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संघर्ष, संतोष, संबल और ज़मीन से जुड़ाव, कहानी अभिनेता राजेश तैलंग की

Rajesh Tailang

चाहे ‘मिर्ज़ापुर’ के रमाकांत पंडित हों, ‘दिल्ली क्राइम’ के इंस्पेक्टर भूपेंद्र सिंह या ‘सिलेक्शन डे’ के मोहन कुमार।
एक सधा सा, गंभीर चेहरा आपके दिल में उतर जाता है और उसका दमदार अभिनय दिग्गज एक्टरों की भीड़ की चकाचौंध को चीरकर, आपके दिमाग में छप जाता है। इस एक्टर का नाम इतना सादा और सामान्य है कि भीड़ में हर दूसरा शख्स, आपको इनके नाम का मिल जाएगा। यह हम नहीं कह रहे, ये कह रहे हैं खुद अभिनेता राजेश तैलंग (Rajesh Tailang)!

हमेशा से प्रभावशाली काम करने के इच्छुक राजेश को NSD के वॉशरूम में अपनी ज़िन्दगी का सबसे पहला चांस मिला था, वह भी भारत के पहले डेली सोप ‘शांति’ के लिए। 

राजेश तैलंग धारावाहिक शांति में

शांति में पूरे तीन साल तक ‘मनु’ का किरदार निभाने के बाद, शायद आगे इस लाइन का आना बनता था कि ‘उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा!’
लेकिन ऐसा हुआ नहीं… और इस बात का राजेश (Rajesh Tailang) को कोई मलाल भी नहीं है, क्योंकि वह तो कहते हैं कि उन्होंने कभी अपनी मंज़िल तय ही नहीं की, बस हमेशा रास्ते का मज़ा लिया है!

राजेश (Rajesh Tailang) ने हमेशा इस बात पर ज्यादा तवज्जो दी है कि अच्छा हो या बुरा, अपने काम को वह पूरी ईमानदारी से निभाएं। 
शायद यही वजह रही होगी कि अपने हर किरदार को उन्होंने इतनी शिद्दत से निभाया कि मंज़िल उन्हें अपने आप ही ढूँढने लगी। 

साल 2013 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सिद्धार्थ’ ने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उन्हें पहचान दिलाई। तो वहीं, OTT प्लेटफार्म के आ जाने से एक लंबे इंतज़ार के बाद, उन्हें वे रोल मिलने लगे, जिनकी उन्हें हमेशा से तलब थी। लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए राजेश ने एक लंबा सफर तय किया था। 

NSD के दिनों से मित्र रहे अभिनेता अनूप सोनी संग राजेश तैलंग

द बेटर इंडिया के साथ एक फुर्सत भरी बातचीत में राजेश (Rajesh Tailang) ने बताया,

“शांति के बाद मुझे सीरियल्स के ही ऑफर आते थे और मैं फ़िल्में करना चाहता था। दरअसल, टेलीविज़न एक ऐसी चीज़ है, जिसमें इंस्टेंट फेम मिलती है, लेकिन वह लॉन्ग लास्टिंग नहीं होती। टेलीविज़न, अखबार की तरह है, आज है तो है, कल रद्दी। पर फ़िल्में उपन्यास की तरह होती हैं, जो लोग बार-बार पढ़ते हैं, अपने घर की अलमारी में रखते हैं। मुझे फिल्मों के भी ऑफर आए, लेकिन एक-दो सीन वाले। तो मैं दिल्ली वापस चला आया और यहीं थिएटर करने लगा। NSD में पढ़ाने लगा।”  

कोई और होता, तो शायद हताशा में छोटे-मोटे रोल ही कर लेता और चुपचाप भीड़ में चलता रहता। पर अपने नाम से उलट, राजेश भीड़ से अलग थे। उन्होंने अपना फोकस बिलकुल साफ़ रखा – अपनी प्रतिभा को निखारना!

