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आँखों की बिमारी से छूटी पढ़ाई, पर एलोवेरा की खेती से खुद को और गाँव को बनाया आत्मनिर्भर

“आमतौर पर किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके अनुकूल चीजों से कभी भी बदलाव नहीं आता है बल्कि वो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं ही होती हैं, जो उसका जीवन बदल देती हैं। हर बार मेरी ज़िंदगी ने एक गलत मोड़ लिया, इसने मुझे कड़ी मेहनत करने और चीजों को सुधारने के लिए प्रेरित किया” यह कहना है गानोलग्रे गाँव, वेस्ट गारो हिल्स, मेघालय के 49 वर्षीय लेयलैंड मारक का, जो न सिर्फ खेती (Aloe Vera Farming) के शौकीन हैं, बल्कि वह एक उद्यमी, कम्युनिटी लीडर, शिक्षक और एक पिता भी हैं।

लेयलैंड ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं एक अमीर परिवार में पैदा नहीं हुआ था। मेरे माता-पिता गरीब किसान थे और मुझे लेकर अपने कुल सात बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। हालात पहले से ही मुश्किल थे, लेकिन यह और बदतर तब हो गये जब एक दुर्घटना में मेरे माता-पिता की मौत हो गई। तब से जीवन में हमेशा एक कठिन सबक सीखा था। मुझे मास्टर बनना था जिसके लिए शिक्षा ही एकमात्र रास्ता था। ”

लेयलैंड ने रोंग्राम कम्युनिटी एंड रूरल डेवलपमेंट (C & RD) ब्लॉक के तहत क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होने वाली झूम खेती (shifting cultivation) से पर्यावरण क्षति को रोककर समुदाय को बेहतर आजीविका कमाने में मदद किया है।

Chizingjang नामक एक स्वयं सहायता समूह (SHG) की सहायता से उन्होंने 2008 में एलोवेरा प्रोडक्ट के प्रोसेसिंग और बिक्री का एक अनोखा व्यवसाय शुरू किया। इससे न केवल कुछ ग्रामीणों को एक बढ़िया रोजगार मिला, बल्कि गाँव के भी दशा-दिशा में काफी सुधार और विकास हुआ।

जिद ही सब कुछ है

अपने माता-पिता की दुर्घटना में मौत के बाद लेयलैंड कुछ रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए विलियमनगर चले गए, जबकि उनके भाई-बहन किसी और रिश्तेदार के पास चले गए, जो उन्हें रखने के लिए तैयार थे। अपनी परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया और स्कूल में सबसे उम्दा प्रदर्शन किया। अपनी बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने बीए की डिग्री हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया।

इसी दौरान उनके जीवन में एक दूसरी घटना घट गई। दूसरे वर्ष की अंतिम परीक्षा से ठीक पहले उन्हें आंखों की गंभीर बीमारी हो गयी और सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। जिसके कारण उनका एक साल बर्बाद हो गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अगले साल फिर से कोशिश की। लेकिन उनकी आंखों की रोशनी घट गई और आखिरकार उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

कॉलेज की डिग्री के बिना स्थायी नौकरी पाना काफी मुश्किल काम था, लेकिन उन्होंने लगातार कोशिश जारी रखी और अंततः 1995 में वेस्ट गारो हिल्स के जेंगजल प्राइमरी स्कूल में एक सहायक शिक्षक की नौकरी मिली।

लेयलैंड कहते हैं, “शिक्षक की पहली नौकरी मिलने के बाद मेरी ख्वाहिश काफी हद तक पूरी हो गई। मैं बहुत से बच्चों को सीखा पढ़ा सकता था और उन्हें बड़े सपने देखने के लिए प्रोत्साहित कर सकता था।”

लेयलैंड ने लगभग पाँच सालों तक अपनी बहनों की पढ़ाई का खर्च उठाया, जब तक कि उन्हें रोजगार नहीं मिल गया। 2000 में शादी के बाद लेयलैंड ने एक शिक्षक से परे जमीनी स्तर पर कुछ करने के बारे में सोचा और उन्होंने अपने समुदाय की सेवा करने का फैसला किया।

एलोवेरा की खोज

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एलोवेरा का पौधा (Aloe Vera Farming) मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम अरब प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। लेकिन एलोवेरा अब पूरी दुनिया में उगाया जाता है। यह सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसमें विटामिन और एंटीऑक्सिडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो त्वचा से जुड़ी समस्याओं जैसे कि सोरायसिस के इलाज में मदद करते हैं।

