बिहार के मधुबनी अंचल में स्थित खटौना गांव से ताल्लुक रखने वाले मंगेश झा को आज बहुत से लोग ‘मंगरु पैडमैन’ के नाम से भी जानते हैं। मंगेश वो शख्स हैं जो झारखंड के आदिवासी गांवों और कस्बों में जाकर औरतों व अन्य लोगों को माहवारी के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
एक संपन्न परिवार से संबंध रखने वाले मंगेश ने इंस्टिट्यूट ऑफ़ होटल मैनेजमेंट, भुवनेश्वर से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर, अपने करियर की शुरुआत ओबरॉय होटल, कोलकाता से की।
पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इसीलिए तो मंगेश कोलकाता के बाद पुणे में भी एक अच्छे होटल की नौकरी छोड़ आये। पुणे के बाद मंगेश अपने माता-पिता के पास रांची, झारखंड आ गए। वैसे तो वे सरकारी नौकरी की तैयारी करना चाह रहे थे; पर अपने पिताजी के कहने पर उन्होंने रांची के रेडिसन ब्लू होटल में नौकरी कर ली।
“हम जब रांची आये तो हमारे मन में अपने शहर को ले कर बहुत उत्साह था। इसलिए पहले से ही गूगल और विकिपीडिया पर छानना शुरू कर दिया था कि कहाँ-कहाँ घुमा जा सकता है। आप इंटरनेट पर देखेंगें तो आपको पता चलेगा कि रांची को झरनों का शहर भी कहा जाता है,” मंगेश ने बताया।
मंगेश को जब भी काम से दो दिन की छुट्टी मिलती तो वे अपने शहर और प्रदेश को थोड़ा और अधिक जानने की चाह में निकल पड़ते। पर जैसे-जैसे वे गांवों और आदिवासी इलाकों में जाने लगे तो वहां की सच्चाई से उनका सामना हुआ। लोग कैसे अपना जीवन यापन कर रहें हैं, न कोई शिक्षा का आधार और न ही को रोजगार।
मंगेश के सामने जो झारखंड था और इंटरनेट पर जो झारखंड है, उन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर था। इसलिए उन्होंने इन लोगों की स्थिति में बदलाव लाने की ठानी। पर किसी भी समुदाय में बदलाव लाने के लिए ज़रूरी है उस समुदाय के लोगों का हिस्सा बनना। मंगेश इन गांवों में लोगों के साथ वक़्त बिताने लगे।
“सबसे पहले मैंने बच्चों की शिक्षा से शुरुआत की। रात्रि कालीन पाठशालाएँ शुरू की गयीं,” मंगेश ने बताया।
वे खुद सोलर-लाइट में बच्चों को पढ़ाने लगे। चार बच्चों से शिक्षा की अलख जगाने की मुहिम आज 13 गाँव को मिलाकर 500 तक पहुंच गयी है।
बाद में उन्होंने रोज़गार की समस्या पर काम किया। रोज़गार न होने के कारण यहां सेक्स-रैकेट की समस्या पैदा हो गयी थी। जिसे खत्म करने के लिए इन लोगों को रोज़गार क्षेत्रों से जोड़ने की मुहिम चलाई गयी। उन्होंने अपने एक मित्र, जो ‘सक्षम रेडी टू वर्क’ के ऑपरेशन हेड है, से बात की। ‘सक्षम रेडी टू वर्क’ एक कंपनी है जो एनएसडीसी (नेशनल स्किल्स डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन) से संबंधित है। इसके सहयोग से उन्होंने गांवों के लोगों को मेडिका रांची व मेडिका सिलीगुड़ी में हाउसकीपिंग विभाग में सम्मानजनक रोज़गार दिलाया।
अपने सामाजिक सुधार के कार्यों के चलते मंगेश ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। धीरे-धीरे उनके साथ और भी लोग जुड़ गए।
अपने इस समाज-सुधार कार्य को वे ‘सोच: इंपावरिंग पीपल’ नामक एक संस्था (फिलहाल रजिस्टर्ड नहीं) के तहत कर रहे हैं जिसमें कुछ स्थानीय ग्रामीण भी उनकी मदद करते हैं।
