पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग से 36 किलोमीटर दूर नागरी फार्म चाय एस्टेट के एक घर के गेराज कुछ ख़ास है। ख़ास इसलिए कि यहाँ आपको किसी कार या बाइक की जगह यहाँ आपको ढेर सारी किताबें मिलेंगी। दरअसल, यह गेराज एक ओपन लाइब्रेरी है।
पर इस लाइब्रेरी की खासियत यह है कि न तो यहाँ कोई लाइब्रेरियन है, न ही आपको बिल्कुल खामोश रहने की ज़रूरत है और न ही यहाँ से किताबें ले जाने के लिए आपको किसी अनुमति की ज़रूरत होती है। बल्कि इस अनोखी लाइब्रेरी से बच्चे पढ़ने के लिए अगर किताबें चुरा भी लें तब भी शायद इस लाइब्रेरी को शुरू करने का उद्देश्य पूरा हो जाये।
इस जगह को लोग ‘द बुक थीफ़ ओपन लाइब्रेरी’ के नाम से जानते हैं। इस लाइब्रेरी को साल 2016 में शुरू किया था सृजना सुब्बा ने। हमेशा से किताबें पढ़ने की शौक़ीन रहीं 38-वर्षीय सृजना सुब्बा दार्जीलिंग जिले के पोखरीबोंग गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में एक टीचर हैं और साथ ही साथ, वे कवितायेँ भी लिखती हैं।
इस लाइब्रेरी का नाम उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई लेखक मार्कस जुसाक की किताब ‘द बुक थीफ़’ के नाम पर रखा है। “इस किताब में मुख्य किरदार एक लड़की का है, जिसे पढ़ने का शौक है और वो जानती है कि लिखने और पढ़ने की ताकत दुनिया में बहुत कुछ बदल सकती है। पढ़ने के लिए वह किताबें चुराती है और पढ़ती है,” सुब्बा ने बताया।
“द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित इस कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि दुनिया कितनी ख़ूबसूरत हो सकती है, अगर आज युवा पीढ़ी गलत आदतों में पड़ने की बजाय किताबों से दोस्ती कर ले तो,” सुब्बा ने आगे कहा।
बचपन से ही सुब्बा का सपना था कि वे लाइब्रेरी खोलें ताकि बच्चों में लगातार किताबें पढ़ने की आदत बने। सुब्बा का मानना है कि बच्चों की जिज्ञासा को अगर सही जानकारी और ज्ञान से शांत न की जाये तो वे अक्सर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं।
सुब्बा बताती हैं कि आज इन्टरनेट की दुनिया में कोई भी जानकारी उनसे बस एक क्लिक की दूरी पर है। पर इसी इन्टरनेट की वजह से बच्चे किताबों से दूर होते जा रहे हैं। वे अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए लाइब्रेरी में किताबें ढूंढने की बजाय हर चीज़ गूगल करना चाहते हैं।
नागरी फार्म चाय एस्टेट में लगभग 20 गाँव शामिल हैं, और हर गाँव में लगभग 40 परिवार रहते हैं। सुब्बा बताती हैं कि इस क्षेत्र में उचित लाइब्रेरी सुविधाएं नहीं हैं। स्थानीय रिपोर्ट दस्तावेजों के मुताबिक तीन बार इस क्षेत्र में लाइब्रेरी खोलने के प्रयास हुए पर किसी न किसी वजह से विफल रहे।
“मैं चाहती थी कि आने वाली पीढ़ी हमारी तरह लाइब्रेरी की कमी महसूस न करे। जब वे बड़े हों तो वो कह सके कि उनके यहाँ लाइब्रेरी है,” सुब्बा ने कहा।
इसलिए सुब्बा ने अपने गेराज को ही एक अच्छे अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया। गुलाबी और हरे रंग से रंगी इस जगह को पुरानी जीप और बाइक आदि के पार्ट्स का इस्तेमाल करके बनाया गया है। पुराने टायरों को चमकीले रंगों से रंग कर उनमें बांस के टुकड़े लगाकर बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उनके पुराने और खराब फ्रिज में किताबें स्टॉक की जाती हैं। सुब्बा बताती हैं कि इस पूरी लाइब्रेरी को वेस्ट मैटेरियल से बनाया गया है।