2006 में, नॉर्थ ईस्टर्न रीजन कम्युनिटी रिसोर्स मैनेजमेंट प्रोजेक्ट फॉर अपलैंड एरियाज़ (NERCOMP) ने इंटरनेशनल फ़ंड फ़ॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (IFAD) द्वारा वित्त पोषित, एलोवेरा की खेती (Aloe Vera Farming) और प्रोसेसिंग पर दो दिवसीय ट्रेनिंग का आयोजन किया।

उस समय तक लेयलैंड ने स्वंय सहायता समूह बनाने और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन समूह (NaRM-G) के तहत एक सामुदायिक आयोजक बनने में अपना चार साल पहले ही खर्च कर दिया था। उन्होंने एसएचजी के जरिए आसनंग और तुरा के बीच यात्रियों को नाव से लाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन बिजनेस सहित कई अन्य प्रयास शुरू किए, लेकिन उचित मुनाफा न मिलने के कारण इसे बंद कर दिया गया।

गानोलग्रे कम्युनिटी हॉल में बहीखाता प्रशिक्षण पूरा करने से लेकर, तुरा के पशुधन प्रबंधन प्रशिक्षण तक, लेयलैंड ने समुदाय में बदलाव लाने के लिए कई तरीके आजमाए। हालाँकि वह 78 सदस्यों की एक टीम के साथ कई सामुदायिक गतिविधियों के आयोजन में लगे रहे, फिर भी वह इससे परे बहुत कुछ करना चाहते थे। उनका सपना तब पूरा हुआ जब NERCOMP से उन्हें एलोवेरा के फायदे और इसके बिजनेस से होने वाले मुनाफे के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।

“2006 के प्रशिक्षण ने हमें काफी-कुछ नई चीजें सिखाई, हम में से अधिकांश को इस तरह की खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। छह महीने बाद, हमें कर्नाटक के एलोवेरा प्रशिक्षण संस्थान से 40,000 पौधे मिले। हमने उन्हें लगाया लेकिन तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के कारण प्रोजेक्ट को रोकना पड़ा। यह कोई बड़ा झटका नहीं था, बल्कि एक अस्थायी बाधा थी जिससे निपटकर हम अगले दो वर्षों में आगे निकल गए।

उन्होंने राज्य के भीतर और बाहर आईएफएडी द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं में भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने एलोवेरा की खेती (Aloe Vera Farming) और इसके उत्पादों के निर्माण के तकनीकी कौशल सीखने के लिए कई लोगों को प्रोत्साहित किया। 2012 में, उन्हें मणिपुर के सेनापति जिले में किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया गया, और फिर रायपुर, छत्तीसगढ़ में।

बदलाव की लहर

Source: Wikimapia (L) / MBDA(R)

आखिरकार उनके प्रयासों से, 2009 में, पश्चिम गारो हिल्स के डिप्टी कमिश्नर द्वारा एक नया एलोवेरा प्रोसेसिंग कारखाना स्थापित किया गया। लेयलैंड ने जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA) और भारत सरकार के तहत स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGY) नामक एक ग्रामीण विकास योजना की सहायता से जूसर, जेल एक्सट्रेक्टर, कटिंग उपकरण, फिलिंग और सीलिंग मशीन, साबुन प्रोसेसिंग मशीन आदि मशीनरी लगाई।

NERCOMP परियोजना का एक हिस्सा है, जबकि IFAD ने प्रोसेसिंग इकाई के निर्माण की दिशा में 10 प्रतिशत का योगदान दिया, गाँव के समुदाय ने बुनियादी ढांचे की दिशा में 30 प्रतिशत का योगदान दिया। शेष योजना द्वारा कवर किया गया था।

साबुन से लेकर जेल तक कारखाने में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को संसाधित किया जाता था और दोनों को तुरा सुपरमार्केट में दुरमा केव नामक एक दुकान से बेचा जाता था। गर्मियों के मौसम में जब एलोवेरा के विकास में तेजी आती है, तो कारखाने में हर दिन 500 से अधिक बोतल जूस, 500 बोतल एलोवेरा जेल और 500 से अधिक साबुन का निर्माण किया जाता है।

एलोवेरा के फायदों के बारे में पता चलने के बाद उनके ग्राहक बढ़ गए, जिससे उन्हें लाखों रूपए का मुनाफा हुआ। एसएचजी का वार्षिक राजस्व शुरू में लगभग 7,00,000 रुपये था जो 2019 में बढ़कर 20,00,000 रुपये पहुँच गया।

इसी मुनाफे से उन्होंने समुदाय के लिए भी बहुत कुछ किया। अपनी आय का एक हिस्सा उन्होंने गाँव के विकास में लगाया। उन्होंने गाँव में न सिर्फ पुलिया और सड़कें बनवायी बल्कि सार्वजनिक और निजी शौचालय का भी निर्माण कराया। उन्होंने 497 लोगों की आबादी वाले गाँव में 76 घरों में शौचालय का निर्माण कराया।

