कोरोना वायरस महामारी से मुक़ाबला करने के लिए लगभग ढाई महीनों से पूरे देश की जनता अपने घरों में कैद है और बाहर आना-जाना बेहद कम है। जहाँ एक ओर ज्यादातर सेलिब्रिटीज सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं वहीं भारत की शीर्ष महिला शूटर शगुन चौधरी ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर ऑर्गनिक फार्मिंग में व्यस्त हैं।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की एक छोटी सी पहल करते हुए शगुन ने लॉकडाउन के दौरान जयपुर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की कुछ महिलाओं के साथ मिलकर ‘जैविक खेती’ (ऑर्गनिक फार्मिंग) शुरू की। शगुन किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं और उनका परिवार यहाँ वर्षों से कीनू की खेती करता आ रहा है।
जैविक खेती की ओर कदम
कृषि के क्षेत्र में अपने अनुभव को साझा करते हुए शगुन बताती हैं, “मेरे लिए खेती करना कोई नई बात नहीं है। मैं किसान परिवार से हूँ और बचपन से ही खेती किसानी देखती आ रही हूँ। लेकिन अब मैंने कीनू से आगे बढ़कर इन महिलाओं के साथ ऐसी सब्जियों की खेती शुरू की है जो इम्युनिटी बढ़ाने का काम करती हैं। ऑर्गनिक प्रोडक्ट्स की मार्केट में बहुत डिमांड है और सेहत के लिए भी ये काफ़ी लाभकारी हैं। हम बहुत मेहनत कर रहे हैं और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं।”
शगुन अपनी महिला सेना के साथ मिलकर अपने जयपुर स्थित फार्म हाउस पर लहसुन, टमाटर और भिंडी की ऑर्गनिक खेती कर रही हैं। इस फार्म हाउस में पहले से ही लगभग 800 कीनू के पेड़ हैं जिसकी कमर्शियल सप्लाई होती आ रही है और अब बाकी सब्जियों की सप्लाई की दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों तक करने की व्यवस्था भी कर ली गयी है।
जब पिता ने हाथ में थमाई बंदूक
बदलते वक़्त के साथ इस पुरुष प्रधान सोच वाले समाज को अलग-अलग क्षेत्र में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा कर महिलाओं ने करारा जवाब दिया है। राजनीति से लेकर विज्ञान तक और मनोरंजन से लेकर खेलकूद तक महिलाओं ने कई उदहारण स्थापित कर साबित किया है कि वे पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं है। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर की रहने वाली शगुन भी एक ऐसी ही मिसाल हैं जिन्हें ट्रैप शूटिंग में ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला शूटर होने का गौरव प्राप्त है।
शगुन बताती हैं,“मेरी माँ चाहती थीं कि मैं एक डॉक्टर बनूँ लेकिन वह पिता ही थे जिन्होंने मेरे हाथ मे बंदूक थमाई और मेरी रुचि के अनुसार मुझे शूटिंग के लिए प्रोत्साहित किया। मेरा पालन-पोषण ऐसे माहौल में हुआ जहाँ मुझे मेरे भाई के बराबर ही आज़ादी मिली, कभी बेटा और बेटी में फ़र्क नहीं किया गया और वहीं मेरी कामयाबी की नींव रखी गयी।”
शगुन का मानना है कि महिलाओं ने अपनी काबिलियत के दम पर बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन अभी भी प्रयास निरंतर जारी रखने होंगे ताकि हर महिला को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा सके। अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर वह दावा भी करती हैं कि अगर बिना भेदभाव के बेटी को भी सपने पूरे करने की आज़ादी दी जाए तो समाज में महिलाओं को समानिधिकार दिलाया जा सकता है।
शगुन का यह भी मानना है कि लोगों को ‘जेंडर इक्वलिटी’ के प्रति जागरूक करना बहुत ही जरूरी हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में महिलाएँ आज भी हर रोज़ दकियानूसी सोच के कारण दबाई जाती हैं, वहीं शहरों में भले ही बदलाव आ रहा हो लेकिन वह गति भी अभी बहुत धीमी है जिसे रफ़्तार देने की जरूरत है।
वह आगे बताती हैं, “21वीं सदी की हर बहन-बेटी, हर औरत सक्षम है, जरूरत है तो ऐसी सोच को बदलने की जो नारी के सपनों के पंखों को कतरने में विश्वास रखते हैं। बेटियों को कम न समझें, उन्हें मेहनत करने की आज़ादी दें ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर खुद के पैरो पर खड़ी हो सके और उन्हें किसी पर निर्भर ना रहना पड़े।”
वह बताती हैं, “लॉकडाउन की वजह से प्रैक्टिस अभी बाधित है, लेकिन भले ही शूट नहीं कर सकते मगर हर रोज़ गन के साथ खाली प्रैक्टिस ज़रूरी है ताकि बॉडी और गन का तालमेल बना रहे। साथ ही साथ फिट रहने के लिए नियमित वर्कआउट और मैडिटेशन भी कर रही हूँ। उम्मीद है जल्द ही स्थिति सामान्य होगी और हम फ़िर से प्रैक्टिस शुरू कर सकेंगे।”
वास्तव में आज समाज को शगुन जैसी महिलाओं की ज़रूरत है। शगुन की सोच और उनके जज़्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
संपादन- पार्थ निगम
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