“हमारे यहाँ लोग प्लास्टिक को कोई समस्या नहीं समझते और यही वजह है कि आज हम और हमारा पर्यावरण इस स्थिति में पहुंचा है,” यह कहना है द हैप्पी टर्टल की फाउंडर ऋचा मलिक का।
पहले इंजीनियरिंग और फिर एमबीए करने के बाद कॉर्पोरेट कंपनी में काम करने वाली ऋचा को हमेशा से ही समुद्र से बहुत प्यार रहा। उनका यह प्यार इस कदर था कि एक बार वह स्कूबा डाइविंग के लिए गईं तो अपनी नौकरी छोड़कर स्कूबा डाइविंग इंस्ट्रक्टर बनने का फैसला कर लिया।
वह बताती हैं कि उन्होंने इंडोनेशिया में स्कूबा डाइविंग इंस्ट्रक्टर का कोर्स किया और फिर वहीं पर लोगों को सिखाने लगीं। उन्होंने अलग-अलग देशों में लगभग 500 डाइव किये हैं। इन सभी देशों में उन्होंने डाइविंग के दौरान एक समानता दिखी – समुद्र में कचरा।
यह कचरा सिर्फ समुद्र के तटों को ही प्रदूषित नहीं कर रहा, बल्कि हर साल न जाने कितने ही समुद्री जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ इस वजह से खत्म हो रही हैं।
“मैं एक दिन अपने एक छात्र के साथ समुद्र-तट पर थी और हमने देखा कि एक टर्टल (कछुआ) एक जैलीफिश की तरह दिखने वाली चीज की तरफ बढ़ रहा था। जब हमने थोड़ा पास जाकर देखा तो पता चला कि वह कोई जैलीफिश नहीं बल्कि एक पॉलिथीन था। मैंने उस पॉलिथीन को वहां से हटाया,” उन्होंने आगे कहा।
ऋचा कहतीं हैं कि उन्होंने एक कछुए को तो बचा लिया, लेकिन हर साल न जाने कितने ही ऐसे जीव इस प्लास्टिक के कचरे से मर रहे हैं। उनके लिए कौन इस दुनिया को सुरक्षित बनाएगा ताकि हर एक टर्टल हैप्पी रहे।
इस घटना के कुछ दिनों बाद, डाइविंग के दौरान उन्हें समुद्र में एक प्लास्टिक की बोतल दिखी और यह उसी ब्रांड की थी, जिसके लिए कभी ऋचा काम करतीं थीं। इस बोतल को देखकर, ऋचा के मन में आया कि आखिर कब तक हम दूसरों के भरोसे बैठकर सिर्फ यह सोचेंगे कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
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उन्होंने ठान लिया कि अब वह ऐसा कुछ करेंगी जिससे कि इस समस्या से निजात मिले। साल 2017 में ऋचा भारत लौटीं और उन्होंने अपने स्टार्टअप के लिए रिसर्च शुरू की, कि आखिर वह क्या कर सकतीं हैं। उनके पास अपने स्टार्टअप का नाम तो था- ‘द हैप्पी टर्टल’, लेकिन इस नाम को एक ब्रांड और अभियान बनाने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी थीं।
“धीरे-धीरे मैंने इस समस्या के बारे पढ़ा और जाना तो मुझे समझ में आया कि प्लास्टिक तब तक खत्म नहीं हो सकता, जब तक यह लोगों की जीवनशैली का हिस्सा है। अगर हम एकदम से कह दें कि कल से प्लास्टिक का कोई सामान इस्तेमाल नहीं होगा तो यह मुमकिन नहीं है। हमें छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे, जैसे कि आप कपड़े के थैले से या फिर अपने टूथब्रश से शुरुआत कर सकते हैं,” उन्होंने आगे बताया।
हम में से किसी को भी यह अंदाज़ा नहीं होता कि हम हर दिन कितना प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं। लोगों को यह एहसास हो, इसके लिए ऋचा ने अपने स्टार्टअप के तहत एक ‘प्लास्टिक फूटप्रिंट कैलकुलेटर‘ बनाया। इसमें आप यह चेक कर सकते हैं कि हर दिन आप कितना प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न कर रहे हैं।
आप सिर्फ निजी स्तर पर ही नहीं, बल्कि बिज़नेस लेवल पर भी अपना ‘प्लास्टिक फुटप्रिंट’ कैलकुलेट कर सकते हैं। ऋचा ने पहले लोगों के लिए और फिर कंपनियों के लिए एक कैलकुलेटर बनाया।
