इस भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में शायद ही कोई है जो प्रकृति के करीब नहीं जाना चाहता है। वैसे प्रकृति के करीब जाने की बात कई लोगों को आकर्षित करती है लेकिन कुछ ही लोग हैं जो अपने इस सपने को सच में बदल पाते हैं।
अनीश शाह ऐसे ही लोगों में से एक हैं। अनीश की खेती में हमेशा से काफी दिलचस्पी रही है। शायद इसलिए उन्होंने 16 साल तक कॉर्पोरेट जगत में काम करने के बाद, अपने जुनून को आगे बढ़ाने का फैसला किया और 2016 में नौकरी छोड़ दी।
इसके बाद अनीश ने खेती विशेषज्ञों से ट्रेनिंग ली। हालाँकि ऐसा नहीं है कि खेती करना आसान था। इस काम शुरू करने में रास्ते में कई चुनौतियां आईं लेकिन उन्होंने उन सबका डटकर सामना किया।
42 वर्षीय अनीश शाह बताते हैं कि वह मार्केटिंग और सेल्स क्षेत्र में काम कर रहे थे और अच्छा-खासा कमा रहे थे। लेकिन कुछ साल बाद उन्हें लगने लगा कि वह अलग-अलग कंपनियों में एक ही तरह का तो काम कर हैं। काम के सिलसिले में उन्हें काफी यात्रा करनी पड़ती थी। और फिर उन्हें लगने लगा कि उनकी ज़िंदगी एक सूटकेस तक सिमट कर रह गई है। वह इस दौड़-भाग से थक चुके थे और ऐसा काम करना चाहते थे जो उन्हें अच्छा लगता था।
अब, अनीश एक जैविक किसान-उद्यमी हैं। 30 एकड़ ज़मीन पर वह करीब 20 तरह की फसल उगाते हैं। इन फसलों में मूंगफली, गेहूं, हल्दी, मक्का, काली मिर्च, आम और काजू शामिल हैं।
अर्थ हार्वेस्ट्स नाम का उनका एक फार्म-टू-टेबल वेंचर भी है, जहां वह हर सप्ताह ग्राहकों को ताजे जैविक और प्राकृतिक उत्पाद का टोकरा भेजते हैं।
वर्तमान में, उनके पास 400 से ज़्यादा ग्राहक हैं। अनीश बायोडायनामिक खेती की सरल तकनीकों का भी उपयोग करते हैं। यह एक तरह की खेती है जो बिना केमिकल के वैकल्पिक और प्राकृतिक रूप से की जाती है।
इसके अलावा, वह 1.5 एकड़ भूमि पर कृषिवानिकी का अभ्यास भी करते हैं जहां वह सिल्वर ओक, सागौन, चंदन और सुपारी, केले, अनानास, पपीता, अमरूद और चीकू के पेड़ उगाते हैं।
अपनी खेती और परामर्श सेवाओं के माध्यम से, अनीश प्रति वर्ष लगभग 60 लाख रुपये कमाते हैं। उन्होंने मध्य पूर्व और ब्रिटेन में भी अपनी सब्जियों का निर्यात किया है।
टेरेस गार्डनिंग से दिखाया रास्ता
अनीश मुंबई शहर में बड़े हुए और उनका खेतों से दूर तक नाता नहीं था। उन्होंने 1999 में सोमैया इंस्टिट्यूट से कॉमर्स में ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल की और बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ प्रिंट सेल्स एक्जक्युटिव के रूप में काम करना शुरू कर दिया। 2001 तक वहां काम करने के बाद, उन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल की।
16 वर्षों तक काम करते हुए, उन्होंने कई संस्थानों के साथ सेल्स और मार्केटिंग विभाग में काम किया है जिसमें टाइम्स ऑफ इंडिया, फ्यूचर मीडिया और नेटवर्क 18 शामिल हैं।
2012 में, उन्होंने बेंगलुरु में एक ऊर्जा कंपनी के उपाध्यक्ष के रूप में काम करना शुरू किया। वहां उनके घर पर एक टेरेस था। शहर का मौसम बागवानी के लिए उपयुक्त था और वह अपने टेरेस का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना चाहते थे।
अनीश ने थोड़ी मिट्टी, कुछ बीज और दो गमले लिए। दो महीने में गमलों की संख्या दो से 20 हो गई।
अनीश याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने अपने टेरेस पर बिना किसी केमिकल के चुकंदर, गाजर, कोकम, मिर्च, मूली, फ्रेंच बीन्स, टमाटर, बैंगन, पालक और मेथी उगाया। वह कहते हैं कि उनके टेरेस पर इतनी फसल होती थी कि उन्हें सब्जियां अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटनी पड़ती थी।
