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कैब बुक करने से लेकर खाना ऑर्डर करने तक, बुज़ुर्गों को बनाया टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर

आज के डिजिटल जमाने में हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, हमारे बड़े बुजुर्ग उसी रफ्तार से कहीं न कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। हालांकि, वे पुरजोर कोशिश में जुटे हैं कि आज की पीढ़ी की तरह ‘टेक्नोलॉजी-फ्रेंडली’ हो जा,एँ लेकिन यह आसान काम नहीं है। इन बुजुर्गों की इस परेशानी को हल करने की पहल की, मुंबई की एक युवती ने। मुंबई की रहने वाली 27 वर्षीया महिमा भालोटिया, बुजुर्गों को Social Media Training देकर डिजिटल रूप से सशक्त बनाने में जुटी हैं। इसके लिए, उन्होंने लॉकडाउन में एक पहल की, जिसक नाम है- ‘द सोशल पाठशाला’। 

द सोशल पाठशाला के जरिए, महिमा 50 से ज्यादा उम्र के लोगों को स्मार्ट फोन चलाना, इंटरनेट इस्तेमाल करना, मोबाइल एप्लीकेशन इस्तेमाल करना और नेट-बैंकिंग जैसी चीजें सिखा रही हैं। वह बताती हैं कि उन्हें यह आईडिया लगभग दो साल पहले आया था और उन्होंने इस पर काम भी करना चाहा, लेकिन अपनी जॉब के कारण कर नहीं पाई। लेकिन, 2020 में लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने इस पहल के बारे में विचार किया। वह कहती हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं थी, लेकिन उन्हें लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। 

महिमा अब तक 400 बुजुर्गों को डिजिटल तकनीक सिखा चुकी हैं। उनके ये छात्र अब बिना किसी पर निर्भर हुए, खुद खाना ऑर्डर कर सकते हैं, कैब बुक कर सकते हैं और ऑनलाइन पेमेंट भी खुद कर रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस सफर के बारे में बताया। 

कैसे मिला आईडिया:

महिमा बताती हैं कि उन्होंने तीन साल तक ‘मैरिएट इंटरनेशनल’ के साथ काम किया है। वहां पर वह हॉस्पिटैलिटी सेक्शन में थी और साथ ही, वहां के कुछ स्टाफ को सोशल मीडिया और डिजिटल तकनीकों के बारे में बताती रहती थीं। वह कहती हैं, “एक बार, मैं अपनी टीम के साथ लंच कर रही थी और तभी हमारे बॉस की माँ का बार-बार उन्हें फोन आ रहा था। वह उनसे उबर कैब बुक करने के लिए कह रही थीं। उस वक्त मेरे बॉस ने मजाक में कहा कि महिमा तुम्हें बुजुर्गों को डिजिटल तकनीक सिखानी चाहिए।” 

महिमा भालोटिया, जो बुज़ुर्गों को Social Media Training दे रही हैं।

महिमा ने जब यह आईडिया घर पर अपनी माँ को बताया, तो उन्होंने भी कहा कि उन्हें ऐसा करना चाहिए। लेकिन, उस समय अपनी जॉब के कारण, महिमा इस पर ज्यादा काम नहीं कर पाई। वह आगे कहती हैं, “लॉकडाउन से कुछ समय पहले ही मैंने अपनी जॉब बदलने के बारे में सोचा था और मुझे दूसरी जगह से ऑफर लेटर भी मिल गया था। लेकिन, फिर लॉकडाउन लग जाने के कारण, मैं वहां ज्वाइन नहीं कर पाई और जिस तरह से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही थी, कुछ भी निश्चित नहीं था। उस समय मेरी माँ ने मुझसे कहा कि तुम्हें अपना समय किसी सही जगह लगाना चाहिए।” 

