मार्च 1993 में मुबंई में हुए सीरियल बम धमाकों में 257 लोगों की मृत्यु हुई थी तथा 713 व्यक्ति घायल हुए थे ।
पर क्या आप जानते हैं यह संख्या बहुत आसानी से हजारों में पहुँच सकती थी, अगर एक बहादुर लैब्रोडार नस्ल का कुत्ता ‘जंजीर‘ न होता।
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बम निरोधक दस्ते के साथ काम करते हुए ‘जंजीर’ ने लगभग 3329 किलोग्राम से ज्यादा आरडीएक्स विस्फोटक, 600 डेटोनेटर, 249 हैण्ड ग्रेनेड और 6000 राउण्ड्स से ज्यादा कारतूस ढूँढ निकाला।जंजीर की बहादुरी के कारण ही मुंबई में सीरियल बम धमाकों में से तीन बम धमाके टल गए और अनगिनत लोगों की जान बच गई।
‘मुंबई पुलिस डॅाग स्क्वायड’ की शुरुआत 9 दिसम्बर, 1959 में हुई थी। उस समय उनके पास केवल तीन डॅाबरमैन पिनशर्स – कुमार, बिन्दो और राजा थे। इन्हें मुख्य रुप से आपराधिक मामलों की खोजबीन और समाधान के लिये इस्तेमाल किया जाते थे। आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ने के साथ-साथ मुंबई पुलिस ने अपने दस्ते में अच्छी घ्राणशक्ति वाले कुत्तों (स्निफ्फर डॉग्स) को जोड़ना शुरु किया, जो विस्फोटक, गोला-बारुद तथा नशीली चीजों को ढूँढ निकालने में सहायक हो। 1993 में जब मुंबई में बम धमाके हुए, तब मुंबई पुलिस बम खोजी और निरोधक दस्ते (Mumbai Police Bomb Detection and Disposal Squad) के पास 6 कुत्ते थे, जिसमें ‘जंजीर’ भी शामिल था।
जंजीर का नाम 1973 में आयी प्रसिद्ध बॅालीवुड एक्शन फिल्म ‘जंजीर’ के नाम पर रखा गया था। जंजीर की ट्रेनिंग पुणे में शिवाजी नगर स्थित आपराधिक जाँच विभाग (सी.आई.डी) के डॅाग ट्रेनिंग सेन्टर में हुई थी।
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अपने बालों के रंग के कारण जंजीर को प्यार से ‘जिंजर’ भी बुलाया जाता था। जंजीर साधारण स्निफ्फर डॉग्स की तरह नहीं था, वह दस्ते का सबसे बेहतरीन बम खोजी कुत्ता माना जाता था। जंजीर को संभालने का कार्य गणेश अंडले और वी.जी. राजपूत का था। जंजीर उनके प्रति समर्पित था।जंजीर ने अपने पूरे करियर में भारी मात्रा में अवैध सामान ढूँढ निकाला, जिसमें 175 पेट्रोल बम, 57 देशी बम, 11 मिलिट्री बम, 600 डेटोनेटर और 200 से ज्यादा ग्रेनेड शामिल हैं।
जंजीर की बहादुरी को देखते हुए देश के तमाम राज्यों की पुलिस ने मजबूत स्निफ्फर डॉग्स को अपने दस्ते में शामिल करना शुरु कर दिया। आज के समय में ज्यादातर राज्यों की पुलिस के दस्ते में लैब्राडार, जर्मन शैफर्ड और डॅाबरमैन पिनशर मौजूद है। दिल्ली की पुलिस ने सुरक्षा के संबंध में एक कदम आगे बढ़ाते हुए आवारा गली में घुमने वाले कुत्तों को अपने दस्ते में भर्ती कर, प्रशिक्षण देने का काम किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड ने अपनी के-9 यूनिट में मैलिनॅायस (बेल्जियन शेफर्ड) नस्ल को नियुक्त किया जबकि सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिजर्व बल ने राजापालयम(भारतीय प्रजाति) को अपनी मदद के लिए दस्ते में शामिल किया हुआ है।
नवंबर 2000 में बोन कैंसर के कारण जंजीर की आठ वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। उसकी त्रुटिहीन सेवा के लिए उसे पूरे राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। उसे दफनाने से पहले उसके साथ काम करने वाले पुलिस अधिकारियों ने उसे श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
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अपनी सेवाओं के कारण जंजीर को भुलाया नहीं जा सकता। मुंबई में एक मजदूर संघ के नेता और नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रतिष्ठान के अध्यक्ष, दिलीप मोहते 16 साल से 16 नवंबर को जंजीर की पुण्यतिथि मनाते हैं। दिलीप मोहते का मानना है कि जंजीर की असाधारण खोजी प्रवृत्ति और अद्भुत समर्पण को पुलिस फोर्स में पहचान मिलनी चाहिए।
दिलीप कहते है, “जब एक सिपाही शहीद होता है, तो उसे मेडल प्राप्त होता है, लेकिन इन जानवरों का त्याग अनदेखा ही रह जाता है।
जंजीर की कहानी के बाद यह महसूस किया जा सकता है कि कुत्ते कितने वफादार होते हैं और अपनी दोस्ती ताउम्र निभाते है। साथ ही देश की सुरक्षा के लिये भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।