बीते कुछ सालों में, भारत ने सशस्त्र बलों में जेंडर बैरियर तोड़ने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं, ताकि महिलाओं को जमीन पर युद्ध की स्थिति, टैंक युनिट्स और ऑन-बोर्ड पनडुब्बियों पर तैनाती के लिए सक्षम बनाया जा सके। फरवरी 2016 में, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने घोषणा करते हुए कहा, “महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बलों (Women in Armed Forces) के सभी वर्गों में लड़ाकू भूमिका निभाने की अनुमति दी जाएगी, जो दुनिया के सबसे पुरुष-प्रधान व्यवसायों में से एक में, लैंगिक समानता की ओर एक क्रांतिकारी कदम का संकेत है।”
IAF पहले से ही महिला पायलटों को जल्द ही लड़ाकू जेट उड़ाने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है, महिलाओं को नौसेना और सेना दोनों में लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल करने के फैसले से महिलाओं को अपनी काबिलियत दिखाने का एक और मौका मिला। हालाँकि, इससे पहले भी, भारत में अलग-अलग पृष्ठभूमि और क्षेत्रों की महिलाओं ने सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए कई बड़ी बाधाओं को पार किया है।
तो आइए, आपको बताें हैं देश की 13 ऐसी बहादुर महिलाओं की कहानी, जिन्होंने हर की बाधाओं और समाजिक बंधनों को तोड़ अपना मुकाम हासिल किया और देश का गौरव बनीं।
1. पुनीता अरोड़ा (Women in Armed Forces)
विभाजन के दौरान, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर चले गए एक पंजाबी परिवार में जन्मी, पुनीता अरोड़ा दूसरी सर्वोच्च रैंक, भारतीय सशस्त्र बलों के लेफ्टिनेंट जनरल और साथ ही भारतीय नौसेना के वाइस एडमिरल का पद हासिल करने वाली भारत की पहली महिला हैं। इससे पहले, वह साल 2004 में सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज की पहली महिला कमांडेंट थीं।
उन्होंने सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (AFMS) के एडिशनल डायरेक्टर-जनरल के रूप में सशस्त्र बलों के लिए चिकित्सा अनुसंधान का को-ऑर्डिनेशन भी किया। बाद में, वह सेना से नौसेना में चली गईं, क्योंकि AFMS में एक सामान्य पूल है, जो अधिकारियों को ज़रूरत के आधार पर एक सेवा से दूसरी सेवा में ट्रांसफर करने की अनुमति देता है।
2. पद्मावती बंदोपाध्याय
पद्मावती बंदोपाध्याय, भारतीय वायु सेना की पहली महिला एयर मार्शल थीं। वह 1968 में IAF में शामिल हुईं और वर्ष 1978 में अपना डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा किया, ऐसा करने वाली वह पहली महिला अधिकारी बनीं। इतना ही नहीं, वह उड्डयन चिकित्सा विशेषज्ञ बनने वाली पहली महिला अधिकारी भी थीं। इसके अलावा, वह उत्तरी ध्रुव पर साइंटिफिक रिसर्च करने वाली पहली महिला थीं। 1971 के भारत-पाक संघर्ष के दौरान उनकी मेधावी सेवा के लिए उन्हें एयर वाइस मार्शल के पद पर प्रमोट करने के साथ-साथ, ‘विशिष्ट सेवा पदक’ से सम्मानित किया गया था।
3. मिताली मधुमिता (Women in Armed Forces)
फरवरी 2011 में, लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता, वीरता के लिए दिया जाने वाला ‘सेना पदक’ हासिल करने वाली भारत की पहली महिला अधिकारी बनीं। यह, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व में ऑपरेशन के दौरान अनुकरणीय साहस के लिए सैनिकों को दिया जाने वाला एक सम्मान है।
मधुमिता, जो काबुल में सेना की अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण टीम का नेतृत्व कर रही थीं, फरवरी 2010 में आत्मघाती हमलावरों के हमले में काबुल में भारतीय दूतावास तक पहुंचने वाली पहली अधिकारी थीं। निहत्थे होने के बावजूद, वह मौके पर पहुंचने के लिए लगभग 2 किमी दौड़ीं। उन्होंने वहां, मलबे के नीचे दबे सेना प्रशिक्षण दल के लगभग 19 अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से निकाला और उन्हें अस्पताल पहुंचाया।