लॉकडाउन के दौरान, महिमा ने एक बार फिर अपने आईडिया पर काम शुरू किया। क्योंकि उस समय लोगों को डिजिटल तकनीकों की बहुत ज्यादा जरूरत थी। हालांकि, उन्हें ज्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन उन्हें बहुत से लोगों ने क्लास लेने के लिए संपर्क किया। लॉकडाउन के कारण वह लोगों को जाकर या अपने यहां बुलाकर नहीं पढ़ा सकती थीं। इसलिए, उन्होंने ज़ूम पर अपनी क्लास शुरू की। पहले उन्होंने हरेक को अलग-अलग, ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया। फिर उन्होंने ग्रुप सेशंस भी करने शुरू किये। 

वह कहती हैं, “ज्यादातर लोगों को ज़ूम भी इस्तेमाल करना नहीं आता था। इसलिए, मैंने पहले उन्हें व्हाट्सएप वीडियो कॉल पर ज़ूम इस्तेमाल करना सिखाया। इसके बाद, उनकी क्लास शुरू की। यह सच है कि बुजुर्गों को पढ़ाने के लिए, आपको बहुत संयम और धैर्य की जरूरत होती है। लेकिन, जब वह सीख जाते हैं और उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होती है, उससे ज्यादा संतोषजनक कुछ भी नहीं।”

अलग-अलग शहरों के बुजुर्गों की मदद: 

महिमा की क्लास (Social Media Training) से सिर्फ मुंबई ही नहीं, बल्कि पुणे, जयपुर और कोलकाता जैसी जगहों के भी लोग जुड़ते हैं। वह कहती हैं कि एक सप्ताह में वह कम से कम चार सेशन रखती हैं। अब वह ग्रुप सेशन भी लेती हैं। क्योंकि, एक-दूसरे के साथ सीखने में ये बुजुर्ग ज्यादा खुश रहते हैं। उनके ग्रुप सेशन में 10 से 14 लोग होते हैं। उनकी एक छात्रा, 62 वर्षीया लेखा नम्बियार बताती हैं कि वह अंग्रेजी की प्रोफेसर रही हैं और हमेशा से ही स्मार्ट फोन और डिजिटल तकनीकों को और बेहतर तरीके से सीखना चाहती थीं और Social Media Training भी लेना चाहती थो।

ज़ूम पर Social Media Training

लेखा ने महिमा से ट्विटर सीखने से शुरुआत की, ताकि वह देश-दुनिया में हो रही चीजों को जान सकें। लेकिन, क्लास में उन्हें पता चला कि वह ट्विटर को शिकायत करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकती हैं। उन्होंने अर्बन क्लैप की सर्विस से संबंधित एक शिकायत को ट्वीट किया और उन्हें वहां पर कंपनी की तरफ से तुरंत प्रतिक्रिया मिली। इसी तरह, उनके एक 69 वर्षीय छात्र सुरेंद्र कौशिक, क्लब महिंद्रा में एक बुकिंग करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन, उन्हें कस्टमर केयर से कोई जवाब नहीं मिल रहा था। उन्होंने भी ट्विटर का इस्तेमाल करके आनंद महिंद्रा और क्लब महिंद्रा को संपर्क किया और उन्हें वहां भी प्रतिक्रिया मिली। 

वहीं 85 वर्षीया सुशीला शाह बताती हैं, “मुझे मोबाइल चलाना ज्यादा नहीं आता था। घर में भी सीखने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा नहीं आया। मुझे खाना बनाने का शौक है, लेकिन मेरे लिए खाने की तस्वीरें खींचना बहुत मुश्किल होता था। महिमा ने बहुत संयम से मुझे एक-एक करके चीजें सिखाई। अभी मैं मोबाइल अच्छे से चला लेती हूँ और अपने खाने की सभी तस्वीरें भी मैं खुद क्लिक करती हूँ।” 

