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‘द ब्लैक टाइगर’: रॉ के एक अंडर कवर एजेंट रवींद्र कौशिक के अविश्वसनीय जीवन की सच्ची कहानी

RAW Agent Black Tiger Ravindra Kaushik

“क्या भारत जैसे बड़े देश के लिए कुर्बानी देने वालों को यही मिलता हैं?” अथाह पीड़ा से भरे ये शब्द रवींद्र कौशिक (Ravindra Kaushik) की कलम से उस वक्त निकले थे, जब वह पंजाब (पाकिस्तान) की सेंट्रल जेल मियांवाली में कैद थे। वह यकीनन देश के सबसे प्रमुख अंडरकवर जासूस (RAW Agent Black Tiger) थे। लेकिन देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को सम्मान न तो जीते जी मिला और न ही मरने के बाद। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 16 सालों का अधिकांश समय इसी जेल में बिताया था।

रवींद्र ने महज 23 साल की उम्र में भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करना शुरु कर दिया था। उन्हें अंडरकवर एजेंट बनाकर पाकिस्तान भेजा गया, जहां वह सेना में मेजर बन गए। सीमा पार से उनके द्वारा दी गई संवेदनशील जानकारी काफी महत्वपूर्ण थी और देश के लिए काफी मायने रखती थी। जिसकी वजह से उन्हें ‘ब्लैक टाइगर’ की उपाधि दी गई। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद उनके बहुमूल्य योगदान के चलते, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें इस नाम से नवाजा था।

बायोपिक में सलमान खान

अंडर कवर एजेंट (RAW Agent Black Tiger) रवींद्र के जीवन के संघर्ष पर फिल्म निर्माता राज कुमार गुप्ता एक फिल्म बनाने जा रहे हैं, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को मुख्य भूमिका के लिए चुना गया है। राजकुमार को उनकी आमिर (2008) और नो वन किल्ड जेसिका (2011) जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए जाना जाता है। 

राज कुमार गुप्ता ने कहा, “रविंद्र कौशिक भारत के सबसे बड़े जासूस थे। उनकी एक भावनात्मक और उल्लेखनीय कहानी है। मैं उनके परिवार का आभारी हूं कि उन्होंने मुझ पर भरोसा किया और मुझे इस अविश्वसनीय कहानी को एक फिल्म में बदलने का अधिकार दिया।” 

क्या है पूरी कहानी? 

भारत-पाकिस्तान सीमा के करीब एक राजस्थानी शहर श्रीगंगानगर में 11 अप्रैल, 1952 को जन्मे रवींद्र, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि में बड़े हुए थे। एसडी बिहानी कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी। उन्हें आज भी एक करिश्माई छात्र के रूप में याद किया जाता है। यहीं से उनकी दिलचस्पी नाटक और मिमिक्री करने में बढ़ने लगी थी। 21 साल की उम्र में, उन्होंने लखनऊ में आयोजित एक राष्ट्रीय नाट्य समारोह में हिस्सा लिया था।

रवींद्र के छोटे भाई राजेश्वरनाथ कौशिक बताते हैं, “शायद कॉलेज में उनका एक मोनो-एक्ट था, जिसमें उन्होंने एक ऐसे भारतीय सेना अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जो चीन को जानकारी देने से इनकार कर देता है। यहीं पर उन्होंने खुफिया अधिकारियों का ध्यान अपनी ओर खींचा था।”

1973 में अपनी बीकॉम की डिग्री पूरी करने के बाद, रवींद्र ने अपने पिता से कहा कि वह नौकरी करने के लिए दिल्ली जा रहे हैं। असल में, यह रॉ के साथ उनकी दो साल की ट्रेनिंग की शुरुआत थी।

रवींद्र कौशिक (Ravindra Kaushik) को पहले से ही पंजाबी काफी अच्छे से आती थी। अधिकारियों ने उन्हें उर्दू सिखाई,  इस्लामी शास्त्रों से परिचित कराया और उन्हें पाकिस्तान के हर जगह की पूरी जानकारी दी गई। ताकि उन्हें “निवासी एजेंट” के रूप में पाकिस्तान भेजा जा सके। उनका कथित तौर पर एक खतना भी कराया गया, जो मुस्लिम धार्मिक समुदाय में पुरुषों के लिए आमतौर पर जरूरी माना जाता है। 

पाकिस्तानी सेना में बने मेजर

RAW Agent Black Tiger

जब वह पाकिस्तान गए और इस्लामाबाद के निवासी उर्फ ​​’नबी अहमद शाकिर’ बन गए, तब उनके 1975 तक के सभी आधिकारिक भारतीय रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए। कराची विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री पूरी करने के बाद, वह पाकिस्तानी सेना में, सैन्य लेखा विभाग में एक कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हो गए। बाद में उन्हें मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया।

पाकिस्तान में एक सम्मानित स्थान हासिल करने के बाद, रवींद्र 1979 और 1983 के बीच भारतीय रक्षा अधिकारियों को वहां की गोपनीय जानकारी देते रहे। उनके द्वारा भेजी गई जानकारी उस समय देश में बढ़ते संघर्ष के दौरान काफी महत्वपूर्ण साबित हुई थी। 

उन्होंने अमानत नाम की एक स्थानीय महिला से शादी भी की थी, जो पाकिस्तानी सेना के एक यूनिट में दर्जी की बेटी थी। अमानत के बारे में कहा जाता है कि उसे भी रवींद्र की असली पहचान नहीं पता थी। जबकि, कुछ प्रकाशनों के अनुसार, उनका एक बेटा था। कई अन्य रिपोर्ट्स कहती हैं कि रवींद्र कौशिक (Ravindra Kaushik) एक बेटी के पिता थे। Quora यूजर्स भी उनके परिवार के वर्तमान ठिकाने के बारे में अनुमान लगाते रहे हैं। 

शानदार जीवन का दुखद अंत?