इस लाइब्रेरी में कुछ तो सुब्बा की अपनी निजी किताबें हैं, तो कुछ दोस्तों और शुभ-चिंतकों की दान की हुई हैं। इंग्लिश और नेपाली में यहाँ 500 से भी ज्यादा किताबें हैं। इस क्षेत्र के बच्चों के लिए अगर यहाँ कोई जगह जन्नत है तो वह बस यह लाइब्रेरी है। बच्चों के साथ-साथ यहाँ किशोर और बड़े -बुजुर्ग भी आकर किताबें पढ़ सकते हैं। इतना ही नहीं नेपाली लेखक भी इस लाइब्रेरी में आकर अपनी किताबों की एक प्रति रखकर जाते हैं।
बच्चे स्कूल से वापिस लौटते समय इस लाइब्रेरी में समय बिताते हैं। साथ ही, वे छुट्टी वाले दिन भी आकर अलग-अलग किताबें पढ़ते हैं। सुब्बा का मानना है कि बच्चों का रिश्ता किताबों से उनके बचपन में ही जोड़ा जा सकता है। अगर बचपन से ही उनमें किताबें पढ़ने की आदत हो तो वह ताउम्र साथ रहती है।
साथ ही, जब वे अपनी पसंद की कोई किताब लाइब्रेरी में ढूंढते हैं और समय बिताते हैं तो वे मेहनत करना भी सीखते हैं। उन्हें समझ आता है कि सभी चीजें उन्हें सिर्फ एक क्लिक पर नहीं मिल सकती हैं। सुब्बा आगे बताती हैं,
“बच्चों को बहुत ही ध्यान से संभाला जाना चाहिए। मैंने बच्चों के लिए लाइब्रेरी में कोई नियम-कानून नहीं बनाये जैसे कि बाकी जगह होते हैं। शुरू में, बच्चे बहुत बार सभी किताबें फैला देते थे और शोर करते थे। पर उन्हें डांटने की जगह धीरे-धीरे सही और गलत का अहसास करवाया गया। जैसे कि प्यार से बता देना कि शोर कम करो वहां दीदी पढ़ रही हैं। आज यही बच्चे लाइब्रेरी का रजिस्टर खुद सम्भालने लगे हैं। क्योंकि उनके लिए अब यह उनकी जगह है।”
सृजना के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों का खासकर कि इन बच्चों का यहाँ आना किसी बड़े इनाम से कम नहीं। उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हर एक बच्चे को अच्छी किताबें बिना किसी परेशानी के पढ़ने के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। उनकी लाइब्रेरी उनके समुदाय के लिए बस एक छोटी-सी पहल है।
सृजना के परिवार ने भी उनका पूरा सहयोग किया है। वे बताती हैं कि उनके पति और पिता, दोनों ही उनका हर कदम पर साथ देते हैं। इस लाइब्रेरी को सम्भालने में सुब्बा के पिता भी उनकी मदद करते हैं।
द बेटर इंडिया के माध्यम से सृजना बस यही सन्देश देती हैं,
“मेरा मानना है कि हर एक बच्चे को अच्छी किताबें पढ़ने का हक है। फिर चाहे वह बच्चा स्कूल जाता हो या नहीं, क्योंकि ज्ञान सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं है। इसीलिए मेरी लाइब्रेरी हर किसी के लिए है। मैं बस यही कहना चाहूँगी कि माता-पिता अपने बच्चों को जो सबसे अच्छा तोहफ़ा दे सकते हैं वह है उनका वक़्त। बेशक, आज जब हर कोई घर चलाने के लिए कमाने में इतना व्यस्त है ऐसे में उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए वक़्त निकालें। उन्हें पार्क ले जाएँ, उनके साथ खेलें और उनकों कहानियाँ सुनाएँ ताकि बच्चों का मन इस टेक्नोलॉजी की दुनिया में भी पारम्परिक रिश्तों से जुड़ा रहे।”
सृजना सुब्बा को अपनी इस पहल के लिए हम सबके साथ की ज़रूरत है। यदि आप भी किताब प्रेमी हैं और आपको लगता है कि हर किसी को किताबें पढ़ने का हक है और आप किताब-दान में विश्वास रखते हैं तो आप इस पते पर किताबें पहुँचा सकते हैं,
Address: Srijana Subba, Nagri Farm T.E., P.O. Nagri Spur, Dist. Darjeeling, West Bengal
द बेटर इंडिया, अपनी कैंपेन #युवागीरी के माध्यम से इस लाइब्रेरी में पढ़ने आने वाले सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवारने की कोशिश कर रहा है। आप भी इन बच्चों के लिए कुछ अच्छी किताबें भेजकर अपने हिस्से की #युवागीरी दिखा सकते हैं!
(संपादन – मानबी कटोच)