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Rajasthan Farmer: अपनी जेब से पैसे खर्च कर, किसान ने लगाए 65000 पेड़

Rajasthan Farmer

आजकल खास मौकों पर पौधरोपण करना आम बात हो गई है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे किसान से मिलवा रहे हैं, जो हर रोज एक पौधा लगाते हैं। इसके बाद, उन पौधों की पूरी देख-रेख करते हैं। ताकि भविष्य में वे पेड़ बनकर लोगों को छांव दे सके। हम बात कर रहे हैं, राजस्थान के प्रगतिशील किसान (Rajasthan Farmer) सुरेंद्र अवाना की, जो पिछले 11 सालों से ऐसे सराहनीय काम कर रहे हैं। वहीं, कुछ खास मौकों पर वह कई सारे पौधे लगाते हैं। इस तरह, अब तक उन्होंने लगभग 65 हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। 

राजस्थान में जयपुर के भैराणा गाँव निवासी 59 वर्षीय किसान (Rajasthan Farmer), सुरेंद्र अवाना बचपन से ही प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहे हैं। BA तक की पढ़ाई करने के बाद, सुरेंद्र ने अपने पिता के साथ खेती-बाड़ी संभालना शुरू किया। वह कहते हैं कि उन्होंने हमेशा से ही जैविक खेती की है। पिछले कुछ सालों में, उन्होंने अपनी सामान्य खेती को ‘एकीकृत खेती मॉडल’ में तब्दील कर दिया है। आज वह देशभर में अपनी सफल खेती के लिए जाने जाते हैं। लेकिन खुद आगे बढ़ने के साथ-साथ, उन्होंने प्रकृति का भी पूरा ध्यान रखा है। 

हर दिन लगाते हैं एक पौधा: 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि पौधे लगाने का शौक उन्हें बचपन से ही रहा है। लेकिन, पहले वह सिर्फ कुछ खास दिनों जैसे- हरियालो राजस्थान उत्सव, स्वतंत्रता दिवस, पर्यावरण दिवस, जन्मदिवस आदि पर ही पौधे लगाते थे। लेकिन, 1 जुलाई 2010 से, उन्होंने हर दिन एक पौधा लगाने का फैसला किया। 

Surendra Awana Planting a tree daily

वह कहते हैं, “यह फैसला करने से पहले मैंने सभी चीजों पर गौर किया। जैसे- कहाँ-कहाँ पौधे लगाए जा सकते हैं, इनकी देखभाल कैसे होगी और कितना खर्च आएगा आदि। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर, मैंने सालाना खर्च के लिए एक बजट बनाया। अब हर साल मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा, सिर्फ पौधरोपण के लिए रखता हूँ। अपनी जैविक और प्राकृतिक खेती से, मैं जो कुछ कमा रहा हूँ, वह प्रकृति की ही देन है। तो क्या मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा, पर्यावरण के लिए नहीं लगा सकता?”

किसान सुरेंद्र (Rajasthan Farmer) ने जयपुर शहर और अपने गाँव में पौधरोपण करने के अलावा, अन्य जगहों पर भी पौधे लगाए हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें कई बार काम के लिए किसी दूसरे शहर या देश जाना पड़ता है। ऐसे में, सुरेन्द्र कोशिश करते हैं कि वह जहां पर हैं, वहीं पौधा लगा दें। लेकिन, जिस दिन ऐसा नहीं हो पाता है, तो उनके बेटे या खेतों में काम करने वाले कर्मचारी, खेत में उसी दिन पौधा लगा देते हैं। 

वह कहते हैं, “अगर मैं किसी रिश्तेदार के घर जा रहा हूँ, तो मैं उन्हें पहले ही कह देता हूँ कि नर्सरी से पौधा मंगवा लें। एक बार मैं सिंगापुर किसी आयोजन में गया था, तो मैंने वहां भी हर दिन पौधे लगाए। मेरे काम के बारे में जानकर, वहां के लोगों ने मेरी काफी तारीफ की। साथ ही, उन्होंने मुझसे वादा किया कि वे मेरे द्वारा लगाए गए पौधों का ध्यान रखेंगे।”

