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मध्य प्रदेश: तकनीक ने 1 लाख शिक्षकों को किया सशक्त, छात्रों के लिए अंग्रेजी सीखना हुआ संभव

Tech Led Initiative

(यह लेख मैरिको के साथ सहभागिता में प्रकाशित किया गया है।) 

भारत के कई हिस्सों में, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सामान्यतः कई स्कूली बच्चों को अंग्रेजी की किताबों को जोर से पढ़ने या अंग्रेजी में बात करने में डर महसूस होता है। इससे उनमें एक बेचैनी का भाव जागता है और वे अंग्रेजी के प्रति हीन भावना रखने लगते हैं।

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के रहने वाले एक शिक्षक, जगदीश चौरसिया ने अपनी क्लास में कई बार देखा कि छात्र, भाषा के कई नियमों के दबाव में, कई छोटे शब्दों का उच्चारण करने में भी संकोच करते हैं।

इस कड़ी में, पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा के 20 बच्चों को पढ़ाने वाले चौरसिया कहते हैं, “बच्चे अक्सर ’Tion’, या ‘sion’ या ‘oo’ के साथ खत्म होने वाले शब्दों को लेकर चुप्पी साध लेते हैं। एक शिक्षक के तौर पर, हमने इस समस्या से निपटने के लिए अपनी पूरी कोशिश की। लेकिन, मूल रूप से एक अंग्रेजी भाषी नहीं होने के कारण, हमारी अपनी सीमाएँ भी थीं। हमने महसूस किया कि भाषा में लागू व्याकरण के नियम तो समान हैं, जो जरूरी है, वह है – इन्स्ट्रक्शन की प्रक्रिया में बदलाव।”

उनके द्वारा उठाया यह मुद्दा भारत में अंग्रेजी की शिक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि आज के दौर में जब अंग्रेजी की अनिवार्यता इतनी बढ़ती जा रही है, तो इसका समाधान क्या है?

तो, भोपाल में एक माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक के रूप में काम कर रहीं विश्रुता सिंह के पास इसका जवाब है, जो कि छठी से आठवीं क्लास के 83 बच्चों को पढ़ाती हैं।

“आम तौर पर, यह डर इसलिए होता है कि छात्र अंग्रेजी के शब्दों और वाक्यांशों को समझ नहीं पाते हैं। उन्हें भाषा के नियम बताए जाते हैं, लेकिन यह नहीं सिखाया जाता है कि इसके पीछे क्या कारण है। लेकिन, उन्हें अपनी मूल भाषा के साथ अंग्रेजी सिखाने के वैकल्पिक तरीके हैं। यदि शिक्षक एक बार इसकी पहल कर, बच्चों के साथ एक संवाद स्थापित करते हैं, तो अंग्रेजी कोई विदेशी अवधारणा नहीं है,” विश्रुता कहती हैं। 

बदलाव के लिए समाधान

विज्ञान और अंग्रेजी में 20 वर्षों का शैक्षिक अनुभव रखने वाले विश्रुता का मानना है कि इस बदलाव की शुरुआत, अंग्रेजी पढ़ाने के तरीकों में सुधार के साथ होती है।

वह कहती हैं, “शिक्षक वह कड़ी होते हैं, जो छात्रों को सबसे अच्छे तरीके से जानकारी को समझने में मदद करते हैं। लेकिन, जानकारियाँ हमेशा बदलती रहती हैं। इसलिए, हम शिक्षकों का खुद को अपडेट रखना जरूरी है।”

वह आगे कहती हैं, “पुराने समय में, हमें अंग्रेजी अलग तरीके से सिखाया जाता था। हमें रटने की आदत लगाई जाती थी, जिससे भाषा के व्यावहारिक उपयोग का ज्ञान नहीं होता था। ऐसे में, आज उन तरीकों को दोहराया नहीं जा सकता है। क्योंकि, आज स्पोकन इंग्लिश का महत्व काफी बढ़ गया है। शिक्षा, खासकर अंग्रेजी भाषा को, अधिक व्यावहारिक और उपयोगी होने की जरुरत है।”

इन्हीं चुनौतियों ने, मैरिको लिमिटेड के निहार शांति पाठशाला फनवाला और मध्य प्रदेश सरकार को एक मजबूत शिक्षक सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया है।

विश्रुता और उनके जैसे कई और शिक्षकों को इस कार्यक्रम से काफी लाभ हुआ है, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी को पहले से कहीं अधिक आसान बनाना है।

निहार शांति पाठशाला फनवाला अपने एनजीओ पार्टनर, लीपफॉरवर्ड (LFW) के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी की मदद से शिक्षकों को अंग्रेजी भाषा के शिक्षण कौशल में आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। 

