“मैंने बचपन से ही मेरे माता-पिता को जानवरों की देखभाल करते हुए देखा था। हम तब कोलकाता में रहते थे। हमारा घर बहुत से पशु-पक्षियों का घर भी हुआ करता था, जिन्हें मेरी माँ अक्सर घायल अवस्था में घर ले आती थीं और फिर हम उनकी देखभाल करते। बस उन्हीं से मुझे जानवरों के प्रति यह प्यार और संवेदनशीलता मिली,” – शकुंतला मजुमदार
55 वर्षीय शकुंतला मजुमदार मुंबई में ‘ठाणे सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएलिटी टु एनिमल्स’ (ठाणे एसपीसीए) संगठन की प्रेजिडेंट हैं। साल 2002 में उन्होंने इस सोसाइटी की शुरुआत की थी। इसके ज़रिये वे न सिर्फ़ जानवरों के संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही हैं, बल्कि जानवरों के प्रति लोगों के मन में संवेदनशीलता व दया भाव लाना भी उनका उद्देश्य रहा है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं सातवीं क्लास में थी और अपनी स्कूल बस में स्कूल जा रही थी। हमारी बस के आगे एक कूड़ा-कचरा उठाने वाली गाड़ी जा रही थी। उस गाड़ी के पीछे उन लोगों ने एक कुत्ते को बाँध रखा था और उसे घसीटते हुए ले जा रहे थे, क्योंकि लोगों का कहना था कि वह पागल है। पूरे रास्ते मैंने उस मासूम को खून में लथपथ देखा और किसी ने कुछ नहीं किया। इस घटना ने मुझे हिला कर रख दिया और सबसे ज़्यादा बुरा मुझे इस बात का लगा था कि उस समय मैं कुछ नहीं कर पायी। शायद वहीं से मेरे दिल में घर से बाहर भी जानवरों के लिए कुछ करने का जज़्बा जागा था।”
साल 1982 में शकुंतला 18 साल की थीं जब वे मुंबई आयी। हमेशा से ही उनके मन में समाज सेवा की प्रबल भावना थी और इसलिए अपनी पढ़ाई के दिनों में ही वे मदर टेरेसा चैरिटी होम से जुड़ गयीं। कई सालों तक उन्होंने इस संस्था के साथ मिलकर गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के लिए काम किया। इसके साथ- साथ जानवरों के प्रति उनका प्यार वैसा ही बना रहा जैसा कि कोलकाता में था।
लेकिन जानवरों के प्रति इंसानों का रुखा और नफरत भरा व्यवहार उन्हें अक्सर झकझोर देता था।
“साल 1992 से मैंने मीरा-भायंदर में स्थानीय स्तर पर एनिमल वेलफेयर की दिशा में काम करना शुरू किया और फिर 1994 में ‘सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ एनिमल्स एंड नेचर’ (एसपीसीए) से जुड़ गयी। यहीं पर मेरी मुलाक़ात बहुत से सरकारी अधिकारियों से हुई, जो कि इसी क्षेत्र में काम कर रहे हैं।”
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यहीं पर काम करते हुए उन्हें ठाणे इलाके में जानवरों के साथ हो रही हिंसा की बहुत-सी ख़बरे मिलती थीं। इन पर काम करने के लिए उन्होंने इस इलाके में एसपीसीए शुरू करने का फ़ैसला किया।
वैसे तो सरकार की योजना के अनुसार राज्य के हर एक जिले में जानवरों की सुरक्षा के लिए इस तरह का संगठन होने आवश्यक है। लेकिन यह योजना भी बहुत-सी अन्य योजनाओं की तरह सिर्फ़ कागज़ों तक ही सीमित है। ऐसे में, शकुंतला ने निजी तौर पर साल 2002 में ठाणे एसपीसीए की शुरुआत की।
अच्छी बात यह थी कि इस काम में उन्हें ‘एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया,’ ‘वन-विभाग’ और अन्य बहुत-से अधिकारियों की सहायता मिली।
