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खेजड़ी पर ‘ट्रीहाउस’ और 2000 पेड़, थीम पार्क से कम नहीं इस रिटायर्ड फौजी का खेत

राजस्थान के नागौर जिला स्थित सिरसूं गाँव में एक रिटायर्ड फौजी ने अपने खेतों में हजारों पेड़-पौधे लगाए हैं। अब उनके खेत, एक ‘थीम पार्क’ की तरह है, जहां पहुंचकर आप प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं। यह कहानी सिरसूं गाँव के रहने वाले 50 वर्षीय रेंवत सिंह राठौड़ की है, जो न सिर्फ प्रकृति के लिए काम कर रहे हैं बल्कि राजस्थानी संस्कृति को भी सहेज रहे हैं।

उनके खेतों में आप घने पेड़ों की छांव के साथ-साथ ट्रीहाउस, तालाब, बग्घी, घुड़सवारी और ऊंट की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। रेंवत सिंह ने अपने इस सफर के बारे में द बेटर इंडिया को विस्तार से बताया। मध्यम- वर्गीय किसान परिवार में जन्मे रेंवत सिंह 10वीं कक्षा पास करके भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। सेना में इंजीनियरिंग विंग में उनका चयन हुआ था और नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई भी की। 

साल 2008 में वह सेना से रिटायरमेंट लेकर अपने घर लौट आए ताकि अपने परिवार के साथ रह सकें। सेना से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने एक कंपनी के साथ भी काम किया। उन्होंने बताया, “सेना में अपनी ट्रेनिंग और नौकरी के दौरान मैंने हमेशा प्रकृति और पर्यावरण के बारे में भी सीखा। पेड़-पौधे लगाने के आयोजन सेना में भी हुआ करते थे और इस तरह से मेरे मन में प्रकृति के प्रति एक अलग सा लगाव हो गया।” 

लगाए 2000 से ज्यादा पेड़-पौधे 

साल 2015 में, रेंवत सिंह ने अपने खेतों में कुछ अलग करने की ठानी। उन्होंने बताया, “मैंने अपने खेतों में घना वन लगाने की योजना बनाई। इसके साथ ही, अपने खेत में एक ऐसी जगह विकसित करना चाहता था जहां दूर-दूर तक लोगों को हरियाली दिखे और सुकून मिले। मैंने शुरुआत में जैतून के 400 पौधे लगाए। इसके बाद, सागवान, अनार, आंवला, बेर, खेजड़ी और पोपुलर के भी पौधे लगाए।” 

उन्होंने कहा, “नागौर रेगिस्तान का हिस्सा है और यहां हरियाली फैलाना अपने आप में एक चुनौती थी। बहुत से लोगों ने मजाक भी बनाया। लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी और दिन-रात अपने पौधों की सेवा करता रहा।” देखते ही देखते, चार-पांच सालों में उनकी मेहनत रंग लाने लगी। उनके खेतों की हरियाली लोगों को दूर से ही दिखने लगी। 

इस जगह को हरियाली से भरने के बाद, उन्होंने सोचा कि ऐसा कुछ इंतजाम किया जाए कि उनका परिवार और गाँववाले अगर चाहें तो इस हरियाली के बीच अच्छा समय बिता सकें। इसलिए उन्होंने इस जगह को एक फार्महाउस के तौर पर विकसित किया। रेंवत सिंह कहते हैं, “पेड़-पौधे होने की वजह बहुत से पक्षी हमारे खेतों में आने लगे। साथ ही, हमने घोडा, ऊंट, बतख आदि के लिए भी अच्छा इंतजाम किया। इसके अलावा, इस फार्महाउस पर एक छोटा-सा तालाब भी बनवाया है।

