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18 महिलाओं से शुरू हुई संस्था आज दे रही है 50 हजार महिलाओं को रोजगार और प्रशिक्षण!

राजस्थान के जोधपुर इलाके में ‘सम्भली’ नाम की एक संस्था है, जो वहां के ग्रामीण इलाकों और शहरी बस्तियों में रहने वाली उन जनजातियों के लिए काम करती है जो जागरूकता के अभाव में अशिक्षित हैं और विपन्नता की जिंदगी कई दशकों से जी रहीं हैं। यहां के लोग खास तौर पर महिलाएँ पारंपरिक हस्तशिल्प में निपुण हैं। उनकी इस प्रतिभा को कमाई का ज़रिया बनाने के लिए सम्भली संस्था उनकी मदद कर रही है।

इस संस्था के जरिए जोधपुर के दो शोरूम में इन महिलाओं द्वारा बनाई गई हस्तशिल्प कलाकृतियों एवं खिलौनों को बिक्री के लिए रखा जाता है, जो विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है। विदेशी पर्यटकों द्वारा अर्जित कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन कारीगर महिलाओं को दिया जाता है। इन महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण शिविर भी लगाया जाता है।

सम्भली की शुरुआत सितंबर, 2006 में होती है, जब गोविंद राठौर जो कि संस्था के संस्थापक हैं, अपने घर में काम करने वाली सुमित्रा से पूछते हैं कि वह उनकी बेटियों की किस प्रकार से मदद कर सकते हैं या उनके आसपास की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए क्या कर सकते हैं। इसके बाद सुमित्रा अगले दिन काम करने की इच्छा रखने वाली 18 अन्य महिलाओं को लेकर आती है। गोविंद जोधपुर के कुछ कलाकारों से उन महिलाओं को प्रशिक्षण देने की बात करते हैं। इन महिलाओं को 4 महीने के लिए विभिन्न प्रकार का कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है, जैसे ब्लॉक प्रिंटिंग, एंब्रॉयडरी, सिलाई-कढ़ाई आदि।

गोविंद राठौर

जनवरी, 2007 में इस संस्था को गैर लाभकारी संस्था के रूप में रजिस्टर किया गया। यह संस्था 18 महिलाओं के साथ शुरू हुई और आज इसके द्वारा 40-50 हजार महिलाओं को रोजगार एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह संस्था इन महिलाओं को 1 साल के लिए व्यवसायिक एवं सिलाई प्रशिक्षण देती है। प्रशिक्षण के बाद संस्था इन महिलाओं को एक सिलाई मशीन एवं प्रमाण पत्र उपलब्ध कराती है। कुछ महिलाएँ ट्रस्ट से जुड़े रहना चाहती हैं, जिसके लिए इन महिलाओं को सम्भली के सिलाई प्रोग्राम से जोड़ा जाता है जहां पर इन महिलाओं को उचित वेतन दिया जाता है।

महिलाओं द्वारा बनाया गया सामान सम्भली के जोधपुर स्थित शोरूम में विदेशी पर्यटकों एवं अन्य लोगों को बेचा जाता है। जोधपुर में ज्यादातर स्थानीय लोग कपड़े के खिलौनों का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए ये महिलाएँ ज्यादातर परंपरागत राजस्थानी कपड़ों के खिलौनों को सिलाई कढ़ाई एवं एंब्रॉयडरी द्वारा सुंदर एवं आकर्षित बनाने का काम करतीं हैं।

इन महिलाओं से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है और परिवहन सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। सम्भली की एक कार्यकर्ता ऊषा कहतीं हैं, “मेरे पति और मेरी सास मुझे बहुत मारते थे और मैं मेरे बच्चों को भी नहीं पढ़ा पाती थी। एक बार रात को 3:00 बजे मुझे और मेरे बच्चों को घर से निकाल दिया उसके बाद अगले दिन सुबह मैंने संस्था जाकर गोविंद भैया से बात की और यहां काम करना शुरू कर दिया। अब मैं अपने बच्चों को भी पढ़ा पाती हूं और 4-5 हजार रुपये महीना कमाकर अपना घर चलाती हूं।”

इस संस्था का मुख्य कार्य न केवल महिलाओं को प्रशिक्षित करना है परंतु उनकी जीवनशैली को आधारभूत एवं सम्यक रूप से सफल बनाना भी है। संभली में आना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कदम है, ऐसा कहते हुए रीता आगे बताती हैं, “सम्भली में आकर मुझे सिलाई की नई-नई तकनीक पता चली और सबसे जरूरी बात मुझ में आत्म-सम्मान आया। मुझे मेरे काम में बहुत रुचि है। सम्भली महिलाओं के लिए बहुत सुरक्षित जगह है और कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। काम करते हैं तो आमदनी भी होती है, घर पर बैठो तो कुछ कमाई नहीं हो पाती। मैं मेरे काम से बहुत खुश हूं।”