शकुंतला बताती हैं कि जब एसपीसीए शुरू हुआ, तब लोग जानवरों के साथ होने वाले अत्याचारों के प्रति जागरूक नही थे। इसलिए शुरुआत में उन्हें अपने संगठन के लिए स्टाफ नियुक्त करने में भी परेशानी हुई। लेकिन आज एसपीसीए के पास 25 लोगों का स्टाफ है। वे हर तरह के छोटे-बड़े जानवरों जैसे कि कुत्ता, बिल्ली, बन्दर, भैंस, गाय, मोर, ईगल, घोड़ा, गधा आदि के बचाव कार्य व संरक्षण के लिए काम करते हैं।
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जैसे-जैसे एसपीसीए का काम आगे बढ़ा, वैसे-वैसे और भी लोग इससे जुड़ते गये। उनके काम और समर्पण को देखते हुए, एक और समाजसेवी डॉ. नानजीभाई खिमजीभाई ठक्कर ने उन्हें जानवरों के लिए एक अस्पताल शुरू करने लिए ज़मीन दी। फिर बहुत से पशु-प्रेमीयों की मदद से साल 2005 में उन्होंने ठाणे एसपीसीए इमरजेंसी एनिमल केयर सेंटर की शुरुआत की।
जानवरों के लिए एक स्पेशल अस्पताल शुरू करने की प्रेरणा भी उनके जीवन में घटी एक घटना से उन्हें मिली। अपने घर के पास ही शकुंतला हर रोज़ एक कुत्ते को खाना खिलाती थीं। उससे उन्हें बहुत लगाव हो गया था। लेकिन वह किसी बीमारी के चलते ज़्यादा जी नहीं पाया। शकुंतला और उनके पड़ोसियों ने बहुत कोशिश की, कि उसे सही उपचार मिल सके, पर उसकी बीमारी तक का पता नहीं चला। इस घटना ने उन्हें जानवरों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करने के लिए प्रेरित किया।
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“इस केयर सेंटर में हम किसी भी जानवर को बिना किसी देरी के ट्रीटमेंट देते हैं। आज हमारे पास 3 एम्बुलेंस हैं और हमारा सेंटर हर दिन 24 घंटे काम करता है। जिन भी पशु या पक्षियों को हम बचाते हैं, उन्हें तो यहाँ इलाज के लिए रखा ही जाता है और उनकी पूरी देखभाल होती है, बाकी ज़रूरत पड़ने पर शहर के निवासी अपने पालतू जानवरों को भी यहाँ चेक-अप व इलाज के लिए लाते हैं,” शकुंतला ने बताया।
अब तक शकुंतला और उनकी टीम, एक लाख से भी ज़्यादा जानवरों का इलाज व संरक्षण कर चुके हैं!
शकुंतला का यहाँ तक का सफ़र इतना आसान नहीं रहा। इन बेज़ुबान जीवों की आवाज़ बनने के लिए उन्होंने बहुत-सी चुनौतियों का सामना किया। कभी लोग उन्हें दुत्कारते तो बहुत बार किसी केस में उन्हें कोई क़ानूनी मदद नहीं मिलती।
दशकों पहले हमारे संविधान में जानवरों के प्रति हिंसा के खिलाफ़ कानून (द प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएलिटी टू एनिमल्स एक्ट- 1960) बन चूका है और यदि कोई किसी जानवर को नुकसान पहुंचाता है, तो अपराधी के लिए सजा का प्रावधान भी है। पर शकुंतला बताती हैं कि इस कानून के बारे में आम नागरिकों को तो क्या, बहुत से पुलिस अधिकारियों को भी पता नहीं होता।
“इस वजह से, मैं अगर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ़ मुकदमा दायर करवाना चाहती, तो पुलिस वाले मुझे वापिस भेज देते। कहते कि ‘क्या हुआ मैडम, ऐसा तो हो जाता है, जानवर ही तो है’।”
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और तो और एक बार उन्हें किसी ने फ़ोन पर धमकी भी दी कि अगर उन्होंने जानवरों के लिए काम करना बंद नहीं किया तो वे उनकी बेटी को अगवा कर लेंगें। उन्हें पता है कि उनकी बेटी किस रास्ते से स्कूल आती-जाती है। इस तरह की बात सुनकर किसी भी माँ का दिल कांप उठे।
कुछ पलों के लिए उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। पर शकुंतला जानती थी, कि वे कुछ गलत नहीं कर रही हैं और उनका हौसला टूटने के बजाय बढ़ता रहा। क्योंकि उन्हें इन बेजुबानों का साथ और हौसला बनना था।