हर रविवार, उनके खेतों पर अच्छा समय व्यतीत करने वाले गाँव के निवासी, हेमंदर सिंह कंपनी में काम करते हैं। इसलिए सप्ताह में उन्हें छुट्टी वाला दिन मिलता है, जिसमें उनका काफी समय रेंवत सिंह के खेतो पर प्रकृति के बीच बीतता है। वह कहते हैं, “उन्होंने जो काम किया है, वह काबिल-ऐ-तारीफ है। क्योंकि यह सिर्फ उनके लिए नहीं बल्कि सभी गाँव वालों के लिए अच्छी पहल है। उन्हें देखकर अब मुझे और दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिली है कि हम सब अपने खेतों पर इस तरह का ‘फार्म’ विकसित कर सकते हैं।”

खेजड़ी के पेड़ पर बना दी झोपड़ी 

रेंवत सिंह ने बताया कि प्रकृति के बीच अपना समय व्यतीत करने के लिए के लिए उन्होंने खेजड़ी के पेड़ पर एक छोटा-सा ‘ट्रीहाउस’ बनाया। इसे बनाने के लिए उन्होंने सबसे पहले, पेड़ पर एक लकड़ी का तख्ता रखा और इसके ऊपर झोपड़ी बना दी। झोपड़ी में आने-जाने के लिए उन्होंने सीढ़ियां भी लगायी हैं। इसके बारे में वह कहते हैं, “मैंने अपने इस ‘ट्रीहाउस’ का नाम ‘बॉर्डर का बंगला’ रखा है। पेड़ों के बीच बनी यह झोपड़ी काफी ठंडी रहती है। इसमें लगभग आठ लोग एक बार में बैठ सकते हैं और एक छोटी चारपाई भी रख सकते हैं।” 

रेंवत सिंह ने अपने इस फार्म हाउस में खेती से संबंधित औजार, बैलगाड़ी आदि भी रखा है ताकि बच्चे यहां खेल सकें। उन्होंने बताया कि अगर कोई उनके यहां आकर घूमना-फिरना चाहता है तो बिना किसी फीस के अपना दिन यहां गुजार सकता है।

“मैंने इस फार्महाउस को पैसे कमाने के लिए नहीं बनाया। मुझे बहुत से लोग फोन करते हैं कि वे यहां आकर तीन-चार दिन बिताना चाहते हैं लेकिन हमारे पास लोगों के रुकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन अगर कोई दिन में सुबह से शाम तक के लिए यहां आकर घूमना-फिरना चाहता है तो बेझिझक आए। प्रकृति का और राजस्थानी संस्कृति का भरपूर आनंद ले। हालांकि, पूल का रखरखाव करने में खर्च है, इसलिए हम स्विमिंग के लिए 50 रुपए लेते हैं। अन्य किसी चीज की कोई फीस नहीं है,” उन्होंने बताया। 

लगभग चार साल पहले उन्होंने बच्चों और युवाओं को प्रकृति से जोड़ने के लिए ‘ट्रीफेयर’ लगाना शुरू किया था। हालांकि, पिछले साल से कोरोना महामारी के कारण मेला नहीं लग पाया है। गाँव के रहने वाले बजरंग लाल कहते हैं, “रेंवत जी ने जिस तरह से प्रकृति और राजस्थानी संस्कृति का तालमेल बिठाया है, वह गाँव के बच्चों के लिए अच्छा है। बच्चे प्रकृति के करीब रहते हुए अपनी संस्कृति के बारे में सीखते हैं। बहुत से पेड़-पौधों और पक्षियों के बारे में भी उन्हें जानकारी मिलती है। हमारे गाँव के बहुत से लोग हर रोज उनके खेतों पर समय बिताते हैं।”

बेशक, रेंवत सिंह हम सबके लिए एक प्रेरणा है। उम्मीद है कि उनकी कहानी पढ़कर दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। यदि आप कभी नागौर जाते हैं तो रेंवत सिंह के खेतों पर जरूर जाएं। उनसे संपर्क करने के लिए आप उन्हें 9829324583 पर व्हाट्सएप मैसेज कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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