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अब तक 3 लाख से भी ज़्यादा पौधे लगा चुका है भोपाल का यह ट्री-मैन; पेड़ बनने तक करता है देखभाल!

पौधे लगाना किसी के लिए सोशल इवेंट हो सकता है, किसी के लिए शौक, लेकिन भोपाल के सुनील दुबे के लिए यह जुनून है। एक ऐसा जुनून जिसके चलते वह अब तक 3 लाख से ज्यादा पौधे रोप चुके हैं। खास बात यह है कि सुनील का यह अभियान केवल भोपाल या मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है। वह देश के कई राज्यों को हरा भरा करने में योगदान देते आ रहे हैं।

इतना ही नहीं उन्होंने नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में भी वृक्षारोपण किया है। सुनील खुद तो पौधे लगाते ही हैं, साथ ही उन लोगों की भी मदद करते हैं, जो अपने आसपास के ग्रीन कवर को बढ़ाना चाहते हैं। हालांकि, इसके लिए उनकी एक शर्त होती है और वो यह कि पौधों की बच्चों की तरह देखभाल की जानी चाहिए।

 

पर्यावरण संरक्षण के अपने जुनून के चलते सुनील दुबे को ‘ट्री मैन’ कहा जाता है, और उन्हें इसके लिए कई मर्तबा सम्मानित भी किया जा चुका है।

सुनील दुबे शहरवासियों से पेड़ों पर रक्षासूत्र बंधवाकर उनकी रक्षा का वचन लेते हुए

सुनील का जोर ऐसे पौधों पर रहता है, जो पर्यावरण हितैषी हों और साथ ही औषधि में भी काम आ सकें। इस विषय पर वह कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को जागरुक भी करते रहते हैं। बात केवल हरियाली बढ़ाने की ही नहीं है, सुनील इस बात का भी ख्याल रखते हैं कि विकास या सौंदर्यीकरण के नाम पर पेड़ों पर कुल्हाड़ी न चलाई जाए। पिछले 10 सालों में वह 27,000 के आसपास पेड़ों को कटने से बचा चुके हैं।

आलम यह हो चला है कि यदि किसी को कोई पेड़ कटता नजर आता है, तो वह संबंधित विभाग को सूचित करने के बजाय वृक्षमित्र यानी ट्री-मैन सुनील दुबे से संपर्क साधता है। कुछ वक़्त पहले उन्होंने राजभवन के सामने में सड़क चौड़ीकरण की जद में आने वाले पेड़ों को बचाने के लिए अभियान चलाया था और उनके प्रयासों के चलते वे पेड़ आज भी जीवित हैं। फ़िलहाल वह अरेरा हिल्स पर बनने वाले विधायक विश्रामगृह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। क्योंकि इसके लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा जाना है।

पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत सुनील दुबे का दिन सुबह चार बजे शुरू होता है। अपने द्वारा लगाये गए पौधों को पानी देने, खाद डालने से लेकर देखभाल के सभी काम वह खुद ही करते हैं। इसके बाद ऑफिस से वापसी पर वह उन लोगों से जानकारी प्राप्त करते हैं, जिनके आग्रह पर वृक्षारोपण किया गया था। छुट्टी का पूरा दिन सुनील सिर्फ और सिर्फ अपने अभियान पर ही व्यतीत करते हैं। इस सबमें अक्सर वह अपने परिवार को समय नहीं दे पाते, लेकिन परिवार को उनसे कोई शिकायत नहीं। उनकी पत्नी सुधा दुबे जानती हैं कि पर्यावरण संरक्षण सुनील के लिए क्या मायने रखता है, इसलिए वह कभी उनसे कोई शिकायत नहीं करतीं उल्टा जितना संभव हो उनकी मदद को तैयार रहती हैं।

 

वृक्षमित्र बनने के पीछे है एक दर्दभरी कहानी।

2008 से पहले तक सुनील पौधे तो लगाते थे, मगर यह उनका जुनून नहीं था, फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने सब कुछ बदलकर रख दिया। दरअसल, उन्हें 2008 में पता चला कि वह ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं और उनका ट्यूमर टेनिस बॉल जितना बड़ा हो गया है। लिहाजा, उन्हें तुरंत इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया, जहां ऑपरेशन थियटर में जाते वक्त उन्होंने यह प्रण लिया कि यदि भगवान उन्हें नया जीवन देता है, तो वह उसे पर्यावरण संरक्षण के नाम कर देंगे। ऑपरेशन बेहद मुश्किल था और डॉक्टर भी उसके परिणाम को लेकर अनिश्चित थे, लेकिन ब्रेन ट्यूमर से लड़ाई में सुनील दुबे की जीत हुई और वादे के मुताबिक उन्होंने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया।

इस बारे में वह कहते हैं, “अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे मेरी आँखों के सामने पूरी जिंदगी रिवाइंड हो गई। मैंने खुद से पूछा कि यदि जीवित बचता हूँ तो क्या करूँगा, चूँकि मैं पर्यावरण के लिए पहले से काम करता आ रहा था, लिहाजा मैंने इसी के नाम अपना शेष जीवन समर्पित करने का फैसला लिया। मैंने ऑपरेशन से ठीक पहले डॉक्टरों से कह दिया था कि यदि मुझे कुछ हो जाता है तो मेरी पत्नी को मेरे प्रण के बारे में बता दिया जाए पर खुशकिस्मती से इसकी जरूरत नहीं पड़ी। ऑपरेशन के बाद भोपाल वापसी पर मैंने सबसे पहला जो काम किया, वो था पौधा लगाना। तब से यह सिलसिला निरंतर चला आ रहा है।”

आप अलग-अलग राज्यों में तीन लाख से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं, और गिनती लगातार जारी है, तो इसका खर्चा कैसे निकलता है? 