उनकी सफलता के कारण, 2016 में, उन्हें उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम लिमिटेड (NERAMAC) द्वारा एक उभरते चेंजमेकर और राज्य में एक होनहार कार्बनिक संस्थापक के रूप में मान्यता दी गई थी।

हालांकि, इतनी बड़ी सफलता के बावजूद 2020 में उनके काम में एक ठहराव आ गया। हालाँकि पौधा क्षेत्र में अच्छी तरह से विकसित हुआ लेकिन उत्पादों को बनाने के लिए कच्चे माल को कोलकाता और अहमदाबाद से महंगी दर पर आउटसोर्स करना पड़ा। यह व्यवस्था पिछले 10 वर्षों से काम कर रही थी, लेकिन इस वर्ष उनके संसाधन समाप्त हो गए और महामारी के दौरान स्थिति बिगड़ गई। यहाँ तक ​​कि सिलीगुड़ी, गुवाहाटी और कोलकाता से आने वाली पैकेजिंग अधिक महंगी हो गई।

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लेयलैंड ने कहा, “कारखाने को चलाने की चुनौती अलग थीं। मानसून के दौरान भी कारखाने में उत्पादन प्रक्रिया धीमी हो गई। साथ ही मशीनरी का रखरखाव करना भी काफी महंगा था। इसके अलावा कुछ समुदाय के सदस्य जो SHG का हिस्सा नहीं थे, उन्होंने कलह पैदा करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे चीजें खराब हो गईं और हमें इसे बंद करना पड़ा। जब कारखाना चल रहा था तो बहुत अच्छा मुनाफा होता था लेकिन बंद होने के बाद बाहरी मदद के बिना हम इस व्यवसाय को फिर से शुरू नहीं कर सकते।”

NERCOMP में संस्थागत विकास अधिकारी सीताराम प्रसाद वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं, ” लेयलैंड के बनाए सफल मॉडल को हमने पड़ोसी क्षेत्रों के 20 से अधिक गाँवों में लागू किया। लेकिन समय के साथ, मार्केटिंग की कमी और COVID-19 के कारण पूंजी के संसाधनों की कमी की चुनौतियों ने अधिकांश काम रोक दिया। हम इस उद्योग को फिर से शुरू करने के लिए कोशिश कर रहे हैं। उद्योग बंद हो जाने से हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। इस बीच ग्रामीणों की मदद के लिए पशुधन और जैविक खेती से जुड़े कई अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चल रहे हैं।”

“कभी हार मत मानो”

इतने बड़े झटके के बावजूद लेयलैंड की कोशिशें जरा भी कम नहीं हुई हैं। उन्हें उम्मीद है कि महामारी के बाद वह एलोवेरा के व्यवसाय को फिर से शुरू करेंगे और उससे अधिक मुनाफा कमाएंगे। वह समुदाय को स्थायी विकल्पों जैसे जैविक खेती और मछली पालन का प्रशिक्षण देने का काम कर रहे हैं।

लेयलैंड कहते हैं, “मैंने समुदाय की वैकल्पिक आजीविका के लिए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हमारी मदद करने के सिलसिले में मत्स्य विभाग से संपर्क किया है। मैंने चार जर्सी गायों के साथ अपना खुद का बिजनेस भी शुरू किया है जो हर दिन लगभग आठ लीटर दूध देती हैं। मैं SHG को दोबारा शुरू करने के लिए दूध से होने वाली आय का एक हिस्सा इस्तेमाल कर रहा हूँ और मुझे उम्मीद है कि चीजें जल्द ही फिर से बदलेंगी।”

एक बेटी और तीन बेटों के पिता लेयलैंड का सपना अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देना है। लेयलैंड को अपने खराब हालात के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। उन्हें उम्मीद है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद उनके बच्चे उनकी विरासत को आगे ले जाएंगे और समुदाय के लिए कुछ करेंगे।

उन्होंने कहा, “शिक्षा का बहुत बड़ा उद्देश्य बदलाव लाना है और मुझे उम्मीद है कि मेरे बच्चे करियर बनाएंगे, जिससे अपने समुदाय की मदद कर पाएंगे। अपनी खुद की क्षमता के अनुसार मैं गाँव में कृषि, बागवानी और पशुधन में प्रशिक्षण के और अधिक रास्ते खोलने की कोशिश कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि अधिक लोग इससे सीखकर अपना काम शुरू करेंगे ताकि समय के साथ हम सभी एक सकारात्मक बदलाव ला सकें। ”

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मूल लेख: अनन्या बरुआ 


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