मेरा घर बिहार के पूर्णिया जिला में है, जहां से दार्जिलिंग नजदीक है। वहां की चायपत्ती बहुत मशहूर है। जो चाय के शौकीन होते हैं, वहां से लंबी पत्ती वाली चाय जरूर लाते हैं। इस चाय को जितना धीरे-धीरे आप पीएंगे, स्वाद उतना ही बढ़ता जाएगा। आज हम आपको जिस अभिनेता – कलाकार से मिलवाने जा रहे हैं, उनके बारे में भी यही कहा जाता है कि वह अपने अभिनय से फिल्म का स्वाद बढ़ा देते हैं, ठीक दार्जिलिंग चाय की तरह।
ठंड का आगमन हो चुका था। सुबह-सुबह कोहरे ने जाल बिछाना शुरू कर दिया था। इसी दौरान खबर आती है कि एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में अभिनेता पंकज त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी इलाके के आसपास आए हैं। बस फिर क्या, निकल पड़े उस अभिनेता से मिलने, जिसके लिए अपने पास एक ही शब्द है- ऑर्गेनिक।
कोई व्यक्ति अगर इस चकमक दुनिया में ठसक से गांव को साथ लेकर चल रहा है, तो वह पंकज त्रिपाठी ही हैं। पंकज त्रिपाठी होना यदि चुनौती है, तो वहीं एक सहज अभ्यास भी है।
शाम में पंकज जी से मुलाकात होती है। वह शूटिंग के सिलसिले में एक सुदूर चाय बगान के गेस्ट हाउस में ठहरे थे। चाय की चुस्की संग अपने निर्देशक से वह बातचीत कर रहे थे। फिर नजर टकराती है और वह पास बुला लेते हैं। और फिर यहां से शुरु होती है एक सहज-सरल अभिनेता से गुफ्तगू।
पंकज त्रिपाठी से बात करते हुए अक्सर लगता है कि आप अपने घर परिवार के किसी ऐसे शख्स से गुफ्तगू कर रहे हैं, जिसके पास जीवन के अनुभवों का भंडार है। अभी हाल ही में ‘द बेटर इंडिया’ की एक किताब आई है The Book of Hope. इस किताब में देश के उन सामान्य लोगों की कहानियां हैं, जिन्होंने अपने स्तर पर समाज में कुछ बदलाव लाने की कोशिश की है। यहां इस किताब का जिक्र इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि पंकज त्रिपाठी भी एक उम्मीद हैं, एक ऐसी उम्मीद, जिसके बल पर, आप भागमभाग जीवन शैली में, अपने आप को बचाकर रख सकते हैं।
पंकज त्रिपाठी बातचीत में अपने गांव को याद करते हैं, कहानी-कविता को याद करते हैं और इन सबके बीच सहजता से हिंदी पट्टी को आपके सामने परोस देते हैं। उनकी आंखों में आप अपने शहर, गांव ऑफिस, सब अनुभव कर सकते हैं।
वह हिंदी के लोकप्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के प्रशंसक हैं। उन्होंने रेणु की लिखी ढेर सारी कहानियों का मंचन किया है। ऐसे में बातचीत में गाहे-बगाहे रेणु भी आते रहे। उन्होंने कहा कि काम से छुट्टी मिलते ही वह रेणु के अंचल की यात्रा करेंगे।
पंकज त्रिपाठी इन दिनों काफी व्यस्त हैं। एक अभिनेता के लिए यह सबसे अच्छी बात मानी जाती है कि उसके पास फिल्मों की लाइन लगी है। डिजीटल स्पेस से लेकर बड़े पर्दे तक पंकज त्रिपाठी की आवाजाही, एक अलग रंग में अभी हम सब देख रहे हैं। वह एक ऐसे कलाकार हैं जो हर किरदार को बखूबी अपना बना लेते हैं। वह जल्द ही फिल्म 83 में नजर आने वाले हैं। इसमें वह भारतीय क्रिकेट टीम के प्रबंधक पीआर मान सिंह बने हैं।
लेकिन, अपनी व्यस्तताओं को लेकर पंकज त्रिपाठी की राय कुछ अलग है। वह बस काम करना चाहते हैं, एक ईमानदार काम। उनकी बात को सुनते हुए मुझे उनकी ही एक फिल्म गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल की याद आ गई। आप इस फिल्म को ध्यान से देखेंगे तो एक छोटे से दृश्य में ईमानदार काम की व्याख्या मिलेगी। फिल्म की मुख्य पात्रा गुंजन एक रात अपने पिता (अभिनेता पंकज त्रिपाठी) को जगाती है और पूछती है
– “पापा, एयरफोर्स में ऐसे कैडेट्स होने चाहिए, जिनमें देशभक्ति हो। मुझे तो बस प्लेन उड़ाना है। इस ख़्वाब को पूरा करने के चक्कर में, मैं देश के साथ गद्दारी तो नहीं कर रही हूं?”