इस प्रयास के तहत, न केवल तकनीकों को सीखने और मूल बिंदुओं को स्पष्ट रूप से समझने के प्रति जोर दिया जा रहा है, बल्कि उन्हें आकर्षक और मजेदार तरीके से चीजों को समझाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

उदाहरण के तौर पर, उन्हें हिन्दी के सामान्य मुहावरों की तुलना और अंग्रेजी में अनुवाद कर समझाया जाता है। जो छात्रों के लिए रटने के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावी और उपयोगी है। 

इस कड़ी में, शब्दों को सही तरीके से उच्चारित करने की दिशा में भी प्रयास किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, उन्हें यह तकनीक बताई जाती है कि कुछ अपवादों को छोड़कर क्यों ‘tion’ और ‘sion’ के साथ खत्म हो रहे शब्दों को ‘shun’ उच्चारित किया जाता है।

निहार शांति पाठशाला फनवाला द्वारा इस प्रयास में व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक शिक्षकों को इससे जोड़ा जा सके। इस प्रयास का उद्देश्य अभिनव शिक्षण विधियों के जरिये सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना है।

“एक ठोस पाठ्यक्रम तैयार करना और सर्वोत्तम शिक्षण विधियों को अपनाना सिर्फ पहला कदम है। इसके बाद, इससे अधिक से अधिक शिक्षकों को जोड़, इसे बड़े पैमाने पर लागू करना जरूरी है। और, मैरिको के निहार शांति पाठशाला फनवाला की मदद से हम मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ऐसा करने में कामयाब हुए हैं,” आयुष जैन कहते हैं, जो LFW में हिंदी स्टेट के प्रोजेक्ट लीडर हैं।

इस मॉडल के तहत, निहार शांति पाठशाला फनवाला ने सिर्फ दो महीने में एक लाख से अधिक शिक्षकों को सशक्त बनाया है, जिसका लाभ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों छात्रों को होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में अंग्रेजी को बढ़ावा

उदयराज प्रभु, एक्‍जिक्‍यूटिव वाइस प्रेसिडेंट – बिजनेस प्रोसेस ट्रांसफॉर्मेशन एंड आईटी, मैरिको लिमिटेड कहते हैं, “भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में पहुँच के लिए हमारे पास एक टीम थी, लेकिन समय के साथ, कहीं आना-जाना कठिन हो गया। इसके बाद हमने डिजिटल माध्यमों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, ताकि तकनीक के माध्यम से एक सेतु का निर्माण किया जा सके।” 

वह आगे कहते हैं, “हमने कई पहलुओं पर काम शुरू किया, जैसे कि सीखने के नतीजों में सुधार, प्रभावशाली समाधानों को पहचानना, जानकारियों को आसान बनाने के लिए मौजूदा तकनीकों का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल, आदि। हमारा लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों को बस एक क्लिक के साथ अपने कार्यक्रम से जोड़ना था।”

इसके बाद, निहार शांति पाठशाला फनवाला ने मध्य प्रदेश सरकार की मदद से शिक्षक सशक्तीकरण कार्यक्रम की नींव रखी।

प्रभु कहते हैं, “आज भारत एक वैश्विक केंद्र बन रहा है। ऐसे में, नौकरी की माँग को बनाए रखने के लिए अंग्रेजी जानना और बोलना जरूरी है। कई अध्ययनों का दावा है कि अंग्रेजी शिक्षा के कारण जीवन में बेहतर मौके मिलते हैं और वार्षिक आय में करीब 30% की वृद्धि होती है।”

“आज के दौर में, उच्च शिक्षा और रोजगार के लिहाज से अंग्रेजी की शिक्षा महत्वपूर्ण है। लेकिन, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका व्यापक अभाव है। हमारी कोशिश इस अंतर को प्रभावी तरीके से मिटाने की है,” वह आगे कहते हैं।

निहार शांति पाठशाला फनवाला अपनी इस पहल के तहत, बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आईवीआर-बेस्ड स्पोकन इंग्लिश प्रोग्राम, ऐप-बेस्ड वर्चुअल स्कूल और व्हाट्सएप आधारित शिक्षक सशक्तिकरण कार्यक्रम जैसे कई कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं।

प्रभु अंत में कहते हैं, “तकनीक और अद्वितीय शिक्षण शैली की मदद से हम शिक्षकों को एक जरिया देते हैं। लेकिन, यह वास्तव में, उनपर निर्भर करता है कि वे इसका कितना लाभ उठाते हैं। हमें ऐसे कई उदाहरणों को देखकर, सुखद आश्चर्य होता है, जहाँ शिक्षकों ने छात्रों को सहजता से समझाने के लिए आउट ऑफ द बॉक्स जाकर, कई रचनात्मक प्रयोग किए हैं। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से, इस महामारी में भी बच्चों को निरंतर शिक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।”

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संपादन – मानबी कटोच

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