इस सुखद अनुभव ने उन्हें खेती के बारे में और जानने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कर्नाटक में जैविक खेती में अग्रणी नारायण रेड्डी के खेत पर करीब 20 दिन बिताए। नारायण रेड्डी से उन्होंने खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त की।
अनीश के पास उस समय कोई ज़मीन नहीं थी जहाँ वह खेती के बारे में सीखी गई चीज़ों को लागू कर सकें लेकिन अनीश के दोस्तों के पास ज़मीन थी। अनीश ने खेती के लिए अपने दोस्तों की ज़मीन का उपयोग करने और मुनाफे को बराबर बांटने का फैसला किया।
शुरूआती बाधाओं पर काबू
2016 में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और मुबंई के बाहरी क्षेत्र में खेती करने का फैसला किया। शहर से लगभग 70 किमी दूर, उन्होंने 16 एकड़ भूमि पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने इसे समतल किया, सिंचाई के लिए तालाब बनाए और अन्य सिंचाई प्रणालियों की स्थापना की। लेकिन, चीज़ें वैसी नहीं हुई जैसी अनीश ने सोची थी।
अनीश बताते हैं कि बारिश के मामले में वह साल विशेष रूप से खराब था और तब उन्हें एहसास हुआ कि भले ही उन्होंने काफी कुछ स्थापित किया हो, लेकिन ऐसी मिट्टी से अच्छी फसल नहीं उगा पाएंगे। तापमान 42 डिग्री के आसपास था। अनीश ने बताया कि उनके पैसे खत्म होने लगे इसलिए उन्होंने प्रोजेक्ट बंद कर दिया। उन्होंने बताया, “मैंने अपनी बचत से लगभग 8 लाख रुपये खर्च किए।”
अपना पहला अनुभव निराशाजनक होने के बाद भी अनीश ने खेती करने का सपना देखना नहीं छोड़ा। उन्होंने 15 दिनों के लिए हैदराबाद के पास ज़हीराबाद में एक खेत पर पर्माकल्चर कोर्स किया। इसके बाद उन्होंने गुजरात के आणंद में भाईकाका कृषि केंद्र से बायोडायनामिक खेती में एक और कोर्स किया।
अनीश अक्सर बाहरी इलाकों में कर्जत और सतारा जैसी जगहों पर जाते और किसानों से मिलते। 2017 में, उन्होंने बिचौलियों को खत्म करने और किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए अर्थ हार्वेस्ट शुरू किया।
इसके साथ ही उन्होंने परामर्श सेवाएँ भी देनी शुरू कर दीं और होम फार्म, टैरेस गार्डन, हाइड्रोपोनिक फार्म, वर्टिकल गार्डन स्थापित करने में लोगों की मदद करने लगे।
2019 उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था जब उनकी मुलाकात सिंधुदुर्ग के एक किसान से हुई। अनीश ने 30 एकड़ ज़मीन पर काम करना शुरू किया और यहीं से एक किसान के रूप में उनकी यात्रा शुरू की।
बायोडायनामिक खेती से मिली सफलता
अनीश बताते हैं कि बायोडायनामिक खेती बहुत हद तक जैविक खेती के समान है, बल्कि इससे एक कदम आगे है। यहां, बीज को बोने से पहले, मिट्टी में सावधानी से पोषक तत्व मिलाया जाता है।
वह कहते हैं, “1950 के दशक में, भारतीय मिट्टी में जैविक सामग्री चार प्रतिशत थी, जो अब घटकर 0.4 प्रतिशत रह गई है। लेकिन माइक्रोबियल गतिविधि को सुविधाजनक बनाने वाला ऑर्गेनिक सामग्री महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वस्थ पौधों को बढ़ने और वॉटर रिटेंशन में मदद करता है।”
उन्होंने बताया कि बायोडायनामिक खेती एक सरल विधि का पालन करती है जो स्वाभाविक रूप से मिट्टी में नाइट्रोजन, पोटेशियम और फास्फोरस को जोड़ सकती है। इसके लिए वह हरी खाद बनाते हैं, फलियां, बाजरा, मक्का और कुछ साग के बीज बोते हैं। 45 दिनों के बाद, जब ये फसलें उग जाती हैं, वह इन फसलों को उखाड़ने के लिए रोटावेटर का उपयोग करते हैं। फसलें मिट्टी को समृद्ध बनाती हैं और अगली फसल के लिए गीली घास का काम करती हैं, जो लंबी अवधि के लिए उगाया जाता है।
वह कहते हैं कि यह एक बहुत ही सुविधाजनक तरीका है, लेकिन लोगों को इसका लाभ समझने में समय लगता है। थोड़ी सी योजना और बीज पर करीब 1,000 रूपये खर्च करने के साथ, मिट्टी इतनी समृद्ध बनती है कि खाद पर कम खर्च आता है।
