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हर धागा कुछ कहता है: आपके रक्षाबंधन को ख़ास बनाएंगी ये 6 इको-फ्रेंडली राखियाँ!

क्षाबंधन- एक ऐसा त्यौहार जो भाई-बहन के लिए खास है। इस त्यौहार के लिए भाई-बहन साल भर इंतजार करते हैं और इस एक धागे से, हर साल इनके रिश्ते की डोर और मज़बूत होती चली जाती है। शायद यही कारण है कि बहनों में अपने भाईयों के लिए हर साल अच्छी से अच्छी राखी खरीदने की होड़ लगी होती है। अगस्त महीने में आने वाले इस त्यौहार से करीब 15 दिन पहले से ही दुकानों पर भीड़ लगना शुरू हो जाती है। मैं और मेरी बहन भी हफ्ते भर पहले से ही जाकर राखियों की खोजबीन शुरू कर देते हैं।

अलग-अलग दुकानों पर सैकड़ों राखियाँ देखने के बाद भी लगता कि यार कुछ और बेटर मिला जाता तो बढ़िया होता। कभी कोई राखी कुछ ज़्यादा ही सादी लगती है, तो कोई कुछ ज़्यादा ही चमक-धमक वाली। पिछले कुछ सालों से तो बाज़ारों में चांदी की राखियों से लेकर कार्टून वाली राखियों तक की भी धूम है।


कई दिन और न जाने कितने घंटों तक बाज़ार में भटककर हम राखी पसंद करते हैं और इतनी जद्दोज़हद सिर्फ़ एक त्यौहार के लिए? पर बात त्यौहार की नहीं भावनाओं की है। दुनिया के लिए यह सिर्फ़ एक धागा होता है पर भारत में राखी को रक्षा और भाई बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है। जिसके भी हाथ पर राखी बाँधी जाये, वह इंसान राखी को उतारते वक़्त एक हिचक महसूस करता है, तो बहुत से लोग राखी तब तक नहीं उतारते जब तक कि धागा एकदम घिस न जाये।

बाज़ारों में आमतौर पर मिलने वाली राखियाँ प्लास्टिक और केमिकल युक्त रंगों का इस्तेमाल करके बनती हैं। इसलिए ये पर्यावरण के लिए हानिकारक होती हैं। जो लोग पर्यावरण को लेकर सजग हैं और इको-फ्रेंडली लाइफस्टाइल में भरोसा रखते हैं, उनके लिए यह एक समस्या बन जाती है। अब त्यौहार तो मनाना है पर मन में एक संशय के साथ?

पर अब द बेटर इंडिया के पास आपकी इस समस्या का हल है और वह भी पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल। जी हाँ, देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना हर कदम प्रकृति और पर्यावरण को सहेजने की दिशा में उठाते हैं। ऐसे ही कुछ नागरिकों ने शुरुआत की है इको-फ्रेंडली राखी बनाने की!

ये राखी प्रकृति के अनुकूल तो हैं ही, साथ ही आप इनसे पौधरोपण भी कर सकते हैं। आज हम आपको ऐसे छह लोगों के बारे में बताएंगे जो अपने संगठनों के ज़रिए इको-फ्रेंडली और प्लांटेबल राखी बना रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि आप ये राखी ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं!

1. ‘जेंडर न्यूट्रल’ राखी

‘बा नो बटवो’ स्टार्टअप की फाउंडर गार्गी ने जब प्लांटेबल (बीज वाली) राखी बनाना शुरू किया तो उन्होंने कहीं न कहीं बाज़ार में पहले से मौजूद पारम्परिक राखियों को चुनौती दी थी। इस बार उन्होंने अपनी राखियों के डिजाईन में कुछ बदलाव करके, न सिर्फ़ तरीकों को बल्कि इस रिवाज को भी चुनौती दी है कि राखी भाई को ही बांधी जा सकती है या लड़कों के लिए ही होती है। औरंगाबाद की रहने वाली गार्गी ऐसी राखी बना रही है जो कि जेंडर न्यूट्रल है। इन राखियों को कोई भी जेंडर चाहे लड़की हो या लड़का, पहन सकता है।

इतना ही नहीं, इस सोच को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने एक फेसबुक अभियान, ‘मेरी बहन मेरी ताकत’ भी शुरू किया है।

