टिकाऊ घरों के निर्माण में विश्वास रखने वाली मुंबई स्थित आर्किटेक्चरल और इन्टीरीयर डिज़ाइन फर्म, unTAG की सह-संस्थापक, गौरी सत्यम कहती हैं, “एक छात्र के रूप में, मैं इस मिथक को बदलना चाहती थी कि आर्किटेक्ट पैसे वाले लोगों के लिए ही होता है। हमारी बिरादरी का बड़ा हिस्सा, शहरी क्षेत्रों में जमीनी स्तर या एक आम आदमी की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखता है। इसलिए, हमारे लिए बजट के अनुकूल घर बनाना, महत्वपूर्ण पैमाना था।”
दूसरी ओर, UnTAG के एक और दूसरे संस्थापक तेजश पाटिल को ऊर्जा-कुशल डिजाइन हमेशा आकर्षित करती रही है। वह कहते हैं, “टिकाऊ केवल एक लेबल नहीं है, बल्कि एक नजरिया है जो एक विचार से शुरू होता है और अंत में उपयोगकर्ताओं की जीवन शैली बन जाता है। मैं हमेशा से प्रॉजेक्ट में पैसिव सोलर एनर्जी और कूलिंग सिस्टम के तरीकों को आजमाना चाहता था। ”
इन दोनों दृष्टिकोणों को अपनाते हुए उन्होंने अपने फर्म की शुरूआत की, जहां टिकाऊ आर्किटेक्चर सिर्फ एक अभ्यास नहीं है, बल्कि जीवन का एक तरीका है।
इन दोनों ने जलवायु को ध्यान में रखते हुए किफायती घर बनाने पर जोर दिया है। साथ ही इनके प्रॉजेक्ट में स्वदेशी डिजाइन का इस्तेमाल स्पष्ट दिखता है।
गौरी कहती हैं, “हम उन मापदंडों के आसपास काम करते हैं जो साइट, जलवायु और सांस्कृतिक संदर्भ के लिए विशिष्ट हैं। यह प्रत्येक प्रॉजेक्ट को खास बनाता है और समग्र निर्माण लागत में 30 प्रतिशत की कमी करता है। पर्यावरण को ध्यान में रखकर हम किफायती लेकिन लक्जरी घर बनाते हैं।”
सस्टेनेबल होम: इको-फ्रेंडली और किफायती
2008 में मुंबई के प्रतिष्ठित सर जे जे कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से ग्रेजुएशन करने के बाद, गौरी और तेजश ने डिजाइनिंग की दुनिया में कदम बढ़ाया।
गौरी ने एचसीपी डिजाइन (अहमदाबाद) और एसपीएएसएम डिजाइन आर्किटेक्ट्स (मुंबई) के साथ काम किया वहीं, तेजश ने दिल्ली में संजय प्रकाश एंड एसोसिएट्स और मुंबई में ओपोलिस आर्किटेक्ट्स के साथ काम किया।
अपने सिद्धांतों के आधार पर सपनों की फर्म शुरू करने से पहले इन दोनों ने कई तरह के प्रॉजेक्ट पर काम किए। मास्टर प्लानिंग प्रोजेक्ट्स से लेकर आलीशान वीकेंड होम्स और टिकाऊ संस्थानों से लेकर विश्वस्तरीय म्यूजियम संबंधित प्रॉजेक्ट तक में काम करने के साथ-साथ दोनों ने अपने मेंटर से अच्छा-खासा अनुभव, कौशल और ज्ञान प्राप्त किया। इस जोड़ी के लिए, कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल आर्किटेक्ट डिजाइन मुख्य रूप से एक-दूसरे के बाई-प्रोडक्ट हैं।
तेजश कहते हैं, “बचा हुआ या स्थानीय रूप से लाया गया पदार्थों का उपयोग कच्चे माल की लागत को कम करता है। विदेशों से मंगवाए गए उत्पादों की तुलना में हमारी सामग्री अधिक उपयुक्त और सस्ती है। आमतौर पर, हमारे प्रॉजेक्ट के तहत बुनियादी इंटीरीअर के साथ समग्र निर्माण की लागत प्रति वर्ग फुट 1400-1500 रुपये के आसपास आता है जबकि बाज़ार में इसकी सामान्य दर 2,000 रुपये होती हैं। निर्माण करने के लिए हम स्थानीय रूप से पके हुए ईंट, क्षेत्रीय रूप से खदान वाले पत्थर, देसी मिट्टी की दीवारें और देसी लकड़ी जैसी समाग्री का इस्तेमाल करते हैं।”
जलवायु-अनुकूल रणनीतियों को लागू करना
गौरी और तेजस ने 2019 में डाकिवली गांव में एक मराठी शैली का घर बनाया, जिसके बीच में एक आंगन है।
एक नज़र में हर किसी को देखने में यह शानदार लग सकता है लेकिन यह विश्वास कर पाना बेहद मुश्किल है कि इसे मात्र 22 लाख के कम बजट में बनाया गया है।
