उल्हास परांजपे सिविल इंजीनियर हैं और मुंबई में रहते हैं। वह साल में एक बार कोंकण तट के बंदरगाह शहर रत्नागिरी का दौरा करते हैं। इस इलाके में, उनके रिश्तेदारों के पास कई एकड़ जमीन है और उन्हें शहरी जीवन से दूर यहाँ आकर प्रकृति के बीच रहना अच्छा लगता है।
ऐसे ही एक बार वह रत्नागिरी में थे जब उन्होंने देखा कि खेतों में कोई फसल नहीं थी। उन्होंने अपने चचेरे भाई से इसका कारण जानना चाहा। परांजपे ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं अपने भाई से एक ही सवाल बार-बार पूछ रहा था। वह मेरी बात सुन तो रहा था लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा था, फिर अचानक उसने अपना आप खोते हुए मुझसे कहा कि आप एक सिविल इंजीनियर हैं, आप मुझे अपनी फसलों के लिए पूरे साल पानी क्यों नहीं दे देते?”
यह सवाल परांजपे के करियर की प्रेरक शक्ति बन गया। इस सवाल ने उन्हें यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि कैसे उनकी इंजीनियरिंग की डिग्री किसानों को पूरे साल पानी पहुँचाने में मदद कर सकती है। उन्होंने भारत की जलवायु, महाराष्ट्र की स्थलाकृति और वर्तमान प्रणालियों का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि इसका समाधान वर्षा जल संचयन यानी कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग ही है।
साल 2003 से, परांजपे और उनका परिवार अपने ट्रस्ट जलवर्धनी प्रतिष्ठान के माध्यम से महाराष्ट्र के किसानों और आदिवासी जनजातियों को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के करीब लाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। 2020 तक, उन्होंने 17 जिलों में 350 से अधिक ऐसी प्रणालियों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है और हजारों लोगों को इसके सिद्धांत सिखाए हैं।
72 वर्षीय परांजपे बताते हैं कि कृषि का भविष्य जल संरक्षण पद्धति ही है।
हमें जो पानी मिलता है और जो पानी हम बचाते हैं:
हालाँकि कोंकण पट्टी और पश्चिम महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में महाराष्ट्र का 10 प्रतिशत भू-भाग है, उन्हें राज्य की कुल वर्षा का लगभग 46 प्रतिशत प्राप्त होता है। क्षेत्र के दो प्राथमिक व्यवसायों में से एक कृषि है और इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कोंकण के निवासियों के लिए मीठे पानी का कितना महत्व है।
हालाँकि, बारिश का अधिकांश पानी समुद्र में बह जाता है और किसानों के लिए ना के बराबर पानी बचता है।
उन्होंने कहा, ‘कई किसान, अपनी फसलों के लिए साल के सिर्फ चार महीने ही इस्तेमाल कर पाते हैं। वे खरीफ मौसम में बीज बोते हैं लेकिन पानी की कमी को देखते हुए रबी मौसम का उपयोग नहीं कर पाते हैं। लेकिन सवाल ये है कि अगर मुंबई में बैठे 1.84 करोड़ लोगों को पूरे साल पानी की आसान पहुँच हो सकती है तो ग्रामीण इलाकों के किसानों के लिए भी ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? ”
ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों में जल संग्रहण का मतलब आमतौर पर बोर या कुआँ है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अब भी बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं है। लेकिन शायद हम यहीं गलती कर रहे हैं।
परांजपे अपनी टीम के साथ, कोंकण और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में किसानों के जीवन में इस शक्ति को वापस लाना चाहते हैं। वह कहते हैं, “रेन वाटर हार्वेस्टिंग कोई नई चीज़ नहीं है। हजारों वर्षों से भारत सहित कई देशों में इसका अनुपालन किया जा रहा है। हालाँकि, समय के साथ पानी, लोगों की कम और सरकार की ज़िम्मेदारी ज़्यादा बन गई है। यही कारण है कि हम अपने घरों के ठीक ऊपर छतों, कृषि भूमि और परिसर की शक्ति को भूल गए हैं। “
न्यूनतम लागत और लाखों लीटर पानी की बचत के साथ वे किसानों को सशक्त करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि प्रत्येक किसान के पास एक जल भंडारण टैंक होना चाहिए।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग बने एक उपकरण:
जलवर्धनी प्रतिष्ठान की स्थापना 2003 में परांजपे के गृहनगर, मुंबई में हुई थी। वह बताते हैं कि संगठन के प्रारंभिक चरण में किसानों को इस पहल के बारे में जागरूक करने के लिए रायगढ़ और महाराष्ट्र के अन्य कोंकण क्षेत्रों में विभिन्न अभियान चलाए गए थे। इनमें से एक अभियान “संसाधन केंद्र” जहाँ किसानों को यह देखने का मौका और अनुभव मिला कि रेन वाटर हार्वेंस्टिंग क्या है।
परांजपे ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब एक व्यक्ति ने इस व्यवस्था को अपनाया, तो अन्य लोगों ने स्पष्ट रूप से इससे होने वाले लाभ को देखा। ये बातें गाँव में तेज़ी से फैलती हैं और ऐसे ही किसानों ने हमसे संपर्क करना शुरू किया। अब, हमें विशेष अभियान चलाने की ज़रूरत नहीं है। इस लॉकडाउन अवधि में भी, मेरे पास इससे संबंधित हर दिन 1 या 2 कॉल आते हैं।”
