22 जनवरी 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश भर से चुने गये 26 बच्चों को ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ से नवाज़ा। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में यह समारोह रखा गया था। इन बच्चों को इनके बहादुरी भरे कारनामों और समाज के प्रति अपने दायित्व निभाने के लिए समानित किया गया।
इन बच्चों में मध्य-प्रदेश के मुरैना जिले से अद्रिका गोयल और उनके भाई कार्तिक गोयल को भी सम्मानित किया गया। पिछले साल जब मुरैना में एससी-एसती एक्ट के खिलाफ़ हिंसा की आग भड़की और आंदोलनकारियों ने मुरैना स्टेशन से गुजरने वाली एक पैसेंजर ट्रेन को अपना निशाना बनाया। तब इस बहन-भाई की जोड़ी ने अपनी जान की परवाह किये बिना लोगों की मदद की।
2 अप्रैल 2018 को जब मुरैना में नफ़रत की आग फैली हुई थी, तो इन दोनों बहन-भाई ने अपने नेक काम से इंसानियत में लोगों के विश्वास को बनाये रखा। अद्रिका और कार्तिक ने उस समय जो समझदारी और बहादुरी दिखाई, वह दिखाना बड़ों के लिए भी आसान नहीं है।
मुरैना स्टेशन पर आन्दोलनकारियों ने एक पैसेंजर ट्रेन को घेर लिया और घंटों तक उसे अपने कब्ज़े में रखा। उन्होंने ट्रेन पर पत्थर बरसाए तो बीच-बीच में गोलियाँ भी चलाई गयी। ट्रेन में फंसे यात्रियों का बुरा हाल था और खासकर वे लोग; जिनके साथ बच्चे थे। डर के साथ-साथ भूख-प्यास से भी लोगों का हाल बहुत बुरा था।
अद्रिका और उनके भाई कार्तिक ने जब यह खबर टीवी पर देखी तो वे खुद को रोक नहीं पाए। उनके घर में खाने-पीने का जो भी सामान था, उस सबको डिब्बों और थैलों में भरकर; वे जैसे-तैसे ट्रेन तक पहुंच गये। यहाँ उन्होंने यात्रियों को खाना और पानी देना शुरू किया।
उनके पिता अक्षत गोयल ने बताया, “हमारे घर से मुरैना स्टेशन सिर्फ़ 200 मीटर दूर है। दोनों बच्चे इन यात्रियों के लिए कुछ करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक कोच से दूसरे कोच जाकर यात्रियों को पानी और खाने की चीजें दीं।”
इन नन्हें बच्चों को देख लोग हैरान थे। जो इतनी नफ़रत के बीच भी नेकी और इंसानियत का पैगाम दे रहे थे। गोयल ने आगे कहा, “उस समय हमें भी नहीं पता था कि दोनों बच्चे इतने पथराव के बीच लोगों की मदद कर रहे हैं। पर जल्द ही इनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं। इनसे प्रेरित होकर और भी स्थानीय लोग ट्रेन के यात्रियों की मदद के लिए आगे आये।”
इस घटना के अलावा और भी बातें हैं; जो 10 वर्षीय अद्रिका को बहुत खास बनाती हैं। उनके पिता ने बताया कि चार साल पहले उनके घर में आग लग गयी थी। तब अद्रिका सिर्फ़ छह साल की थीं और उन्हें काफ़ी चोट आई थी। डॉक्टरों ने कहा दिया था कि अद्रिका शायद कभी ना चल पायें।
पर यह अद्रिका और उनके परिवार का विश्वास और हौंसला था कि आज अद्रिका ना सिर्फ़ चल पा रहीं हैं; बल्कि उन्होंने कई अवॉर्ड्स भी जीते हैं। अद्रिका ने कराटे की ट्रेनिंग ली और 8 साल की उम्र में ब्लैक बेल्ट भी जीती। आज वे 20, 000 से भी ज्यादा बच्चों को कराटे की ट्रेनिंग चुकी हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल इंग्लिश ओलिंपियाड में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता है। साथ ही, अद्रिका हमेशा अपनी क्लास में प्रथम आती है।
डिफेंस मिनिस्टर एन. सीताराम ने भी अद्रिका को सम्मानित किया है। अद्रिका की ही तरह उनके भाई कार्तिक भी अपने टैलेंट के दम पर आगे बढ़ रहे हैं। कार्तिक के नाम देश का सबसे युवा स्केचर होने का ख़िताब दर्ज है।