गुल्लक बड़ी नाज़ुक होती है,
मज़बूत होता है
न तोड़ने का इरादा
महफूज़ रखता है
कच्ची गुल्लक को।
– राजेश

लगभग 5-6 सालों तक यही सिलसिला चलता रहा और फिर 2012 में राजेश को आखिर उस किरदार को निभाने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने अपनी बरसों की तपस्या का निचोड़ उंडेलकर रख दिया। 
यह फिल्म थी 2013 में आई रिची मेहता की ‘सिद्धार्थ’, जिसे विश्व पटल पर सम्मान मिला और अभिनय की समझ रखनेवाले दिग्गजों में राजेश तैलंग (Rajesh Tailang) का भी नाम लिया जाने लगा। 

फिल्म ‘सिद्धार्थ’ में राजेश तैलंग

इस फिल्म के मिलने के पीछे की कहानी बताते हुए राजेश कहते हैं कि दरअसल, उन्होंने साल 2007 में आई रिची मेहता की फिल्म ‘अमल’ के लिए डायलॉग्स लिखे थे और फिल्म में एक बहुत छोटा सा रोल भी किया था – एक ढाबेवाले का। उस छोटे से रोल से भी राजेश ने अपने अभिनय की ऐसी छाप छोड़ी कि जब सालों बाद, रिची ने ‘सिद्धार्थ’ बनाई तो उन्हें इसके लीड रोल के लिए सबसे पहले राजेश का ही नाम याद आया। 

शायद तभी, राजेश (Rajesh Tailang) कहते हैं, “मुझे यूँ लगता है कि जब मौके आने होते हैं, तो आते हैं, आप अपना अच्छा काम करते रहिए, किसी न किसी की नज़र तो पड़ती ही है।”

…और अब सच में इस लाइन को लिखा जा सकता है कि ‘इसके बाद राजेश ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा’!
इसके तुरंत बाद, राजेश को हॉलीवुड की फिल्म ‘द सेकंड बेस्ट एग्जॉटिक मैरीगोल्ड होटल’ में रिचर्ड गेयर, ज्यूडी डेंच, मैगी स्मिथ और देव पटेल जैसे बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। 

इधर बॉलीवुड में भी राजेश के लिए फिल्मों की लाइन लग गई। 26 साल की उम्र में अपनी पहली फ़िल्म ‘हजार चौरासी की माँ’ में 60 साल के बुज़ुर्ग का किरदार निभाने वाले इस नायक को, अब एक से बढ़कर एक रोल मिलने लगे। हसीना पारकर, फैंटम, ओमेरटा, मुक्काबाज़, अय्यारी जैसी फ़िल्मों से राजेश एक जाना माना चेहरा बन गए। 

….और फिर आया वेब सीरीज़ का दौर। इस बार राजेश को भारत के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय वेब सीरीज में से एक, ‘मिर्ज़ापुर’ का ऑफर मिला। 
लगभग हमेशा से डेली सोप से दूर भागने वाले राजेश (Rajesh Tailang) के लिए यह बिलकुल नया प्रयोग था!

लेकिन वह कहते हैं, “वेब सीरीज़ ने तस्वीर काफी बदल दी है। जैसा कि मैंने कहा था कि डेली सोप अख़बार की तरह बासी हो जाते हैं। उधर फ़िल्में अमूमन हमेशा सिर्फ मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। लेकिन वेब सीरीज़, फिल्मों की तरह हमेशा के लिए एक गहरी छाप भी छोड़ती हैं और इनमें फिल्मों से विपरीत, हर किरदार के लिए अपनी अभिनय क्षमता दिखाने के लिए वाजिब जगह भी होती है।”

वेब सीरीज बंदिश बैंडिट में राजेश तैलंग, अभिनेत्री शीबा चड्ढा के साथ


हम जो दिल से पैदल लोग हैं न
घर की देहरी से निकलते ही
दूसरा कदम
सीधा चॉंद पर रख देते हैं
घर लौटना अक्सर
मुश्किल होता है हमारा
– राजेश


किसे पता था कि बीकानेर के एक साधारण परिवार से आनेवाला, शर्मिला सा, सादी शक्ल वाला यह लड़का, एक दिन यहां तक पहुंच जाएगा।
पर राजेश ने बहुत पहले ही तय कर लिया था कि वह एक्टर बनेंगे। राजेश के दादा ध्रुपद गायक थे, बड़े भाई नामवर कार्टूनिस्ट बने। घर कलाकारों का ही था, पर एक्टिंग का कहीं से कोई वास्ता न था। फिर, फिल्मों से नाता जुड़ा कैसे?