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आज उनका स्टार्टअप 45 से भी ज्यादा इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स बना रहा है। उनके ये प्रोडक्ट्स बांस से बनते हैं। वह बतातीं हैं कि बांस हमारे देश में काफी मात्रा में और कम समय में उत्पादित होता है। साथ ही, यह बायोडिग्रेडेबल है। इसे प्राकृतिक तरीकों से ट्रीट करके प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
उनके सभी प्रोडक्ट्स ऐसे होते हैं जिन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। उनके प्रोडक्ट्स में बैंबू स्ट्रॉ, कटलरी, टूथब्रश जैसे ज़रूरी सामान शामिल हैं।
बांस के साथ-साथ अब वह तांबे और सूती के कपड़ों के प्रोडक्ट्स भी बना रहे हैं। इसके अलावा, वह कपड़ों की बची-कूची कतरन से रोटी जैसे खाद्य पदार्थ रखने के लिए रियूजेबल-रैप और मेकअप वाइप्स जैसी चीज़ें बना रहे हैं।
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ऋचा के मुताबिक, उनका स्टार्टअप लोगों को निजी स्तर पर और बिज़नेस लेवल पर जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल अपनाने में भी मदद करते हैं।
“हम लोगों को सबसे पहले जागरूक करते हैं और फिर उन्हें छोटे-छोटे कदम उठाने के लिए कहते हैं। एकदम से अगर आप चाहो कि आपकी ज़िंदगी से प्लास्टिक चला जाए तो ऐसा नहीं हो सकता,” उन्होंने कहा।
उनका कॉन्सेप्ट बहुत साधारण है, सबसे पहले रिफ्यूज़ करें यानी कि प्लास्टिक के प्रोडक्ट्स के लिए मना करें। फिर रिड्यूज़ करें यानी कि प्लास्टिक की जगह इको-फ्रेंडली उत्पाद इस्तेमाल करें। इसके बाद, रियूज और रिसायकल करें।
ऋचा का यहां तक का सफर बिलकुल भी आसान नहीं रहा।
अपनी राहों में आयी मुश्किलों के बारे में बताते हुए वह कहतीं हैं, “हमारे देश में लोगों की आदतें बदलना बिलकुल भी आसान नहीं है। यहां लोग खुद को बदलने की बजाय आपसे सवाल करते हैं। जैसे अगर मैं किसी को बैंबू टूथब्रश इस्तेमाल करने को कहती हूँ तो उनका सवाल होता है कि ब्रिसल किससे बने हैं। जब उन्हें बताया जाता है कि ब्रिसल इको-फ्रेंडली नहीं हैं लेकिन ऐसे प्रोडक्ट से बनें हैं जो प्लास्टिक के मुकाबले पर्यावरण के लिए बहुत कम हानिकारक है। तो वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि मुझे पूरा इको-फ्रेंडली बनना चाहिए। लोग यह नहीं समझते कि पूरा इको-फ्रेंडली सिर्फ एक प्रोडक्ट से नहीं बना जा सकता है। आप अपनी आदतें बदलेंगे तभी एक सस्टेनेबल लाइफस्टाइल की शुरुआत होगी।”
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अपनी चुनौतियों के बारे में आगे बताते हुए वह कहतीं हैं, “एक सबसे बड़ी चुनौती है प्रोडक्ट्स का मूल्य। ज़्यादातर लोग कहते हैं कि प्लास्टिक के मुकाबले इतने महंगे हैं आपके प्रोडक्ट्स। लेकिन वह यह नहीं समझते कि प्लास्टिक की मांग बहुत ज़्यादा है इसलिए वह सस्ता है। जिस दिन हमारे प्रोडक्ट्स की मांग भी उतनी ही बढ़ जाएगी, हमारे प्रोडक्ट्स भी उसी दाम में मिल जाएंगे।”
ऋचा अंत में सिर्फ यही सन्देश देती हैं कि अगर आप एक प्लास्टिक की स्ट्रॉ या फिर पॉलिथीन के लिए मना भी करते हैं तो यह कदम भी पर्यावरण के लिए मायने रखता है। बस उम्मीद है कि हम सब ऐसे छोटे-छोटे कदम उठाकर अपने पर्यावरण को बचाने के लिए आगे बढ़ें!
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ऋचा से बात करने के लिए या उनसे उनके प्रोडक्ट्स के बारे में किसी भी तरह के सवाल करने के लिए आप उन्हें info@thehappyturtle.in पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच