“मेरे गिरधर है यही अरमां मेरा
अपने सर ले लूँ तुम्हारी हर बला…– हाशिम रज़ा जलालपुरी
आपको शायद इस शेर के शायर का नाम पढ़कर हैरानी हुई हो! पर इसे लिखने वाले हाशिम से जब हमने बात की, तो लगा जैसे भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की विरासत को सँभालने वाले आज भी इस देश में हैं!
फैज़ाबाद के पास जलालपुर से ताल्लुक रखने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने हाल ही में मीरा बाई द्वारा लिखे गए पदों का उर्दू शायरी में अनुवाद किया है। इस अनुवाद को पूरा करने में उन्हें पुरे तीन साल गए।
हाशिम का जन्म 27 अगस्त 1987 को शायर ज़ुल्फ़िकार जलालपुरी के घर हुआ था। शायरी की विरासत उन्हें बेशक अपने पिता से मिली पर पद्म श्री अनवर जलालपुरी और यश भारती नैयर जलालपुरी भी उनकी प्रेरणा रहें।
उन्होंने रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एमटेक किया। उन्हें साउथ कोरिया की चोन्नम नेशनल यूनिवर्सिटी ग्वांगजू में नैनो फोटोनिक्स इंजीनियरिंग में रिसर्च के लिए ग्लोबल प्लस स्कालरशिप भी मिली है। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंसों में वे रिसर्च पेपर प्रेजेंट कर चुके हैं। इसके अलावा हाशिम ने प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। पर टेक्निकल क्षेत्र में इतनी तरक्की करने के बावजूद हाशिम दिल से एक शायर ही रहें और इसलिए उन्होंने पिछले साल, 2017 में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से उर्दू साहित्य में एमए किया। धीरे धीरे हाशिम उर्दू मंच का भी नामी चेहरा बनने लगे।
हाल ही में उन्होंने एक पाकिस्तानी एल्बम के लिए अपने बोल दिए। उनकी शायरी और ग़ज़लों के आज लाखों लोग दीवाने हैं।
जश्न-ए-रेख़्ता में भी हाशिम रज़ा जलालपुरी जाना-पहचाना नाम हैं। उनके द्वारा लिखी गयी शायरी और ग़ज़लों को आप रेख़्ता की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। पर जिस काम के लिए आज हाशिम ने उर्दू शायरी में अपना अलग मकाम बनाया है, वो है मीरा बाई के लिखे भजनों को शायरी में पिरोना!
पिछले तीन वर्षों से मीरा बाई पर काम कर रहे हाशिम ने उनके 209 पदों को 1494 अशआर के रूप में अनुवाद किया है।
मीरा बाई प्राचीन भारत की प्रमुख कवियत्रियों में से एक हैं। हिन्दू धर्म में उन्हें कान्हा की जोगन भी कहा जाता है, जिन्होंने कृष्ण भक्ति में स्वयं को समर्पित कर दिया था।
मीराबाई से प्रभावित हाशिम कहते हैं,
“मीरा बाई हिंदुस्तान की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी शायरा हैं। साहित्य की दुनिया में मीरा बाई उस मुक़ाम पर हैं, जहाँ पर कोई और शायरा नहीं पहुँच सकीं हैं।”
हाशिम ने बताया कि जब वे छठी क्लास में थे तो एक बार उर्दू के पेपर में उन्हें किसी भी मशहूर शायर पर निबंध लिखना था। तब उन्होंने मीरा बाई पर निबंध लिखा। जिसके लिए उन्हें उनके गुरु ने बहुत सराहा और कहा कि एक दिन तुम बहुत बड़े शायर बनोगे।
जलालपुर हमेशा से ही धर्म निरपेक्ष क्षेत्र रहा है। हाशिम बताते हैं, “हमारे जलालूपर में अज़ान और भजन की आवाज़ एक साथ सुनाई देती है। यहां सभी त्यौहार ईद, मुहर्रम, होली, दीपावली सभी संप्रदाय मिल-जुल कर मनाते हैं। हिंदू-मुसलमान, शिया-सुन्नी एक दूसरे के सुख-दुःख में बिना किसी भेदभाव के खुले दिल से शरीक होते हैं।”
इसके साथ ही पद्म श्री अनवर जलालपुरी ने श्रीमद् भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद करके जो सिलसिला शुरू किया था, हाशिम रज़ा जलालपुरी उसे आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
मीरा बाई की भाषा से प्रभावित हाशिम कहते हैं,
