स्वर्ण मंदिर ऑपरेशन में अपने साहसी कार्यों के लिए कीर्ति चक्र जीता था, और ऐसा आप 1980 के दशक की शुरुआत में मिज़ो विद्रोह के दौरान उन्होंने जो भूमिका निभाई उसके लिए भी कह सकते हैं।
आईबी के मिज़ोरम यूनिट के हेड के रूप में उन्होंने न केवल मिज़ोरम नेशनल फ्रंट के विद्रोह को रोका बल्कि उन्हीं के बीच अंडरकवर रहकर छह-सात मिज़ोरम नेशनल फ्रंट के कमांडरों का विश्वास जीता और उनके लीडर को भारत सरकार के साथ शांति प्रस्ताव के लिए मजबूर किया।
30 जून, 1986 को भारत सरकार और एमएनएफ ने प्रसिद्ध मिज़ो समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो आज तक भारत की सबसे स्थायी शांति पहल है।
1970 के दशक में सिक्किम के भारत में शामिल होने में भी डोभाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, हर बार उनका अंडरकवर ऑपरेशन सफ़ल नहीं हुआ, कई बार उन्हें भी पीछे हटना पड़ा। लेकिन फिर भी आईबी में उनके काम और स्थिति को कोई नहीं नकार सकता है।
जनवरी 2005 में अजीत डोभाल संगठन से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन नौ साल बाद, उन्हें शिवशंकर मेनन के बाद एनएसए के रूप में नियुक्त किया गया। और आज वे भारत के सबसे ताकतवर अधिकारी हैं।
फिल्म ‘उरी’ में, जो कि सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित है, अभिनेता परेश रावल एनएसए अजीत डोभाल के किरदार में नजर आयेंगें। फ़िल्म में विकी कौशल और यामी गौतम मुख्य भूमिका में हैं और इस फिल्म का डायरेक्शन आदित्य धर कर रहे हैं। फिल्म 11 जनवरी, 2019 को रिलीज़ होगी।