विश्वविद्यालयों में शिक्षा के साथ-साथ छात्र अगर सामाजिक सक्रिय भागीदारी निभाने लगें तो उजले भविष्य की उम्मीद उभरने लगती है. लगता है कि आने वाली पीढ़ी दुनियां को और बेहतर बनाने की जिम्मेदारी निभाने लगी है. ये कहानी है ऐसे छात्रों की जिन्होंने शिक्षा के साथ न सिर्फ़ अपनी सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित की, बल्कि गांवों की ओर लौट कर एक नई मिशाल पेश की है.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों ने होप नाम की एक संस्था बनाई है, जिसमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के साथ काशी विद्यापीठ, दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और प्रोफेसर जुडकर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. ये छात्र गांवों में जाकर वहाँ की समस्याओं को अपने बेहतर आइडिया से समाधान में बदल रहे हैं. इनमें प्रमुख है ग्रीन ग्रुप का गठन. जिसमें महिलाएं एक समूह में गाँव में निकलती हैं और जुए और शराब जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान छेड़ती हैं.
‘होप’ समूह की शुरुआत वर्ष २०१५ में बनारस में घटी एक घटना से हुई जब बी एच यू के कुछ छात्र गंगा के घाट पर जन्मदिन की पार्टी मना रहे थे. संस्था के अध्यक्ष रवि मिश्रा याद करते हुए बताते हैं,
“जनवरी में हम लोग जन्मदिन मना के लौट रहे थे तभी हमने एक कूड़े के ढेर में कुछ बच्चों और महिलाओं को खाना ढूंढते देखा, उसी कूड़े में जानवर भी अपना खाना ढूंढ रहे थे. ये देखकर हमें धक्का लगा और तब हमने सोचा कि हमें कुछ करना है समाज में ऐसे लोगों के लिए जिनके पास उतनी चीजें नहीं हैं जितनी हमारे पास हैं.”
उस घटना से एक विचार जन्मा और छात्रों ने एक समूह बनाकर सोचना शुरू किया कि समाज के किस वर्ग को हमारी ज्यादा जरूरत है. जहाँ हम अपने सीमित संसाधनों से सकारात्मक बदलाव कर सकते हैं. इसी सोच में होप संस्था की स्थापना हो गयी और काम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र चुना गया. संस्था के उपाध्यक्ष दिव्यांशु उपाध्याय गाँवों की ओर लौटने के पीछे समूह के विजन को बताते हुए कहते हैं,
“शहरों में कई संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन गाँवों की ओर कोई संस्था रुख नहीं करती. देश की सत्तर फीसदी जनता जहाँ रहती है. जहाँ असल में हमारी जरूरत है, वहाँ काम करने के लिए हमने अपना अभियान शुरू किया. हम गांवों को बेहतर बनाकर समाज में अपना योगदान चाहते हैं.”
इस अभियान में देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों से छात्र जुड़े हैं जो अपने जेबखर्च से पैसे जोड़कर गांवों में जरूरी संसाधन जोड़ते हैं.
अपने अभियान की शुरुआत करते हुए इन छात्रों ने गांवों में जाकर लोगों से बात की और वहाँ की समस्याएं सुलझाना शुरू कर दिया. गाँवों में रौशनी पहुँचाने से लेकर प्रधान की सहायता से तमाम संसाधन मुहैया कराने शुरू कर दिए. लेकिन इस समूह का सर्वश्रेष्ठ प्लान है महिलाओं को शैक्षिक और सुरक्षा के तरीकों से लैस करना.
कैम्प लगाकर महिलाओं को अक्षर ज्ञान कराने के साथ हस्ताक्षर करवाना सिखाते हैं, इनमें से २५ महिलाएं चुनकर ग्रीन ग्रुप का गठन होता है.