यह किस्सा भी खासा दिलचस्प है। दरअसल, राजेश के पिता की बीकानेर में प्रिंटिंग प्रेस थी। यहां एक सिनेमा हॉल के टिकट छपा करते थे। टिकट देने के लिए अक्सर पिता, राजेश को भी संग ले जाते थे। वहां प्रोजेक्टर रूम में बैठा राजेश, फिल्म और तकनीकी की गहराइयों को जितना समझता उतना ही, उसमें तन्मय हो जाता। पिता ने राजेश की इस रुचि को पहचाना और दिल्ली से उसे एक पिन-होल कैमरा ला दिया। साथ में, चांदनी चौक से कुछ रील के टुकड़े भी।


बस, अब छोटे राजेश साहब टिकटों पर बच्चों को फिल्में दिखाते और खूब मजे लेते। छुट्टियों में दिल्ली जाते, तो NSD में बच्चों की वर्कशॉप में हिस्सा लेते और यहीं से तय हो गया कि फिल्मों में ही करियर बनाना है। NSD में दाखिले के लिए ग्रेजुएशन और 10 नाटक करने जरूरी थे, तो राजेश ने गणित में बीएससी कर ली और साथ में कॉलेज में रहते-रहते ही, 10 से ज्यादा नाटक भी कर लिए। इरादा इतना पक्का था कि एक ही बार में NSD में दाखिला भी हो गया और बाकी तो इतिहास है!

NSD रंगमंच पर राजेश तैलंग, अभिनेता अनूप सोनी और आदिल हुसैन के साथ

“एक अभिनेता ज़्यादा से ज़्यादा एक कवि हो सकता है और कम से कम एक मनोरंजक!”- मार्लोन ब्रांडो

मार्लोन ब्रांडो की इस बात को भी सार्थक करते हैं राजेश (Rajesh Tailang)। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वह एक बेहतरीन लेखक और कवि भी हैं। अब तक इस लेख में आपने जितनी भी कविताएं पढ़ी हैं, वे सारी राजेश तैलंग ने ही लिखी हैं।
ऐसी ही कई रूहानी कविताओं का संग्रह है उनकी किताब ‘चाँद पे चाय’!


‘चाँद पे चाय’ आजकल प्रेमियों में सबसे अधिक चर्चित किताबों में से एक है। और हो भी क्यों न, आखिर इन प्रेम की कविताओं को पढ़कर खुद गुलज़ार साहब ने लिखा है, “राजेश तैलंग शोहरत के हाईवे के राहगीर हैं। खूबसूरत कवितायेँ लुटाते आगे बढ़ रहे हैं। यह हाईवे शायद चाँद पर पहुँच कर रुके!” 

पर इतने गंभीर दिखने वाले और शर्मीले स्वभाव का व्यक्ति कैसे लिख लेता है –
“मेरी कवितायें मत फाड़ना,
ये दस्तावेज़ हैं इतिहास का,
इन्हीं से तो जानेंगे आने वाले लोग,
तेरी सुंदरता और मेरा पागलपन!”


तो इसपर राजेश (Rajesh Tailang) कहते हैं कि 15 साल की उम्र से ही उन्होंने डायरी लिखना शुरू कर दिया था और 17 साल के होते-होते उन्हें प्रेम हो गया। बस, वहीं से शुरू हुआ प्रेम कविताओं का सिलसिला। ‘चाँद पे चाय’ इन्हीं गहरे प्रेम संवादों से लबरेज़ है और इसे राजेश ने समर्पित किया है ‘तुम्हें’!

यह ‘तुम्हें’ कौन है? यह पूछने पर वह बस इतना कहते हैं,”जो ‘तुम्हें’ है वह जान जाएगा, बस यही काफी है।” और वह हंस पड़ते हैं। 
डायरी लिखता था
अपने लिए लिखता था
लिखना ही मुकम्मल था
पढ़ने के लिए नहीं थी वह
कविता लिखता हूं
छपने के लिए नहीं लिखता
तेरे लिए लिखता हूं
तू पढ़ ले बस
मुक्कमल हो जायेगी
हर अधूरी कविता!

– राजेश

इसे मुकम्मल करने लिए आप भी ज़रूर पढ़ें ‘चॉंद पे चाय’!
और इस लेख को पढ़कर मुक्कमल करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया 🙂

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