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पिछले 14 साल से उदयपुर की झीलों को साफ कर रहे हैं 73 वर्षीय हाजी सरदार मोहम्मद!

झीलों की नगरी उदयपुर। गिर्वा पहाड़ियों की गोद में बसे इस शहर पर प्रकृति ने खूब मेहरबानी की है। चारों ओर पानी, पहाड़ और घने वन के बीच बसे इस शहर को देखने दुनियाभर से लोग पहुँचते हैं। सिर्फ प्रकृति ही नहीं, यहाँ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत भी दूर-दूर से लोगों को यहाँ खींच लाती है। लोग यहाँ आते हैं, घूमते हैं और इस शहर की झीलों को निहारते हैं, लेकिन एक चीज़ उनको सबसे ज्यादा निराश करती है, वह है इन झीलों में फैली गंदगी और स्थानीय लोगों के द्वारा डाला गया कचरा।

यहाँ रहने वाले हाजी सरदार मोहम्मद ने जब इन झीलों को इस तरह बर्बाद होते देखा तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने इन्महें साफ़ करने की शुरुआत अकेले ही की थी और आज उनके साथ करीब 10 लोग जुड़े हुए हैं जो हर रविवार को झील साफ़ करने का काम करते हैं।

 

बात आज से 14 साल पहले की है, जब उन्होंने उदयपुर की झीलों को साफ़ करने का बीड़ा उठाया था। 

हाजी सरदार मोहम्मद

 

हाजी सरदार मोहम्मद अपने मित्र जमनाशंकर दशोरा से मिले और झीलों की स्थिति से अवगत कराया कि अगर इन झीलों को समय रहते साफ़ नहीं किया गया तो शहर की शान कही जाने वाली झीले नहीं बचेंगी।

“अगस्त 2005 के आस-पास की बात है। उस साल मेवाड़ में खूब बारिश हुई थि। सारी झीले लबालब भरी थी। सब बढ़िया था, लेकिन एक चीज़ जो अच्छी नहीं थी, वह थी झीलों में पसरी गंदगी और कचरा। चूँकि मेरा घर झील के किनारे है तो यह देखकर मेरा जी जलता था। मैंने इन झीलों को साफ़ रखने का सोचा, पर कैसे? मैं अकेला था और काम बड़ा।”

दशोरा ने उनके इस नेक काम में साथ देने के लिए हामी भर दी। अब उनके लिए बड़ा काम था लबालब भरी झीलों में उतरने के लिए नाव की व्यवस्था करना। उन्होंने इसके लिए 10 ट्यूब की एक नाव बनाई और पहली बार पानी से जलकुंभी निकालने का काम शुरू किया।

झील हितैषी नागरिक मंच की ट्यूब से बनाई पहली नाव और सफाई करते हाजी सरदार मोहम्मद (बाएं) ।

झीलों को साफ़ करने का बिगुल तो बज चुका था लेकिन इस काम के लिए वे 2 जने ही थे। ऐसे में उन्होंने एक मंच बनाने की सोची कि जो भी झीलों के हित के लिए काम करेगा वो इस मंच का सदस्य होगा। 24 अगस्त 2005 को मंच बना और नाम रखा गया झील हितैषी नागरिक मंच। इस मंच में शामिल होने के लिए आज भी कोई सदस्यता का पैमाना नहीं है। न ही उनसे कोई शुल्क या दान की बात की जाती है। मंच की ओर से कोई नगद दान भी नहीं लिया जाता है।

हाजी सरदार मोहम्मद बताते हैं, “कोई भी नगद दान देता है तो हम नहीं लेते, हम बस उनसे इतना ही कहते हैं कि अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो हमारे साथ श्रमदान करो।”

मंच बनाने के बाद हाजी सरदार मोहम्मद और जमना शंकर दशोरा ने झीलों की दुर्दशा को लेकर अपने अन्य मित्रों को बताया और उनको श्रमदान करने की अपील की। उनके इस नेक काम को देखकर युवा तो नहीं, मगर प्रौढ़ और वृद्ध लोग जरूर आगे आए। आज भी उनके मंच में हर सप्ताह श्रमदान करने आने वाले अधिकतर लोगों में वृद्ध ही हैं।

श्रमदान करते मंच के सदस्य।

झील हितैषी नागरिक मंच के द्वारा हर सप्ताह उदयपुर की झीलों से बड़ी मात्रा में कचरा और जलकुम्भी निकाली जाती है। पिछले 15 सालों में उनके द्वारा हज़ारों क्विंटल कचरा निकाला जा चुका है। लेकिन आज भी लोग झीलों को गन्दा करने की आदत से बाहर नहीं आए है। चाहे झीलें धर्म के नाम पर या असामाजिक तत्वों के द्वारा गन्दी की जा रही हो, लेकिन हालात जस के तस है।

इस स्थिति को लेकर हाजी सरदार मोहम्मद बस इतना कहते हैं,

“जब भी श्रमदान होता है, लोग देखते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि यह श्रमदान आप करवा रहे हो, अगर आप झीलों में कचरा नहीं डालोगे तो हमें श्रमदान की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।”

हाजी सरदार मोहम्मद प्रशासन के भरोसे बैठने वालों में से नहीं हैं। उनका मानना है कि लोगों को जागरुक होना पड़ेगा। वह यह बात भी करते हैं कि जब तक लोग कचरा डालते रहेंगे, हम साफ़ करते रहेंगे। झील की सफाई को लेकर आज मंच को उदयपुर में लोग जानने लगे हैं। लोग उन्हें श्रमदान या फिर सफाई के लिए उपकरण भी भेंट करते हैं। अब उनके पास ‘भारत विकास परिषद् उदय’ के द्वारा भेंट की गई अच्छी नाव है।

नाव की सहायता से झील की सफाई करते मंच के सदस्य।

हाजी सरदार मोहम्मद को झील सफाई के दौरान कई बार लोगों की बाते भी सुननी पड़ती हैं। एक बार एक आदमी ने झील में कचरे से भरी थैली डाली, जब उन्होंने उस आदमी को रोका तो वो कहने लगा कि फूल की मालाएं हैं, तुम्हें इससे क्या मतलब है? इस बात पर जब हाजी सरदार मोहम्मद ने झील में उतरकर थैली बाहर लेकर देखी तो उसमें एक माला, सिगरेट पैकेट्स, दारू की बोतल आदि थे।

आज सरदार हाजी मोहम्मद की उम्र 73 साल से ज्यादा हो गई है, लेकिन झील सफाई को लेकर उनका जज्बा किसी जवान व्यक्ति जैसा ही है।

 

 

झील से निकाली जलकुम्भी और कचरे के साथ हाजी मोहम्मद (दाएं से दूसरे) व उनके साथी।

वह अपने हौसले से इस बात को साबित कर रहे हैं कि उम्र से ज्यादा इच्छाशक्ति मायने रखती है। वह बस सरकार और प्रशासन से इतनी उम्मीद करते हैं कि ऐसी कोई ठोस नीति बनाए जिससे लोग झीलों में कचरा डालना बंद करें। वह लोगों से भी गुज़ारिश करते हैं कि झीलों को साफ़ रखें।

अगर आपको हाजी सरदार मोहम्मद की यह पहल अच्छी लगी और आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो 9660567568 पर बात कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच 


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