इस सवाल पर पिता का जवाब, हम सभी को सुनना चाहिए और याद भी रखना चाहिए। पंकज त्रिपाठी पहले बेटी से पूछते हैं – “गद्दारी का विपरीत क्या होता है?”
गुंजन कहती है – “ईमानदारी”.
फिर वह उसे कहते हैं – “तो अगर तुम अपने काम में ईमानदार हो, तो देश के संग गद्दारी कर ही नहीं सकती। तुम्हें क्या लगता है, एयरफोर्स को ‘भारत माता की जय चिल्लाने वाले चाहिए? उन्हें बेटा, वैसे कैडेट्स चाहिए, जिनका कोई लक्ष्य हो, जोश हो, जो मेहनत और ईमानदारी से अपनी ट्रेनिंग पूरी करें, क्योंकि वही कैडेट्स आगे चलकर बेहतर ऑफिसर बनते हैं और देश को अपना बेस्ट देते हैं। तुम सिनसिएरिटी से, हार्ड वर्क से, ईमानदारी से एक बेहतर पायलट बन जाओ, देशभक्ति अपने आप हो जाएगी…”
पंकज त्रिपाठी का यह संवाद केवल फिल्म में ही नहीं है, बल्कि इस संवाद के संग वह जीते भी हैं। उनसे बात कर, तो यही अहसास हुआ।
बातचीत में वह यात्राओं का खूब जिक्र करते हैं। उनका मानना है कि लोगों को खूब घूमना चाहिए। देश के हर कोने को देखना चाहिए, लोगों से संवाद करना चाहिए। वह कहते हैं, “इस दौर में संवाद का सबसे अधिक अभाव है। लोगों को बातचीत करना चाहिए, खूब घूमना चाहिए।”
माटी से जुड़ाव को लेकर जब उनसे बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि आप कहीं भी काम करें, लेकिन अपनी जड़ से जरूर जुड़े रहें। जैसा कि हम सबको पता है कि वह अक्सर बिहार के गोपालगंज स्थित अपने गांव जाते रहते हैं। वह कहते हैं, “मेरे गांव में एक नदी है, जो गांव से ज्यादा मेरे अंदर बहती है।”
‘स्टार’ शब्द को जब आप किसी अभिनेता से जोड़ देते हैं तो अभिनेता को लेकर लोगों की उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं, लेकिन पंकज त्रिपाठी से जब इस मुद्दे पर आप सवाल करते हैं तो कबीर जैसी सहजता का आभास होता है। वह कहते हैं, “आज मैं बहुत सारे प्लेटफार्म पर दिखता हूं और लोग मुझसे प्रेम करते हैं। लेकिन जब यह नहीं रहेगा, तो भी मैं जो हूं, वह तो रहूंगा ही। मैं जानता हूं कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं रहता।”
एक अभिनेता से यह सब सुनने का एक अलग ही सुख है। पंकज त्रिपाठी को आप घंटों सुन सकते हैं। वह बातचीत में कवियों का जिक्र करते हैं, कहानियां सुनाते हैं। यह सब करते हुए, वह कमाल के किस्सागो लगते हैं।
इन दिनों अपनी शूटिंग संबंधी यात्राओं के दौरान, पंकज त्रिपाठी एक वाद्य यंत्र भी साथ लेकर चलते हैं, जिसका नाम है- Harmony Handpan.
और चलते – चलते उन्होंने उज्जैन के महाकाल मंदिर की अगबत्ती हाथ में थमा दी और कहा, “इसकी खुश्बू कमाल है, जीवन में सुगंध बनी रहनी चाहिए।”
– गिरीन्द्रनाथ झा
संपादन – मानबी कटोच
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