पौधरोपण करना आसान है, लेकिन इन पौधों को पेड़ बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। सुरेंद्र कहते हैं कि उन्होंने लगभग 30 हजार पौधे अपने खेतों और आसपास के इलाके में लगाएं हैं, जिनका ध्यान रखना आसान है। लेकिन, जयपुर शहर में उन्होंने सार्वजनिक पार्क, श्मशान घाट, सड़कों के किनारे, पुलिस स्टेशन, सरकारी स्कूलों और लोगों के घरों के बाहर पेड़-पौधे लगाए हैं। 

वह कहते हैं, “लोगों के घरों के बाहर मैं जो पौधे लगाता हूँ, उनकी देखभाल की जिम्मेदारी अगर इन घरों के लोग लेते हैं तो ठीक है, वरना वहां भी मैं ही पौधों की देखभाल करता हूँ। मेरे पास एक टैंकर है, जिससे सभी पौधों को हर रोज पानी दिया जाता है। इस काम के लिए, मैंने एक कर्मचारी रखा है। साथ ही एक-दो दिन में, मैं सभी जगहों पर पौधों का मुआयना करके आता हूँ।” 

किसान सुरेंद्र (Rajasthan Farmer) कहते हैं कि वह मौसम के हिसाब से भी पौधे लगाते हैं। जैसे- गर्मियो और सर्दियों में वह ऐसे पौधे लगाते हैं, जो मौसम के तापमान को सहन कर सके। इसके अलावा, वह सबसे ज्यादा बारिश के मौसम में पौधरोपण करते हैं। कई जगहों पर पौधों को जानवरों से बचाने के लिए वह ट्री-गार्ड भी लगाते हैं।

तैयार किये उपयोगी जंगल: 

उन्होंने आगे बताया कि राजस्थान में कृषि विभाग द्वारा अलग-अलग अभियान चलाये जा रहे हैं। जैसे- उद्यान वानिकी (फोरेस्ट्री) और कृषि वानिकी। वन लगाने, उनकी देखभाल करने और वन से प्राप्त चीजों का उपयोग करने के तरीकों को वानिकी कहा जाता है। उद्यान वानिकी में, लोगों को फलों और औषधीय पेड़-पौधे लगाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। जबकि कृषि वानिकी में, किसानों को अपने खेतों की मेढ़ पर पेड़ लगाने की हिदायत दी जा रही है। इन अभियानों के लिए, वन विभाग पौधे भी उपलब्ध कराता है। किसान सुरेंद्र (Rajasthan Farmer) इन अभियानों पर तो काम कर ही रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ‘चारा वानिकी’ की भी शुरुआत की है। 

‘चारा वानिकी’ के अंतर्गत वह ऐसे पेड़-पौधे लगा रहे हैं, जिनकी पत्तियों को किसान अपने जानवरों के लिए, चारे की तरह उपयोग में ले सकते हैं। इसके लिए वह नीम, अरडू, शहतूत, पिलकन और नेपियर घास जैसे पेड़-पौधे लगा रहे हैं। उद्यान वानिकी के अंतर्गत उन्होंने आम, अमरूद, पपीता, चीकू, अनार, ड्रैगन फ्रूट, थाई एप्पल बेर, बादाम, खजूर और सेब (हरिमन शर्मा किस्म) आदि के पेड़ लगाए हैं। इनके अलावा, उन्होंने औषधीय पौधे जैसे- गिलोय, तुलसी, अर्जुन, आंवला, सहजन, करंज, कचनार, लेसवा आदि भी लगाए हैं। 

अब तक 70 हजार पेड़-पौधे लगाए हैं, जिनमें से 65 हजार पौधे अब पेड़ बनकर, लोगों को फल, फूल,जड़ी-बूटी और चारा देने के साथ-साथ, छांव और शुद्ध हवा दे रहे हैं। अपने इस अभियान में, उन्होंने न तो प्रशासन और न ही किसी अन्य व्यक्ति या संगठन से आर्थिक मदद ली है। किसान सुरेन्द्र (Rajasthan Farmer) कहते हैं कि जब वह खुद इस कार्य को करने में सक्षम हैं, तो किसी और की मदद क्यों लें? अगर किसी को उनकी मदद ही करनी है, तो बस पेड़-पौधों की देखभाल में मदद करें। ताकि, ज्यादा से ज्यादा हरियाली बढ़े। पहले सुरेंद्र वन विभाग की नर्सरी या किसी प्राइवेट नर्सरी से पौधे लेते थे। लेकिन, पिछले चार सालों से वह खुद ही अपने खेतों पर नर्सरी तैयार करते हैं। 

