यह कहानी महाराष्ट्र के एक ऐसे युवा किसान की है, जिन्होंने अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर खेती को ही करियर बना लिया है। वह न केवल अन्न उपजा रहे हैं बल्कि प्रोसेसिंग के क्षेत्र में भी हाथ आजमा रहे हैं।
कभी पुणे में कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले समीर डॉम्बे आज अंजीर की खेती कर रहे हैं। वह न सिर्फ अंजीर की खेती करते हैं बल्कि इसे प्रोसेस करके सीधा ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। आज द बेटर इंडिया के साथ जानिए उनकी सफलता की कहानी!
साल 2013 में, समीर डॉम्बे ने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर खेती करने का फैसला किया। महाराष्ट्र में मूल रूप से दौंड के रहने वाले समीर पुणे की एक कंपनी में काम करते थे और प्रति माह 40,000 रुपये कमाते थे।
लेकिन नौकरी के डेढ़ साल में ही उन्हें इस कम से उब होने लगी क्योंकि काम की व्यस्तता बहुत ज्यादा थी और इस काम से उन्हें कोई संतुष्टि नहीं मिल रही थी। ऐसे में, उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और अंजीर की खेती शुरू की। उनके परिवार में दो पीढ़ियों से अंजीर की खेती ही हो रही है।
समीर बताते हैं, “शुरूआत में न परिवार का कोई सदस्य और न ही दोस्त, किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। नौकरी छोड़ने के मेरे फैसले से कोई खुश नहीं था। दरअसल कृषि क्षेत्र में अनिश्चतता की वजह से परिवार के लोग मेरे फैसले के खिलाफ थे। लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था और धीरे-धीरे सभी का सहयोग भी मिलने लगा। आज मैं अंजीर की खेती से सालाना 1.5 करोड़ रुपये कमा रहा हूँ।”
वह आगे कहते हैं “ शुरूआत में घर वाले यह नहीं चाहते थे कि मैं खेती न करूँ, इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि खेती में उन्हें लाभ नहीं मिल रहा था। मेरे इलाके में सिंचाई के साधनों की भारी कमी है और इस वजह से किसानी करने वाले लोगों को बारिश पर ही निर्भर होना पड़ता है। साथ ही, माँ और पिताजी को इस बात की भी चिंता थी कि नौकरी चली जाएगी तो मेरी शादी भी नहीं होगी।”
लेकिन समीर के दिमाग में अंजीर की खेती को लेकर बहुत कुछ चल रहा था। उन्होंने अपनी 2.5 एकड़ ज़मीन पर अंजीर उगाना शुरू किया। समीर ने ज्यादा फोकस अपने उपज की मार्केटिंग पर किया। उन्होंने अंजीर को एक किलो के पैकेट में पैक करके बाज़ार के लिए तैयार किया। “हमारे छोटे पैकेट को देखकर एक दोस्त ने कहा कि हमें सुपरमार्केट में ट्राई करना चाहिए,” उन्होंने बताया।
समीर ने एक जगह पर डील फाइनल की और उन्हें वहाँ से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इसके बाद उन्होंने अपना ब्रांड नाम ‘पवित्रक’ रखा और अन्य तीन जगह भी डिलीवरी शुरू की।
धीरे-धीरे उनकी उपज की मांग बढ़ने लगी। आज उनके खेत में उगाए गए अंजीर पुणे, मुंबई, बेंगलुरू से लेकर दिल्ली तक पहुँच रहे हैं।
उनकी पैकेजिंग पर उनका फ़ोन नंबर और पता लिखा रहता है, इस तरह से कुछ ग्राहक उनसे सीधा संपर्क करने लगे। उन्होंने इन ग्राहकों का एक ग्रुप बनाया और उनसे ऑर्डर लेने लगे। इससे उन्हें और ज्यादा मुनाफा कमाने का मौका मिला।
“अंजीर पोषक तत्वों से भरपूर होता है, लेकिन भौगोलिक स्थितियों के आधार पर चुनिंदा जगहों पर ही होता है। दौंड इस फल के लिए एकदम सही इलाका है, क्योंकि यह पहाड़ी जगह है। खेत प्रदूषण से दूर है, क्योंकि राजमार्ग लगभग 10 किमी दूर है, और स्वच्छ पानी की यहाँ पहुँच है, ”समीर कहते हैं।
इस वजह से उनके फल उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं, जिन्हें उनके उपभोक्ता काफी पसंद करते हैं। इसके अलावा, बाजार में बड़े पैमाने पर इस फल की उपलब्धता नहीं है। “मैंने सही समय पर इस मांग की आपूर्ति की और यही बिज़नेस का सही नियम है,” वह कहते हैं।
आखिरकार, उन्होंने अंजीर से जैम, पल्प और अन्य उत्पादों को बनाने के लिए अपने खेत को 2.5 एकड़ से बढ़ाकर 5 एकड़ कर दिया और खाद्य प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की।
समीर कहते हैं कि उपभोक्ताओं के साथ उनके सीधे संपर्क ने कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान उनके व्यवसाय को चलाए रखने में मदद की। “मैंने कई ग्राहकों से संपर्क किया, जिन्होंने फीडबैक दिया और हमसे सीधे जुड़े। हमने व्हाट्सएप पर ऑर्डर लेना शुरू कर दिया। लॉकडाउन के दौरान जब सुपरमार्केट ने हमारे फल नहीं खरीदे, तब भी हमने अपनी उपज बेची,” उन्होंने कहा।
लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने अंजीर बेचकर लगभग 13 लाख रुपये कमाए। कृषि के क्षेत्र में 7 वर्ष तक काम करने के बाद, समीर सभी किसानों के बच्चों के लिए एक ही संदेश देते हैं, “दो पीढ़ियों से, किसानों के बच्चे ने एक स्थिर आय के लिए निजी सेक्टर में पढ़ाई करके नौकरियां की हैं लेकिन इस वजह से खेती के क्षेत्र में एक गैप आ गया है। कृषि काफी हद तक एक असंगठित क्षेत्र बना हुआ है जिसे और अधिक सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। किसानों के बच्चे साक्षर हो गए और कॉर्पोरेट्स के लिए मुनाफा कमाते हैं। लेकिन कोई भी शिक्षित व्यक्ति खेती में वापस नहीं आता और अपनी शिक्षा का उपयोग इसकी बेहतरी के लिए नहीं करता है। लेकिन अब बदलाव की जरूरत है।”
इस कृषि-उद्यमी का कहना है कि सरकार की आलोचना करने से कोई फायदा मिलने वाला नहीं है। किसानों को अब खुद अपनी उपज का बाजार तैयार करना होगा और इसके लिए प्रोसेसिंग के क्षेत्र में किसानों को कूदना होगा। वह कहते हैं, “हमें अपने कृषि उत्पादों का व्यापार करना होगा और इसे कॉर्पोरेट बाजारों की तरह ब्रांड बनाना होगा, रचनात्मक टैगलाइनों और पोषण पर जोर देना होगा। इससे ही किसानों की प्रगति होगी।”
समीर के इस पहल की अब हर जगह तारीफ हो रही है। महाराष्ट्र में अंजीर उत्पादक संघ के सदस्य रोहन उर्सल का कहना है कि अंजीर की अच्छी मांग है। वह कहते हैं, “अच्छी गुणवत्ता वाला फल 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है। नए तरीकों को अपनाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”
द बेटर इंडिया अंजीर की खेती और उपज की प्रोसेसिंग करने वाले युवा किसान समीर के पहल की सराहना करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।
मूल लेख: हिमांशु निंतावारे
संपादन: जी. एन. झा
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