अनीश मोनोक्रॉपिंग यानी एक फसली से भी दूर रहे हैं। वह ‘कंपैनियन प्लांटिंग’ का अनुसरण करते है, जहां विभिन्न फसलों को पास-पास उगाया जाता है। यह कीट नियंत्रण और परागण में मदद करता है। अपने खेत में, उन्होंने हल्दी, तुअर दाल, मक्का, लौकी और करेले उगाते हैं।
इसके अलावा, वह जैविक उर्वरक बनाते है और कीट नियंत्रण के लिए अनोखे तरीकों का उपयोग करते हैं।
गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ और अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी को मिलकर जीवामृत तैयार किया जाता है। यह सूखे और तरल, दोनों रूपों में तैयार किया जाता है। इसमें जैविक और बेकार लकड़ी को जलाने से प्राप्त बायोचार भी मिलाया जाता है। वह मछली के कचरे को गुड़, एक चम्मच यूरिया और पानी के साथ मिलाकर मछली की खाद भी बनाते है, जिसे उपयोग करने से पहले एक सप्ताह के लिए फर्मेंटेड किया जाता है।
कीट नियंत्रण के लिए, वह गोमूत्र, अदरक, मिर्च और तंबाकू के पत्तों का मिश्रण बनाते है, जिसे एक सप्ताह के लिए फर्मेंटेड किया जाता है। छिड़काव से पहले इसमें पानी मिलाया जाता है। अनीश यह भी बताते हैं कि पीले और नारंगी फूल ( जैसे गेंदा) अधिक कीटों को आकर्षित करते हैं। इसलिए वह प्राथमिक फसल के चारों ओर ये पौधे लगाते हैं जो कीटों के लिए अवरोध की तरह काम करते हैं।
मुंबई स्थित बैंकर मिशेल उन कई लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अनीश की ताज़ा उपज से लाभ उठाया है। 43 वर्षीय मिशेल को फार्म-टू-टेबल के संबंध में जानकारी लॉकडाउन के दौरान अपने सोसायटी व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए मिली। संयोग से, वह सिर्फ कुछ अंडे खरीदना चाहती थी, लेकिन अब वह अपने सोसाइटी के 75 परिवारों में से एक हैं जो अनीश से हर हफ्ते सब्जियां मंगवाते हैं। 1 टोकरे में 10 किलो सब्जियां होती है जिसकी कीमत 1,000 रूपये है। टोकरे में मौसमी सब्जियां, अंडे, मशरूम और कुछ और अन्य चीज़ें होती हैं।
मिशेल बताती हैं, “मुंबई के बाजारों में सब्जियां कम से कम तीन दिन पुरानी हैं। यहां, हमें ताज़ी और गुणवत्ता वाली सब्जियां मिलती हैं। पूरी सोसाइटी हर हफ्ते 2,000 किलोग्राम सब्जियां मंगवाती है। यह देख कर कि इससे मेहनती किसानों को सीधे लाभ मिलता है, हमें बहुत खुशी मिलती है। ”
आगे का रास्ता
अपनी चुनौतियों पर काबू पाने के बाद, अनीश स्थानीय मौसमी और ताजी सब्जी के बारे में लोगों को जागरूक करने में लगे हैं। वह कहते हैं कि स्वस्थ्य खाने के बारे में जानने की दिशा में पहला कदम अपने किसानों को जानना और यह जानकारी लेना है कि आपका भोजन कहाँ से आता है।
वह अपने नेटवर्क में अधिक किसानों को जोड़ने की दिशा में काम कर रहा है ताकि उन्हें समान रूप से भुगतान मिले।
वह अपना काम बढ़ाने और अर्थ हार्वेस्ट को बेंगलुरु, इंदौर, और अहमदाबाद जैसे शहरों तक लाने की योजना बना रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वह अपने ‘सीड बैंक’ में फसलों के बीजों को इकट्ठा और संरक्षित करते हैं। इस बैंक से दूसरे लोग भी बीज ले सकते हैं।
अनीश कहते हैं, “समय के साथ, हमने महसूस किया है कि अच्छा खाना और हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण बात है। यदि हम भोजन को अपनी दवा बनाते हैं, तो हमें बीमारियों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी। मैं अपनी ज्ञान को साझा करना चाहता हूं और एक ऐसी विरासत छोड़ जाना चाहता हूं कि लोगों को पारंपरिक कृषि मूल्यों के बारे में पता चले।”
मूल लेख- ANGARIKA GOGOI
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