केरल में वायनाड के रहनेवाले बाबुराज ने जब गांव में अपने सपनों का घर बनाने के लिए जमीन खरीदी थी, तो योजना सिर्फ बेम्बू हाउस बनाने की थी। उन्हें क्या पता था कि वह एक तालाब के बीचों-बीच होगा। आज उनका तीन मंजिला बैम्बू विला (Bamboo Villa) न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि उनकी आमदनी का जरिया भी बन गया है।
पेशे से शिक्षक और एक पर्यावरणविद् बाबूराज, दस साल तक कंक्रीट से बने एक किराए के मकान में रह चुके थे। जब उन्होंने इस तरह से बने मकानों के नुकसान के बारे में जाना, तो उनके मन में एक सस्टेनेबल हाउस बनाने का विचार आया। एक ऐसा घर, जो पर्यावरण के अनुकूल हो और उनका अपना हो।
बाबूराज, बांस पर आधारित जीवनशैली और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने वाले एक संगठन उरावु से काफी समय से जुड़े हुए थे। इस संगठन के साथ काम करते हुए उन्होंने बांस के फायदों के बारे में जाना और तभी उनके मन में बांस का मकान बनाने का विचार आया। साल 2007 में अपने डिजाइनर दोस्त अनीश की मदद से बाबुराज ने बांस से घर बनाने की शुरुआत कर दी।
Bamboo Villa के कारण गांव बना बैम्बू हेरिटेज विलेज
तीन साल बाद, मेप्पडी के पास एक जगह थ्रिकाइपट्टा में 3000 वर्ग फुट का एक खूबसूरत बांस का घर बनकर तैयार खड़ा था। इस घर को बांस विला के रूप में जाना जाता है। यह बैम्बू विला (Bamboo Villa), यहां आने वाले पर्यटकों के लिए होमस्टे का एक खूबसूरत विकल्प बन चुका है। हाल ही में राज्य सरकार ने इस गांव को बैम्बू हेरिटेज विलेज भी घोषित किया है।
बाबुराज कहते हैं, “गांव में बांस के इस्तेमाल से कई घर बनाए गए हैं। बहुत से लोग बांस की कारीगरी में लगे हुए हैं। जब मैंने इस गांव में 18 सेंट (लगभग 7840 स्क्वायर फिट) जमीन खरीदी थी, तब मुझे पता नहीं था कि यह खेती की जमीन है। लेकिन जब मुझे पता चला, तो घर बनाने से पहले मैंने इस जमीन पर एक तालाब बनाने का फैसला किया और फिर स्टिल्ट्स पर घर बनाया गया।”
बैम्बू रेन्फोर्समेंट टेक्नोलॉजी का प्रयोग
अपने सपनों का घर बनाने के लिए, बाबूराज ने बेम्बू रेन्फोर्समेंट तकनीक का इस्तेमाल किया है। इस तकनीक में बांस को कंक्रीट से भरा जाता है। यह निर्माण में स्टील और सॉलिडिटी के इस्तेमाल को काफी कम कर देता है।
उन्होने बताया, “मैंने अपने घर (Bamboo Villa) के लिए पिरामिड आकार को चुना। इससे फायदा और नुकसान दोनों है। फायदा यह है कि इसकी दीवारें छत के रूप में भी काम करती हैं, जिसमें लागत कम आती है। लेकिन इससे अंदर की जगह कम हो जाती है, जो हमारे लिए कोई समस्या नहीं थी।”
इस अनोखे घर को बनाने के लिए उन्हें कुशल कारीगरों की कमी जैसी कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा था। वह याद करते हुए कहते हैं, “वहां बहुत सारे लोगों को मेरा यह विचार पसंद नहीं आया था। उन्होंने इसकी आलोचना भी की। आखिर में, उरावु के मज़दूरों और अन्य स्थानीय कारीगरों को इस तरह का घर बनाने की ट्रेनिंग दी गई। उनके लिए भी यह एक नया अनुभव था।”
Bamboo Villa बनाने में लगे 29 लाख रुपये
बंबुसा और स्ट्रिक्टस जैसी बांस की छह किस्मों के अलावा, घर बनाने में ईंटों, मिट्टी की टाइल्स और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। घर को जरूरत से ज्यादा सामान से भरा नहीं गया है। यहां रखा फर्नीचर भी बांस से बना है। घर बनाने में जितना भी बांस इस्तेमाल हुआ, उसका लगभग 90 प्रतिशत बाबूराज ने खुद उगाया था।
तालाब और मकान बनाने में कुल 29 लाख रुपये का खर्च आया है। अगर देखा जाए, तो इतनी जमीन पर कंक्रीट से बनने वाले घर की तुलना में यह काफी कम है। टूरिस्टों के लिए होम स्टे के रूप में तीसरी मंजिल पर दो कमरे किराए पर दिए जाते हैं। बाबूराज और उनका परिवार उनके लिए खाना भी खुद ही बनाते हैं। यानी सस्टेनेबल होम में, प्रकृति के नजदीक रहने के साथ-साथ, आप यहां के स्थानीय व्यंजनों के स्वाद का भी मज़ा ले सकते हैं।
हर तरफ बस मछलियां ही मछलियां
बाबूराज के तालाब में कुछ दुर्लभ प्रजातियों सहित, कई तरह की मछलियां भी हैं। कलाकृति के रूप में, खिड़कियों, दरवाजों और उनके पूरे घर में मछलियों के चित्र देखे जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “मछलियां मेरे जीवन में काफी अहम हैं। वे मुझे हमेशा एक्टिव रहने और इधर से उधर जाने का एहसास कराती रहती हैं। मुझे वास्तव में उनके लिए दीवानगी है।”
तालाब घर के अंदर के तापमान को ठंडा बनाए रखने का एक स्मार्ट तरीका है। साथ ही यह जल संरक्षण में भी मदद करता है। वह कहते हैं, ” बारिश में घर की छत पर जमा पानी को इकट्ठा करके तालाब में लाया जाता है और फिर यह पानी गर्मियों में हमारी जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है।”
पर्यावरण के अनुकूल घरों को टैक्स में मिले छूट
बाबूराज को घर (Bamboo Villa) की सुरक्षा और ड्यूरेबिलिटी को लेकर कोई संदेह नहीं है। वह इसे लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं। उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन के मौजूदा दौर में सभी घरों को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जाना चाहिए और घर के अहाते या किसी भी जगह में फल-सब्जियां उगाने के लिए थोड़ी जगह का होना भी जरूरी है।
वह कहते हैं, “हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं, जहां एक स्थायी जीवन शैली बहुत जरूरी है। मुझे लगता है कि सरकार को इसे बढ़ावा देना चाहिए और पर्यावरण के अनुकूल घरों के लिए कर में छूट दी जानी चाहिए।”
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मूल लेखः अनघा आर. मनोज
संपादनः अर्चना दुबे
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