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महाराष्ट्र : ‘पेयर रो सिस्टम’ से खेती कर, सालाना 60 लाख रूपये कमा रहा है यह किसान!

गर कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा न हो तो अक्सर हम कहते हैं ‘जाकर खेती कर’। भारत में खेती को हमेशा से ही अनपढ़ और देहाती लोगों का पेशा माना गया है। पर महाराष्ट्र के पुणे में बारामती से ताल्लुक रखने वाले एक किसान कपिल जाचक इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि किसान बनने के लिए और खेती में आगे बढ़ने के लिए भी आपका समझदार और पढ़ा-लिखा होना बेहद ज़रूरी है।

भारत के आधुनिक किसानों की फ़ेहरिस्त में शामिल होने वाले कपिल जाचक ने माइक्रोबायोलॉजी में ग्रेजुएशन की है। वे हमेशा से ही खेती के प्रति काफ़ी तत्पर रहे हैं। बातचीत के दौरान जाचक ने द बेटर इंडिया को बताया,

“मैं पिछले 18 साल से खेती से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे हमेशा से ही फसल की पैदावार और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाना पसंद था। इसलिए मैं हमेशा खेती से जुड़ी नई और आधुनिक तकनीकों के बारे में जानने की कोशिश करता रहता।”

कपिल जाचक

जाचक को उनके परिवार का पूरा साथ मिला और उनके पिता ने उन्हें खेती के लिए कोई भी आधुनिक तकनीक अपनाने से नहीं रोका। वे बताते हैं कि उनके यहाँ केले, अनार और गन्ने की खेती भरपूर मात्रा में होती है। वे खुद अपनी 40 एकड़ जमीन में से 12 एकड़ जमीन पर केले की खेती करते हैं।

जाचक को आज एक सफ़ल आधुनिक केला किसान के तौर पर जाना जा रहा है। उनके द्वारा केले की खेती करने का तरीका पारम्परिक तरीकों से काफ़ी अलग, नया और किफ़ायती है। उनके तरीके से आज महाराष्ट्र में बहुत से किसान केले की खेती कर रहे हैं और अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। इसलिए उनके इस तरीके को लोग ‘जाचक पैटर्न’ के नाम से जानने लगे हैं।

‘जाचक पैटर्न’ से हुआ लाखों का मुनाफ़ा

भारत के ज्यादातर हिस्सों में ‘सिंगल रो पैटर्न’ से ही केले की खेती की जाती है, जिसमें ज़्यादा लागत लगती है। सिंगल रो पैटर्न में किसान को केले के एक बीज से 3 पौधे मिलते हैं, जिन्हें फलने में 36 महीने लग जाते हैं। इस पैटर्न में पौधों को काफ़ी दूरी पर लगाया जाता है, जिसकी वजह से जब केले की पैदावार आती है, तो किसानों को अलग से हर एक पेड़ के साथ बाँस लगाना पड़ता है ताकि केले के उस भारी गुच्छे को सहारा रहे। इस सब में किसान को अलग से 25-30 हज़ार रूपये खर्च करने पड़ते हैं। साथ ही पेड़ एक दूसरे दूर होने के कारण सिंचाई के लिए मजदूरों की ज़रूरत पड़ती है।

इन सभी समस्याओं को देखते हुए जाचक ने अलग-अलग तरीके ढूँढना शुरू किया, जिससे उनकी लागत कम हो और पैदावार ज़्यादा। ऐसे में उन्हें फिलीपींस में इस्तेमाल किये जाने वाले ‘पेयर रो सिस्टम’ के बारे में पता चला। जाचक ने इस सिस्टम को धीरे-धीरे अपने खेतों में आज़माना शुरू किया।

इस तरह की खेती में केले के पेड़ों को बहुत कम दूरी पर दो कतारों में लगाया जाता है और दो पेड़ों के बीच का फ़ासला भी कम रखा जाता है। ऐसा करने से किसान कम जगह में ज़्यादा पेड़ लगा पाते हैं और साथ ही वे इसमें सिंचाई के लिए ‘ड्रिप इरीगेशन’ याने की तकनिकी रूप से सिंचाई का सहारा ले सकते हैं। इस तरह मजदूर का खर्च भी बच जाता है। पेड़ों को एक दूसरे का सहारा मिलने की वजह से केले के गुच्छों के लिए अलग से बांस लगाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। इस तरह इस तरीके से फ़सल उगाने में कम से कम लागत में काम बन जाता है।