4. प्रिया झिंगन
21 सितंबर, 1992 को, प्रिया झिंगन ने 001 के रूप में नामांकन किया। वह भारतीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिला कैडेट बनीं। एक लॉ ग्रेजुएट झिंगन, हमेशा सेना में शामिल होने का सपना देखती थीं। 1992 में, उन्होंने सेना प्रमुख को महिलाओं की भर्ती को लेकर एक पत्र लिखा।
एक साल बाद, सेना प्रमुख ने ऐसा किया भी, जिसके बाद झिंगन और 24 अन्य महिलाओं ने भारतीय सेना में अपनी यात्रा शुरू की। जब वह सेवानिवृत्त हुईं, तो उन्होंने कहा, “यह एक सपना है, जिसे मैं पिछले 10 सालों से हर दिन जी रही हूं।”
5. दिव्या अजित कुमार (Women in Armed Forces)
21 साल की उम्र में, दिव्या अजित कुमार ने 244 साथी कैडेटों (पुरुष और महिला दोनों) को हराकर सर्वश्रेष्ठ ऑल-राउंड कैडेट का पुरस्कार जीता और प्रतिष्ठित “स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर” प्राप्त किया। यह अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी के एक कैडेट को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।
“स्वॉर्ड ऑफ ऑनर” हासिल करने के लिए, योग्यता सूची में जीत हासिल करनी होती है, जिसमें पी.टी. परीक्षण, उच्च पी.टी. परीक्षण, तैराकी परीक्षण, फील्ड ट्रेनिंग, सर्विस सब्जेक्ट्स, बाधा प्रशिक्षण, ड्रिल परीक्षण, क्रॉस-कंट्री एन्क्लोज़र्स, आदि शामिल हैं। भारतीय सेना के इतिहास में यह सम्मान जीतने वाली पहली महिला, कैप्टन दिव्या अजित कुमार ने 2015 में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान 154 महिला अधिकारियों और कैडेटों की एक महिला दल का नेतृत्व किया।
6. निवेदिता चौधरी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट निवेदिता चौधरी, माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली भारतीय वायु सेना (IAF) की पहली महिला और यह उपलब्धि हासिल करने वाली राजस्थान की पहली महिला बनीं। अक्टूबर 2009 में कुछ ही समय पहले आगरा में स्क्वाड्रन में शामिल हुईं IAF अधिकारी, चौधरी ने एवरेस्ट पर महिला अभियान के लिए स्वयंसेवकों के लिए एक प्रसारण बुला दिया।
उनकी टीम की अन्य महिलाएं, स्क्वाड्रन लीडर निरुपमा पांडे और फ्लाइट लेफ्टिनेंट रजिका शर्मा ने भी पांच दिन बाद चोटी पर चढ़ाई पूरी कर ली थी।
7. अंजना भदौरिया
अंजना भदौरिया, भारतीय सेना में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला हैं। वह हमेशा से भारतीय सेना में एक अधिकारी बनना चाहती थीं। माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी पूरा करने के बाद, अंजना ने विमेन स्पेशल एंट्री स्कीम (WSES) के ज़रिए, सेना में महिला अधिकारियों को शामिल करने के एक विज्ञापन को देख आवेदन किया और 1992 में भारतीय सेना में महिला कैडेटों के पहले बैच में उनका भी चयन हो गया।
प्रशिक्षण के दौरान, हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए, उन्हें एक बैच से स्वर्ण पदक के लिए चुना गया, जिसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल थे। उन्होंने 10 साल तक भारतीय सेना में सेवा दी।
8. प्रिया सेमवाल (Women in Armed Forces)
सशस्त्र बलों में एक अधिकारी के रूप में शामिल होने वाली पहली सेना के जवान की पत्नी के रूप में, प्रिया सेमवाल ने इतिहास रच दिया। प्रिया ने अपने पति को विद्रोह विरोधी अभियान में खो दिया था। जिसके बाद, साल 2014 में एक युवा अधिकारी के रूप में उन्हें सेना के इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग (ईएमई) के कोर में शामिल किया गया था।
