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20 सालों से बेसहारा और मानसिक तौर पर अस्वस्थ महिलाओं का सहारा हैं यह डॉक्टर दंपति

महाराष्ट्र में नासिक के पास सिंगले गाँव के रहने वाले डॉक्टर दंपति डॉ. राजेंद्र धामणे और डॉ. सुचेता धामणे ने एक साथ अपनी पढ़ाई पूरी की। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ठान लिया था कि दोनों समाज की भलाई के लिए काम करेंगे। डॉ. राजेंद्र ने गाँव के पास ही अहमदनगर में एक क्लिनिक में अपनी प्रैक्टिस शुरू की और डॉ. सुचेता एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने लगीं।

डॉ. राजेंद्र बताते हैं कि अहमदनगर आते-जाते समय वह हर रोज़ बहुत-सी बेसहारा महिलाओं को देखते थे जो कभी भीख मांग रही होती थीं तो कभी फुटपाथ पर सो रही होती थीं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “यह शिरडी-अहमदनगर हाईवे है। बहुत से लोग यहाँ पर अपने परिवार की ऐसी महिलाओं को छोड़ जाते हैं जिनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है। हमने कई बार इन महिलाओं से बात की लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। हम दोनों कभी-कभी सोचते थे कि इन लोगों के लिए क्या किया जा सकता है और फिर एक ऐसी घटना हुई कि हम खुद को इस राह पर चलने से रोक नहीं पाए।”

एक दिन ये दोनों अपने काम पर जा रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक महिला कूड़े के ढेर पर बैठी है। पास जाकर देखा तो पता चला कि वह मल खा रही थी। यह देख कर इनकी हैरत का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने तुरंत उस महिला के पास जाकर उसे संभाला। उसे साफ़ किया और फिर उसे अपना खाना दे दिया। राजेंद्र कहते हैं कि इस घटना ने उन्हें अंदर तक हिला दिया और उसके बाद उन्होंने ठान लिया कि वह अब इन महिलाओं को अनदेखा नहीं करेंगे।

Dr. Rajendra Dhamane and Dr. Sucheta Dhamane with one of the women

इसके बाद, ये दोनों हर रोज़ हाईवे पर बेसहारा घुमने-फिरने महिलाओं को पहुंचाने लगे। डॉ. सुचेता खुद सबके लिए खाना पैक करतीं और काम पर जाते समय सभी महिलाओं को बांटती थी। यह क्रम कई साल चला। अक्सर वह इन महिलाओं से बात करने की कोशिश भी करते थे ताकि उनके घर परिवार के बारे में कुछ पता चाल सके। पर ज़्यादातर महिलाएं मानसिक तौर बीमार थीं तो उन्हें कुछ ख़ास जवाब नहीं मिलता। एक दिन, एक 25 बरस की लड़की से उनकी मुलाक़ात हुई जो इधर-उधर घूम रही थी।

“उससे बात करने पर पता चला कि उसकी दिमागी हालत थोड़ी ठीक नहीं है तो परिवार ने उसे छोड़ दिया। उस लड़की से मिलने के बाद हम सोचने लगे कि आखिर हम किस मोड़ पर खड़े हैं। हमारे यहाँ कहने के लिए बेटियों की सुरक्षा को लेकर बहुत कुछ है लेकिन यह लड़की फुटपाथ पर रह रही है। उस लड़की ने बताया कि वह डिवाइडर के बीच में सोती है ताकि कोई भी उसे देख न सके। इस बात ने हमें झकझोर दिया और हमें ठान लिया कि अब कुछ ऐसा करना होगा जिससे इन महिलाओं को एक सुरक्षित जीवन मिल सके,” उन्होंने आगे कहा।