महिमा कहती हैं, “मैंने यह काम पैसे कमाने या बिज़नेस आईडिया से नहीं किया। मुझे लगता है कि आज के जमाने में हम आसपास के लोगों से घुलना-मिलना भूलते जा रहे हैं। वैसे तो यूट्यूब पर आपको बहुत से वीडियो मिल जायेंगे, जहां आप मोबाइल चलाना सीख सकते हैं। लेकिन, किसी के समझाने का और जब आप सीखते हो, तो उस ख़ुशी को मनाने का जो आनंद है, वह एक-दूसरे के साथ ही आता है। मैंने जब शुरूआत की, तो कभी फीस के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन, मुझसे सीखने के बाद खुद मेरे छात्रों ने आगे बढ़कर मुझे फीस दी और कहा कि अगर तुम फीस लोगी, तो ज्यादा से ज्यादा लोग, जिम्मेदारी से सीखेंगे, क्योंकि वे पैसे देकर सीख रहे हैं। इसलिए मैंने एक न्यूनतम फीस रखी है।” 

हालांकि, हर सप्ताह महिमा एक ‘डाउट सेशन’ भी रखती हैं, जिसमें उनका कोई भी छात्र आ सकता है और अगर उन्हें कोई समस्या है, तो वह उनसे पूछ सकते हैं। इस ‘डाउट सेशन’ की कोई फीस नहीं होती है। इन बुजुर्गों के लिए महिमा सिर्फ एक शिक्षक नहीं हैं, बल्कि वह अब उनकी दोस्त हैं, जिन्हें वे अपने सभी तरह के संदेह बताते हैं। कोरोना महामारी के कारण बहुत से बुजुर्ग अपने घरों में अकेले हैं और परिवारों से दूर हैं, ऐसे में महिमा की ये क्लासेज उनके लिए ऑनलाइन ही सही, लेकिन उन्हें दूसरों से जोड़ने का काम कर रही हैं। 

रखती हैं फ्री डाउट क्लास

अब महिमा अपने बहुत से बुजुर्ग छात्रों के साथ लाइव चैट भी करती हैं और उनसे उनके अनुभवों के बारे में पूछती हैं। वह कहती हैं कि बहुत से लोगों का जीवन इतना दिलचस्प है कि हम सब उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसलिए, महिमा ने एक और पहल की है ‘द सीनेजर डायरी’- मतलब ‘सीनियर टीनेजर’ की डायरी। इसके जरिए, वह इन ‘सीनियर सिटीजन’ के अनोखे अनुभवों और जिंदगी जीने के तरीकों को लोगों के सामने रख रही हैं। अब तक उन्होंने चार बुजुर्गों की कहानियां साझा की हैं। महिमा कहती हैं, “इन सबकी कहानियां अपने आप में खास हैं। अगर आप कभी उनके जमाने को, उनकी जुबानी सुनने की और जानने की कोशिश करेंगे तो आपको भी मजा आएगा और आप बहुत कुछ सीखेंगे भी। जैसे- मैंने अपने एक बुजुर्ग छात्र से, हमेशा कोशिश करते रहना और दूसरों की मदद करना सीखा है। वह नेवी में कैप्टन रह चुके हैं और क्लास के दौरान हमेशा दूसरों की मदद करने की भी कोशिश करते हैं।” 

महिमा का उद्देश्य सिर्फ तकनीक पर काम करना है। वह कहती हैं कि उनसे जितना हो पायेगा, वह उतना ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिजिटल तौर पर सशक्त करने की कोशिश करेंगी। वह कहती हैं, “आजकल सबकुछ ‘ऑटोमैटिक’ हो रहा है। पहले, ग्राहकों को कुछ जानने या बताने के लिए लोग होते थे, लेकिन अब तो वैसा सिस्टम भी नहीं रहा। लोग ऑनलाइन पढ़ाई के लिए, पहले से रिकॉर्ड किए हुए वीडियो लेक्चर इस्तेमाल कर रहे हैं। डिजिटल तकनीक बढ़ रही है, यह अच्छी बात है। लेकिन, इस सबमें इंसानी भावना और विचार नहीं खोने चाहिए। इसलिए अगर मेरे काम का स्तर बढ़ा, तो भी मैं इस बात का ख्याल रखूंगी कि मैं हमेशा लोगों से जुड़ी रहूं और खुद उन्हें पढ़ाऊँ।”

अगर आप महिमा से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं। 

संपादन – प्रीति महावर

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