गौरी कहती हैं, “हमारे एक ग्राहक किसान थे। वह प्रकृति को ध्यान में रखते हुए एक आधुनिक घर चाहते थे। 1400 वर्ग फुट क्षेत्र पर एक घर बनाना चुनौतीपूर्ण था। गर्मी को देखते हुए हमने पारंपरिक डिजाइन जैसे कि जालियां, बरामदा और आंगन का इस्तेमाल किया। घर के प्रवेश द्वार में छेद वाली डिजाइन दी गई ताकि हवा का आना-जाना बना रहे।
आंगन के बीच में चंपा का पेड़ होने से दिन के ज़्यादातर समय प्राकृतिक छाया मिलती है, जो 3-5 डिग्री तक तापमान कम करता है। साथ ही, एंट्रेंस द्वार पर दूसरा आंगन बाहरी लोगों से पर्दे का भी काम करता है।
इन दोनों ने निर्माण कार्य में पैसिव सोलर डिजाइन का इस्तेमाल किया है। गर्मी को और कम करने के लिए, उन्होंने छत को सफेद रंग में रंगा और फर्श के लिए भारतीय कोटा पत्थर का इस्तेमाल किया।
घर के निर्माण में जल संरक्षण का भी ध्यान रख रहे हैं। ये अपने डिजाइन में स्वदेसी पत्थर, चिरा (लेटराइट) का इस्तेमाल करते हैं, जिसका काम ही तापमान को नियंत्रित करना होता है।
तेजश बताते हैं, “चीरा 3 किलोमीटर दूर खदान से खरीदा गया था। अपनी छिद्रपूर्ण प्रकृति के कारण, चीरा एक मिट्टी के बरतन की तरह व्यवहार करता है और गर्मियों में बाहरी तापमान की तुलना में आंतरिक तापमान 4-5 डिग्री कम रहता है। जबकि इसकी जड़े भारी दक्षिण-पश्चिमी मानसून वर्षा से घर की सुरक्षा करती है।”
भारतीय कोटा पत्थर का उपयोग करके फर्श बनाए गए और आंतरिक दीवारों को हीट इन्सुलेशन की एक अतिरिक्त परत दी गई थी और स्थानीय रूप से उपलब्ध टेराकोटा की छत की टाइलें पारंपरिक ढलान वाली छत का निर्माण किया गया जिससे गर्म हवा से बचते हुए दिन में छाया प्राप्त होती है।
इस घर का नाम ‘वृंदावन’ है। इस घर का निर्माण 2015 में केवल 10 लाख रुपये के बजट पर किया गया था। गौरी कहती हैं, “मुंबई जैसे शहर में रहने के बाद, रिटायर्ड दंपति प्रकृति के करीब रहना चाहते थे और 1,000 वर्ग फुट के वर्नाक्यूलर स्टाइल वाले फार्महाउस पर कम से कम खर्च करना चाहते थे।”
घर के निर्माण कार्य में लगाए गए लकड़ी को उन्होंने एक टूटे हुए मंदिर के भवन से लाया था। गौरी बताती हैं,” हमें स्थानीय आइन, सागौन, कटहल और साल से तैयार लकड़ी केवल 10,000 रुपये में मिली। दरवाजे, खिड़कियों और फर्नीचर के लिए यही लकड़ी काम आ गई।”
दोनों घरों में क्रॉस वेंटिलेशन और रोशनी का खास इंतजाम किया गया है, जिस वजह से बिजली की रोशनी, एयर कंडीशनिंग और पंखों पर निर्भरता कम हुई। यही वजह है कि बिजली के बिल में भी काफी कमी आई।
आर्किटेक्चर के माध्यम से एक सतत भविष्य की रूपरेखा तैयार करना
गौरी और तेजश ने अब तक लगभग 40 पर्यावरण और आर्थिक रूप से टिकाऊ परियोजनाओं पर काम किया है। उनकी तापमान नियंत्रित रणनीतियां, स्थानीय निर्माण सामग्री का इस्तेमाल और पारंपरिक सौंदर्यशास्त्र का पालन उन्हें काफी अलग बनाता है और कई लोगों को आकर्षित करता है।
हालांकि आधिकारिक तौर पर वे केवल 5 साल पुराने है लेकिन उनके आर्किटेक्चरल स्टूडियो ने IAB के यंग डिज़ाइनर्स अवार्ड 2016, और आधुनिक और पारंपरिक वास्तुकला के बीच फ्यूज़न के लिए ट्रेंड्स सस्टेनेबल प्रोजेक्ट अवार्ड 2016 जैसे खिताब अपने नाम किया है।
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तेजश और गौरी टिकाऊ और सस्ती वास्तुकला के महत्व पर जोर देते हैं। तेजश कहते हैं, “आर्किटेक्ट के रूप में, हम जमीनी स्तर पर काम करके महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, कुछ ऐसा जो हमने श्रीलंकाई वास्तुकार, जेफ्री बावा और केरल के वास्तुकार, लॉरी बेकर के कामों से सीखा है। हम आम आदमी की आकांक्षाओं को समझकर शुरू कर सकते हैं, पारंपरिक निर्माण विधियों और जलवायु का अनुकूलन करते हुए पर्यावरण के प्रति जागरूक डिजाइनों को बढ़ावा दे सकते हैं। सही लगन और पर्यावरण-संवेदनशीलता की मदद से, हम स्थिरता के साथ अपनी जीवन शैली को बदल सकते हैं।”
तस्वीर साभार: unTAG