“जैसा कि मैंने पहले कहा मैंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दिया है। लिहाजा जो कुछ मेरा है, वो सब इसी काम में लगना है। मैं अपनी पूरी सैलरी पौधों पर खर्च करता हूँ। ये कहना गलत नहीं होगा कि पिछले दस सालों से घर का खर्चा सिर्फ और सिर्फ मेरी पत्नी ही उठा रही हैं,” सुनील हँसते हुए जवाब देते हैं।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ ही राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात आदि राज्यों में सुनील ने पौधारोपण किया है। आज उनके कई पौधे पेड़ बनकर लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं। वह जो भी पेड़ लगाते हैं, उसे अपने रिकॉर्ड में शामिल कर लेते हैं। उनके मुताबिक अब तक यह आंकड़ा 3,30051 तक पहुँच गया है।

 

केवल पौधे लगाना नहीं, उन्हें पेड़ बनाना है उद्देश्य 

स्कूली बच्चों से पौधा रोपण करवाते सुनील दुबे

सुनील दुबे वनस्पति विज्ञान का काफी ज्ञान रखते हैं। पौधों से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी उन्हें मुंह जुबानी याद है। उन्हें यह भी पता है कि कौनसा पौधा मुश्किल वक्त में दवा के रूप में काम आ सकता है। इसी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए वह समय-समय पर कार्यशाला आयोजित करते रहते हैं। अब तक वह 4 हजार से ज्यादा कार्यशालाएं ले चुके हैं। सुनील जब भोपाल से बाहर कहीं जाते हैं तो ट्रेन में एक अतिरिक्त सीट आरक्षित करवाते हैं, ताकि पौधे भी साथ ले जा सकें। इसी तरह उन्होंने छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में वृक्षारोपण किया है। इतना ही नहीं वह जब भी घर से निकलते हैं, तो उनकी गाड़ी की पिछली सीट पौधों से भरी रहती है।

‘द बेटर इंडिया’ से बातचीत में सुनील दुबे ने कहा, “पौधे तो कई लोग लगाते हैं, लेकिन उन पर ध्यान नहीं देते। जबकि उन्हें भी बच्चों की तरह देखभाल की जरुरत है। यदि कोई मुझसे प्लान्टेशन के लिए संपर्क करता है, तो मेरी पहली शर्त यही होती है और यदि मुझे लगता है कि पौधों का ख्याल नहीं रखा जाएगा, तो मैं वहां पौधे नहीं लगाता। पौधे रोपने से लेकर उसके बड़ा होने तक मैं हर दिन अपडेट लेता हूँ, ताकि देखभाल के अभाव में कोई भी पौधा दम न तोड़े।”

 

ख़ास मौकों पर भेंट करते हैं पौधे

अपने 80 वर्षीय मित्र के जन्मदिन पर सुनील दुबे ने उन्हें 80 आम के पौधे भेंट किए !

ट्री-मैन सुनील दुबे जन्मदिन और ख़ास मौकों पर उपहार स्वरुप पौधे ही भेंट करते हैं। कुछ वक़्त पहले उन्होंने मध्यप्रदेश के राज्यपाल को दुर्लभ प्रजाति का पौधा भेंट किया था। पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने इस जुनून के लिए उन्हें विश्व सेवा भारती सम्मान, राष्ट्रीय पर्यावरण दूत, श्रेष्ठ वृक्ष मित्र आदि कई सम्मान मिल चुके हैं। सुनील ने पर्यावरणप्रेमियों का एक ग्रुप भी बनाया है, जो शहर की हरियाली पर नजर रखता है और आपात स्थिति में तुरंत हरकत में आ जाता है। सभी लोग व्हाट्सऐप पर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। फ़िलहाल, सुनील अरेरा हिल्स पर बनने वाले विधायक विश्रामगृह के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं। क्योंकि विधायकों को निवास देने की जद्दोजहद में कई सालों पुराने पेड़ों को कुर्बान किया जाएगा।

इस बारे में उनका कहना है, “पूर्व विधानसभा अध्यक्ष मान गए थे कि विश्रामगृह के लिए पेड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये पुराने भोपाल के लिए ओक्सीजन जोन का काम करते हैं, लेकिन अब फिर से उन्हें काटने की तैयारी हो रही है। इसे देखते हुए हम मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने का मन बना रहे हैं।”

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से सुनील दुबे लोगों से पूछते हैं, “आप कैसा भविष्य चाहते हैं? ऐसा जहां आपके पास सभी सुख-सुविधाएँ`हों, लेकिन साँस लेने के लिए ऑक्सीजन खरीदनी पड़े, पानी तेल जितना महंगा हो जाए? यदि हाँ, तो आप आराम से पर्यावरण को नष्ट होते देख सकते हैं, लेकिन यदि इसका जवाब ‘ना’ है तो आपको अभी चेतना होगा। क्योंकि पहले ही हम काफी देर कर चुके हैं।”

अगर आप भी सुनील दुबे के इस अभियान का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो उनसे 8989879442 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच 

Summary – Sunil Dubey is called Tree man of Bhopal, Madhya Pradesh. He has planted more than 3 lakh saplings so far. He has also organised more than 4000 workshops to save our environment.


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