“मीरा बाई की भाषा में हिन्दुस्तानियत है। वे महलों में पली-बढ़ी लेकिन फिर भी वे जिस भी जगह जाती वहां की स्थानीय भाषा में उन्होंने लिखा है। आपको मीरा बाई के पदों में लगभग 14 अलग-अलग ज़बानों के शब्द मिलेंगें। जिनमें ब्रज, अवधी, भोजपुरी, फ़ारसी, उर्दू, अरबी, गुजरती, आदि शामिल हैं। उन्होंने गंगा-जमुनी तहज़ीब को सहेजा है।”
हिन्दू व मुस्लिम दोनों तहज़ीबों के मिश्रण को गंगा-जमुनी तहज़ीब कहा जाता है। इस तहज़ीब में किसी भी धर्म, जात, रंग-भेद के आधार पर भेदभाव की जगह नहीं है। आप मीरा बाई और कबीर दास, दोनों के काम में इस तहज़ीब की छाप देख सकते हैं।
हाशिम ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे हैरत होती है कि हमारे साहित्य में मीरा बाई पर अधिक काम नहीं हुआ है। मीरा बाई, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम देने में लुटा दी, उनकी भाषा, उनका काम बहुत अलग है और शोध के लिए बहुत ही उम्दा विषय हो सकता है। लेकिन फिर भी मीरा बाई का काम अछूता रहा। इसीलिए मैं उन पर काम करना चाहता था।”
अपने काम के दौरान आई परेशानियों के बारे में हाशिम ने बताया कि सबसे ज्यादा मुश्किल था मीरा बाई के पदों को इकट्ठा करना। बहुत अलग-अलग ग्रंथों और किताबो से उन्होंने पदों को ढूढ़कर निकाला। अपने जीवन काल में मीरा बाई ने कुल 209 पद लिखे थे।
“मीरा बाई ने अपने पदों में बहुत अलग-अलग भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल किया है। वे जहां भी जाती, वहां के रंग में रंग जाती थी। उनका आम लोगों के लिए यह प्रेम उनकी भाषा में दिखता है। उनके पदों को आम बोलचाल की उर्दू भाषा में अनुवाद करना इसलिए थोड़ा मुश्किल रहा,” हाशिम ने बताया।
हालाँकि, उनकी किताब पूरी हो चुकी है, जिसका नाम ‘मीरा बाई उर्दू शायरी में (नग़मा-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा)’ है। उनके इस काम के लिए उन्हें लोगों से बहुत सरहाना भी मिली है। इसके साथ ही रिवायत फाउंडेशन की तरफ से मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के उत्सव ‘यादे इक़बाल’ के दौरान उन्हें ‘गंगा जमुनी तहज़ीब सम्मान’ से नवाज़ा गया।
उनके द्वारा उर्दू में अनुवाद किया गया मीरा बाई का एक पद,
“मेरे गिरधर है यही अरमां मेरा
अपने सर ले लूँ तुम्हारी हर बलासुन लो अब मेरे दुखी दिल की पुकार
आओ अब मेरी गली में, मैं निसारयह नज़र बेताब है दीदार को
दो सुकूं मेरे दिले बीमार कोकर रही हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार
कब मिलेगा मुझको आखिर अपना प्यारअब भुला कर मेरी सारी ग़लतियां
शक्ल दिखला दो ऐ मेरे मेहरबांतुम बहुत ही रहम दिल हो सांवरे
अब छलक उट्ठेगी नैना बाँवरेकर दो मुझ पे मेहर-ओ-उल्फत की निगाह
अपने क़दमों में दो मीरा को पनाहऐ हरी अपना के मुझको प्यार से
पार करवा दो मुझे संसार सेआपके क़दमों की ही दासी हूँ मैं
आप के दर्शन की बस प्यासी हूँ मैं!
हाशिम बताते हैं कि उनकी किताब को प्रकाशित करने के लिए उन्हें फंड की जरूरत है। हालाँकि, उन्होंने बहुत लोगों को इसके संदर्भ में लिखा है; लेकिन कहीं से भी उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा है। द बेटर इंडिया के माध्यम से सभी साहित्य प्रेमियों से उनकी यही गुज़ारिश है कि कोई सज्जन व्यक्ति या फिर संगठन किताब के प्रकाशन के लिए उन्हें स्पॉन्सरशिप प्रदान करे।
स्पॉन्सरशिप प्रदान करने वाले व्यक्ति को औपचारिक रूप से किताब में श्रेय दिया जायेगा। यदि आप हाशिम रज़ा जलालपुरी के काम में उनकी मदद करना चाहते हैं तो उनसे 7906138371 पर सम्पर्क कर सकते हैं। आप उन्हें hashimrazajalalpuri@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं या फिर उनके फेसबुक पेज पर भी उन्हें लिख सकते हैं।
( संपादन – मानबी कटोच)