रीता और ऊषा

विदेशी पर्यटकों को न केवल हस्तकला में रुचि है परंतु वे भारतीय खानपान के बारे में भी जानना चाहते हैं। इसके लिए सिलाई कढ़ाई करने वाली महिलाएँ विदेशी पर्यटकों को भारतीय खानपान से अवगत करातीं हैं। यह पहल न केवल भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देती है बल्कि, विदेशी पर्यटकों में भारतीयों के लिए सद्भावना भी जगाती है।

यह पर्यटक पहले इन महिलाओं द्वारा बनाए गए सामान को खरीदते हैं और फिर इनके साथ भारतीय व्यंजनों का आनंद लेते हैं। प्रतिवर्ष 350-400 विदेशी पर्यटक सम्भली द्वारा आयोजित पाककला कक्षाओं में भाग लेते हैं। इस संस्था में लगभग 50 वेतनभोगी कर्मचारी कार्यरत हैं और 20-25 स्थानीय और विदेशी वॉलिंटियर्स भी जुड़े हुए हैं।

यह संस्था न केवल प्रशिक्षण से महिलाओं का विकास कर रही है परंतु ग्रामीण स्तर पर भी गरीब बच्चों के उत्थान के लिए अग्रसर है। संस्था के कई लोग संस्थापक गोविंद राठौर के साथ थार रेगिस्तान के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में जाकर बच्चों को न केवल अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श के बारे में बताते हैं साथ ही साथ उनके नैतिक विकास पर भी कार्यरत हैं। वे लोग वहाँ जाकर रहते भी हैं ताकि बच्चों को सिखाने के लिए ज्यादा समय मिले।

गोविंद बताते हैं कि यह कार्यक्रम चलाने की प्रेरणा उन्हें ‘सत्यमेव जयते’ एपिसोड देखने से मिली। अपने इस कार्यक्रम का नाम उन्होंने ‘नो बैड टच’ रखा। गोविंद बताते हैं कि जोधपुर की एक महिला अफसर श्रीमती हिंघानिया की पहल ‘सेव यूथ, सेव नेशन’ से प्रेरित होकर उन्होंने एक अन्य पहल ‘आदर्श’ की शुरुआत की, जिसमें स्कूलों में जाकर शैक्षिक पाठ जैसे कि सुरक्षा, सड़क सुरक्षा, वेब सुरक्षा, यौन शोषण आदि के बारे में बच्चों को जागरूक किया जाता है। यह संस्था बच्चों को छात्रावास भी उपलब्ध कराती है।

गोविंद राठौर कहते हैं, “अन्य संस्थाएं भी सिलाई-कढ़ाई, स्कॉलरशिप, हॉस्टल इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध करातीं हैं परंतु मेरी संस्था आधारभूत और समग्र रूप से गरीब बच्चों एवं महिलाओं का विकास करना चाहती है। लगभग 270 बच्चों को सम्भली के द्वारा जोधपुर के प्राइवेट स्कूलों में भर्ती किया जा चुका है। वर्तमान समय में 50 ग्रामीण लड़कियां सम्भली के बोर्डिंग स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहीं हैं।

संस्था न सिर्फ एक रोजगार का साधन बनी हैं लेकिन ये महिलाओं को मुस्कान भी बाँट रही है। संस्था के विभिन्न प्रोग्रामों के द्वारा महिलाओं और स्कूली छात्राओं को खेलों से जोड़ा जाता है। उन्हें बाहर ले जाकर जिंदगी के असली मायने सिखाए जाते हैं और आत्म-निर्भरता और आत्मविश्वास क्यों जरूरी है, इन सब बातों के बारे में भी बताया जाता है।

सम्भली के लिए सबसे मुख्य आकर्षण साल 2012 में यूनाइटेड नेशंस के अंतर्गत ECOSOC (Economic and Social Council) प्रोग्राम द्वारा सम्मानित किया जाना रहा है। इसके अतिरिक्त सम्भली को ऑस्ट्रिया, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका के लोगों द्वारा भी सहायता दी जा रही है। इस प्रकार से यह एक अंतरराष्ट्रीय पहल बन चुका है।

अगर आप भी सम्भली से जुड़ना चाहते हैं या मदद करना चाहते हैं तो फेसबुक और वेबसाइट से जुड़ सकते हैं।

संपादन – अर्चना गुप्ता


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