फिलहाल, वह अपने खेत पर लगभग आधी एकड़ जमीन पर ‘ब्रह्म वाटिका’ तैयार कर रहे हैं। जिसमें उन्होंने 100×100 फीट का एक तालाब भी बनवाया है। जिसके चारों ओर वह नीम, गुड़हल, गूलर, बड़, पीपल जैसे पौधे लगा रहे हैं। वह कहते हैं कि उनका उद्देश्य, पक्षियों और अन्य जीव-जंतुओं के लिए, एक उद्यान तैयार करना है। 

एकीकृत खेती का मॉडल:

सुरेंद्र कहते हैं कि इतने सालों में, उन्होंने अपनी जैविक खेती को धीरे-धीरे, ‘जीरो-बजट’ प्राकृतिक खेती में तब्दील किया है। साथ ही, उन्होंने ‘एकीकृत खेती मॉडल’ को भी अपनाया है। अपनी 60 एकड़ जमीन पर, उन्होंने चार तालाब बनवाए हैं, जिनमें बत्तख पालन और मछली पालन होता है। इसके अलावा, वह 200 गिर गायों का पालन करके डेयरी फार्म चला रहे हैं। मौसमी सब्जियों, अनाज और दलहन की खेती के साथ-साथ, वह घोड़ा, ऊंट, बकरी, भेड़, मधुमक्खी और मुर्गीपालन भी करते हैं। अपने खेतों पर ही, उन्होंने खाद बनाने की यूनिट और नर्सरी भी लगाई है। 

सुरेंद्र बताते हैं कि वह अपनी लगभग 75% खेती, जीरो-बजट तरीके से कर रहे हैं। खेतों की जुताई-बुवाई के लिए, वह बैलों और ऊंटों की मदद से काम करते हैं। उनके खेतों से जो भी कृषि कचरा निकलता है, उसका इस्तेमाल खाद बनाने के लिए किया जाता है। इस खाद का फिर से खेतों में उपयोग किया जाता है। बिजली और पानी के लिए, उन्होंने अपने खेतों पर 42 किलोवाट का सोलर सिस्टम लगवाया है। वह कहते हैं कि उन्होंने खेती में, अपने खर्च कम किए हैं और आमदनी बढ़ाई है। साथ ही, वह लगभग 25 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। 

उनके खेतों से निकलने वाले हर तरह के कचरे को, वह फिर से इस्तेमाल करते हैं। इस तरह, उनके यहां न तो फेंकने को कुछ है और न ही जलाने को। आगे उनका उद्देश्य, अपने खेतों पर ही प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का है। सुरेंद्र अंत में कहते हैं, “हर काम में आपको परेशानी झेलनी पड़ती है। मुझे बहुत से लोग ‘बावला’ कहते थे कि मैं क्यों मुफ्त में पेड़ लगाता हूँ। लेकिन, आज वही लोग इन पेड़ों की छांव में खड़े होते हैं। वहीं, अपनी गाड़ियां खड़ी करते हैं और मेरी तारीफ करते हैं। इसलिए, दूसरों की बातों पर न जाकर अपने काम पर ध्यान दें।” 

द बेटर इंडिया सुरेंद्र अवाना की सोच और जज़्बे को सलाम करता है। हमें उम्मीद है कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेकर, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करेंगे। अगर आपको इस कहानी ने प्रभावित किया है और आप सुरेंद्र अवाना से संपर्क करना चाहते हैं, तो उन्हें 946229999 पर कॉल कर सकते हैं।

संपादन – प्रीति महावर

तस्वीरें साभार: सुरेंद्र अवाना

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