बनारस के खुशियारी गाँव में इस समूह ने महिलाओं को ही इस तरह सशक्त बनाया कि उन्होंने बरसों से जुए और शराब के आगोश में डूबे गाँव को बचा लिया. २५ महिलाओं के इस ग्रीन ग्रुप को पुलिस विभाग ने पुलिस मित्र बना दिया है. इस गाँव में बिजली की सुविधा लाने से लेकर पानी और जुए-शराब जैसे खतरनाक अभिशापों से बचाया है. महिलाओं को तैयार करने के बारे में बताते हुए दिव्यांशु कहते हैं,
“हमारा पहला मकसद महिलाओं को घर से निकालना था, उन्हें अक्षर ज्ञान और हस्ताक्षर करवाने के साथ-साथ उनके अधिकारों के बारे में सचेत किया. गाँव में कैम्प लगाकर महिलाओं को एक जगह इकठ्ठा किया और उन्हें बेसिक पढाई-लिखाई के साथ आत्मरक्षा के लिए कराटे जैसे क्लासेस दिए जाते हैं. महीने भर की ट्रेनिंग के बाद एक टेस्ट के माध्यम से उनमें से २५ का चुनाव किया और उन्हें हरी साडियाँ देकर ग्रीन ग्रुप बना दिया गया, जिसे बाद में स्थानीय पुलिस अधिकारीयों ने पुलिस मित्र की जिमेदारी सौंप दी.”
खुशियारी गाँव जुए और शराब से ग्रस्त गाँव था, जुए और शराब के आदीपन से गाँव के लोग न तो बचत कर पाते थे न ही स्वास्थ्य बेहतर रहता था. लेकिन सबसे बड़ा खतरा था आने वाली पीढ़ी को इसमें डूबने से कैसे बचाया जाए. होप समूह के छात्रों ने मिलकर इन महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम शुरू किया ताकि ये महिलाएं खुद इसके खिलाफ खड़ी हों तब ही इस समस्या का खात्मा हो पायेगा. इस योजना के तहत महिलाओं को आत्मविश्वास और आत्मरक्षा के गुणों से लैस किया गया और अभियान छेड़ दिया गया. ग्रीन ग्रुप की महिलाएं गाँव में औचक निरीक्षण पर समूह में निकलती हैं और जुए या शराब में संलिप्त लोगों को ठिकाने लगा देती हैं. इनके खौफ से खुशियारी गाँव आज जुआ और नशा मुक्त गाँव बन गया है.
हाल ही में जिला अधिकारी ने ग्रीन ग्रुप की महिलाओं और होप टीम के सदस्यों को मतदान के लिए चलाए गए उनके सफल अभियान के लिए उन्हें सम्मानित किया. प्रशासन ने कम मतदान प्रतिशत वाले क्षेत्रों में इन महिलाओं की मदद मांगी थी जहाँ ग्रीन ग्रुप की महिलाओं ने ‘सोहर’ लोकगीतों के जरिये गाँव गाँव जाकर लोगों को मतदान करने को प्रेरित किया. चुनाव के परिणामों में इनके प्रयास सार्थक नज़र आए और उन क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत बढ़ गया.
ग्रीन ग्रुप की महिलाओं ने चुनावों के दौरान प्रसाशन की पहल पर लोकगीतों के जरिये लोगों को मतदान करने को भी प्रेरित किया जिससे उस क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बढ़ा.
ग्रीन ग्रुप को सम्मानित करते हुए जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने कहा,
“ग्रीन ग्रुप का योगदान अनोखा रहा, ग्रीन ग्रुप जहां-जहां गई वहां पर मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखी गई। गांव की महिलाओं का शहरी क्षेत्र में आकर मतदान हेतु जागरूक करना एक नई परंपरा की शुरुआत है.”
होप समूह देशभर में गाँव दिवस मानाने को लेकर भी अभियान चला रहा है, ताकि गांवों की ओर सबका ध्यान आकर्षित हो और अपनी मिटटी को संवारा जाए.
होप समूह से विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर भी जुड़े हैं, जो समय समय पर गावों में सभाएं आयोजित करते हैं और जरूरत पड़ने पर छात्रों की मदद करते हैं. चूँकि समूह के कामों का खर्च छात्रों के जेब खर्च से ही चलता है इसलिए इनका अभियान अभी कुछ गाँवों तक सीमित है. अगर आप इन्हें मदद करना चाहते हैं तो इनसे यहाँ जुड सकते हैं और अपना योगदान दे सकते हैं.
ऐसे अभियानों को द बेटर इंडिया प्रोत्साहित करता है और हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले वक़्त में सामाजिक सहयोग से होप समूह देश के ज्यादा से ज्यादा गांवों में पहुंचे और वहाँ के हालात बेहतर कर एक संपन्न देश के निर्माण में योगदान देगा.