जब 4 साल की ख्वाहिश शर्मा की 26 वर्षीया मां, प्रिया सेमवाल ने अपने पति, 14 राजपूत रेजिमेंट में सेवारत नायक अमित शर्मा की मृत्यु के बारे में सुना, तो उनका भविष्य अंधकारमय लग रहा था। साल 2012 में अरुणाचल प्रदेश में पहाड़ी तवांग के पास एक आतंकवाद विरोधी अभियान में उनके पति, नायक अमित शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए थे। तब प्रिया ने अपने पति और अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्यार को संजोने के लिए सेना में शामिल होने का फैसला किया।
9. दीपिका मिस्र
साल 2006 में, दीपिका मिस्र हेलीकॉप्टर एरोबेटिक टीम, सारंग के लिए प्रशिक्षित करने वाली पहली IAF महिला पायलट बनीं। दिसंबर 2006 में वायु सेना अकादमी में पासिंग आउट परेड के दौरान, दीपिक (तब एक फ्लाइट कैडेट थीं) को पहली बार सूर्य किरण और सारंग, भारतीय वायुसेना की फिक्स्ड-विंग और रोटरी-विंग एरोबेटिक डिस्प्ले टीमों द्वारा एरोबेटिक प्रदर्शनों से प्यार हो गया।
जब IAF ने 2010 में सारंग टीम के लिए महिला पायलटों को वॉलंटियर करने की मांग की, तो उन्होंने तुरंत इस मौके को लपक लिया और स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर दस्ते में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं।
10. सोफिया कुरैशी
कोर ऑफ सिग्नल्स की लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने साल 2016 में आयोजित आसियान प्लस बहुराष्ट्रीय क्षेत्र प्रशिक्षण अभ्यास फोर्स 18 में भारतीय सेना के एक प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बन इतिहास रच दिया था।
सोफिया, अभ्यास के लिए उपस्थित सभी आसियान प्लस टुकड़ियों में एकमात्र महिला अधिकारी आकस्मिक कमांडर थीं। भारतीय सेना के सिग्नल कोर की अधिकारी, 35 वर्षीया कुरैशी को भारतीय दल का नेतृत्व करने के लिए शांति रक्षक प्रशिक्षकों के एक पूल से चुना गया था।
11. शांति तिग्गा
सैपर शांति तिग्गा (Women in Armed Forces) कोई साधारण महिला नहीं थीं। वह भारतीय सेना में पहली महिला जवान थीं और उन्होंने 35 वर्ष की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की, तब उनके दो बच्चे भी हो चुके थे। इसके बावजूद, प्रशिक्षण के दौरान, शारीरिक फिटनेस परीक्षणों में उन्होंने अपने अन्य सभी पुरुष साथियों को हरा दिया था।
उन्होंने ट्रेनिंग के समय, 12 सेकंड में 50 मीटर की दौड़ पूरी की और सभी पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए 5 सेकंड के अतिरिक्त समय के साथ 1.5 किमी की दौड़ पूरी की। बंदूकों को संभालने में उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें निशानेबाज का सर्वोच्च स्थान दिलाया। अपने बैच की सर्वश्रेष्ठ ट्रेनी, टिग्गा साल 2011 में प्रादेशिक सेना की 969 रेलवे इंजीनियर रेजिमेंट में शामिल हुईं। हालांकि, उनकी एक दुखद मौत हुई, लेकिन उन्हें हमेशा उनके कौशल और वीरता के लिए याद किया जाएगा।
12. गनीव लालजी
एक युवा खुफिया अधिकारी, लेफ्टिनेंट गनीव लालजी (Women in Armed Forces) ने सेना कमांडर की मुख्य सहयोगी के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रच दिया। तीसरी पीढ़ी की सेना अधिकारी, लेफ्टिनेंट लालजी को साल 2011 में सैन्य खुफिया कोर में नियुक्त किया गया था और उन्होंने पुणे में अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के दौरान कई उपलब्धियां हासिल कीं।
13. गुंजन सक्सेना
कारगिल युद्ध के दौरान, फ्लाइट ऑफिसर गुंजन सक्सेना (Women in Armed Forces) ने युद्ध क्षेत्र में उड़ान भरने वाली पहली महिला IAF अधिकारी बनकर इतिहास रच दिया। 1994 में, गुंजन सक्सेना, महिला IAF प्रशिक्षु पायलटों के पहले बैच में शामिल 25 युवा महिलाओं में से एक थीं।
कारगिल के दौरान, सक्सेना ने युद्ध क्षेत्र के माध्यम से सैनिकों को हवाई आपूर्ति करने और भारतीय सेना के घायल सैनिकों को निकालने के लिए दर्जनों हेलीकॉप्टर उड़ानें भरीं। बाद में, वह ‘शौर्य वीर पुरस्कार’ से सम्मानित होने वाली पहली महिला भी बनीं।
मूल लेखः संचारी पाल
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