अपने उद्देश्य के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि “रक्षाबंधन का समाज में बहुत महत्व है। सिर्फ़ भाई ही बहन की रक्षा क्यों करें? बहनें भी मानसिक और शारीरिक तौर पर इतनी मजबूत होती हैं कि वे अपनी समस्याओं का सामना खुद कर सकती हैं। वे अपने भाइयों के लिए भी लड़ सकती हैं। अपनी राखियों के ज़रिए मैं इस धारणा को बदलने की कोशिश कर रही हूँ।”

उनके फेसबुक अभियान में भाग लेकर आप पूरी दुनिया को अपनी बहन की ख़ास बात या ताकत के बारे में बता सकते हैं।

ये हेंडीक्राफ्ट राखी, मिट्टी और बीजों का इस्तेमाल करके बनाई गयी हैं। इनमें करंज और अमलतास के बीज लगाये गये हैं। धागों के लिए गार्गी और उनकी टीम ने प्राकृतिक रंग जैसे चावल का पेस्ट, हल्दी, गेरू आदि का इस्तेमाल किया है।

इन राखियों की पैकेजिंग भी इको-फ्रेंडली तरीकों से हुई है। ‘बा नो बटवो’ का राखी कलेक्शन देखने व खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें!

2. इस राखी किट को खरीदें और करें HIV+ लोगों की मदद

ये ग्रीन राखियाँ बेंगलुरु के कुछ दिव्यांगों द्वारा बनाई जा रही हैं और इनकी बिक्री से जो भी प्रॉफिट होगा, वह राशि हेन्नुर के इन्फेंट जीसस एचआईवी होम के बच्चों के लिए दिया जाएगा। यह पहल की है सीड पेपर बनाने वाले संगठन सीड पेपर इंडिया के संस्थापक रोशन राय ने।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “हमने दो साल पहले इको-फ्रेंडली राखी बनाना शुरू किया था और तब से हम 24 दिव्यांगों की आर्थिक मदद कर रहे हैं। इस साल हमने कुछ और भी करने की सोची व तय किया कि हम अपना पूरा प्रॉफिट HIV पीड़ितों को देंगे।”

सीड पेपर इंडिया द्वारा बनाई गयी इस इको-फ्रेंडली किट में एक प्लांटेबल राखी (बीज वाली), कोकोपीट/जैविक उर्वरक, कोको पॉट प्लान्टर (जिसमें बीज को लगाया जा सकता है) और एक दिशा-निर्देश कार्ड है। यह पूरी किट रिसायकल पेपर की पैकेजिंग में आती है और यह बीज 4-6 हफ्तों में अंकुरित हो सकते हैं।

पिछले साल रोशन की टीम ने अपने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को 8,000 राखियाँ बेची थी। इस साल उनका लक्ष्य 15,000 ऐसी राखियाँ बेचने का है। इस इको-फ्रेंडली राखी किट को देखने व खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें!

3. बायोक्यू प्लांटेबल राखी

ग्रेजुएशन के बाद सौरभ ने बॉल पेन बनाने का अपना पारिवारिक व्यवसाय संभाला। लेकिन एक साल में ही उन्होंने न सिर्फ़ बिजनेस छोड़ दिया, बल्कि अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से प्लास्टिक को पूरी रह से हटाने का फ़ैसला भी कर लिया।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सौरभ ने बताया कि एक बॉल पेन बनाने के लिए सिर्फ़ एक बार ही जिस मात्रा में प्लास्टिक इस्तेमाल होता है, वह बहुत ज़्यादा है। उस जगह काम करना उनके लिए एक सबक बना और इसलिए उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया, जिसके ज़रिए वे इको-फ्रेंडली स्टेशनरी बेचते हैं।

उनकी कंपनी ‘बायोक्यू/BioQ’ अब तक 5-6 लाख प्लांटेबल पेन और कागज़ से बनी पेंसिल बना चुकी है।

पर उन्होंने प्लांटेबल राखी कैसे शुरू की?

इस पर सौरभ कहते हैं, “पिछले 20 साल से मेरी बहनें मुझे राखी बाँध रही हैं और हर साल इन्हें उतारते वक़्त मुझे बहुत बुरा लगता है। हम पहले से ही सीड पेन बना रहे थे तो हमनें इस आइडिया को राखियों के लिए भी इस्तेमाल करने की सोची।”

पिछले साल कंपनी ने लगभग 6,000 राखियाँ बेचीं थी और इस साल उनका टारगेट 15,000 राखियाँ बेचने का है। इन राखियों को दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली 20 औरतें बना रही हैं। उनका यह अभियान रोज़गार भी उत्पन्न कर रहा है।

बायोक्यू कंपनी की रीसायकल्ड क्राफ्ट पेपर से बनी राखियाँ आप यहाँ देख व खरीद सकते हैं!