धामणे दंपति ने महिलाओं के लिए एक शेल्टर होम बनवाने की ठानी और इसमें उनके पिता ने उनकी मदद की। डॉ. राजेंद्र के माता-पिता शिक्षक थे और उस समय तक रिटायर हो चुके थे। यह उनके माता-पिता की ही शिक्षा थी जो उन्हें समाज की सेवा करने की प्रेरणा देती थी। जब उनके पिता को पता चला कि वह ऐसा कुछ कर रहे हैं तो उन्होंने अपनी ज़मीन उन्हें शेल्टर होम बनाने के लिए दे दी। निर्माण कार्य शुरू हुआ तो उन्हें और भी जगहों से मदद मिली और साल 2007 में शेल्टर होम बन गया।

इसका नाम रखा गया ‘माऊली सेवा प्रतिष्ठान’- माऊली का मतलब मराठी में होता है माँ।

Mauli Sewa Pratishthan

“हम सबसे पहले एक महिला को लेने पहुंचे जिन्हें हम नियमित तौर पर खाना देते थे। हमें लगा कि उन्हें सबसे पहले लेकर आते हैं। लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया। वह बोली कि अगर वह उस जगह से चली गईं तो उनका भाई उन्हें कैसे खोजेगा। दरअसल, सालों पहले उनका भाई उन्हें यह कहकर फुटपाथ पर छोड़ गया कि वह थोड़ी देर में आएगा। तब से वह उसी जगह बैठती हैं। जब उनकी ऐसी कहानियां हम सुनते तो लगता कि क्या वाकई हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां लोग अपनों के भी सगे नहीं हैं,” उन्होंने कहा।

हालांकि राजेंद्र और सुचेता उस महिला को घर पर ले आए। इस तरह धीरे-धीरे उनके शेल्टर होम में हर दिन कोई न कोई महिला आती। माऊली सेवा प्रतिष्ठान में इन महिलाओं के रहने, खाने और इलाज आदि की हर संभव व्यवस्था की गई है। 1 महिला से शुरू हुई कहानी आज 300 महिलाओं और उनके 29 बच्चों तक पहुँच गई है। इतने सालों में बहुतों की मृत्यु भी हुई जिनका सम्मानपूर्वक अंतिम-संस्कार किया गया।

शेल्टर होम जब शुरू हुआ तो इन महिलाओं की देखभाल करना बहुत ही मुश्किल रहा। सभी महिलाएं दिमाग रूप से अस्वस्थ थीं तो सबका खास ख्याल रखना पड़ता था। उन्हें नहलाने से लेकर खाना खिलाने और फिर दवाइयां देने तक, सभी कुछ डॉ. सुचेता करतीं।

Cooking Food Together

इन महिलाओं की देखभाल में कोई कमी न आए इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और सिर्फ शेल्टर का काम देखने लगीं। इतनी महिलाओं के लिए तीन वक़्त का खाना बनाना फिर सबका ध्यान रखना आसान काम नहीं था। पर कहते हैं ना कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

धीरे-धीरे डॉ. राजेंद्र और डॉ. सुचेता के प्रयासों से बहुत सी महिलाओं की स्थिति में सुधार आया। अब ये महिलाएं भी शेल्टर होम के कामों में हाथ बंटाती हैं। उन्होंने सबको टीम में बांटा हुआ है जिनपर अलग-अलग कामों की ज़िम्मेदारी है। वह बताती हैं, “इन महिलाओं में कोई यौन शोषण का शिकार हुई है और इस वजह से गर्भवती हो गई तो परिवार ने छोड़ दिया, किसी को ससुराल वालों के अत्याचारों की वजह से सड़क पर आना पड़ा तो कोई मानसिक रूप से ठीक नहीं तो उसे छोड़ गए। हम अक्सर यही सोचते हैं कि महिलाएं सडक तक कैसे पहुँच जाती हैं? क्योंकि उनके अपने ही उन्हें बोझ समझने लगते हैं और क्यों सरकार और प्रशासन इस बारे में कुछ नहीं करता।”

लेकिन धामणे दंपति पिछले 20 सालों से इन महिलाओं की देखभाल में जुटा है। उन्होंने इन महिलाओं के इलाज के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट भी बनवाई है और साथ ही, हर एक को सही इलाज भी मिल रहा है।

