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न बिजली-पानी का बिल, न सब्जी-फल का खर्च, कच्छ की रेतीली जमीन पर बनाया आत्मनिर्भर घर

sustainable home

भुज (गुजरात) के महेशभाई गोर कंस्ट्रक्शन विभाग में नौकरी करते थे। रिटायरमेंट के बाद, वह पिछले कुछ सालों से अपने घर में गार्डनिंग के शौक को पूरा कर रहे हैं। पिछले साल जहां लॉकडाउन के कारण सभी अपने घर में कैद थे और बोरियत महसूस कर रहे थे। वहीं महेशभाई  बताते हैं, “मुझे घर में रहकर बिल्कुल भी बोरियत नहीं होती, जिसका कारण है-प्रकृति का साथ।” 

उन्होंने कहा, “मेरी सुबह, बगीचे में आते पक्षियों के कलरव से होती है, वहीं मेरा पहला काम उन्हें पानी और दाना देना है। साथ ही, मेरा सारा समय घर के गार्डन में उगे फल-सब्जियों और दूसरे पौधों की देखभाल में कैसे निकल जाता है, पता ही नहीं चलता।”

भुज, गुजरात के कच्छ जिले का एक ऐसा शहर है, जो रेगिस्तान से काफी पास है। यहां की मिट्टी रेतीली होती है, जिसके कारण यहां पेड़ पौधे कम उग पाते हैं। साथ ही, बारिश की कमी के कारण पानी की भी तंगी रहती है। लेकिन महेशभाई का घर भुज का एक अनोखा घर है, जिसकी वजह है उनकी सोच और उनकी मेहनत।  

आज से पांच साल पहले जब उन्होंने अपने लिए घर बनाने का सोचा, तभी उन्होंने फैसला किया कि जितना हो सके, घर की जरूरतों के लिए प्राकृतिक स्रोत का उपयोग ही करेंगें। हालांकि, घर बनाने के लिए उन्होंने एक बड़ा प्लॉट ख़रीदा था, लेकिन बड़ा घर बनाने के बजाय, उन्होंने जरूरत के हिसाब से घर बनाया ताकि बची हुई जगह का उपयोग पेड़-पौधे लगाने में किया जा सके। जिससे उन्हें ताज़े सब्जी और फल खाने को तो मिलते ही हैं, आस-पास हरियाली भी बनी रहती है। 

इस घर के आस-पास, पेड़ की ठंडी छांव में आपको कई पक्षी, गाय और गली के कुत्ते आराम करते दिख जाएंगे। महेशभाई जिस सोसाइटी में रहते हैं, वहां सभी को गर्मी के दिनों में पानी का टैंकर मंगाना पड़ता है। लेकिन इनको अभी तक पानी के लिए टैंकर मंगाने की जरूरत नहीं पड़ी, जिसका कारण है उनके घर में बनी बारिश का पानी इकट्ठा करने वाली टंकी। 

घर बनाते समय, उन्होनें पानी की समस्या को ध्यान में रखकर, ऐसी व्यवस्था की, जिससे बारिश की एक बून्द भी बर्बाद नहीं होती। सारा पानी घर के नीचे बने टैंक में जमा होता है, जिसे यह परिवार गर्मी के दिनों में उपयोग में लाता है। 

सोलर पावर का उत्तम उपयोग 

महेशभाई के घर में सोलर पावर का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाता है। घर में बिजली के लिए जहां सोलर पैनल का उपयोग होता है, वहीं खाना बनाने के लिए सोलर कुकर का। पिछले साल ही उन्होंने अपने घर की छत पर तीन किलो वॉट का सोलर पैनल लगवाया है। इसे लगवाने में उन्हें सरकार से कुल लागत में 30% सब्सिडी भी मिली है। इस हिसाब से उन्हें सोलर पैनल लगाने में, एक लाख 48 हजार रुपये का खर्च आया था। 

वैसे तो उनका घर पेड़-पौधों के कारण काफी हवादार रहता है। लेकिन गर्मियों में यहां काफी गर्म वातावरण होने के कारण, AC का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है। महेशभाई कहते हैं कि पिछले महीने गर्मी में AC का उपयोग करने के बावजूद, बिजली का बिल मात्र 250 रुपये ही आया था। वहीं अगले साल सोलर पैनल में सोलर एनर्जी जमा होने से, उन्हें उम्मीद है कि बिजली का बिल बिलकुल शून्य हो जाएगा।  

जहां तक सोलर पैनल के देखरेख की बात करें, तो इसे लगवाने के बाद किसी तरह के मेंटेनेंस की जरूरत नहीं पड़ती है। सिर्फ हफ्ते में एक बार साफ कपड़े से पैनल की सफाई करनी होती है, जिससे सूरज का प्रकाश अच्छी तरह से पैनल पर पड़ सके। 

सोलर कुकर में बनता है खाना 

महेशभाई की पत्नी प्रतिभाबेन, जो स्कूल में अस्सिस्टेंट प्रिंसिपल हैं, वह भी जितना हो सके पर्यावरण अनुकूल जीवन जीने और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने में विश्वास रखती हैं। वह सुबह सोलर कुकर का इस्तेमाल करके दाल- चावल और सब्जी वगैरह बना लेती हैं। वह कहती हैं, “मैं सिर्फ रोटी बनाने के लिए ही गैस स्टोव का इस्तेमाल करती हूँ।”

प्रतिभाबेन को पक्षियों और प्राणियों के प्रति भी अपार प्रेम है। वह बताती हैं, “हमने कभी भी अपने घर में कोई पालतू जानवर बाहर से लाकर नहीं पाला। कभी-कभी बाहर से कुत्ते-बिल्ली हमारे घर में आ जाते हैं, तो हम उन्हें घर में रख लेते हैं। फ़िलहाल हमारे घर में दो बिल्लियां हैं, जो बिल्कुल घर के किसी सदस्य जैसे ही हमारे घर में रहतीं हैं।” 

इसके अलावा गुजरात में नवरात्रि के दौरान लोग मिट्टी के घड़े की स्थापना करते हैं और बाद में उसे नदी में विसर्जित कर देते हैं। लेकिन यह परिवार उस घड़े को बहाता नहीं बल्कि उसे पक्षियों के घोंसले के रूप में इस्तेमाल करता है।

होम गार्डनिंग 

वे अपने घर के आँगन में चीकू, आम, अनार, नींबू, टमाटर, सहित कई और फल-सब्जियां आदि उगाते रहते हैं। सब्जियों को जैविक रूप से उगाने के लिए वे किचन से निकले कचरे का इस्तेमाल खाद के रूप में करते हैं। साथ ही, घर के आस-पास बैठी गाय के गोबर को भी खाद बनाकर पेड़-पौधों में डाल देते हैं। 

प्रतिभाबेन अपने अनुभव से बताती हैं, “बाजार में मिलने वाली सब्जियों और घर में उगी सब्जियों के स्वाद में भी काफी फर्क होता हैं। जिसका सीधा असर हम सबके स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसलिए हम कोशिश करते हैं कि जितना हो सके उतनी सब्जियां घर में उगाकर ही खाएं। “

गणपति पूजा में भी यह परिवार घर पर ही गणपति की ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाता है, जिससे नदी के पानी को प्रदूषित होने से रोका जा सके। यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि भुज का यह गोर परिवार पर्यावरण संरक्षण के सारे कदम उठाता है और साथ ही एक ईको फ्रेंडली जीवन का आनंद भी ले रहा है।  

संपादन- अर्चना दुबे

मूल लेख- निशा जनसारी 

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