4. हर धागे की अपनी कहानी है!

मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली एक एक्टिविस्ट नवलीन कुमार मुंबई में आदिवासियों के हक़ के लिए एक रैली का नेतृत्व कर रही थी, जब उनकी हत्या कर दी गयी। 19 बार उन्हें चाकू घोंपा गया। उनकी याद में, ‘ग्राम आर्ट’ ने 19 गांठों वाली एक राखी बनाई है। गुलाबी धागे में लाल केशरी के बीजों के साथ बनाई गयी एक राखी ‘माहवारी’ के प्रति सजग करती है, तो वहीं गर्भाशय के आकार में बनी राखी हमारे समाज में लिंग भेदभाव पर कटाक्ष है।

मध्य-प्रदेश स्थित ग्राम आर्ट संगठन ने रक्षाबंधन के त्यौहार को लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए एक मौके की तरह देखा और इसलिए उन्होंने इस तरह की बहुत-सी राखियाँ डिजाइन की हैं। ‘हम कमजोर नहीं’ अभियान के तले उन्होंने महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की 100 ग्रामीण महिलाओं को इन राखियों को बनाने का काम सौंपा है। बहरहाल, संगठन के संस्थापकों के लिए यह मुश्किल था कि वे बाज़ार में ग्राहकों को खो दें या फिर इस सामाजिक मुद्दे पर काम करें।

ग्राम आर्ट के फाउंडर्स में से एक ललित वंशी बताते हैं कि “पिछले साल हमने 12,000 सीड राखी बेचीं और इस साल हमारा लक्ष्य 20,000 है। हमें पता है कि माहवारी जैसे मुद्दे को लेना और गर्भाशय के आकार में राखी बनाना शायद हमारे ग्राहकों को कम पसंद आये और हम अपने टारगेट तक न पहुँच पाये लेकिन इन सामाजिक समस्याओं पर बात करना हमारे लिए ज़्यादा ज़रूरी है।”

एक सामाजिक संदेश के साथ बनीं इन राखियों को देखने के लिए यहाँ क्लिक करें!

5. मिट्टी और न्यूज़पेपर से बनीं राखी

अभिका क्रिएशन्स द्वारा मिट्टी से बनीं इन राखियों में सदाबहार पौधों के बीज होते हैं, जो कि साल में दो बार ही खिलते हैं। यह संगठन इस राखी को एक ख़ास किट में बेचता है। जिसमें एक बायोडिग्रेडेबल पॉट, मिट्टी का एक पैकेट और एक दिशा-निर्देश मैनुअल होता है। राखी को बटर पेपर में पैक करके एक बॉक्स में रखते हैं और बॉक्स को सील करने के लिए प्लास्टिक के सेलो टेप की जगह वे पेपर टेप का इस्तेमाल करते हैं।

अभिका की राखियाँ देखने व खरीदने के लिए यहाँ पर क्लिक करें

6. BySmita राखी

BySmita से आप बंदगोभी के बीज वाली प्लांटेबल राखी खरीद सकते हैं। स्मिता भटनेर द्वारा बनाई गयी इस राखी किट में आपको राखी के साथ, टीके के लिए रोली और चावल और एक छोटा-सा गमला मिलता है।

“हर उपहार खास होता है और यादें संजोता है। कुछ लोगों के लिए गिफ्ट बस एक चीज हो सकता है, पर हमारे कलेक्शन से आप अपने अनुभव किसी को उपहार में देते हैं। आज के दौर में गैजेट्स ने दिल और दिमाग पर कब्जा कर लिया है, ऐसे में अपनी जड़ों की तरफ लौटना हमें आज पर्यावरण की ज़रूरतों के प्रति जागरूक करता है,” स्मिता ने बताया।

BySmita राखी किट आप यहाँ देख व खरीद सकते हैं

आज ही पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें और इसकी शुरुआत आप इन इको-फ्रेंडली प्लांटेबल राखी खरीदने से कर सकते हैं। इन बीजों से उगे पेड़ आपको हमेशा आपके और आपके भाई-बहनों के बीच के रिश्ते और प्यार का अनुभव करायेंगे।

मूल लेख: गोली करेलिया

संपादन – भगवतीलाल तेली 


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