कपिल के मुताबिक पेयर रो सिस्टम में सिंगल रो सिस्टम के मुकाबले तीन गुना फ़सल लगायी जा सकती है, साथ ही 36 की जगह 25 से 26 महीनों में ही ये पेड़ तैयार हो जाते हैं।

पिछले कई सालों से जाचक इसी पैटर्न से सफल खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि केले की खेती में प्रति एकड़ जहाँ उनकी लागत ज़्यादा से ज़्यादा एक लाख रूपये आती है, वहीं वे हर एकड़ से लगभग 4 लाख रूपये कमा लेते हैं। सारी खेती से उनका साल का टर्नओवर 60 लाख रूपये है, जिसमें से लगभग 30 लाख रूपये की कमाई सिर्फ़ केले की खेती से आती है।

विदेश भी जाते हैं जाचक के जैविक फल

केले के आलावा कपिल जाचक अनार और गन्ना भी उगाते हैं

आधुनिक खेती के आलावा उन्होंने फलों के बाज़ार में भी अपनी पहचान बनाई है। वे लगातार बाज़ार में केला विक्रेताओं के सम्पर्क में रहते हैं और साथ ही, पिछले कई सालों से वे भारत के बाहर भी फल भेज रहे हैं। विदेशों में फल एक्सपोर्ट करने के लिए फलों की गुणवत्ता पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। इसी बात को समझते हुए जाचक अब पूरी तरह से जैविक खेती की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वे अपने खेत में खुद अपना खाद बनाते हैं और साथ ही अन्य लोगों तक भी इसकी जानकारी पहुंचाते हैं। उनके जैविक फलों की पहुँच आज यूरोप के साथ-साथ अरब देशों में भी है। जाचक केले की खेती के आलावा अनार और गन्ने की खेती करते हैं।

अन्य किसानों की भी कर रहे हैं मदद

जाचक की इस कामयाबी से आज और भी किसान प्रेरित हो रहे हैं और अब जाचक अलग-अलग जगह जाकर इन किसानों को वर्कशॉप के ज़रिये यह तरीका सिखाते है। देश भर में आज जाचक की पहचान केले की खेती के लिए सलाहकार के तौर पर भी है। जाचक न सिर्फ़ खुद आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि और भी किसानों को आगे बढ़ा रहे हैं।

वे बताते हैं,

“छोटे किसानों को भी हम अपने साथ जोड़ रहे हैं। ये वो किसान हैं, जिनके पास बहुत कम जमीन है और उन्हें फसल के तुरंत बाद अगली फसल के लिए पैसा चाहिए होता है। इसलिए इन सभी किसानों को मैंने अपने फार्म से जोड़ा हुआ है, ताकि इन्हें इनकी फसलों का सही मूल्य सही समय पर मिल सके।”

अगली पीढ़ी के लिए ‘एग्रो-टूरिज्म’

“आजकल अगर आप शहरों में बच्चों से पूछे कि फल कहाँ से आते हैं, तो वे कहेंगे कि दुकान से या फिर सुपरमार्किट से। लेकिन मेरी कोशिश सिर्फ़ इतनी सी है कि ये बच्चे जाने कि उनके घरों में आने वाले फल और सब्जी किसान की मेहनत और लगन का नतीजा है,” जाचक ने कहा।

इस दिशा में काम करते हुए कपिल जाचक ने अपनी पत्नी राधिका जाचक के साथ मिलकर एग्रो-टूरिज्म पहल शुरू की है। इसके ज़रिये वे स्कूल, कॉलेज आदि के बच्चों को अपने खेत में सैर के लिए आमंत्रित करते हैं और उन्हें खेती-किसानी के बारे में बताते हैं।