इसी काम के सिलसिले में एक बार मंगेश रासाबेड़ा नामक गांव में गए जहां लोग मूसली का काम करते हैं। वहां उन्हें पता चला कि जब भी औरत माहवारी में होती है तो उसे मूसली का काम नहीं करने दिया जाता। दरअसल माहवारी से जुड़े अनेक मिथकों में से यह भी एक मिथक था उस गांव में।
ऐसे ही धीरे-धीरे इस विषय पर कुछ लोगों से चर्चा करने पर उन्हें पता चला कि गांव की औरतें माहवारी के दिनों में पेड़ के पत्ते, राख, कपड़ा आदि इस्तेमाल करती हैं। जिस कपड़े का इस्तेमाल वे करती है, उसे बिना अच्छे से धोये और सुखाये वो लगातार प्रयोग करती हैं।
मंगेश के सामने जब यह सब आया तो उन्हें समझ नहीं आया कि वो कैसे इस समस्या का समाधान ढूंढें। ऐसे में मंगेश की माँ उनकी मार्गदर्शक बनीं।
“मैंने घर आकर माँ से जब इस बारे में बात की तो पहली बार उन्होंने मुझे सैनिटरी पैड दिखाया और माहवारी से जुड़े मेरे सवालों को हल किया। उस दिन मुझे पता चला कि माहवारी किसी भी लड़की के जीवन में क्या महत्व रखती है,” मंगेश ने बताया।
अपनी माँ से बात करने के बाद मंगेश ने नेशनल फॅमिली हेल्थ मिशन की रिपोर्ट्स को भी खंगाला। उन्होंने अपने बहुत से दोस्तों से इस बारे में बात की, तो उनके कुछ दोस्तों ने भी उनका मज़ाक बनाया। पर कहते हैं न जहां चाह वहां राह।
इस मुद्दे पर बहुत से लोग उनसे सोशल मीडिया के जरिये जुड़ने लगे।
मंगेश की माँ ने उन्हें सुझाव दिया कि केवल सैनिटरी पैड बांटने से इस समस्या का हल नहीं होगा क्योंकि हमारे देश में माहवारी से जुड़े मिथकों को कोई भी समस्या समझता ही नहीं है। इसलिए सबसे पहले जागरूकता जरूरी है कि आखिर क्यों औरतों व लड़कियों को माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करने चाहियें।
मंगेश के अभियान से आज उनकी माँ और बहन भी जुड़ गयी हैं। उनकी माँ और बहन उन्हें घर पर पैड बनाकर देती हैं और वे उन्हें जगह-जगह वितरित करते हैं। अब उनके साथ विभिन्न गांवों से स्वयं-सेविकाएं भी जुड़ गयीं हैं और वे भी इसमें मदद करती हैं। जल्द ही विभिन्न गांवों में पैड बनाने की यूनिट खोलने की योजना पर मंगेश काम कर रहे हैं ताकि बीहड़ ग्रामीण इलाके की महिलाओं और लड़कियों को कम कीमत पर आसानी से पैड उपलब्ध हो सके।
“हमने अपने अभियान को तीन चरणों में करने का निर्णय लिया। सबसे पहला चरण लोगों में माहवारी के प्रति जागरूकता लाना, दूसरा उन्हें पैड वितरित कर माहवारी के दौरान उन्हें पैड इस्तेमाल करने के लिए सजग करना और तीसरा पर्यावरण के प्रति सचेत हो कर, इस्तेमाल किये हुए पैड का उचित तरीके से अपघटन करना,” मंगेश ने बताया।
मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के अंतर्गत वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, रांची में उन्नत भारत अभियान से जुड़े हुए हैं और अपनी संस्था के तहत और भी बहुत से मुद्दों पर काम कर रहें हैं जैसे,
आत्मरक्षा
उन्होंने अपने साथी के साथ युवा लड़कियों में आत्मरक्षा की भावना जगाई। इसके तहत उन्होंने कराटे का प्रशिक्षण लड़कियों को निःशुल्क देना शुरू किया। धीरे-धीरे लड़कियों की संख्या इस प्रशिक्षण शिविर में बढ्ने लगी। पांच से दस ग्रामीण लड़कियों के साथ शुरू हुए इस शिविर में फिलहाल 50-60 लड़कियां हैं।
