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भारतीय रेलवे का जुगाड़, पुरानी साइकिल से बना दी ‘रेल साइकिल’, कर्मचारियों का काम हुआ आसान

भारतीय रेलवे ने हाल ही में, किसान रेल की शुरुआत की है। इसके अलावा, कई रेल आज सौर उर्जा से चल रही हैं। इतने बड़े-बड़े बदलावों के बीच हमें उन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए, जिनकी वजह से हमारी रेलवे की रफ़्तार है। रेलवे में सबसे ज्यादा ज़रूरी है – ट्रैक्स, जिन पर सरपट दौड़ती गाड़ियां हर दिन मुसाफिरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं। इन रेलवे ट्रैक्स की दुरुस्ती सबसे ज्यादा ज़रूरी है।

अगर रेलवे ट्रैक्स पर जरा सी भी कोई परेशानी हो जाए तो बहुत बड़ी दुर्घटना भी घट सकती है। इसलिए रेलवे का स्टाफ नियमित तौर पर इनकी मरम्मत देख-रेख करता रहता है। लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं रेलवे ट्रैक्स जंगलों और बीहड़ों के बीच से होकर भी गुजरती है।

ऐसी जगहों से होकर, जहाँ आस-पास कोई आबादी नहीं होती और न ही कोई सड़क आदि। ऐसे में, अक्सर रेलवे कर्मचारियों का निश्चित जगह पर पहुंचना बेहद मुश्किल हो जाता है। बहुत बार उन्हें पैदल जाना पड़ता है या फिर अगर ट्रॉली से जाएं तो एक के काम के लिए दो-तीन लोगों को जाना पड़ता है।

Rail Cycle

लेकिन हाल ही में, ओडिशा में पूर्वी तटीय रेलवे ने इसका एक अच्छा हल निकाला है। पूर्वी तटीय रेलवे के खुर्दा रोड डिवीज़न ने एक खास रेल साइकिल बनाई है, जिसे रेलवे ट्रैक्स पर चलाया जा सकता है। इस रेल साइकिल की मदद से एक व्यक्ति भी बहुत ही आसानी से रेलवे ट्रैक्स की देख-रेख के लिए कहीं भी आ-जा सकता है।

डिवीज़न के प्रवक्ता कौशलेन्द्र किशोर ने बताया कि इस रेल साइकिल का निर्माण खास तौर पर रेलवे ट्रैक्स को ध्यान में रखकर किया गया है। इससे यात्रा करना आसान है और इमरजेंसी स्थिति में जल्दी से पहुंचा भी जा सकता है।

इस रेल साइकिल की गति 10 किमी प्रति घंटा है और अगर कोई तेज़ चलाए तो एक घंटे में लगभग 15 किमी का रास्ता भी तय कर सकता है। इस रेल साइकिल को पेट्रोलिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे सुरक्षा बनाई जा सके।

इस साइकिल का निर्माण खुर्दा रोड डिवीज़न की परमानेंट यूनिट्स के इंजीनियर्स ने किया है। यूनिट के सीनियर सेक्शन इंजीनियर, किशोर चंद्र मिश्रा बताते हैं, “हमें जब ऐसा कुछ बनाने के लिए कहा गया तो हमने पहले यूनिट में पुरानी बेकार पड़ी चीजों को इस्तेमाल में लिया। एक साइकिल काफी पुरानी थी, उसे उपयोग में लिया गया और बाकी रोड्स आदि भी सब पुरानी हैं। अगर सिर्फ साइकिल को ट्रैक पर चलाते तो बैलेंस बिगड़ने का खतरा होता इसलिए हमने इसके दूसरी तरफ रॉड जोड़कर ऐसे बनाया ताकि यह दोनों ट्रैक्स पर चले और बैलेंस बना रहे। इसके साथ ही साइकिल के अगले हिस्से में बदलाव किए गए हैं।”

वीडियो देख सकते हैं:

अगले पहिये पर रोड्स की मदद से छोटा-सा पहिया इस तरह से लगाया गया है जो ट्रैक्स पर चले। बाकी पिछला हिस्सा पहले की तरह ही है। टीम ने कई ट्रायल्स किए और फिर बदलाव के बाद फाइनल मॉडल तैयार किया। इसके कई ट्रायल्स किए गए और यह सफल रहा। खुर्दा रोड डिवीज़न में 18 परमानेंट यूनिट्स हैं, जिनमें से आठ यूनिट्स- ब्रह्मपुर, सोमपेटा, खुर्दा रोड, गोरखनाथ, कटक, भद्रक, जयपुर कोंझार रोड और ढेंकनाल यूनिट्स ने इन रेल साइकिलों को बनाया है।

किशोर आगे कहते हैं कि ट्रैक मैन के तौर पर नियुक्त कर्मचारियों को किसी भी वक़्त, रात हो या दिन, ट्रैक्स की मरम्मत के लिए जाना पड़ता है। मौसम चाहे कोई भी हो, सर्दी, गर्मी या बरसात, लेकिन कभी भी काम नहीं रुकता। जिन जगहों पर सडकें नहीं हैं वहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। खासकर की बारिश के मौसम में। ऐसे में, यह रेल साइकिल न सिर्फ इन कर्मचारियों के काम को आसान बनाएगी बल्कि काम जल्दी भी होगा। बारिश के मौसम में ट्रेन अक्सर लेट होती हैं क्योंकि ट्रैक्स को अच्छे से चेक किया जाता है।

खासकर उन जगहों पर जहाँ से ट्रेन पुल पर से गुजरती है। इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है लेकिन अब रेल साइकिल की वजह से काम आसान होगा। साइकिल का वजन लगभग 30 किलो है और एक इंसान आसानी से इसे अस्सेम्बल का सकता है और काम होने के बाद खोलकर रख भी सकता है।

“हमने तो इसे पुराने कल-पुर्जों से बनाया, लेकिन अगर कोई नयी साइकिल को भी रेल साइकिल में बदलना चाहे तो पूरी लागत लगभग चार- साढ़े चार हज़ार रुपये के करीब आएगी,” मिश्रा ने बताया।

अपने कर्मचारियों के काम को आसान करने के लिए भारतीय रेलवे के इंजीनियर्स का यह आविष्कार काफी अच्छा है। उम्मीद है कि इससे रेलवे का काम जल्दी और आसान होगा। ओडिशा के अलावा, उत्तर-प्रदेश के प्रयागराज डिवीज़न के इंजीनियर्स ने भी एक रेल साइकिल का मॉडल तैयार किया है।

Prayagraj Division Model (Source)

इस मॉडल को भी साइकिल में बदलाव करके तैयार किया गया है। लेकिन यह मॉडल ओडिशा रेलवे की साइकिल से काफी अलग है। सबसे पहले तो इस साइकिल को दो लोगों के चलाने के लिए बनाया गया है। इसमें दो साइकिल का इस्तेमाल हुआ है। दोनों साइकिल को आपस में रॉड की मदद से जोड़ा गया है और इनके बीच की दूरी उतनी है, जितनी की रेलवे ट्रैक्स के बीच होती है।

अगले पहिए को निकालकर, टेफ़लोन के बने दो छोटे पहिये लगाए गए हैं और हैंडल को थोड़ा ऊँचा किया है ताकि बैलेंस बना रहे। बाकी पिछला हिस्सा पुराना है। प्रयागराज डिवीज़न के पीआरओ केशव त्रिपाठी के मुताबिक, इस ट्रैक साइकिल को भी पुरानी चीजों का इस्तेमाल करके बनाया गया है और इसकी लागत लगभग 3 हज़ार रुपये रही। यहाँ भी इस साइकिल को रेलवे कर्मचारियों की सहूलियत के लिए बनाया गया है।

बेशक, यह पहल बहुत छोटी है लेकिन कहीं न कहीं ये छोटे-छोटे बदलाव ही भारतीय रेलवे को हर दिन बेहतर बना रहे हैं। उम्मीद है कि जहाँ भी इस तरह के आविष्कारों की ज़रूरत है, वहाँ तक ये ज़रूर पहुंचे।

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