“हमारे देश में जानवर किसी के लिए भी प्राथमिकता नहीं हैं। बल्कि वे पैसे कमाने का ज़रिया हैं। उनके बालों से लेकर उनकी चमड़ी और मांस तक, हर एक चीज़ से लोग बस पैसा कमाना चाहते हैं। बहुत-से लोग उन्हें दिखावे के लिए भी इस्तेमाल करते हैं और जब उनका मन भर जाता है या फिर वे उनकी देखभाल नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें सड़कों पर बेसहारा छोड़ देते हैं। ऐसे ढ़ेरों केस हमारे पास आते हैं, जहाँ मालिकों ने अपने पालतू जानवरों के साथ हिंसा बरती होती है,” शकुंतला ने बताया।
दूसरा सबसे बड़ा सवाल है, जानवरों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ। शकुंतला कहती हैं कि हमारे यहाँ ख़ास तौर पर जानवरों के लिए प्रशिक्षित नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। साथ ही, इस क्षेत्र में काम करने के लिए स्वयंसेवक मिलना भी कोई आसान काम नहीं। और सबसे ज़्यादा जगह की कमी है क्योंकि अलग-अलग प्रजाति के इतने जीव-जंतुओं को एक साथ रखना अक्सर चुनौती भरा काम हो जाता है।
लेकिन इन सब चुनौतियों के बावजूद शकुंतला और उनकी टीम बिना रुके और बिना झुके इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। उनके जागरूकता अभियान अब अपना रंग दिखा रहे हैं, क्योंकि वे न सिर्फ़ आम लोगों की, बल्कि पुलिस वालों की भी सोच में बदलाव लाने में सफल हुए हैं।
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पहले जहाँ पुलिस उनकी शिकायतों पर बिलकुल गौर नहीं करती थी, आज वही पुलिस उनके एक फ़ोन पर तुरंत अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करती है। ठाणे के आस-पास के पुलिस स्टेशन के अफ़सर समय-समय पर एसपीसीए जाकर पशु-पक्षियों के साथ वक़्त भी बिताते हैं। यह परिवर्तन शकुंतला की कोशिशों का ही नतीजा है। बहुत-से स्कूल भी बच्चों को यहाँ दौरे पर लेकर आते हैं, ताकि बच्चों को जानवरों के संरक्षण के प्रति जागरूक कर सकें।
उनके इस निःस्वार्थ कार्य के लिए उन्हें साल 2016 में ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से भी नवाज़ा गया था।
लोगो में बदलाव लाने का सबसे ज़्यादा श्रेय वे सोशल मीडिया को देती हैं।
“सोशल मीडिया हमारे प्रयासों में बहुत कारगर साबित हुआ है। अगर इसका सही इस्तेमाल किया जाये, तो ज़रूरी मुद्दों पर एक साथ बहुत से लोगों से जुड़ना बहुत आसान है। जागरूकता फैलाने में यह बहुत सहायक है।”
द बेटर इंडिया के माध्यम से वे लोगों के लिए सिर्फ़ यही संदेश देती हैं, “मैं नहीं कहती कि हर इंसान को जानवरों से प्यार हो या फिर कहते हैं न कि वो एनिमल लवर हों। मैं सिर्फ़ इतनी गुज़ारिश करुँगी कि अगर आप जानवरों से प्यार नहीं कर सकते, तो उनसे नफरत भी न करें। और सबसे बड़ी चीज़ कि जो लोग इन बेज़ुबान जीवों के लिए कुछ करना चाहते हैं उन्हें आगे बढ़ने से मत रोकिये।”
यदि आप मुंबई में किसी भी जानवर के साथ हिंसा होते हुए देखें, या फिर किसी घायल जानवर को देखें, तो आप ठाणे एसपीसीए की एनिमल हेल्पलाइन 9322271966 या 8767612344 पर संपर्क कर सकते हैं! यदि आप यहाँ से कोई जानवर गोद लेना चाहें तो इस फेसबुक पेज पर जाएँ।
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