“हम सभी बच्चों और शहर से आने वाले लोगों को हमारे खेतों में घुमाते हैं। उन्हें हर एक फल और पेड़ के बारे में जानकारी देते हैं। साथ ही, उन्हें आधुनिक खेती के प्रति जागरूक किया जाता है। और बाद में, हम इन्हें बैलगाड़ी में बिठाकर सैर करवाते हैं,” जाचक ने बताया।एग्रो-टूरिज्म का ज्यादातर काम राधिका जाचक सम्भालती हैं। राधिका ने भी माइक्रोबायोलॉजी में ग्रेजुएशन की है और साथ ही, पैथोलॉजी का कोर्स किया है। अपने पति के काम में वे हर तरीके से उनका साथ देती हैं। राधिका ही सभी स्कूल, कॉलेज आदि से सम्पर्क कर, उन्हें अपने छात्रों को उनके खेत के दौरे पर भेजने के लिए कहती हैं।

अपनी पत्नी राधिका जाचक के साथ कपिल जाचक

परेशानियाँ और हल

कृषि से जुड़ी परेशानियों के बारे में बात करते हुए जाचक कहते हैं कि हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या है कि जो भी कृषि संस्थान किसानों के लिए बने हैं, उन तक कभी किसान पहुंच ही नहीं पाते हैं। जो भी शोध या कोई आविष्कार कृषि वैज्ञानिक करते हैं, वह बहुत कम ही गाँव के खेतों तक आ पाते हैं।

जाचक का कहना है, “कभी भी आम किसान कृषि वैज्ञानिकों तक सीधे नहीं पहुंच पाते हैं। यहाँ तक कि किसानों के लिए जो साधन बनाये जाते हैं उनकी भाषा ज्यादातर अंग्रेजी या फिर मानक हिंदी होती है। पर अब इन संस्थानों को समझना होगा कि अगर वे चाहते है कि उनके किसी भी शोध का फायदा देश के आम किसानों को हो, तो उन्हें आम बोलचाल की भाषा में इसे किसानों तक लाना होगा।”

केले की खेती पर भारत में ज्यादा काम नहीं हुआ है। इसलिए किस-किस तरह की बीमारी इस फसल में लग सकती है या फिर उसे कैसे दूर किया जाये, इस सब पर काम होना बाकी है। पर जाचक ने फिलीपींस और कोस्टा रिका जैसे देशों के कृषि वैज्ञानिकों के साथ काम करते हुए, इस क्षेत्र में काफ़ी जानकारी इकट्ठी की है।

कपिल जाचक ने केले की खेती में अपनी थ्योरी और प्रैक्टिकल, दोनों ही अनुभव के आधार पर मराठी में एक किताब लिखना शुरू किया है। वे इस किताब को स्थानीय भाषा में लिख रहे हैं ताकि कोई बच्चा भी इसे आसानी से पढ़ पाए। अगर यह किताब मराठी में सफ़ल होगी तो जाचक इस किताब को हिंदी और इंग्लिश में भी अनुवादित करवाएंगे।

उपलब्धियाँ

कपिल जाचक के नाम अब तक का सबसे ज्यादा वजन, 92 किलोग्राम का केले का गुच्छा उगाने का रिकॉर्ड है। 

उन्हें उनके नवीनतम तरीकों के लिए साल 2008 में कृषि विज्ञान केंद्र ने ‘बेस्ट यूथ फार्मर’ का अवॉर्ड दिया था। इसके बाद साल 2016 में महाराष्ट्र सरकार ने भी उन्हें सम्मानित किया है। उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानी के और नई-नई तकनीक सीखने के लिए यूरोप भी भेजा गया था।

द बेटर इंडिया के माध्यम से कपिल जाचक एक सन्देश देते हैं,

“आने वाली पीढ़ी और शहर के युवाओं को यह समझाना है कि खेती करना कोई मामूली बात नहीं है और न ही यह पेशा सिर्फ़ अनपढ़-देहाती लोगों के लिए है। खेती में भी अब पढ़े-लिखे लोगों की ज़रूरत है। आज कोई भी कृषि को बाकी पेशों की तरह अपनाकर यदि कड़ी मेहनत करें तो वह यकीनन भारत में किसानी की तस्वीर बदल सकता है।”

खेती से संबंधित किसी भी जानकारी और सलाह के लिए आप कपिल जाचक से 9422205661 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

(संपादन – मानबी कटोच)


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