जलवर्धिनी प्रतिष्ठान ठेकेदार की तरह काम नहीं करता है कि काम किया और चले गए। इसकी विशेषता है कि यह किसानों को सिखाता है कि वे खुद रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण कैसे कर सकते हैं। इस पद्धति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि एक बार एक किसान इस प्रणाली का निर्माण कर लेता है तो यह उसके लिए यह कोई नई चीज़ नहीं रह जाती है। वह अपना ज्ञान समुदाय के साथ बाँट सकता है और स्थायी कृषि प्रथाओं की एक चेन शुरू कर सकता है।
परांजपे पूछते हैं, “एक ग्रामीण अपने घर के निर्माण के लिए एक आर्किटेक्ट, एक ठेकेदार और एक इंजीनियर की प्रतीक्षा नहीं करता है। वह स्थानीय राजमिस्त्री के साथ साझेदारी करता है और अपना घर बनाता है। तो फिर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अलग क्यों होना चाहिए? ”
परांजपे का मानना है कि कई सरकारी योजनाएं ग्रामीण स्तर पर विफल रही हैं क्योंकि सरकार मानती है कि बनाने के लंबे समय बाद भी गाँव वाले बुनियादी ढांचे का रख-रखाव रखेंगे। लेकिन संसाधनों के दबाव और अन्य कारणों से ऐसा शायद ही कभी होता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और व्यक्तिगत संसाधन बनाकर, जलवर्धनी प्रतिष्ठान किसानों की स्थिति में सुधार लाने का काम भी करता है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का प्रभाव:
रायगढ़ में रहने वाले एक किसान अनिल हरपुडे अक्सर दूसरों को टिकाऊ तकनीक अपनाने की सलाह देते हैं। वह बताते हैं कि कई कोंकण क्षेत्रों में, फरवरी तक नदियों में पानी बहता है और फिर वे सूखने लगते हैं। परांजपे के सहयोग से उन्होंने जो रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए हैं, उससे उन्होंने काफी मुद्दे हल कर लिए हैं।
अनिल ने द बेटर इंडिया को बताया, “पहले, उन्हें डीजल पंपों के माध्यम से पानी मिलता था। यह न केवल यह एक महंगा विकल्प था, बल्कि इसका मतलब यह भी था कि सबसे अधिक पंप वाले किसान को अधिक पानी मिलेगा। इन पंपों से बहुत सारा पानी बर्बाद भी होता है। मैंने स्वयं एक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित किया है और पांच अन्य किसानों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। हमने देखा कि हमारे खर्चों में 40 प्रतिशत की कटौती हुई है। “
उनके नेतृत्व के बाद, लगभग 15 अन्य किसानों ने भी अपने क्षेत्रों में सिस्टम स्थापित किए हैं।
इनके अलावा, पुणे में रहने वाले संजय जी एक तकनीकी विशेषज्ञ है। रत्नागिरी में उनका एक छोटा सा खेत और फार्महाउस है। दो साल पहले, उन्होंने जलवर्धिनी प्रतिष्ठान के साथ मिलकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण किया। वह बताते हैं, “हमें गर्मी के दिनों में सिर्फ 150-200 लीटर पानी मिलता था जो परिसर के पेड़ों के लिए पर्याप्त नहीं था और इसलिए, हमने टैंक का निर्माण किया। लेकिन मेरा मुख्य उद्देश्य वहां के राजमिस्त्री, बागवानों और अन्य श्रमिकों को प्रोत्साहित करना था कि वे अपने खेतों में इस सिस्टम को लगाएँ और पानी का संरक्षण करें।”
जलवर्धिनी प्रतिष्ठान ने अमरावती, औरंगाबाद, बीड, जालना, मुंबई, नवी मुंबई, नांदेड़, नंदुरबार, नासिक, पालघर, पुणे, रायगढ़, रत्नागिरी, सतारा, सिंधुदुर्ग, सोलापुर और ठाणे में 350 से ज़्यादा रेन वाटर हार्वेस्टिंग टैंक बनाए हैं। उन्होंने गोवा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड में भी परियोजनाएँ शुरू की हैं। साथ ही, उन्होंने 8 एनजीओ और 33 कॉलेजों को परामर्श भी दिया ताकि वे आगे क्षेत्रों में ज्ञान आगे बढ़ा सकें।
परांजपे ने ‘प्राकृतिक फाइबर सीमेंट टैंक’ के नाम से एक नई तकनीक विकसित की है जिससे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के निर्माण के लिए पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग किया जाता है।
वह कहते हैं, “8000-लीटर टैंक के लिए 25,000 रुपये और 15,000-लीटर टैंक के लिए, हम 40,000 रुपये दान के रूप में लेते हैं। मैं समझता हूँ कि कई किसानों और आदिवासी जनजातियों के पास रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं हैं। ऐसे मामलों में, ट्रस्ट आधी लागत वहन करता है।” वह यह भी बताते हैं कि ये क्षमता एक किसान की पानी की ज़रूरतों को पूरा नहीं करती है। जनवरी से मई के बीच कुआँ और बोरवेल में पानी कम हो जाता है और किसान को अपने खेतों के लिए पानी की ज़रूरत होती है। वह इसी कमी को भरने की कोशिश करते हैं।
परांजपे ने अपने प्रयासों की शुरुआत अपने चचेरे भाई की चुनौती की बदौलत की, लेकिन इसका परिणाम वास्तव में आश्चर्यजनक और प्रेरणादायक है। हाल में ही भारत लगातार सूखा, बाढ़ और कृषि संबंधी समस्याओं का सामना कर रहा है जिससे हमें पता चलता है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग कितना महत्वपूर्ण हो गया है।जलवर्धनी प्रतिष्ठान जैसे संस्थानों के प्रयासों से हम अपने किसानों का बोझ कम कर सकते हैं।
परांजपे व उनकी टीम के अथक प्रयासों को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
मूल लेख-TANVI PATEL
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