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MBA कर बनीं सरकारी स्कूल टीचर, स्कूल में नहीं था पंखा तो बच्चों के लिए बना दिया मटका कूलर

Sushmita Sanyal

छोटे से शहर में रहनेवाले युवा, अक्सर बड़े शहर में काम करने और वहां बसने के ख्वाब देखते हैं और एक बार बाहर जाने के बाद, अपने शहर वापस नहीं आते। वहीं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो पूरी जिंदगी बड़े शहर न जा पाने का अफसोफ करते हैं। लेकिन अगर आप में हुनर और काबिलियत है, तो आप कहीं भी रहकर अच्छा काम कर सकते हैं।  

ऐसी ही एक प्रतिभा की धनी शिक्षिका हैं, गया (बिहार) की सुष्मिता सान्याल। आठ साल पहले वह दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रही थीं। लेकिन आज वह अपने ही शहर में अपने परिवारवालों के साथ रह रही हैं। वह, गया के चंदौती हाई स्कूल में टीचर हैं। अपनी  नौकरी के दौरान मिले अनुभवों का इस्तेमाल, वह बच्चों को पढ़ाने में करती हैं। वह मानती हैं, “अगर हम किसी भी काम को सच्चे मन से करते हैं, तो हमें उसमें सफलता जरूर मिलती हैं।”

इसी सोच के कारण आज वह,  मात्र आठ साल के टीचिंग करियर में ही राज्य की श्रेष्ठ शिक्षिका का अवॉर्ड जीत चुकी हैं। इतना ही नहीं, उनके एक आसान आविष्कार ‘मटका कूलर’ को भी राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। 

सुष्मिता सान्याल

दिल्ली की नौकरी छोड़ कैसे बनीं सरकारी टीचर 

कान्वेंट स्कूल से पढ़ने और MBA करने के बाद, सुष्मिता हमेशा से कॉर्पोरेट जॉब ही करना चाहती थीं। लेकिन जब वह दिल्ली में नौकरी कर रही थीं, तब उनका परिवार चाहता था कि वह वापस आ जाएं। उसी समय राज्य सरकार की ओर से स्कूल टीचर की भर्ती निकली, सुष्मिता ने अप्लाई किया और उनकी नौकरी लग भी गई। चूँकि उस समय उनका बेटा छोटा था, इसलिए उन्होंने परिवार के साथ रहना पसंद किया और वापस आ गईं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “उस समय मैंने सोचा था कि कुछ साल नौकरी करने के बाद मैं यहां से चली जाऊंगी। लेकिन आज मुझे बच्चों को पढ़ाने में बहुत मज़ा आ रहा है और अब यह मेरे लिए एक ड्रीम जॉब बन चुकी है।”

सुष्मिता हाई स्कूल के बड़े बच्चों को पढ़ाती हैं, इसलिए उनके हर नए प्रयोग में ये बच्चे बढ़-चढ़कर उनकी मदद करते हैं। 

मटका कूलर और सेफ़्टी पेन जैसे कई आविष्कार किए 

विज्ञान में रुचि रखने वाली सुष्मिता, अक्सर बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा, उन्हें व्यवहारिक प्रयोग सिखाने की कोशिश करती हैं। चाहे नुक्क्ड़ नाटक करना हो या डांस और वाद-विवाद में भाग लेना। वह अपने स्कूल के बच्चों को हर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में लेकर जाती हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनके स्कूल की लड़कियां डांस में भाग ही नहीं लेती थीं। लेकिन आज गया जिला से चयनित होने के बाद, उनके स्कूल के बच्चे, पिछले पांच सालों से राज्य स्तर पर प्रथम पुरस्कार लेकर आ रहे हैं।

सुष्मिता कहती हैं, “बच्चों को अलग-अलग प्रतियोगिता के लिए तैयार कराने और किसी भी दूसरी एक्टिविटी के लिए, स्कूल स्टाफ मेरा हमेशा साथ देता है।” 

बच्चों के साथ मिलकर उन्होंने एक सेफ्टी पेन डिज़ाइन किया था, जो लड़कियों को छेड़खानी के दौरान आत्मरक्षा के लिए मदद करता है। वहीं, उनका डिज़ाइन किया हुआ मटका कूलर, राष्ट्रीय स्तर पर कई जगहों पर पसंद किया गया। 

मटका कूलर के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “जिस स्कूल में मेरी पहली पोस्टिंग हुई थी, वहां बच्चों के लिए पंखे भी नहीं लगे थे। वहीं से मुझे उनके लिए कूलर बनाने का ख्याल आया।”

उन्होंने छोटे घड़े में पानी भरकर, घर पर पड़े पेंट के ड़िब्बे में रखा और ड़िब्बे के ढक्कन पर एक पंखा लगा दिया। एक छोटे मोटर की मदद से यह पंखा चलता है और घड़े के ठंडे पानी के कारण आपको ठंडी हवा मिलती रहती है। 

उन्होंने अपने इस आविष्कार को नवंबर 2017 में, भोपाल में आयोजित जवाहरलाल नेहरू नेशनल साइंस एंड मैथमैटिक्स सेमिनार में, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया था। यहां सुष्मिता के मटका कूलर को सबसे अच्छे तीन अविष्कारों में भी जगह मिली थी। 

बाद में, उन्होंने बच्चों के साथ मिलकर चार मटका कूलर बनाए और इसे स्थानीय दुकानदारों, महिला किसानों को इस्तेमाल करने को भी दिया।  

बच्चों को सिखाती हैं वेस्ट से बेस्ट बनाना 

कोरोनाकाल के पहले वह बच्चों को गीले और सूखे कचरे की सही व्यवस्था के बारे में बताती थीं। वह गीले कचरे से स्कूल में वर्मी कम्पोस्ट बनाना भी सिखाती थीं। उन्होंने बताया, “बच्चे वर्मी कम्पोस्ट बनाकर आस-पास के लोगों को पौधे और कम्पोस्ट दिया करते थे। बच्चे घर पर भी इस तरह की एक्टिविटी करने लगे।”

इसके साथ ही उन्होंने,  फलों की पैकिंग से निकले फोम नेट से बच्चों को फूल बनाना सिखाया। जिसके बाद वह उन फूलों को वापस फलों की दुकान पर ही देकर आते थे। स्कूल की बच्चियों को सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करना सिखाना हो या बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाना, वह अपनी तरफ से हमेशा एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करती रहती हैं। 

उनके इन सारे प्रयासों में उनके स्कूल के सेवा निवृत प्रिंसिपल ब्रज भूषण चौहान और सीनियर टीचर शैलेन्द्र कुमार का हमेशा सहयोग रहता है। पिछले साल ही सुष्मिता को बिहार के राज्यपाल के हाथों राज्य के श्रेष्ठ शिक्षक का अवॉर्ड मिल चुका है। 

इन बच्चों को नए-नए प्रयोग करते देखना, सुष्मिता अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताती हैं। अंत में वह कहती हैं, “आज मेरे लिए किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करने से कहीं ज्यादा बेहतर इन बच्चों का भविष्य बनाना है।”

संपादन- अर्चना दुबे

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