सितंबर 1983 में, आठ साल बाद रवींद्र कौशिक (Ravindra Kaushik ) की गुप्त पहचान सबके सामने आ गई। दरअसल, रॉ ने रवींद्र कौशिक (Ravindra Kaushik से संपर्क करने के लिए एक अन्य अंडरकवर एजेंट इनायत मसीहा को पाकिस्तान भेजा था। जब पाकिस्तानी सैनिकों ने उससे कड़ी पूछताछ की, तो उसने अपने काम और रवींद्र के बारे में खुलासा कर दिया।

पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के निर्देश पर, मसीहा ने 29 साल के रवींद्र को एक पार्क में मिलने के लिए बुलाया। वहां उसे जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दो साल तक, उन्हें सियालकोट के एक पूछताछ केंद्र में प्रताड़ित किया जाता रहा। 

1985 में, पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने रवींद्र को मौत की सज़ा सुनाई। लेकिन बाद में उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। उन्हें सियालकोट, कोट लखपत और मियांवाली समेत कई जेलों में रखा गया था। फिर भी, वह गुप्त रूप से अपने परिवार को कम से कम आधा दर्जन पत्र लिखने में कामयाब रहे। अपने इन पत्रों में उन्होंने अपने साथ बीती दर्दनाक घटनाओं के बारे में जानकारी दी थी। 

हृदय रोग और फेफड़ों में टीबी के कारण नवंबर 2001 में उनकी मौत हो गई। अपनी मौत से ठीक तीन दिन पहले लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था, “अगर मैं एक अमेरिकी होता, तो तीन दिन में इस जेल से बाहर आ जाता।” उन्हें न्यू सेंट्रल मुल्तान जेल में दफनाया गया था।

‘हमें पैसा नहीं, पहचान चाहिए’

जयपुर में रह रहे रवींद्र के परिवार को कोट लखपत अधीक्षक द्वारा भेजे गए एक पत्र में उनकी मृत्यु की सूचना दी गई थी। अपने बेटे की मौत की खबर मिलने के कुछ दिन बाद उनके पिता की भी हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। वह एक सेवानिवृत्त भारतीय वायु सेना अधिकारी थे। 

एक रिपोर्ट के अनुसार, रवींद्र के भाई राजेश्वरनाथ और माँ अमलादेवी ने उनकी रिहाई कराने के लिए भारत सरकार को कई पत्र लिखे। सभी पत्रों के जवाब में विदेश मंत्रालय से सिर्फ एक नीरस प्रतिक्रिया मिली थी- “उनका मामला पाकिस्तान के साथ उठाया गया है।”

अमलादेवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखे एक पत्र में लिखा था, “अगर उनका पर्दाफाश नहीं किया गया होता, तो कौशिक (Ravindra Kaushik) अब तक पाकिस्तान सरकार के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी होते और सालों तक अपनी जिम्मेदारी (गुप्त रूप से भारत की सेवा) निभाते रहते।”

एक अन्य पत्र में लिखा गया, “सरकार ने कभी भी … जब कौशिक मर रहे थे, समय पर दवाएं नहीं भेजीं। हालांकि एक जासूस के तौर पर वह सही थे…उन्होंने अपने देश के कम से कम 20 हजार सैनिकों की जान बचाई थी।”

अपनी मातृभूमि से 26 साल दूर रहने के बावजूद, रवींद्र (Ravindra Kaushik) को उनके बलिदान के लिए कभी भी आधिकारिक स्वीकृति नहीं मिली। राजेश्वरनाथ ने कहा, “हम सरकार से चाहते हैं कि वह एजेंटों के योगदान को मान्यता दें, पहचान दें। क्योंकि वे सुरक्षा प्रणाली की वास्तविक नींव हैं।” परिवार को शुरू में 500 रुपये प्रतिमाह दिए जाते थे। बाद में 2006 से उन्हें 2,000 रुपये प्रति माह दिए जाने लगे। तब तक उनकी माँ अमलादेवी का देहांत हो चुका था। 

देश के लिए वह बस एक एजेंट थे

राजेश्वरनाथ ने कहा, “भले ही, देश के लिए वह सिर्फ एक एजेंट था। लेकिन वह मेरे लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा।”

रविंद्र की बायोपिक (Ravindra Kaushik Biopic) बनने पर उन्हें कैसा लग रहा है, इस बारे में उन्होंने स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा। लेकिन रवींद्र की बहन शशि वशिष्ठ कहती हैं, “कई लोगों ने हमसे फिल्म बनाने के लिए संपर्क किया था, लेकिन ऐसा करना कभी सही नहीं लगा। यह हमारे लिए बहुत ही पर्सनल है। लेकिन जब राज कुमार गुप्ता ने बात की, तो हम तैयार हो गए, हमें उन पर पूरा विश्वास है। वह एक समझदार फिल्म निर्माता हैं और मेरे भाई की कहानी को पहली बार लोगों के सामने लाने के लिए सही व्यक्ति भी।”

उनके बेटे और रवींद्र के भतीजे विक्रम ने आरोप लगाया कि साल 2015 में, सलमान खान-स्टारर ‘एक था टाइगर फिल्म’ की कहानी और उनके चाचा के जीवन की कहानी में काफी समानता थी। उन्होंने फिल्म के निर्माताओं से क्रेडिट की मांग भी की थी।

मूल लेखः तूलिका चतुर्वेदी

संपादनः अर्चना दुबे

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