Intensive Care Unit

उनका उद्देश्य सिर्फ इन महिलाओं को छत या खाना देना नहीं है बल्कि वह इन्हें एक ज़िंदगी देना चाहते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि ये महिलाएं पूरी तरह से ठीक हो जाएं और अपने बारे में सबकुछ उन्हें याद आए। इसके साथ ही, इनमें बहुत-सी महिलाएं HIV+ हैं और इसलिए उनका इलाज बहुत ज़रूरी है।

यहाँ पर जितने भी बच्चे हैं, उन सभी की शिक्षा का खर्च भी माऊली सेवा प्रतिष्ठान ही उठाता है। सभी बच्चों को घर जैसा वातावरण मिलता है ताकि वो खुद को बेसहारा न समझें। धामणे दंपति का उद्देश्य हर एक बच्चे को अपने पैरों पर खड़ा करना है ताकि आगे चलकर वो खुद अपना जीवन संभाल सकें।

“इतना सबकुछ दुनिया में बुरा है लेकिन अच्छाई पर भरोसा तब हो जाता है जब समाज के कुछ संपन्न लोग हमारी मदद के लिए आगे आते हैं। अहमदनगर के बाद हमने मनगाँव में भी एक शेल्टर होम बनवाया है क्योंकि वह छोटा पड़ने लगा था। इसके लिए ज़मीन और निर्माण के पैसे हमें एक दानकर्ता से ही मिले। इसके अलावा, मुझे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया था जिसमें 1 लाख डॉलर मिले थे। वह भी मैंने शेल्टर होम में ही लगा दिए,” उन्होंने कहा।

Women learning skills

सरकार से उन्हें अभी तक भी किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला है। यह शायद इसलिए है क्योंकि फुटपाथ पर रहने वाली ये महिलाएं बेनाम होती हैं। इनका वोटर लिस्ट में नाम नहीं होता और इसलिए किसी को इनकी परवाह नहीं। इन महिलाओं को उनकी पहचान देने के लिए धामणे दंपति ने सबका आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी बनवाया है ताकि उन्हें गुमनामी की ज़िंदगी से बाहर लाया जा सके।

साथ ही, उन्होंने इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल भी शुरू की है। अलग-अलग कार्यों के लिए उनकी टीम बनाई जाती हैं जिसमें रसोई, साफ़-सफाई, गौपालन, खेती आदि शामिल है। महिलाओं को धूप, अगरबत्ती आदि बनाना भी वो सिखा रहे हैं। डॉ. राजेंद्र के मुताबिक इन महिलाओं की देखभाल और बच्चों की पढ़ाई आदि पर प्रति माह 8 से साढ़े 8 लाख रुपये तक का खर्च होता है। इसके लिए वह डोनेशन पर निर्भर करते हैं।

साथ ही, डॉ. राजेंद्र अपना क्लिनिक भी चलाते हैं और अपनी कमाई में से भी वह काफी-कुछ इस काम में लगाते हैं। उनका बेटा एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है और वह भी अपने माता-पिता के साथ शेल्टर होम का काम सम्भालता है।

धामणे दंपति यहाँ आने वाली हर एक महिला को सम्मान का जीवन देना चाहता है। इसके लिए उन्हें हम सबकी मदद की ज़रूरत है। सेवा प्रतिष्ठान का कार्य यूँ ही चलता रहे, इसके लिए उन्हें डोनेशन की ज़रूरत है। उन्होंने कुछ समय पहले फंड्स जुटाने के लिए मिलाप के ज़रिए एक फंडरेजर शुरू किया है। अगर आपको इस कहानी से प्रेरण मिली है तो आप भी उनकी मदद ज़रूर करें।

माऊली सेवा प्रतिष्ठान की मदद के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: https://milaap.org/fundraisers/support-mauli-seva-pratishthan

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