प्लास्टिक पर पाबंदी
उन्होंने प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए लोगों को जागरूक किया। इलाके में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर स्थानीय लोगों में रोक लगाने की अपील की। इसके बाद प्लास्टिक की जगह दोना पत्ते ने ले ली। और जल्द ही इस पत्ते का उपयोग तेज़ी से बढ़ा। मांग में तेज़ी आने के बाद महिलाओं को दोना बनाने का काम मिलने लगा।
इसके अलावा लोगों के बीच नशे के प्रति भी जागरूकता अभियान चलाया गया। आज लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए हैं। भारत में आदर्श गांवों को स्थापित करने के लिए मंगेश का संघर्ष जारी है। जिसके लिए उन्हें सरकार के साथ-साथ आम लोगों के सहयोग की भी जरूरत है।
मंगेश ‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से अपने कुछ सुझाव सार्वजनिक करना चाहते हैं जिन्हें यदि सरकार अपनी योजनाओं में शामिल करे तो हम एक बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं।
माहवारी के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए मंगेश एक मॉडल का सुझाव देते हैं। उनका कहना है कि ग्रामीण इलाकों में छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों को इस पर काम करना होगा जैसे कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता।
“हर गांव में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पास गांव की जनसंख्या का लेख-जोखा होता है। तो हमें लगता है कि उसी के साथ आंगनबाड़ी में गांव की हर एक 10-12 साल की उम्र की लड़कियों की सूची होनी चाहिए ताकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हर महीने इन सभी लड़कियों के घर जाकर उन्हें माहवारी के विषय पर सजग कर सकें क्योंकि इसी उम्र में लड़कियों को पहली बार पीरियड्स होते हैं,” यह कहना है मंगेश का।
ऐसा करने से गांवों में लड़कियां जागरूक होंगी। साथ ही उनमें आत्म-विश्वास भी बढ़ेगा क्योंकि माहवारी से जुड़े शर्म के पैबंद को हटाना अत्यंत आवश्यक है।
इसके अलावा सभी बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर पैड वेंडिंग मशीन होने चाहिए। साथ ही इस बात पर भी बल दिया जाये कि ट्रेनों में सफ़र के दौरान भी कुछ महिला टिकट चेकर होने चाहिए, जो कि आज की तारीख में ना के बराबर है। इसके साथ ही ट्रेनों और बसों में फर्स्ट ऐड किट के साथ-साथ मेंस्ट्रुअल किट भी उपलब्ध होनी चाहिए।
आज वह समय है जब माहवारी के बारे में स्कूलों में भी चर्चा आवश्यक है ताकि लड़के और लड़कियां दोनों ही इस विषय के प्रति सजग और जिम्मेदार बन सकें।
मंगेश कहते हैं,
“हमने जो पहल शुरू की है उसका रास्ता यक़ीनन लम्बा है। बहुत लड़ाई लड़नी अभी बाकी है।”
‘मंगरु पैडमैन’ असल ज़िन्दगी के वो हीरो हैं जो बिना किसी ख्याति के, पर शान से अपना काम कर रहें हैं। गर्व की बात है कि हमारे देश में मंगेश जैसे युवा भी हैं जो अपने ज्ञान और अनुभव को देश के सशक्तिकरण के लिए इस्तेमाल कर रहें हैं।
मंगेश झा से संपर्क करने के लिए डायल करें 9570663667 और 8757580449
( संपादन – मानबी कटोच )